कौन थे वो लोग
मेरा नाम मदनलाल हैं और मेरी उम्र लगभग 45 वर्ष हैं और मेरे तीन बच्चे हैं आज मैं आपको जो घटना बताने जा रहा हो यह उस समय की बात हैं जब मेरी उम्र लगभग 20 वर्ष की थी और मेरी उस समय शादी भी नहीं हुई थी। मैं उस पुराने ज़माने का था फिर भी मुझे भूतों पर बिलकुल भी विश्वास नहीं था क्यूंकि मुझे उस घटना से पहले यह सब बाते बैतूकी लगती थी। एक बार की बात हैं रात के लगभग 8 ही बज रहे होंगे शायद मैं खेतो की तरफ शौच करने को गया। मैं श्मशान घाट को पार करके जंगल की तरफ शौच करने को गया हुआ था।
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हमरे गाँव के पास में ही एक श्मशान घाट था वैसे मैं रोज उस ओर ही शौच करने को जाया करता हैं यह मेरे लिए आम बात थी। मगर जब उस दिन मैं शौच करके लौट रहा था तभी मेरी नजर श्मशान घाट की ओर पड़ी तो मैंने देखा श्मशान घाट में एक चिता जल रही थी और उस चिता के आस पास लगभग 15 या 20 लोग चिता को घेर कर कुछ खा रहे थे। मुझे यह देखकर बड़ा ही अजीब लग रहा था क्यूंकि चिता की आग उस समय में बहुत तेज थी और गर्मी का महीना था पर वो सब चिता के एकदम पास में बैठकर कुछ खा रहे थे। पता नहीं मुझे उस समय क्या हुआ की मैं भी श्मशान घाट की ओर जाने लगा। मैं श्मशान घाट में जाकर उन लोगो से थोड़ा दूर में जाकर रुक गया।
पर वो सब अपने ही ध्यान में मग्न थे और जैसे उन्हे पता भी ना चला हो कोई उनके पिछे ही खड़ा हैं। मुझे भी उस समय उन लोगो के चेहरे साफ़ नहीं दिख रहे थे और मुझे ये भी नहीं दिख रहा था की वो सब खा किया रहे हैं। और यही देखने के लिए मैं उन लोगो के थोड़ा पास जाने लगा। तभी उनमे से एक आदमी को जैसे पता चल गया हो की कोई उनके पिछे हैं और तभी वो आदमी एकदम से पिछे मुड़ा और जैसे ही मैंने उस आदमी का चेहरा देखा तो मेरी चिख निकलने ही वाली थी पर मैंने अपनी चिख को किसी तरह से रुका पर मानो उस समय मुझे ऐसा लग रहा था जैसे डर के मारे मेरे दिल की धड़कन रुक ही जाएगी।
क्यूंकि मैंने देखा उस आदमी की दोनों आँखे नहीं हैं बस आँख की जगह पर दो काले छेद थे और उसका पूरा चेहरा जला हुआ था और उसके एक हाथ में इंसान का एक हाथ था और वो आदमी उस ही हाथ को खा रहा था और सब इंसान के कोई ना कोई अंग खा रहे थे। मैंने जैसे ही यह सब देखा मैं तुरंत पिछे मुड़ा और अपने घर के लिए फुल स्पीड में भागने लगा और मैं सीधा अपने घर में ही आकर रुका। उस समय तो मैंने यह बात अपने घर में किसी को नहीं बताई और मैं खाना पीना खाकर अपने बिस्तर पर सो गया। उस रात तो मेरे साथ और कुछ भी नहीं हुआ पर जब मैं सुबह देर तक सोता रहा तो मेरे पिता जी मुझे उठाने के लिए आई तो उन्होंने देखा मेरा पूरा शरीर भुखार से तप रहा था फिर मेरे पिता जी ने मुझे सोने ही दिया और मेरी माता जी से मुझे काड़ा बना कर देने को कहा।
उस समय हर जगह पर डॉ तो हुआ नहीं करते थे इसलिए गाँव में ज्यादा तर लोग भुखार के समय में काड़ा ही पिया करते थे। और काड़े से लोगो का भुखार भी ठीक हो जाता था। और थोड़ी देर में मेरी माता जी ने मुझे काड़ा बना कर दिया और मैं उस काड़े को पीकर फिर सो गया पर फिर भी मेरा भुखार ठीक नहीं हुआ उस दिन मैं पूरा दिन बस सोता ही रहा और जब रात हुई और सब सोने को गए। मैं भी अपनी जगह पर खाना खाकर फिर आके लेट गया मुझे लेटे हुए अभी लगभग 10 मिनट ही हुए होंगे की तभी मुझे ऐसा लगा जैसे कोई मेरे पास बैठ कर कुछ खा रहा हो। पहले तो मैंने इस पर ज्यादा कुछ ध्यान नहीं दिया पर थोड़ी देर में वो आवाज तेज हो गई मैंने यह देखने के लिए आँख खोली की कौन मेरे पास बैठ कर खाना खा रहा हैं।
पर मैंने जैसे ही आँख खोली तो मेरी इस बार डर के मारे चिख निकल गई क्यूंकि मैंने देखा मेरे पलंग पर वही आदमी बैठा हुआ था जो मुझे एक दिन पहले श्मशान घाट में दिखा था। उस आदमी ने आज भी अपने एक हाथ में इंसान का हाथ ले रखा था और हाथ को वो खा रहा था। और थोड़ी देर में मेरे घर के सभी लोग भी मेरे पास आ गए क्यूंकि अभी थोड़ी देर पहले मेरी जो चिख निकली थी वही सुनकर सब मेरे पास आए तो उन्होंने देखा मैं बहुत डरा हुआ था। सब मेरे पास आकर पूछ रहे थे की - क्या हुआ मदन और तुम चिल्लाए क्यों - पर मैं कुछ बोल नहीं पा रहा था बस अपने हाथ से इशारा करते हुए उस आदमी को दिखाने की कोशिश कर रहा था।
पर वो आदमी मेरे अलावा किसी और को नहीं दिख रहा था और आदमी मुझे अभी भी दिख रहा था। पर शायद मेरे पिता जी समझ चुके थे की मेरे साथ क्या हो रहा हैं क्यूंकि मेरे पिता जी भूतों के बारे में बहुत कुछ जानते थे तभी मेरे पिता जी तुरंत घर के मंदिर के अंदर गए और वहाँ से तुरंत गंगा जल लेकर आए और घर के आस पास छिड़कने लगे। और पता नहीं कौन सा मंत्र पढ़ने लगे और थोड़ी देर में वो आदमी भी गायब हो गया। उस आदमी के गायब होते ही मैंने अपने पिता जी को सारी बात बताई तो उसके बाद मेरे पिता जी ने मुझे एक ताबीज बना कर दी और कहा अब कभी रात के समय श्मशान घाट की तरफ मत जाना।
पर मैंने अपने पिता जी से कही बार पूछने की कोशिश करी की वो लोग कौन थे जो श्मशान घाट में बैठे थे और इंसानों के अंगों को खा रहे थे। पर मेरे पिता जी ने मुझे उस बारे में कुछ नहीं बताया और उन्होंने बस मुझे वहाँ रात में जाने से मना करा बस और मैं भी उस दिन के बाद से वहाँ रात में कभी नहीं गया और वो आदमी भी मुझे कभी नहीं दिखा।
इस कहानी के लेखक हैं - शिव
इस कहानी में आवाज दी हैं - प्रियंका यादव
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