आखरी पिकनिक एपिसोड 1
नमस्कार मेरा नाम विनोद है और मैं 11वीं क्लास में पढ़ता हूं गर्मियों की छुट्टियां पड़ी हुई थी। इसलिए हम सभी दोस्त छुट्टियां मनाने के लिए हिमाचल के मनाली गए हुए थे। मेरे साथ मेरे दोस्त विवेक,अनिरुद्ध और दिनेश हम चारों एक साथ अक्सर घूमने जाया करते थे। हम चारों के घर के लोग भी हमें एक साथ घूमने से कहीं मना नहीं करते थे। यह बात है 2017 - 11 अप्रैल हमने दिल्ली से बस पकड़ी और हम शिमला होते हुए मनाली जाना था इसलिए हम ने टाइम काटने के लिए आपने फ़ोन में हिन्दी स्टोरी माय वेबसाइट पर कहानियाँ सुनने और पढ़ने लगे और देखते ही देखते हम मनाली पहुंच गए थे। हम लोगों ने वहां पर होटल में कमरे लिए और सामान वगैरह रखा हम लोगों ने यह सोचा था कि हम लगभग 1 हफ्ते तक कुल्लू मनाली सब घूमेंगे हम लोग दिन में टैक्सी कर के घूमने वाले थे और रात में वापस इसी होटल में रुकने का प्लान था।
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अगले दिन सुबह हम लोगों ने एक टैक्सी बुक करी और उससे कहा कि हमें आज पूरा दिन एक ऐसी जगह पर जाना है जहां सिर्फ जंगल ही जंगल हो तुम ऐसा करो हमें यहां के सबसे बड़े जंगल में लेकर चलो टैक्सी ड्राइवर ने थोड़ा मुस्कुराते हुए कहा - भाई साहब यह मनाली है यहां तो हर जगह ही जंगल है चलो फिर भी मैं आपको यहां के सबसे बड़े जंगल में घुमाने ले चलता हूं - उसके बाद चारों बैठ गए गाड़ी में और ड्राइवर ने लगभग हॉटल से 20 किलोमीटर गाड़ी ले जाकर एक खतरनाक और भयानक से दिखने वाले जंगल के पास खड़ी कर दी।
ड्राइवर ने तब हमसे कहा - भैया आप लोग अब यहां फोटो खींचो या जो भी करना है करो लेकिन ज्यादा जंगल के अंदर तक मत जाना क्योंकि जंगल बहुत बड़ा है रास्ता ढूंढने में दिक्कत भी हो सकती है वापसी के समय और लोग कहते हैं कि यह जंगल ज्यादा घूमने लायक भी नहीं है यह अक्सर लोग बहुत कम ही आते हैं - तब मैंने और मेरे सभी दोस्तों ने गाड़ी से अपना वह सामान निकाल दिया जो हम पिकनिक मनाने के लिए लेकर आए थे। उसके बाद मैंने ड्राइवर कह - भैया आप भी चलो हमारे साथ - पर ड्राइवर ने साफ मना कर दिया ड्राइवर ने कहा - नहीं तुम लोग जाओ क्योंकि अंदर गाड़ी जाने की जगह नहीं है और गाड़ी ऐसे बाहर नहीं छोड़ सकते मैं गाड़ी मैं ही हूं लेकिन तुम लोग शाम तक जल्दी आ जाना ज्यादा अंधेरा मत करना - ड्राइवर ने इतना कहा और मैं और मेरे तीनो दोस्त हम उस जंगल के अंदर जाने लगे।
जंगल देखने में बहुत अच्छा लग रहा था बड़े-बड़े पेड़ चारों तरफ विचित्र विचित्र किस्म के पेड़ नजर आ रहे थे हमको बहुत अच्छा लग रहा था। इस जंगल में आकर हमने सोचा थोड़ा और अंदर तक जाएंगे वहीं पर बैठकर थोड़ा खा पीकर आगे घूमेंगे। खाने पीने के लिए हम सामान लेकर ही आए थे लेकिन हम चारों बात करते-करते लगातार अंदर की तरफ चले जा रहे थे। विवेक और दिनेश आगे आगे चल रहे थे और वीडियो बना रहे थे और फोटो खींच रहे थे। मानो इन यादों को कैमरे में कैद कर के ही मानेंग इस बीच मैंने टाइम देखा तो घड़ी में दोपहर के 2:00 बज गए थे। ड्राइवर ने हमें 12:00 बजे ही जंगल मैं उतार दिया था यानी हम लोगों को चलते चलते अब 2 घंटे बीत चुके थे।
