आखरी रैगिंग E-2 || students based horror story in hindi || hindi story my

 


आखरी रैगिंग एपिसोड 2

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मैंने एक झटके में अपने हाथ से सांप को हटा दिया लेकिन उस सांप ने मेरे पैरों में काट लिया था। पता नहीं यह सांप जहरीला था या कैसा अब मेरा मन भी कर रहा था कि मैं वापस भाग जाऊं मुझे नहीं ले जाना कटहल वटल लेकिन मैं भी जिद्दी तो था मैंने फिर अपने आप को कहा चाहे आज इस जंगल में मेरी जान ही क्यों ना चली जाए हार नहीं मानूंगा। मेरे पैर में दर्द भी बहुत हो रहा था क्योंकि सांप ने काट रखा था लेकिन फिर भी मैं जंगल के अंदर की ओर चला। मैंने टॉर्च जला रखी थी और तभी मुझे वह चीज मिल चुकी थी जो मैं ढूंढ रहा था मैंने देखा मुझसे थोड़ी ही दूर पर एक कटहल का पेड़ है और इसमें कटहल भी बहुत लगे हुए थे लेकिन कटहल के पेड़ के ऊपर चढ़ना पड़ता बिना चढ़े उसे तोड़ा नहीं जा सकता था।

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 पेड़ भी बहुत ऊंचा थ तो मैंने टॉर्च नीचे रखी और एक हाथ में पाटल लेकर चडगया थोड़ा ऊपर तक ही चढ़ा और वही मुझे दो कटहल मिल गए मैंने उन दो कटहल को पेड़ से कटा और उन्हें नीचे जमीन पर गिरा दिया। और थोड़ा ओर ऊपर चड़ा और फिर मैंने 2 कटहल और काट कर उन्हें भी नीचे गिराया दिया। मैंने अब 4 कटहल तोट लिए थे इसलिए मैं फिर तुरंत नीचे उतर आया। लेकिन मेरा मन यह सोचकर घबरा रहा था कि जितना झोल कर के मैं इस जंगल में आया हूँ। अभी उतना ही झोल करें के यहाँ से बाहर निकलना है मैंने चारों कटहल को एक बोरी में रखना शुरू करा। मैं कटहल बोरी में रखी रहा था और यही सोच रहा था बस जल्दी से निकल जाऊं इस जंगल से बाहर मैंने चारों कटहल को बोरी में रखा और उठाने ही वाला था।


तभी मैंने नीचे देखा तो मानो मेरी जान तो हलक में ही अटक गई हो लेकिन मैं बोरी उठा कर वहाँ से तुरंत दौड़ा। मैं अभी जरा सा ही आगे गया होगा तभी मुझे याद आया की मैं हड़बड़ी के चक्कर में मैं अपनी टॉर्च तो वही छोड़ आया हूँ मैंने आव देखा ना ताव मैं तुरंत पीछे की और भागा अपनी टॉर्च लेने। और मैंने तुरंत अपनी टॉर्च उठाई और टॉर्च लेकर तुरंत जंगल से बाहर को भागने लगा। लेकिन तभी मैंने टॉर्च की रोशनी में जो देखा उससे तो मेरे होश ही उड़ गए। और मेरी रगों में चलता हुआ खून मानो थम सा गया हो लेकिन मैंने भी कहा जिंदा तो बचना है इसलिए एक हाथ में टॉर्च और पाटल और दूसरे हाथ के साहरे कंधे पर कटहल की बोरी लेकर अपनी पूरी रफ्तार से जंगल से बाहर भागना शुरू कर दिया। जंगल में मेंढक झींगुर कुत्ते और ना जाने कौन-कौन से जानवरों की आवाज भयानक भयानक किस्म से होती रही लेकिन मैंने किसी चीज पर ध्यान नहीं दिया।


