श्रापित जंगल
नमस्कार मेरा नाम संतोष है और मैं एक प्राइवेट कंपनी में जॉब करता हूँ आज संडे की वजह से छुट्टी थी और मैंने और मेरे पुराने दोस्तों ने लगभग 1 हफ्ते पहले ही प्लानिंग कर ली थी कि हम सब लोग मिलेंगे और कहीं बाहर घूमने चलेंगे क्यूंकि कॉलेज के बाद हम दोस्तों का मिलना जुलना तो ना के बराबर ही था। 2 साल में हम लोग अब तक बहुत कम ही मिले थे मैं,जतिन, आशीष और अखिल हम चारों कॉलेज की टाइम से ही अच्छे दोस्त थे और घूमने फिरने के भी बहुत शौकीन थे। लेकिन अब सब लोग अपनी अपनी जिंदगी में बिजी थे आज संडे था इस वजह से मैं आज सुबह थोड़ा देर तक भी लेटा हुआ था।
लेकिन मेरे फोन में घंटी बजी उसकी वजह से मेरी आँख खुली तो फोन मैंने फ़ोन उठकर देखा फ़ोन जतिन का ही था। क्यूंकि हम घर से लगभग 10:00 बजे निकलने वाले थे क्यूंकि शहर में उन चारों के घर थोड़ा दूर दूर ही थे। जतिन के फ़ोन के बाद मैं तुरंत अपने बिस्तर से उठा और नहा धोकर नाश्ता वगैरह कर के तैयार होकर बैठ गया।क्यूंकि वो तीनों खुद ही मुझे घर पर लेने आने वाले थे मैं घर में बैठे बैठे यही सोच रहा था की कहाँ रह गए यह लोग की तभी आशीष का फोन आता है और वो बोलता हैं - अबे जल्दी बाहर आ हम तेरे घर के गेट पर ही खड़े हैं - आशीष के इतना बोलने के बाद मैंने तुरंत अपना बैग उठाया और घर के बाहर निकल गया।
अखिल अपनी कार लेकर आया हुआ था फिर उसके बाद मैं भी जाकर तुरंत गाड़ी में बैठ गया हम चारों बहुत खुश थे आज क्योंकि बहुत टाइम बाद चारों एक साथ फिर कहीं घूमने जा रहे थे। अखिल कार चला रहा था तभी उसने कहा - हाँ भाई लोगों कहाँ जाना है यह तो सोच लो बस घर से निकल आए हैं कि कहीं जा रहे हैं पर कहाँ जा रहे हैं यह तो बता दो किधर ले जाऊं गाड़ी - फिर आशीष ने कहा - भाई ले जा जहाँ तेरा दिल करे आज वही घूमेंगे आराम से फिर आएंगे शाम को वैसे भी पूरे हफ्ते काम काम आज थोड़ा मस्ती का मौका मिला है - फिर मैंने कहा - अखिल कहीं जंगल या पहाड़ों की तरफ चलते हैं बड़े दिन से नहीं गए - फिर आशीष ने कहा - हाँ सही है जंगल में पिकनिक वगैरह मनाते हैं हम लोग घर से पिकनिक का सारा सामान तो लेकर आए हुए तो हैं ही -
फिर उसके बाद हम लोग इंटरनेट पर सर्च कर रहे थे आस पास सबसे बड़ा और घूमने लायक जंगल कौन सा होगा तभी जतिन ने कहा - अरे यह देखो यह सुंदरवन यहाँ से लगभग 22 किलोमीटर की दूरी पर है चलो आज वही चलते हैं - सुंदरबन के बारे में तो हमने भी बहुत सुना था कि बहुत बड़ा और विशाल जंगल है पर हम कभी वहाँ गए नहीं थे क्योंकि यह पहाड़ियों की तरफ था तो अब हमने यह तय कर लिया था कि अब हम चारों उसी सुंदरवन में जाएंगे घूमने के लिए। फिर उसके बाद हम लोगों ने बाजार से थोड़ा खाने पीने का सामान भी ले लिया और कुछ सामान तो घर से लेकर ही लेकर आए हुए थे।
