रहस्य पिछले जन्म का E -2 || punar janam ki kahani || Hindi story my



रहस्य पिछले जन्म का एपिसोड 2

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और तभी उसी रात की बात है सुनीता सोने जा रही थी तभी उसके फोन की घंटी बजी फोन की स्क्रीन पर राजेश लिखा हुआ था। उसने तुरंत फोन उठा लिया और फोन मैं राजेश पर बरसते हुए बोली - मिल गया तुम्हें टाइम तुम्हारे पास तो समय ही नहीं है मेरे लिए सुबह ही कॉल किया था मैंने लेकिन तुम्हें तो कोई होश नहीं है और मेरी कोई परवाह ही नहीं है - लगातार बिना रुके सुनीता बोल रही थी लेकिन दूसरी तरफ से कोई भी आवाज नहीं आ रही थी। राजेश शांति से सारी बात सुन रहा था लेकिन उसके बाद राजेश ने बोला - यार तुम तो जानती हो ना मेरा काम  -राजेश की बात सुनकर सुनीता ने कहा - मुझे कुछ नहीं पता मुझे तो बस यही डर है कहीं तुम इस काम के चक्कर में एक दिन मुझे भूल ही ना जाओ क्योंकि जब देखो तुम्हारा काम काम बस काम रहता है तुम एक दिन मुझे ऐसे ही छोड़ दोगे इस काम के चक्कर में -

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राजेश ने फिर कहा - ऐसा मत कहो मैं तुम्हें ना ही कभी भूलूंगा और ना ही छोड़ सकता हूँ खैर छोड़ो सुनो ना आज मिलने का बहुत मन कर रहा है - सुनीता ने जवाब देते हुए कहा - इतनी रात को मैं रात को कैसे मिलने आऊंगी मम्मी पापा मना करेंगे - राजेश ने फिर कहा - क्यों तुम्हें डर लग रहा है रात से वैसे भी तो हम अक्सर मिलते रहते हैं सुनीता ने कहा ठीक है डर किस बात का लेकिन जब तुम साथ में हो तो किस बात का डर - दोनों की बातें चल ही रही थी दोनों ने कहा पास वाले रेस्टोरेंट में मिलते हैं राजेश और सुनीता अक्सर रात में ही मिला करते थे। क्योंकि राजेश को रात में ही टाइम मिलता था दिन भर वह शूटिंग में बिजी रहता था और सुनीता दिन में कॉलेज फिर घर पर ही रहती थी।


सुनीता अपने घर से बाहर आई और उसने स्कूटी निकाली और अपनी स्कूटी स्टार्ट करने लगी पर उसने कई बार स्टार्ट करने की कोशिश करी लेकिन स्कूटी स्टार्ट नहीं हो रही थी। सुनीता ने सोचा कि से क्या हुआ इसमें अभी तो नई है अभी 4 ही दिन हुए हैं इसको लिए हुए। इसे क्या हो गया कई बार कोशिश करने के बाद भी स्कूटी स्टार्ट नहीं हुई ऐसे ही समय भी निकला जा रहा था। लगभग अब 10:00 बज चुके थे उसने फोन निकालकर राजेश को फोन लगाना चाहा लेकिन फोन भी नेटवर्क क्षेत्र से बाहर बता रहा था। सुनीता ने कई बार फोन ट्राई करा लेकिन फोन नहीं लग रहा था। फिर उसने स्कूटी को घर के अंदर ही खड़ा करा और बाहर सड़क पर आ गई बड़ी देर तक खड़ी थी लेकिन कोई गाड़ी या ऑटो नजर नहीं आ रहा था।


