आखरी पिकनिक एपिसोड 2
विवेक अपना कटा हुआ सर देखकर विवेक रोने लगता हैं और बोलता हैं -क्या है यह क्या हो रहा है हमारे साथ - जबान तो हमारे हलक से भी नहीं निकल रही थी। लेकिन हमने कहा - विवेक कोई हमारे साथ बहुत बड़ा छलावा कर रहा है ऐसा लगता है पर हमें इसके झांसे में आना नहीं है - अब हमने बिना समय गवाएं हुए वहां से किसी भी हालत में बस भागना ही सही समझा। लेकिन कहाँ जाँए। क्योंकि हम लगभग 4 घंटे से जंगल से निकलने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन हमको समझ नहीं आ रहा हैं हम किस तरफ से बाहर निकल पाएंगे। इतनी देर में जो सब हमारे साथ हुआ तो उसके बाद से हमारी हालत तो वैसे ही बहुत नाजुक थी। लेकिन हमको अब अपनी जान बचानी है तो कुछ ना कुछ तो करना ही है।
#
इस कहानी को ऑडियो में सुने
इतना बड़ा जंगल और ऊपर से अंधेरा यह जंगल दिन में हमे जितना प्यारा लग रहा था वो अब इस अंधेरी रात में हमें एक मौत का जंगल नजर आ रहा है। लेकिन अब हम क्या कर सकते थे क्योंकि ना ही हमारे फोन में नेटवर्क थे और ना कोई हमारी मदद के लिए इस जंगल में आ सकता है। ड्राइवर तो बाहर है या नहीं यह भी नहीं कहा जा सकते । तभी एक बार फिर से मैंने और मेरे साथियो ने सुना कि कोई फिर से चिख रहा है अभी थोड़ी देर तक चीखने चिल्लाने की आवाज बंद हो चुकी थी लेकिन अब फिर से आवाज गूंजने लगी थी। हमारे आस-पास ऐसा लग रहा था कि कोई फिर से दर्द से तड़प रहा है। अब मेरे पैरों के नीचे से मानो जमीन निकल गई हो क्योंकि अभी तक विवेक की आवाज आ रही थी।
पर अब हम चारों ने सुना हो आवाज दिनेश की थी और दिनेश जैसी आने वाली आवाज भी बार बार यही कह रही थी - अरे मुझे लेकर चलो भाई लोगों मुझे क्यों छोड़ कर जा रहे हो - और ऐसा लग रहा था जैसे वो रो रहा था और तड़प रहा था पर दिनेश भी हमारे साथ ही था। यह आखिर कैसे हो सकता है और हम मन ही मन भगवान से कह रहे थे भगवान आज हम कहाँ फंस गए। लेकिन अब हम भाग नहीं रहे थे क्योंकि हम पहले से ही भाग-भाग कर थक चुके थे। इसलिए अब हम बस चल रहे थे और लगातार चल रहे थे लेकिन अब वो आवाज जो दिनेश की जैसी लग रही थी। वो अब ऐसा लग रहा था जंगल के आगे से भी आ रही है और पीछे से भी।
दोस्तों आज मैं आपको अपनी यह कहानी बता तो रहा हूं लेकिन सच बताऊं तो उस दिन ऐसा लग रहा था बस आज हमारा जिंदगी का आखरी दिन है। तभी हम को एक बड़ा झटका और लगा क्योंकि दिनेश और अनिरुद्ध थोड़ा पीछे चल रहे थे और मैं और विवेक थोड़ा सा आगे थे। तभी मेरे फोन की लाइट सामने किसी चीज पर पड़ी थोड़ा ध्यान से देखा तो सामने अब की बार दिनेश का कटा हुआ सिर रखा था। उसको देखकर ऐसा लग रहा था कि अभी अभी कटा हो क्योंकि खून साफ साफ बहता हुआ दिख रहा था। अब हमारी हालत ऐसी थी कि हम अब कुछ समझ नहीं पा रहे थे की कहां जाएं पीछे लौट नहीं सकते थे। क्यूंकि आगे से ही रास्ता हो सकता था बाहर निकलने का।