लेकिन हम लगातार अभी भी चल ही रहे थे। तभी अनिरुद्ध ने कहा - यार भूख लगी है अब कहीं बैठकर थोड़ा खा लेते हैं और थोड़ी देर बैठेंगे फिर घूमेंगे - अनिरुद्ध की बात सुनकर मैंने उन दोनों का आवाज मारी और कहां - यहीं बैठ जाते हैं थोड़ा खा पीकर आराम कर कर चलेंगे - तब फिर विवेक और दिनेश आए और हम चारों बैठकर अपना खाना खा रहे थे। और इधर उधर की बातें भी कर रहे थे और मजाक मस्ती चल ही रही थी हम लोगों ने लगभग 1 घंटे तक आराम किया। फिर हमने सोचा अब थोड़ा और आगे घूमते हैं फिर वापस चले जायेंगे। तो हम फिर जंगल की तरफ आगे को चल दिए सच बताऊं तो मुझे लग रहा था हम जहां से होकर आए हैं उधर कैसे जाएंगे। अब क्योंकि रास्ता तो कुछ समझ आ नहीं रहा था लेकिन बस हम चल रहे थे।
हमने सोचा अब जंगल में काफी दूर तक आ गए हैं और अब हमने बहुत घूम लिया है। और हमको सही समय पर बाहर भी निकलना है क्योंकि टैक्सी ड्राइवर हमारा इंतजार कर रहा है। अब घड़ी में लगभग 5:00 बज चुके थे यानी आज हम लगभग 5 घंटे से इस जंगल के अंदर घूम रहे हैं। उसके बाद हम चारों वापस तो चल दिए अबकी बार हम बहुत तेजी-तेजी से चल रहे थे। क्योंकि हम 5 घंटे से इसके अंदर घूम रहे थे तो हम को बाहर निकलने में कितना टाइम लगेगा यही सोच रहे थे। देखते-देखते अब अंधेरा भी होने लगा था अब जंगल अंधेरे में बहुत भयानक लग रहा था जितना खूबसूरत जंगल दिन में दिखाई दे रहा था उतना ही डरावना और खतरनाक अब अंधेरे में दिख रहा था। और जंगल में अब चारों तरफ से बहुत भयानक किशन की आवाज आना शुरू हो गई तभी मैंने घड़ी में टाइम देखा तो लगभग 7:00 बज गया थे।
2 घंटे हो गए हम जंगल में कहां है हमें कुछ नहीं पता और हम ड्राइवर को फोन कर के भी नहीं बता सकते थे क्योंकि यहां नेटवर्क बिल्कुल नहीं थे। हम यही सोच रहे थे पता नहीं क्या ड्राइवर अभी भी बाहर होगा या नहीं क्योंकि हमने उनको कहा था हम 5:00 बजे से पहले बाहर निकल पाएंगे। और अब तो अंधेरा बहुत ज्यादा हो चुका था सच बताओ तो मुझे बहुत डर भी लगा रहा था। तभी हमको ऐसा लगा कि हमारी बगल से कोई बहुत तेज से भागता हुआ जा रहा है उसके कदमों की आवाज बहुत तेज-तेज आ रही थी। लेकिन हमको वहाँ कोई दिखाई नहीं दे रहा था हम चारों थोड़ी देर वहां रुके और उस आवाज को सुन रहे थे आवाज लगातार तेजी से आगे की तरफ बढ़ती जा रही थी। लेकिन हम में से किसी को भी कोई दिखाई नहीं दे रहा था कि कौन भाग रहा है और किसके कदमों की आवाज है।