लगभग 15 मिनट बाद उसने देखा दूर से ही ऑटो आ रहा है सुनीता ने ऑटो को हाथ देने की कोशिश करी रोकना चाहा लेकिन ऑटो वाला नहीं रुका शायद ऑटो में सवारी पहले से ही रही होगी। सुनीता मन ही मन सोच रही थी पता नहीं क्या हो रहा है आज मेरे साथ पहले स्कूटी स्टार्ट नहीं हुई फोन भी नहीं लग रहा राजेश का और सड़क पर कोई गाड़ी भी नहीं मिल रही। तभी उसने देखा एक ऑटो वाला आया और सुनीता के पास ही रुका ऑटो वाले ने कहा - मैडम कहां जाना है - सुनीता ने कहा - अरे आगे रेस्टोरेंट तक ही चलना है भैया बस - इतना कहकर सुनीता ऑटो में बैठ गई लेकिन यह क्या सुनीता के बैठते ही ऑटो बंद हो गया।


ऑटो वाले ने लाख कोशिश कर ली लेकिन ऑटो स्टार्ट नहीं हुआ। तभी सुनीता ने टाइम देखा तो टाइम बहुत ज्यादा हो गया था 11:00 बज चुके थे रात के सुनीता ने एक बार फिर से राजेश को फोन ट्राई किया लेकिन फोन अभी भी नेटवर्क क्षेत्र से बाहर ही बता रहा था। सुनीता ने सोचा अब मैं पैदल ही रेस्टोरेंट तक जाऊंगी लगभग 3 किलोमीटर दूरी था रेस्टोरेंट सुनीता ऑटो से उतरी और पैदल चलने लगी लेकिन ऑटो से उतरते ही सुनीता ने देखा ऑटो तुरंत स्टार्ट हो गया। तभी ऑटो वाले ने आवाज - मारी मैडम गाड़ी स्टार्ट हो गई आ जाओ पता नहीं क्या हो गया था इसमें पता नहीं क्यों स्टार्ट नहीं हो रही थी - सुनीता भी वापस आते हुए तुरंत ऑटो में बैठ गई लेकिन उसके बैठते ही ऑटो फिर बंद हो गया।


इस बार भी ड्राइवर ने बहुत कोशिश करी लेकिन जब तक सुनीता ऑटो में बैठी रही तब तक ऑटो स्टार्ट नहीं हुआ। और जैसे ही सुनीता ऑटो से उतरी ऑटो तुरंत फिर से स्टार्ट हो गया अबकी बार ऑटो ड्राइवर सुनीता पर चिल्लाते हुए उससे बोला - पता नहीं कहाँ से यह अशुभ अशुभ लोग आ जाते हैं जाओ यहाँ से तुम पैदल ही जाओ तुम लोग इसी लायक हो - इतना कहकर ऑटो वाला गाड़ी लेकर चला गया और सुनीता मन ही मन अपने आप को कोस रही थी। और सोच रही थी पता नहीं क्या हो रहा है मेरे साथ खैर छोड़ो अब मैं पैदल ही जाऊंगी इतना कहते ही सुनीता उस रात के अंधेरे में लगभग 11:30 बज रहे होंगे पैदल ही जल्दी जल्दी रेस्टोरेंट की ओर जा रही थी।


रेगिस्तान में आसपास कुछ भी नजर नहीं आ रहा था रात और बस सड़क पर सुनीता के कदमों की आवाज ही सुनाई दे रही थी। और कभी कभी इक्की दुक्की गाड़ियां चल रही थी लेकिन अब सुनीता किसी गाड़ी वाले को हाथ देने को तैयार नहीं थी। पैदल ही लगातार चले जा रही थी सुनीता वह लगभग थोड़ा दूर ही चली होगी कि ऐसा लगा कोई उसका पीछा कर रहा हो। सुनीता ने तुरंत पीछे मुड़कर देखा लेकिन पीछे तो कोई भी नहीं था सुनीता को डर तो लग रहा था। लेकिन वह कर भी क्या सकती थी वापस घर की तरफ भी नहीं जा सकती थी। क्योंकि कितना चल कर इधर आ गई थी उतना ही उधर जाना पड़ता इसलिए वो रेस्टोरेंट की तरह की लगातार चल रही थी।


