श्मशान घाट एपिसोड 1
नमस्कार आज हम आपको एक ऐसे व्यक्ति की कहानी बताने जा रहे हैं। जो हर समय श्मशान घाट में अपनी सेवाएं देते रहते हैं यहां पर चिताओं को आग लगाना हो या फिर उसके बाद श्मशान घाट की साफ सफाई में इनका योगदान लगभग 32 साल से है। लेकिन उनके साथ एक ऐसी घटना घटी कि उस घटना ने अब उनकी पूरी जिंदगी बदल दी। अब आगे की कहानी मैं उनके ही शब्दों में जारी रखूँगा। नमस्कार मेरा नाम मदन लाल है और मैं हरिद्वार के श्मशान घाट में 32 सालों से काम कर रहा हूं मेरी आंखों के सामने यहां रोज लगभग सैकड़ों लाशें आती हैं। और मैं और मेरे साथ काम करने वाले सभी कर्मचारी एवं सहयोगी फिर हम रोज उन चिताओं को जलाते हैं।
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मैं भी अक्सर हर रोज लगभग 10 से 12 चीता चलाता हूं पर मेरे साथ 1 दिन कुछ ऐसा हुआ कि मैं आज उस दिन को याद कर के सहम जाता हूं। अक्सर हम लोग चिताओं में आग लगाते है और जब चीता चल जाती है तो सभी चिताओं की राख एक साथ सफाई करते समय झाड़ू से गंगा में गिरा दिया करते हैं। पर एक दिन श्मशान घाट में एक डेड बॉडी को लेकर उसके परिजन आए मैंने और मेरे साथी समीर ने उनके परिजनों को कहा लकड़ी ले आओ और और लाश को गंगाजल से नैला कर इधर रख दो। उस डेड बॉडी के सभी परिजन लकड़ी लेने गए हुए थे बस उनके साथ का एक ही व्यक्ति उस लाश के साथ था।
बात ही बात में मैंने उसे पूछा - यह किसकी बॉडी है - उसके साथ जो व्यक्ति था उसने कहा - यह मेरी मौसी है - वह व्यक्ति अपनी बात जारी रखते हुए कहने लगा इनकी शादी को अभी 1 साल भी नहीं हुआ था मैंने पूछा कि अचानक कुछ तबीयत तबीयत खराब थी क्या उस व्यक्ति ने कहा - नहीं मौसी बिल्कुल ठीक थी कल रात अचानक ही उनकी मृत्यु हो गई पता नहीं क्या हुआ - हमारे लिए कोई बड़ी बात नहीं थी ऐसे दिन भर में सैकड़ों लोग आते हैं। तब तक उस लाश की परिजन लकड़ियां लेकर आ गए। उसके बाद हम देह संस्कार का कार्यक्रम शुरु कर रहे थे। मैं और समीर चिता के लिए लकड़ियां बिछा रहे थे उस महिला की ज्यादा उम्र तो रही नहीं होगी इसलिए पतले दुबले शरीर की थी और वजन भी बहुत कम था और लकड़ियां भी कम ही लगानी पड़ रही थी। हम लोगों ने लकड़ियां बिछाई और उनके परिजनों को कहा तुम इस लाश को अब चिता पर लेटा दो उन लोगों ने वैसा ही किया चार पांच लोगों ने उठाकर लाश चिता पर रखी।
तभी ऊपर से थोड़ा कपड़ा मुंह के पास से उड़ गया तो मेरी नजर उस डेड बॉडी पर पड़ी। और मैं देखता ही रह गया क्योंकि उस महिला की आंखें ऐसा लग रहा था खुल रही है और बंद हो रही हैं। मानो ऐसा लग रहा था की आंखें लप लप हो रही हो और ऐसा लग रहा था कि शायद आंखों से आंसू भी निकल रहे हैं। मैं यही सोच रहा था की ऐसा कैसे हो सकता है क्योंकि आज तक हमने कभी ऐसा दृश्य नहीं देखा था। अब उनके परिवार वाले अंतिम संस्कार करने के लिए तैयार थे और पंडित जी ने दाह संस्कार का क्रिया कर्म शुरू कर दिया था ।
तभी मैं समीर को थोड़ा किनारे लेकर गया और मैंने कहा - समीर इस डेड बॉडी में जान है क्योंकि मैंने खुद देखा है पलके झपक रही हैं और ऐसा लग रहा था कि जैसे सांसे चल रही हो - समीर ने मेरी बात सुनकर कहा - मदन तू पागल तो नहीं हो गया कैसी बात कर रहा है यार मुर्दा है वह मुर्दे में भी कभी सांसे चल सकती है क्या यार हम रोज चिता जलाते हैं आज तक तो ऐसा कुछ नहीं हुआ तेरा दिमाग खराब तो नहीं है चल जल्दी अब उस चिता को जलाना है। - मैंने उस समय तो समीर को कहा - हां चलो - उसके बाद मैं अपने आप को समझा रहा था क्या पता यह मेरा कोई वैहम हो। पर ऐसा कैसे हो सकता है वैहम तो हो ही नहीं सकता क्योंकि 30 साल से ज्यादा जिंदगी मेरी बीत गई इसी श्मशान घाट में चिता को जलाते हुए।