फिर लगभग दो ढाई घंटे के सफर के बाद हम उस जंगल के पास जा पहुंचे जहाँ हमने पिकनिक के लिए सोचा था वहाँ पहुंच कर हमने देखा जंगल सच में बहुत बड़ा था बहुत दूर तक जंगल फैला हुआ था कहते हैं कि यह जंगल लगभग ,8 से 9 किलोमीटर की दूरी तक फैला हुआ है हम चारों जंगल के पास पहुंच तो गए पर हमें जंगल में अंदर जाने के लिए कहीं ढंग से रास्ता नजर नहीं आ रहा था जंगल काफी दूर तक था फैला हुआ था इस वजह से हम भी गाड़ी में ही थे और गाड़ी लगातार आगे की ओर बढ़ा रहे थे कि शायद कहीं तो होगा इस जंगल के अंदर जाने रास्ता थोड़ा आगे और गए तो हमे वन विभाग का दो ऑफिस दिखे फिर उसके बाद हम तुरंत कार से उतार कर वहाँ उन दोनों के पास गए और फिर जतिन ने उन गार्ड से कहा - सर इस जंगल में अंदर जाने के लिए रास्ता कहाँ से है -
इतना ही कहा होगा जतिन ने कि उस गार्ड ने बड़ी ही हैरानी भरी नजरों से हम चारों को देखा और कहा - क्यों भाई क्यों जाना है जंगल में - फिर मैंने कहा - अरे सर वो हमें जंगल में पिकनिक वगैरह मनाने के लिए जाना हैं - फिर उस गार्ड ने कहा - बाहर कितनी जगह है आस पास ही घूम लो पिकनिक मना लो इसके अंदर जाने का रास्ता नहीं है और इसके अंदर जाना ठीक भी नहीं है और हाँ भूलकर भी कोशिश मत करना इसके अंदर जाने की आस पास ही घूमो फिरो क्यूंकि जंगल के अंदर बिल्कुल भी जाने की किसी को भी अनुमति नहीं है - इतना तो साफ था यह गार्ड ना ही रास्ता बताएंगे और ना ही इस जंगल के अंदर हम लोगों को अब जाने देंगे। लेकिन हमने भी तय कर लिया था कि जाएंगे तो है ही इसके अंदर -
फिर उसके बाद हमें गाड़ी में बैठे और स्टार्ट कर के हम आगे की तरफ चलते रहे शायद इतना बड़ा जंगल हमने आज तक कहीं नहीं देखा था बहुत लंबा और बहुत विशाल जंगल था। फिर उसके बाद हम लगभग 2 या 3 किलोमीटर ही आगे गए होंगे तभी हमने गाड़ी रोकी और चारों बाहर निकल आए। उस समय घड़ी में लगभग एक 1: बज रहे होंगे कैमरा वगैरह सब सामान हम लेकर आए हुए थे क्यूंकि मैं फोटो खींचने का बहुत बड़ा शौकीन था तुम इधर उधर घूम ही रहे थे की तभी आशीष ने कहा - यार ऐसे तो हम इस जंगल में जा नहीं सकते हमको ऐसे ही इन्हीं रास्तों में ऐसे ही अंदर जाना है होगा - वहाँ पतले पतले दो रास्ते थे पर तभी तभी अखिल ने कहा - भाई यार तुम लोग चले जाओ मैं बाहर ऐसे अपनी गाड़ी छोड़कर नहीं जाऊंगा क्या पता क्या हो जाए नई गाड़ी है अभी मेरी -
फिर उसके बाद हम लोगों के बार-बार समझाने पर अखिल भी अब मान गया और उसने गाड़ी सड़क के बिल्कुल किनारे जंगल में घुसा कर खड़ी कर दी और अब हम लोग अपना सामान उठाकर जंगल के अंदर जाने लगे रास्ता तो सही से था ही नहीं हर जगह जंगल के आगे झाड़ियां कांटे और बड़े-बड़े पेड़ थे लेकिन हमको तो इस जंगल के अंदर जाना ही था तो हम किसी तरह से उन झाड़ियों के बीच से ही अंदर जा रहे थे हम लोग जैसे तैसे जंगल के काफी अंदर तक तो चले गए लेकिन अब मुझे थोड़ा डर भी लग रहा था क्यूंकि इतने बड़े विशाल जंगल से हम बाहर भी कैसे निकलेंगे मैं यही सब सोच रहा था पर उस समय मैंने यह बात किसी को नहीं बोली बस हम हंसी मजाक करते करते हम सब जंगल के काफी अंदर तक चले जा रहे थे।