और बार-बार राजेश को फोन लगाने की कोशिश भी कर रही थी। पर अब पता नहीं क्या अभी राजेश का फोन अभी तक नेटवर्क क्षेत्र से बाहर ही बता रहा था सुनीता गुस्से में चले जा रही थी। अभी थोड़ी दूर और ही गई होगी तभी सुनीता की सैंडल टूट गई अब सुनीता ने मुड़कर सैंडल की ओर देखा और मन ही मन सोचने लगी पता नहीं आज ऐसा क्यों लग रहा है। कोई शक्ति या फिर कोई है जो मुझे राजेश से मिलने से रोकना चाह रहा है सुनीता के दिमाग में सब यही बातें चल रही थी। कि पहले मेरी स्कूटी स्टार्ट नहीं हुई और फिर जब मैं ऑटो में बैठ रही थी तो ऑटो स्टार्ट नहीं हो रहा था अब इस सैंडल को भी अभी ही टूटना था यही सोच रही थी।


तभी एक कार आ रही थी उसकी हेडलाइट सुनीता की आंखों में इतनी तेज लग रही थी कि सुनीता की आंखें उसी समय मानो चंदिया गई हो उसको कार ड्राइवर पर गुस्सा भी आ रहा था। लेकिन अचानक कार की हेडलाइट बंद हुई और सुनीता की नजर कार की नंबर प्लेट पर पड़ी तो सुनीता के चेहरे पर मुस्कान आ गई। क्योंकि वो कार राजेश की थी सुनीता भागते हुए कार के पास गई राजेश ने हंसते मुस्कुराते हुए कार का दरवाजा खोला और फिर दोनों प्रेमी निकल पड़े रात के अंधेरे में सुनसान सड़क पर सुनीता को गुस्सा तो आ ही रहा था। लेकिन राजेश ने सुनीता को मनाते हुए कहा - जानती हो सुनीता मेरे पास तुम्हारे लिए एक बहुत बड़ा सरप्राइज है -


सुनीता हंसते हुए बोली - अरे वा सरप्राइज - राजेश ने फिर कहा - सुनीता मैंने तुम्हारे लिए एक बंगला खरीदा है शादी के बाद हम दोनों वही रहेंगे क्या तुम देखना चाहोगी वह बंगला - उसके बाद राजेश सुनीता को उस बंगले में ले गया दोनों बंगले के अंदर गए लेकिन सुनीता को पता नहीं क्यों ऐसा लग रहा था कि वह यह पहले भी कभी आई हुई है सुनीता नहीं है राजेश से कुछ कहा तो नहीं लेकिन वह उस बंगले में हर जगह घूम घूम कर देख ली थी ऐसा लग रहा था सुनीता को कुछ याद आ रहा है यहां पर पता नहीं क्यों सुनीता सोच रही थी शायद मैं यहां इस जगह को बहुत अच्छी तरह से जानती हूं पर मैंने कब देखा है इसे और मैं यहां कब आई हूं इसी उधेड़बुन में थी सुनीता घर पीछे की तरफ चली गई पता नहीं सुनीता को क्या लगा सुनीता रोने लगी जोर-जोर से राजेश अंधेरी बैठा था तुरंत भागते हुए आया उसने कहा सुनीता क्या हुआ तुम क्यों क्यों आई अकेले पीछे क्या हुआ क्या देखा तुमने बोलो सुनीता लेकिन सुनीता ने इतना ही कहा नहीं कुछ नहीं बस कुछ नहीं सुनीता ने कुछ नहीं बताया राजेश को और फिर राजेश सुनीता का हाथ पकड़कर सीढ़ियों से चढ़ता हुआ छत पर ले गया राजेश दिखा रहा था छत के ऊपर से कितना अच्छा लगेगा नजारा

इसके आगे की कहानी अगले एपिसोड में हैं।


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