लेकिन आज तक तो कभी वैहम नहीं हुआ फिर आज कैसे हो रहा है। पर फिर भी मैं समीर के साथ चला गया उस चिता को जलाने के लिए। उसके परिवार वालों ने उसको आग दी और हमने फिर जलाना शुरू कर दिया। लेकिन अब तक जिसको मैं अपना वैहम समझाने की कोशिश कर रहा था। पर तभी ऐसा लगने लगा कि उस चिता से रोने और तड़पने की आवाज आ रही हैं। मैंने तुरंत समीर से कहा - समीर अब देखो मैं क्या कह रहा था इसके के अंदर जान हैं जिंदा जला दी तुम लोगों ने एक महिला - मैं जोर जोर से बोल रहा था वहां उस डेड बॉडी के परिवार के सदस्य मौजूद थे और साथी साथ श्मशान घाट में बहुत से लोग थे।
सब मेरी बात सुनकर चौक गए और मुझे बड़ी विचित्र निगाहों से देखने लग गए। उसके परिवार के लोग तो वैसे ही दुखी थे इसलिए वो मुझे कहने लगे - अरे क्या हो गया आपको। आपको शर्म नहीं आती ऐसा मजाक करते हुए हम वैसे ही इतना परेशान हैं और आप हमारी भावनाओं का मजाक उड़ा रहे हैं हम पर ऐसे ही दुखों का पहाड़ फूट पड़ा है पर आप ऐसी जगह पर ऐसा गंदा मजाक कर रहे हो - उनके परिवार के लोग मुझे पागल या नशेड़ी बता रहे थे। लेकिन सच बताऊं तो मुझे उस महिला की आवाज उस समय बहुत तेजी तेजी से सुनाई दे रही थी। ऐसा लग रहा था मानो वो दर्द से करहा रही हो उसके बाद मेरे साथ के लोगों ने और समीर ने मुझे वहां से दूर कर दिया।
और समीर ने मुझसे आकर कहा - मदन तू पागल हो गया क्या कैसी बात कर रहा है हम भी तो कर रहे हैं काम हमें क्यों नहीं सुनाई दे रही है कोई आवाज हमें क्यों नहीं दिखा कि वो पलके झुका रही थी और उसके आँख आंसू बह रहे तो तुझे ही क्यों दिखाई दिया। यार तू तो शराब भी नहीं पीता ऐसा क्या हुआ तेरे साथ - समीर अपनी बात जारी रखते हुए बोलता हैं - तभी कहता हूं घर जाकर रात को खाना खाकर तो सो जाया कर जल्दी। लेकिन तुम लोग फिल्में देखते हो ना रात भर कोई दिखेगी तुने फिल्म वगैरा या सपना देखा होगा कोई -समीर की बाते सुनकर अब मेरी आंखों से आंसू आने लगे क्यूंकि 30 साल से ज्यादा का समय हो चुका था इस शमशान घाट में आज तक मेरे साथ ऐसा कभी नहीं हुआ।
इसलिए मैंने ने समीर को समझाते हुए कह - ना मैंने कोई सपना देखा और ना कोई ऐसी फिल्म देखी पर मैं आज सच कह रहा हूं वह महिला जिंदा थी जिस को जलाया जा रहा था मैंने अपनी आंखों से देखा है और अपने कानों से उसकी आवाज सुनी थी - पर समीर ने मुझे कहा - सच में भाई तू पागल हो गया है मुझको लगता है तुझे आराम की जरूरत है अब तू छुट्टी मांग कर गांव चले जा। अपने कुछ दिन घर वालों के साथ रहे और जब तुझे सही लगे तब तू काम पर वापस लौटना और फालतू की बातें मत कर अगर तुझे चलना है चिता जलवा ने तो चल क्योंकि मैं भी तेरे साथ यहां पर हूं तो चीता कौन चलाएगा - समीर की बात सुनकर मैंने कहा - समीर यह चीता मैं नहीं जलवा पाऊंगा तू जा - उसके समीर वहाँ से गया और श्मशान घाट के ही एक दूसरे व्यक्ति के साथ मिलकर उसने उस चिता को जलाया।