लेकिन हम चारों ने इतनी देर से इतना सब देख लिया था इसलिए हम रुके तो नहीं और हम सब भगवान का शुक्र मना रहे थे कि हम चारो अभी ठीक थे और चारों साथ में ही है। लेकिन इस बार भी जब से हमने दिनेश के जैसा कटा हुआ सिर देखा उसके बाद से ही फिर से चीखने चिल्लाने की आवाज बंद हो चुकी थी। हम चारों बस किसी तरह से निकलने की कोशिश में थे और घड़ी में अब समय 12:00 बज चुका था तभी मुझे और विवेक को ऐसा लगा किसी ने एकदम से हमें ढक्का देकर साइड कर दिया और अनिरुद्ध और दिनेश को भी ऐसा लग। और ऐसा लग रहा था कोई किसी को घसीटता हुआ हमारे बगल से लेकर जा रहा है। पर जो घसीट रहा था वो दिख नहीं रहा था। तभी मैंने उसपे लाइट मारी तो जो घसीट कर ले जा रहा था उसका चेहरा तो नहीं दिखा पर जिसको घसीट कर ले जाया जा रहा था उसका चेहरा साफ साफ दिखाई दिया।
उसका चेहरा बिल्कुल अनिरुद्ध जैसा था यकीन मानो आज मैं आपको यह बता रहा हूं पर मेरी रूह अभी भी कांप रही है इस बात को बताते हुए। यह मेरे लिए यह एक सदमे से कम नहीं उस समय हम चारों ही सोच रहे थे भगवान यह कोई गहरा सपना हो और अब हम बस नींद से जाग जाएं। अब ऐसा लग रहा था जैसे अनिरुद्ध तड़पता हुआ कह रहा है - बचाओ मुझे विनोद बचाओ विवेक बचाओ मुझे - वो हम तीनों का नाम बार-बार ले रहा था लेकिन अनिरुद्ध तो हमारे साथ था अब यह स्थिति बहुत नाजुक मोड़ पर थी। क्योंकि हम चारों ने एक के बाद एक ऐसी घटनाएं देखी पहले विवेक की तड़पने की आवाज फिर उस का कटा हुआ सिर का पेड़ से गिरना और उसके बाद दिनेश का कटा हुआ सिर हमें रास्ते में मिलना और अब अनिरुद्ध जैसा ही कोई घसीटते हुए ले जा रहा था।
ऐसा दृश्य दिखना यह तो अब हम चारों को पता चल चुका था कि इस जंगल में जो हो रहा है वो कोई ना कोई छलावा हैं अब हम यही सोच रहे थे की पता नहीं हम बच कर जा पाएंगे या नहीं। लेकिन हम वहाँ रुके नहीं हमने कहा मरेंगे या फिर निकलेंगे यहां से। तभी ऐसा लगा कि जंगल में एक तूफान सा उठने लगा अक्सर जंगल में पेड़ पौधों की आवाज आती ही रहती थी लेकिन उस समय ऐसा लग रहा था कि तूफान बिल्कुल हमारे तरफ से होकर गुजर रहा है और उस समय तूफान की आवाज बहुत तेज सी लग रही थी। अंधेरी रात थी और हमने आपने आपने हाथों में फैलेश लाइट ले रखी थी लेकिन तभी वहाँ पुरे में धूल धूल सी होने लगी। और तभी ऐसा लगा कि किसी ने मुझे धक्का दे दिया और मैं नीचे की तरफ खाई में गिरता जा रहा था। मुझे साफ साफ नजर आ रहा था कि मैं नीचे की तरफ गिर रहा हूं और चीख रहा हूं।
पर एकदम से सब बंद हो गया मैं शायद उस खाई में गिर कर बेहोश हो गया होंगा क्योंकि मैं खाई में बहुत नीचे गिरा था। तभी ऐसा लगा मुझे किसी ने नींद से जगाया और बार बार यह कह रहा था - विनोद उठो उठो - मेरी आंखें खुली तो मैं एक चट्टान के नीचे दबा हुआ था। और मेरे पास विवेक खड़ा था तभी विवेक ने मुझे बताया - विनोद तुम ऊपर से नीचे गिर गए थे - मैंने उसकी बात सुनकर कह - वह दोनों कहाँ है - विवेक ने मुझे बताते हुए कहा - अनिरुद्ध और दिनेश बाहर टैक्सी में बैठे हैं रास्ता हमको मिल गया है हम रास्ते के करीब ही थे कि तुम नीचे गिर गए - मैं भगवान से बहुत शुक्र मना रहा था कि चलो कम से कम हमें रास्ता मिला और हम जंगल से बाहर निकल जाएंगे। तब विवेक ने मुझे थोड़ा संभाला और अपने साथ बाहर ले जाने लगा। विवेक थोड़ा आगे चल रहा था और मैं उसके पीछे था।