लेकिन हमने वहां अब रुकना भी ठीक नहीं समझा हमने कहा हमें जल्द से जल्द बस बाहर निकलना है। हम चारों ने अपने मोबाइल फोन की फ्लैश लाइट जला रखी थी। लेकिन अब रास्ता समझ में नहीं आ रहा था मतलब जिसका मुझे डर था वही हुआ। हम रास्ता जंगल में भटक गए थे लेकिन हमने रुकना नहीं सही समझा हम आगे की तरफ लगातार जा रहे थे। तभी ऐसा लगा जैसे किसी के दर्द से तड़पने की आवाज आ रही हो ऐसा लग रहा था जैसे जंगल में कोई बहुत तेज-तेज चिख रहा है। अब ऐसा लग रहा था जैसे आवाज अब बढ़ती जा रही है और हमारा नाम लेकर कह रही है - विनोद मुझे क्यों छोड़ कर जा रहे हो दिनेश अरे अनिरुद्ध मुझे भी तो ले चलो - ऐसी आवाजें सुनकर हमारा खून अब जम चुका था लेकिन हमने भी इस आवाज को पहचान लिया। क्योंकि आवाज तो विवेक की थी लेकिन यह कैसे हो सकता है।
क्योंकि विवेक तो हमारे साथ ही था इसलिए अब हम चारों बहुत बुरी स्थिति में थे। लेकिन उस आवाज का रोना और तड़पने की चीख बढ़ती जा रही थी। बार-बार हमारा नाम लेकर कह रही थी अरे मुझे छोड़ कर क्यों जा रहे हो। मानो ऐसा लग रहा था कि कोई किसी से जान की भीख मांग रहा है रो-रो कर और तड़प तड़प कर ऐसा लगता था कोई बहुत ज्यादा दर्द में है। लेकिन हम सबको आवाज विवेक की लग रही थी और विवेक हमारे साथ ही था अब ऐसा लग रहा था कि हम लोगों ने बहुत बड़ी गलती कर दी है इस जंगल में आकर। क्योंकि ड्राइवर ने पहले ही बताया था कि ज्यादा अंदर तक मत जाना इस जंगल में ज्यादा अंदर जाना ठीक नहीं हैं। पर हम अब इस जंगल में भटक चुके थे और हम चारों के होश उड़े हुए थे। बस भगवान से यही दुआ करें थे भगवान हम जल्द से जल्द इस जंगल से बाहर निकल जाए।
अब हम ने सोचा की अब बिना रुके भागते रहना हैं इसके बाद हम ने आगे की ओर दौड़ना शुरू कर दिया। हम कह रहे थे कही तो निकलेंगे बाहर इसलिए हम चारों पूरी रफ्तार से भाग रहे थे।अब हम भाग भाग कर पूरी तरह से थक चुके थे अब हम से और भगा नहीं जा रहा था। लेकिन ऐसा लग रहा था कि जान बचाना है तो हम को भागना ही होगा। लेकिन कहां भागे हम क्युकी जंगल में चारों तरफ घनघोर अंधेरा और अजीब अजीब किस्म की आवाजें और ऊपर से विवेक के जैसी आवाज भी पूरे जंगल में गूंज रही थी। अब हम चारों की सांस भी फूल चुकी थी क्योंकि लगातार हम भाग रहे थे। अब दिनेश नीचे बैठ गया उसने कहा - भाई लोगों अब मैं नहीं भाग पाऊंगा - अनिरुद्ध ने उसे कहा - जान बचानी है तो भागना ही होगा क्योंकि यहां बस खतरा ही खतरा नजर आ रहा है - मैं और विवेक एक साथ थे थोड़ा आगे हम ने उन्हें आवाज दी तो उन दोनों ने कहा - भाई अब नहीं भागा जाता - थक हम दोनों भी गए थे।
तो हम सब एक साथ उसी घनघोर अंधेरे मैं अपनी फ्लैश लाइट जलाए हुए बैठे थे। लेकिन तभी ऐसा लगा हमारी सामने एक बड़े पेड़ से कोई चीज बड़ी तेजी से नीचे गिरी और उसकी आवाज बड़ी जोर से सुनाई दी। उस चीज पर दिनेश ने लाइट मारी तो दिनेश सहित हम तीनों के होश उड़ गया थे अब मानो हमारी धड़कनें रुकी जाएंगी। क्यूंकि अभी तक हमको विवेक की रोती और बिलखती हुई आवाज सुनाई दे रही थी लेकिन अब हमारे सामने ही विवेक का कटा हुआ सर पड़ा था। इसके आगे की कहानी अगले एपिसोड में हैं
Achhi he
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