चिता जली अंतिम संस्कार पूरा हुआ और उस डेड बॉडी के परिवार के सभी लोग गंगा स्नान कर के अपने घर जा चुके थे। लगभग शाम के 7:30 बज रहे होंगे मैं अभी भी एकांत में बैठा हुआ था तभी मेरे पास समीर और उस चिता का अंतिम संस्कार करवा रहे पंडित जी मेरे पास आए। पंडित जी ने मुझसे कहा -हां भाई अब उतर गया तेरे ऊपर उस महिला की चिता का बुखार कि नहीं उस समय तू वहाँ पागलों जैसी बात कर रहा था। तू इतने सालों से यहां चिता जलाता है क्या आज तक कभी ऐसा हुआ कि कोई मुर्दा चिता के अंदर से चीखने चिल्लाने लगे। वह सब लोग तेरा मजाक उड़ा रहे थे या फिर तुझे पागल कहना चाह रहे थे - पंडित जी की बात सुनकर मैंने कहा - मैंने जो देखा है वह बिल्कुल सही है क्योंकि मुझे उसकी आंखों से आंसू बहते हुए दिखे थे और मैंने देखा कि जब उसको चिता पर लिटाया जा रहा था तब उस महिला की पलके झपक रही थी - मैं मानने को तैयार नहीं था कि वो मेरा कोई वैहम है।
तब पंडित जी ने मेरी बात को थोड़ा गंभीरता से लें और कहां - ना तू उस महिला को जानता है ना तूने कभी उसे देखा तो फिर तेरे साथ ऐसा क्यों हो सकता है - तब मैंने पंडित जी से कहा - यही तो बताना चाह रहा हूं मैं मुझे ही क्यों उसकी चीखने की और रोने की आवाज सुनाई दी और आप मैसे किसी को नहीं - पंडित जी ने फिर मुझे कह - फिर एक काम करना तुम अब 15 या 20 दिन की छुट्टी लेकर अपने घर चले जाओ तुमने काफी समय से छुट्टी भी नहीं ली और लगातार काम कर रहे हो। थोड़ा आराम करना फिर काम पर वापस आना चलो अब साफ सफाई करवा दो अब टाइम खत्म हो गया है - मैंने पंडित जी कहा - हां ठीक है - क्यूंकि श्मशान घाट में 8:00 बजे के बाद कोई भी चिता नहीं चलाई जाती 8:00 बजे सब साफ सफाई करके घर चले जाते हैं। और हम लोगो को सुबह 7:00 बजे यहां वापस आना होता है। उसके बाद हम काम पूरा करके अपने अपने घर चले गए।
मेरे घर में सिर्फ अकेला ही रहता था बाकी सब परिवार के लोग हमारे गांव में रहते हैं। आज घर आकर मैंने नहाया धोया और सीधा बिस्तर में जाकर बैठ गया। अक्सर मैं घर आकर पहले खाना बनाता था फिर खाना खाकर घर वालों से फोन पर थोड़ी बातचीत कर के लेटता था। पर आज मेरे साथ दिन में जो घटना घटी थी उसकी वजह से मेरा मन आज थोड़ा बेचैन था। इसलिए मैं आज श्मशान घाट के ढाबे पर ही खाना खाकर आया था और घर आकर नाह कर बिस्तर पर लेट गया। अभी बिस्तर पर लेटे हुए बस मैं यही सोच रहा था कि आज यह क्या हुआ मेरे साथ। मैं अपने आप को यही कह रहा था कि वह जिंदा थी पर अगर वह जिन्दा थी तो सिर्फ मुझे ही क्यों पता चल रहा था। वहाँ तो बाकी बहुत सारे लोग थे उन्हें क्यों नहीं कुछ भी पता चला सिर्फ मुझे ही क्यों रोने की आवाज आ रही थी बाकी को क्यों नहीं आई।
इसी उधेड़बुन में मैं लेटे-लेटे मेरी आंखें लग गई पर अचानक मेरी आंखें खुली और मैं उठा। क्यूंकि मुझे ऐसा लगा कि कोई दरवाजा खटखटा रहा है। मेरा एक ही कमरा है जो मैंने किराए पर ले रखा था। मैं नींद में ही उठा मैंने सोचा कि क्या पता किराएदार में सी कोई होगा। कोई जरूरत हो किसी काम की यही सब सोचते हुए मैंने दरवाजा खोला। लेकिन मुझे बाहर कोई दिखाई नहीं दिया अंधेरा था मैंने इधर उधर देखा मुझे फिर कोई भी नजर नहीं आया मैंने बाहर की लाइट ऑन करी पर कोई होता तभी तो दिखता। मुझे लगा क्या पता ऐसे ही कोई होगा जो दरवाजे को खटखटा कर चला गया होगा। मैं जैसे ही वापस अंदर जा रहा था तब मुझे ऐसा लगा कि जैसे कोई मेरे पीछे खड़ा है। मैं तुरंत पीछे घुमा पर पिछे कोई नहीं था।
मैं दिन भर से वैसे ही परेशान था इसलिए मैं ज्यादा जा सोचते हुए जैसे ही दरवाजा बंद करा तो मुझे ऐसा लगा कि बाहर कोई चल रहा हो किसी के पायल की आवाज आ रही थी ऐसा लग रहा था कोई मेरे कमरे के दरवाजे पर ही खड़ा हो और इधर-उधर टहल रहा है। पायल और चूड़ियों की आवाज बड़ी तेज तेज से आ रही थी। मैंने तुरंत दरवाजा खोला और लाइट जलाई तो मैंने देखा इसके आगे की कहानी अगले एपिसोड में हैं