आखरी रैगिंग
बचपन से ही मुझे अंधेरे से बहुत घबराहट होती हैं और मैं कभी अकेले रहा ही नहीं। पर मेरे साथ एक ऐसी घटना घाटी जिसे में जिंदगी में भी कभी नहीं भूल पाउँगा। यह जब की हैं जब कॉलेज में मेरा पेहला दिन था और मेरी पहली रात थी अपने हॉस्टल में आज पहली रात थी मैंने कॉलेज में सुना तो था कि हॉस्टल में रैगिंग होती है और आज अपनी आंखों से देख भी रहा था। हमें हॉस्टल के जो सीनियर लोग थे वो सभी को कुछ ना कुछ कह रहे थे। और बाद में सीनियर लोगों ने सभी जूनियर को जब हल्के में छोड़ रहे थे तो मुझे लगा मुझे भी अब कुछ ऐसा ही हल्का सा काम देकर छोड़ देंगे। और मैं भी बच जाऊंगा लेकिन जैसे मेरी तो किस्मत ही खराब थी।
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जब मेरी बारी आई तो उनमें से भी सबसे कठोर सीनियर की बारी आई मेरी रैगिंग के समय। और उसने मुझे वही कहा जिसका मुझे डर था उसने कहा - हॉस्टल के सामने वाले जंगल में जो कटहल का पेड़ है वहाँ से तुम्हे चार कटहल तोड़कर लाने हैं - सब जानते थे हॉस्टल के सामने वाला जंगल कितना खतरनाक है। उस जंगल को देहरादून का सबसे भयानक जंगल भी कह सकते हैं। मुझे उस अंधेरे में हॉस्टल फिर कॉलेज, कॉलेज का ग्राउंड और फिर सड़क पार करके जंगल के अंदर जाना था। और फिर मुझे उस जंगल के अंदर से चार कटहल तोड़कर लाने थे। लेकिन यह बात तो तय थी चाहे मुझे जितना भी डर लगता हो अंधेरे से लेकिन जो चीज मैंने ठान ली तो बस ठान ली फिर उसे करना है चाहे कुछ भी हो जाए। उसके बाद मुझे किसी चीज की परवाह नहीं होती।
उसके बाद मैं जैसे ही जाने को त्यार हुआ तब मुझे सीनियर के अलावा सब लोग रोक रहे थे और सभी जूनियर और हॉस्टल के स्टूडेंट कह रहे थे वह जंगल बहुत खतरनाक है उस जंगल में जाना ठीक नहीं है तुम इन लोगों की कंप्लेंट कर दो लेकिन उस जंगल में जाना ठीक नहीं है इतनी रात को क्योंकि वहाँ जो जाता है उसका जिंदा आना भी मुश्किल ही होता है वो सभी स्टूडेंट इस तरह की बातें कर रहे थे। तब मैंने भी कहा - अब मैं जरूर जाऊंगा और कटहल भी लेकर आऊंगा। जैसे-जैसे मैं हॉस्टल से बाहर जा रहा था वैसे वैसे मैं यही सोच रहा था - किस मनुष घड़ी में इन राक्षसों से पाला पड़ गया मेरा।
लेकिन जैसे-जैसे मैं हॉस्टल से बाहर जा रहा था वैसे वैसे अब रोशनी और लोगों की आवाज धीरे-धीरे कम हो रही थी। और उसके बाद मैं सड़क पार कर के थोड़ी ही देर में जंगल की तरफ चला आया जंगल बहुत बड़ा था। रोड के उस तरफ कॉलेज और हॉस्टल था तो दूसरी तरफ बस जंगल ही जंगल। अब मैं यही देख रहा था की इस जंगल के अंदर जाने का रास्ता कहाँ से है। तभी मेरी नजर सामने एक पतले से रास्ते पर पड़ी जो उस भयानक और से बड़े जंगल के अंदर को जा रहा था। उसके बाद मैं उस रास्ते से होते हुए जंगल के अंदर को जाने लगा। और चलते चलते मैं बस यही सोच रहा था पता नहीं अब कितनी दूर होगा वो कटहल का पेड़। रात को कभी भी पेड़ में से कोई चीज तोड़नी नहीं चाहिए लेकिन इन राक्षस सीनियर्यो की वजह से अब मुझे यह काम करना पड़ रहा था।
मैं जंगल के अंदर जा ही रहा था और यह भयानक जंगल घनघोर अंधेरा और ऊपर से बरसात का मौसम था और अजीब तरह की आवाजें भी आ रही थी पुरे जंगल से झींगुर और मेंढक की आवाज तो आ ही रही थी पता नहीं कौन-कौन और किस-किस किशन के जीवो की आवाज भी सुनाई दे रही थी। जंगल में हर जगह बरसात का पानी भरा हुआ था मानो जहाँ पैर रखो वही कीचड़ हो। खैर मैंने भी ये सोचा था की कटहल तोड़कर ही वापस जाऊंगा। अब सच बताऊं तो उस घनघोर अंधेरे और खतरनाक जंगल में डर तो बहुत लग रहा था। इसलिए मैंने अपने कदम तेजी तेजी बढ़ाना शुरू करें। मैं तेज तेज चल रहा था इसलिए कभी-कभी जंगल में भरे पानी में भी पैर पढ़ जा रहा था। और किसी गड्ढे में पैर जैसे ही जाता तो ऐसा लगता जैसे कोई अंदर ही ना खींच ले क्यूंकि मुझे डर बहुत लग रहा था।
इसलिए मैं तेजी से चल ही रहा था तभी ऐसा लगा कोई बड़ी तेजी से मेरे आगे से भाग कर निकल गया हो। मैंने टॉर्च मारी तो वहाँ दो जंगली कुत्ते थे। उसके बाद मैंने एक राहत की सांस ली और मैं यही सोचते हुए जंगल के ओर अंदर जा रहा था मैं सोच रहा था। पता नहीं कहाँ है ये कटहल का पेड़ तभी मेरे पैर में कुछ फस गया और मैं बड़ी तेज से नीचे गिरा और नीचे गिरते ही मेरा मुंह गड्ढे में भरे पानी में चला गया। मैंने अपने आप को संभालते हुए ऊपर उठने ने की कोशिश करी तो मैंने देखा मेरे पैर मैं कोई चीज फस रखा है और मेरे पैरों को ऐसा लग रहा था जैसे कुछ बड़ी जोर से काट रहा है। और जैसे ही मैंने अपने फ़ोन की टॉर्च उठाकर देखा तो मेरे होश उड़ गए।
क्योंकि मेरे पैरों में एक साँप लिपटा हुआ था अब मेरी हालत बहुत खराब हो चुकी थी मैं कैसे बचता बस यही सोच रहा था तभी मुझे पता नहीं क्या हुआ मैंने एक झटके में अपने हाथ से सांप को हटा दिया लेकिन उस सांप ने मेरे पैरों में काट लिया था इसके आगे की कहानी अगले एपिसोड में हैं।
इस कहानी के लेखक हैं - रामचंद्र यादव
इस कहानी में आवाज दी हैं - प्रियंका यादव
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