जो जंगल हम रात भर भटक रहे थे अब उस जंगल से हम बाहर निकल आए थे। सामने टैक्सी खड़ी थी विवेक ने बताया अनिरुद्ध और दिनेश ड्राइवर के साथ अंदर है मैं तुरंत भागता हुआ टैक्सी के पास गया और शीशे में हाथ मारने लगा। ड्राइवर ने खिड़की खोली ड्राइवर अंदर ही सो रहा था और नींद में ही बोला - भैया ऐसा मत करा करो कल दोपहर 12:00 बजे से आ रखे हैं और अब रात के 2:00 बज गए हैं मैंने पहले ही कहा था कि जंगल के ज्यादा अंदर मत जाना इतने अंदर क्यों गए थे मैं अभी तक घर नहीं गया बताओ अभी तक आप लोगों के चक्कर से - बिना रुके ही ड्राइवर अपनी बात बोल रहा था और तभी उसने मुझे कहा - बाकी तीन लोग कहां है अब मैं नहीं रुकूंगा - में मैंने कहा दो जने अंदर है और विवेक मेरे पीछे है -
ड्राइवर ने मुझे हैरानी भरी नजरों से देखते हुए कहा - पागल मत बनाओ एक तो तुम्हारे चक्कर से मैं रात भर बाहर गाड़ी में बैठा रहा कहाँ है वो तीनों - ड्राइवर की बात सुनकर मैंने गाड़ी के अंदर देखा तो गाड़ी में कोई नहीं था मैं फिर तुरंत पीछे देखा तो विवेक भी पीछे नहीं था। मैंने ड्राइवर से कहा - अभी तो मेरे साथ आया था तुमने देखा क्या जो मेरे पीछे था वो कहां गया वह और पहले से दो लोग आए थे वो कहाँ गए - ड्राइवर ने मेरी बात सुनकर कहा - भाई रात में तुमने ज्यादा तो नहीं पी ली शराब वगैरह - लेकिन ड्राइवर जवाब सुनकर अब मैं घबरा गया था। क्योंकि ना ही विवेक था मेरे पीछे और ना अनिरुद्ध और दिनेश गाड़ी में थे।
उसके बाद मैंने ड्राइवर को अपनी सारी बात बताना शुरू करी मेरी सारी बात और उसने कहा - भैया मैंने पहले ही कहा था आपको यह जंगल ज्यादा ठीक नहीं है बाहर ही फोटो वगैरा खींच कर जो करना है कर लो ज्यादा अंदर मत जाना पर आप लोगों ने मेरी बात नहीं सुनी अब चलो यहाँ से - मैंने ड्राइवर को कहा - नहीं मेरे तीन दोस्त है यहाँ उन्हें तो ऐसे छोड़कर मैं नहीं जा सकता - मेरी बात सुनकर ड्राइवर मुझे समझाते हुए कहा - अगर अब हम दोनों यहां से नहीं गए तो शायद हम भी जिन्दा ना बच पाए इसलिए चलो - ड्राइवर ने उसके बात मेरी कोई बात नहीं सुनी और मुझे जबरदस्ती गाड़ी में बैठा दिया। और उसने कह - अब नहीं रुकेंगे उस रात के अंधेरे में - उसके बाद ड्राइवर ने गाड़ी ले जाकर तुरंत मुझे होटल पर छोड़ा।
लेकिन मैं उस समय क्या करता मेरे तीनों साथी मेरे साथ नहीं थे। मैंने सुबह सबसे पहले जाकर पास के ही पुलिस स्टेशन पर सारी खबर दी और उनको सब कुछ बताया। मेरे सर पर पहले से ही चोट लगी हुई थी और मेरी स्थिति कुछ ज्यादा ठीक नहीं थी इसलिए मुझे पुलिस वालों ने पास के हॉस्पिटल में एडमिट करवा दिया। और बाद में पता चला कि उस जंगल में कई दिनों की तलाश के बाद तीन लाशें मिली। दो के तो सर कटे हुए थे और एक की तीन टुकड़ों में पड़ी हुई लाश मिली थी। उसके बाद पुलिस वालों ने मुझे उनको देखने के लिए बुलवाया उसको देखकर अब मेरी आंखें फटी की फटी रह गई क्योंकि विवेक और दिनेश की सर कटी हुई लाश थी। और अनिरुद्ध की लाश तीन टुकड़ों में पड़ी हुई थी। आज मैं जिंदा तो हूं लेकिन शायद मैं उसी दिन मर गया होता।
अब मुझे समझ में आया हम रात भर भटकते रहे थे और फिर अचानक से कैसे जंगल से बाहर निकल पाए। मेरे उस दोस्त में मरने के बाद भी मुझे बचाकर बाहर निकाला था। अब उस दिन के बाद मैं बहुत ज्यादा सदमे में रहता हूँ दिल्ली के एक हॉस्पिटल में अभी भी मेरा इलाज चल रहा है मानसिक बीमार के तौर पर।
आज मैं आपको यह अपनी बात बता रहा हूं तो मेरे सामने उस दिन का सारा दृश्य नजर आ रहा है। और शायद मैं इस घटना को पूरी जिंदगी में ना भूल पाउँगा और पता नहीं मैं इस सदमे से कभी बाहर निकलूंगा या नहीं