अंदर जाकर हम फोटो खींच रहे थे वीडियोस बना रहे थे क्यूंकि हमें जंगल बहुत अच्छा लग रहा था बड़े-बड़े पेड़ और पशु पक्षियों की आवाजें पूरे जंगल में गूंज रही थी फिर हम थोड़ा सा आगे और गए और एक बड़े से पेड़ के नीचे चारों बैठ गए तभी अखिल ने कहा - चलो यहीं पर कुछ बनाते हैं खाते हैं क्यूंकि अब भूख भी बहुत तेज लगी है - फिर मैंने कहा - हाँ भूख तो सच में लग रही है क्योंकि हम सुबह से निकले हैं और अब टाइम भी बहुत हो गया हैं और काफी दोपहर भी हो गई - जतिन,अखिल और आशीष यह सब लोग अपने घरों से खाना बनाने के लिए सामान लाए हुए थे गैस चूल्हा और पतीला फिर उसके बाद हम लोगों ने बिरयानी बनानी शुरू करी और पतीले में चढ़ाकर हम सब इधर उधर फोटो वगैरा फिर खींचने लगे और मस्ती कर रहे थे।
फिर लगभग 10 मिनट बाद मैंने वहाँ पर जाकर देखा की बिरयानी पक चुकी है कि नहीं पर मैंने जैसे ही पतीले का ढक्कन खोला तो मैं चौक गया क्योंकि पतीला तो बिल्कुल खाली था। फिर मैंने तुरंत जतिन, अखिल और आशीष तीनों को आवाज लगाई मेरे आवाज लागाते ही वो तीनो भी तुरंत आए फिर मैंने कहा - भाई बिरयानी कहाँ गई - फिर तीनो ने कहा - अबे भाई मजाक मत कर भूख लगी है कहाँ रखी हैं चल खाते हैं सच में भाई भूख बहुत लगी है - फिर मैंने कहा - नहीं सच में मुझे नहीं पता कि क्या हुआ मैं आया तो देखा पतीला बिल्कुल साफ था - लेकिन मेरी बात में किसी को यकीन नहीं हो रहा था वो तीनो कह रहे थे की मैंने ही कहीं रखी होगी।
फिर तभी आशीष ने कहा - संतोष यार पहले भी तो ऐसे ही मस्ती करता रहता था पर भाई इस टाइम बहुत भूख लग रही है भाई - फिर मैंने कहा - भाई लोगों कसम से मैंने कुछ नहीं किया मुझे नहीं पता कहाँ है बिरयानी - अब हम चारों हैरान थे कि ऐसा कैसे हो सकता है हम लोग ज्यादा दूर भी कहीं गए नहीं थे गैस पर बिरयानी चढ़ाकर इधर-उधर फोटो ही खींच रहे थे बस हम चारों हैरान तो थे ही कि ऐसा कैसे हुआ पर फिर मैंने कहा - चलो एक काम करते हैं यहाँ से थोड़ा आगे चलते हैं मुझे इस जगह पर थोड़ा अजीब से ही लग रहा है - फिर आशीष ने कहा - सही कह रहा संतोष यहाँ सही तो मुझे भी नहीं लग रहा है-
इतना बोल कर आशीष वो फोटोस दिखाने लगता हैं जो इतनी देर से वो खींच रहा था पर उसने देखा हर एक फोटो में एक काली सी परछाई दिख रही थी फोटो हम तीनों ने देखी तो तुरंत मैंने भी अपना फोन निकाला और मैंने भी कहा - यह तो मेरे साथ भी हो रहा है जैसे ही जंगल के अंदर हम घुसे थे तब से फोटो खींच रहा था मैं और मेरी भी हर फोटो में यह काली परछाई दिख रही थी हम चारों ने फोटो वीडियोस बनाई हुई थी सब के फोन में जितनी भी फोटो थी हर एक फोटो में वो काली परछाई साफ साफ नजर आ रही थी जैसे कोई हमारे कैमरे के आगे ही खड़ा हो
लेकिन हम फिर भी जंगल के अब बहुत अंदर थे तभी मैंने कहा - चलो एक काम करते हैं अब हम लोग बाहर निकलते हैं जितना भी टाइम बचा है बाहरी घूमेंगे फिर जाएंगे वापस घर बाहर ही कुछ खाएंगे अब आशीष जतिन और अखिल उन्होंने कहा - हाँ सही है वापस चलते हैं फिर उसके बाद हम लोग अपने सामान वगैरा उठाकर जंगल से वापस निकलने लगे पर यह तो किसी को भी याद नहीं था की किस तरफ से अंदर आए थे और अब किस तरफ से बाहर जाए .
अब इसके आगे की कहानी अगले एपिसोड में हैं।
