कहानी: “पीपल की परछाई || daravani Bhutiya kahani Hindi mein

🌙 शुरुआत


देहरादून के पास एक छोटा सा गाँव है—भरोसा पुर.

नाम बड़ा मीठा है, पर इस गाँव की रातें…

कभी किसी ने मीठी होते नहीं देखीं।


गाँव वालों का कहना है कि वहाँ के पीपल के पेड़ पर

एक अधूरी परछाई रहती है।

ना आदमी, ना औरत।

बस एक परछाई… जो चलती नहीं, लेकिन हिलती-डुलती रहती है।


🌫️ कहानी का असली किस्सा


राहुल नाम का लड़का, शहर से गाँव आया था अपने दादा-दादी से मिलने।

उसे डर-डरावनी चीज़ों पर भरोसा नहीं था।

उसके लिए भूत-प्रेत सिर्फ मज़ाक थे।


एक रात उसका मोबाइल चार्ज करते समय बंद हो गया

तो वह बाहर खुले मैदान में चला गया—जहाँ network अच्छा था।

वहीँ वो पुराना पीपल का पेड़ भी था,

जिसके बारे में सब कहते थे:

“रात में वहाँ मत जाना।”


राहुल हँसते हुए बोला,

“कहाँ होते हैं भूत… सब फालतू बात है।”


लेकिन जैसे ही उसने फोन निकाला,

पेड़ के पीछे से

एक पतली-सी परछाई उसकी तरफ सरकने लगी।


ना हवा चली,

ना पत्ते हिले,

पर परछाई जैसे ज़मीन पर फिसलती हुई आई और

राहुल के बिलकुल पास रुक गई।


🔥 राहुल की साँस अटक गई


पहले तो लगा कोई जानवर होगा,

लेकिन ध्यान से देखने पर

उसने देखा —

परछाई जमीन पर नहीं पड़ रही थी।


मतलब…

वह वहाँ थी,

पर उसका कोई जिस्म ही नहीं था।


राहुल के पैरों में जैसे जान ही नहीं बची।

वह पीछे हटना चाहता था,

पर उसके शरीर ने मानो उसका साथ छोड़ दिया।


तभी परछाई ने धीरे से अपना “सिर” उठाया।

जहाँ चेहरा होना चाहिए था,

वहाँ सिर्फ काली खाली जगह थी…

इतनी गहरी कि जैसे कोई खाई हो।


🩸 अगला पल सबसे डरावना था


उस काली जगह से

एक धीमी, टूटी-सी आवाज़ निकली:


“रुको… वापस मत जाओ…”


राहुल चीखा भी नहीं पाया।

उसके गले से आवाज़ ही नहीं निकली।

वह बस पीछे की ओर भागा—

इतनी तेज़ी से कि खुद का पैर भी मुड़ गया।


घर पहुँचकर उसने दरवाज़ा अंदर से बंद किया,

और बिना दादी-दादा को बताए

पूरी रात काँपता रहा।


🌙 अगली सुबह


उसे लगा शायद सपना रहा होगा,

पर जब वह बाहर गया,

उसने देखा—


पीपल के पेड़ के नीचे

उसी जगह

खुरचने के निशान बने थे।

मानो कोई नाखूनों से जमीन पर कुछ लिख रहा हो।


निशान देखते-देखते

राहुल का खून जम गया।


वहाँ मिट्टी पर लिखा था:


“फिर मिलेंगे…”

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