और अपनी पूरी जान लगा कर मैं भागता रहा। भागते भागते मैंने देखा मैं जंगल से अब बाहर सड़क पर निकल आया हूँ उसके बाद मुझे थोड़ी राहत तो मिली लेकिन मैं सीधा हॉस्टल जाकर रुका का और वहाँ जाकर सीनियर को ढूंढ कर उसके सामने कटहल की बोरी पटकी और उसको पूरी बात बताई जिस सीनियर ने मुझे जंगल में भेजा था। उसने पूरी बात सुनी और मुझसे कहा - बेटा किस गाँव के हो जिगरा तो बहुत है तुम में। - उसकी बात सुनकर मैंने कहा - जिगरा तो है क्यूंकि हम बाराबंकी जिले के हैं - मेरी बात सुनकर उसने कहा - बाराबंकी यार पहले क्यों नहीं बताया हम भी तो वहीं के हैं - फिर सीनियर ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा - क्या नाम है तुम्हरा - मैंने उसको जवाब देते हुए कहा - सूर्य प्रताप सिंह। - मेरा नाम सुनकर सीनियर ने मुस्कुराते हुए कहा - यार बहुत बड़ी गलती हो गई तुमको हमने इतनी खतरनाक जगह भेज दिया तुम तो हमारे ही जिले के और हमारे ही बिरादरी के हो हमारा नाम भानु प्रताप सिंह है -


लेकिन मेरा मन तो कर रहा था इस सीनियर के कान पर एक खींच के तमाचा लगा दू । फिर मैंने भी सोचा अरे छोड़ो 4 साल हॉस्टल में रहना है सीनियर के साथ और मिलकर रहेंगे तो अपनी भी दादागिरी चलती ही रहेगी और हम भी बचे रहेंगे। उतने में भानु प्रताप ने कहा - बेटा चलो अब अपना बोरी बिस्तर उठाओ और हमारे साथ हमारे कमरे में चलो वही रहोगे अब तुम हमारे साथ। - दिमाग तो पहले से ही खराब था मेरा इसके ऊपर फिर भी मैंने कहा ठीक है और मैं उसके साथ ही चला गया उसके कमरे में। हम लोग कमरे के अंदर जाते ही हमने दरवाजा बंद किया ही था कि तभी कोई बड़ी जोर जोर दरवाजा खटखटाने लगा।


वह सीनियर दरवाजा खोलने को उठा तो पता नहीं मुझे क्या हुआ मैंने उसे कहा - दरवाजा खोलोगे तो मारे जाओगे। - पर वो मना नहीं उसका नाम भानु प्रताप सिंह था और जब बात इज्जत की हो तो वो मरने से भी नहीं डरता वो उठकर गया और अंदर रखी एक लोहे की रॉड हाथ में लेकर एक झटके में उसने दरवाजा खोला और पीछे मुड़कर उसने सूर्य प्रताप सिंह पर चिल्लाते हुए कहा - अरे डरपोक तुम इससे डर रहे थे मैं जानता था यह रघु ही होगा तुम को डराने के लिए इसने ऐसा करा होगा। हाँ तुम ठाकुर खानदान के लौंडे हो कर भी डरते हो - भानु प्रताप की बात खत्म होते ही रघु ने कहा - कोई भूत भूत नहीं है यहाँ पर ठीक है और मैं जा रहा हूं सोने तुम रखवाली करो कमरे की - इतना बोलकर रघु वहाँ से चला गया भानु प्रताप ने सूर्य प्रताप से कहा - और एक बात और सुनो बेटा भानु प्रताप सिंह को अगर कोई मारने आए गा ना इतनी औकात तो उसकी होगी नहीं कि वह दरवाजा खटखटा कर आए पीछे से भले ही कोई वार करे तो बात अलग है - इतना बोलकर वो बिस्तर पर लेट गया।


लेकिन सूर्य प्रताप को नींद तो आने वाली थी नहीं क्योंकि जंगल में कटहल के पेड़ के पास जो उसने देखा था नींद तो उसकी वही सोच कर उड़ गई थी। और वो पलंग पर बैठे बैठे बस यही सब सोच ही रहा था कि तभी एक बार फिर से कोई दरवाजा खटखटा रहा था। अब की बार भी आवाज बहुत जोर जोर आ रही थी इस बार सूर्य प्रताप खुद उठा दरवाजा खोलने के लिए और पीछे देखा तो भानु भी उठ गया था तभी उसे भानु से कहा - सर परेशान मत होइए इतने भी डरपोक नहीं है हम हमारी रगों में भी ठाकुर खानदान का खून दौड़ रहा है अब मैं देखता हूँ आखिर हैं कौन - इतना बोलकर सूर्य प्रताप ने दरवाजा खुला लेकिन दरवाजा खुलते ही वो चौक गया। क्योंकि आस पास तो कोई होना चाहिए था पर वहाँ कोई नहीं था।


 सूर्य प्रताप बाहर निकला और लाइट जला कर देखने की कोशिश करने लगा। लेकिन कमरे के आस पास कोई नहीं था रात के अंधेरे में सूर्य प्रताप यही सोच रहा था अगर कोई भागकर भी जाता तो उसकी आवाज तो आती लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं था। और कमरे के अंदर भानु गुस्से में लाल हुआ पड़ा था और बस यही सोच रहा था कोई भी है सुबह हो जाने दो फिर बताते हैं उसको किससे पंगा ले रहा है वो। भानु तो सुबह के इंतजार में बैठा हुआ था और सूर्य प्रताप कमरे के बाहर पता लगा रहा था कि कौन है वो । तभी कमरे के अंदर भानु प्रताप के बगल में सूर्य प्रताप के पलंग पर से किसी ने कहा - खटखटाना तो एक बहाना है सर हम तो जब चाहे तब आ सकते हैं कहीं भी मकसद तो आप को डराना है अभी। -


भानु इस आवाज को बहुत अच्छी तरह से पहचानता था पर यह कैसे हो सकता है यह तो मुमकिन ही नहीं है इसलिए भानु प्रताप कप कपाता हुआ पीछे पलटा तो भानु प्रताप के होश उड़ गए भानु प्रताप जो इतनी बड़ी-बड़ी बातें करता था आज उसकी हालत खराब हो गई वो पूरी तरह से डर गया क्योंकि उसने देखा सूर्य प्रताप के बिस्तर पर एक और सूर्य प्रताप बैठा हुआ था। भानु प्रताप जितनी बहादुरी का दम भरता हो। लेकिन उस समय वो किसी छोटे बच्चे की तरह डर के मारे चीखने चिल्लाने लगा भानु प्रताप चिल्लाता हुआ कमरे के एक कोने में जाकर बैठ गया।


और तभी बाहर से भागता हुआ सूर्य प्रताप सिंह आया उसने कहा - क्या हुआ सर सर क्या हुआ आप ठीक तो हो सर आप चीखे क्यों बाहर कोई नहीं है सर कोई नहीं है मैं बाहर हर जगह देख कर आ गया हूँ अब आप सुबह जब सब की वाट लगाएंगे ना तभी पता चलेगा। - पर इन सब बातों का भानु पर कोई भी असर नहीं हो रहा था और वह डरता हुआ गुस्से में सूर्य प्रताप से बोला - चुप बिल्कुल चुप भाग यहाँ से तू और मैं भी एक पल भी नहीं रुकूंगा इस कमरे में अब - इतना बोलकर भानु प्रताप ने सूर्य प्रताप का हाथ पकड़ा और कमरे से बाहर भागने लगा लेकिन भानु प्रताप के होश एक बार फिर उड़ गए अब क्योंकि उसने देखा जैसे बाहर निकले वैसे ही दरवाजा अपने आप बंद हो रहा था और बंद होते दरवाजे से साफ साफ दिख रहा था सूर्य प्रताप वाले बिस्तर पर एक दूसरा सूर्य प्रताप बैठा हुआ मुस्कुरा रहा था और धीरे-धीरे दरवाजा पूरी तरह से बंद हो गया।


भानु प्रताप ने सूर्य प्रताप का हाथ पकड़ा और हॉस्टल के अंदर गैलरी से भागना शुरू कर दिया रात के अंधेरे में पूरे हॉस्टल में इन दोनों के कदमों की आवाज ही आ रही थी लेकिन भागते भागते भानु ने सूर्य प्रताप के चेहरे को देखा तो मानो अब ऐसा लग रहा था भानु प्रताप की धड़कन ए रुक गई हो भानु प्रताप की हालत बिल्ली से डरे चूहे की तरह हो गई चौकी थी क्यूंकि भानु प्रताप ने देखा जिसका हाथ वो पकड़ कर भाग रहा है वो और कोई नहीं वो भी भानु प्रताप सिंह ही है यानी वह खुद का ही हाथ पकड़ कर भाग रहा है भानु प्रताप ने हाथ छोड़ा और चिल्लाता हुआ चीखता हुआ हॉस्टल से बाहर की तरफ भागने लगा। इसके आगे की कहानी अगले एपिसोड में हैं।


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