अधूरा सपना एपिसोड 2 -
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बिजली के झटके से चीखता हुआ आशीष वही पर चिपक गया। आशीष को बिजली के झटके से इतना खतरनाक करंट लगा कि आशीष तुरंत वही बुरी तरह से झुलस गया। और आशीष को फिर तुरंत जल्दी जल्दी से हॉस्पिटल ले जाया गया। कोविड-19 की दूसरी लहर चल रही थी इस वजह से कोई हॉस्पिटल वाले अपने यहां ऐसे किसी भी पेशेंट को एंट्री भी नहीं दे रहे थे। इसलिए आशीष को शहर के सबसे बड़े हॉस्पिटल में लाया गया।
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उस समय आशीष की सांसे भी बहुत धीमी आ रही थी किसी तरह से आशीष को वेंटिलेटर पर रखा गया ऊपर वाले की कृपा या आशीष की किस्मत मानो थोड़ी अच्छी थी। क्योंकि उस समय वेंटिलेटर ऑक्सीजन सिलेंडर मिलना बहुत बड़ी बात थी इस समय आशीष बहुत बुरी हालत में था और अगले 48 घंटे आशीष को डॉक्टरों की निगरानी में ही रहना था। आशीष अपने बिस्तर पर लेटे हुए ऑक्सीजन मास्क पहने हुए आधी बेहोशी में ही था शायद जब उसकी बेहोशी में ही उसको कुछ सुनाई दिया
- ध्यान से सुनो आशीष अगर मेरे बारे में मुंह खोलने की सोची भी तो जान से मार दूंगा - आशीष किसी बिल्ली से डरे कबूतर की तरह पलंग पर पड़े पड़े परेशान हुआ जा रहा था। वैसे ही वह अधमरा था ऊपर से और ज्यादा दिमागी परेशानी से हैरान था। और फिर अगले दिन शाम को क्लास खत्म करके आशीष को देखने के लिए विनीत आया और आशीष के पास बैठा तो आशीष ने अपना ऑक्सीजन मार्क्स हटाकर विनीत को कुछ बताना चाह रहा था आशीष ने हक लाते हुए बोलना शुरू ही किया ही पर मुंह से तो एक भी शब्द नहीं निकले और बोलने की कोशिश करते करते खतरे से बाहर हो चुके आशीष ने वहीं पर आखिरी हिचकी ली और तुरंत आशीष की जान चली गई। विनीत का सबसे अच्छा दोस्त उसके सुख दुख का साथी उसके हॉस्टल कॉलेज का एक मात्र साथी अब उसके ही सामने मर चुका था।
अब कुछ समय बाद हॉस्पिटल में आशीष के मां-बाप और परिजन पहुंच चुके थे विनीत के सामने ही आशीष के मां बाप आशीष की लाश लेकर चले गए। उन पर तो मानो दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था एक मात्र सहारा था अपने मां बाप का आशीष। और विनीत भी कुछ कम दुखी नहीं था विनीत निराश होकर झुके हुए कंधे लेकर वापस हॉस्टल पहुंचा। और अपने कमरे की तरफ जाने के लिए विनीत एक एक सीढ़ी चढ़ते हुए बस यही सोच रहा था कि अचानक क्या से क्या हो गया। विनीत ने अपनी जेब से चाबी निकालकर कमरे का दरवाजा खोला और लाइट जलाई तो उसकी चीखें निकल गई मानो उसकी सांसे अब थम गई हो लेकिन विनीत जोर जोर से चीखता चिल्लाता हुआ हॉस्टल के पूरे कोरिडोर में भागने लगा क्योंकि उसने अंदर देखा था की कमरे में आशीष की जली हुई जगह जगह से झुलसी पिघली चमड़ी बिल्कुल जली बुझी सी लाश बड़ी भयानक स्थिति में पड़ी हुई थी।
किसी तरह विनीत को संभाल कर सब लड़के विनीत को उसके कमरे की तरफ लेकर आए। और सब ने देखा कमरा तो पूरी तरह से खाली ही था सब लड़कों ने कहा कि यह विनीत का कोई वहम है क्योंकि विनीत,आशीष के बहुत ज्यादा करीब था लेकिन विनीत को पूरा विश्वास था कि उसने सचमुच वह लाश देखी थी इसमें कोई शक ही नहीं था। इसलिए विनीत ने अपने कमरे में रुकने से साफ साफ मना कर दिया। तो उसके एक दोस्त ने आखिरकार दोस्ती निभाते हुए कहा - चलो विनीत तुम मेरे कमरे में रात बिता लो - विनीत भी तुरंत उसके साथ चला गया। और जाते ही अपने दोस्त के कमरे में सो गया लेकिन उसको भयानक सपने एक के बाद एक उसको परेशान करने लगे कभी राजेश का छत से कूद ना तो कभी आशीष की वह आखरी हिचकी तो कभी आशीष की जली भूनी झुलसी हुई लाश का उसे रोते-रोते बातें करना।
आखिरकार विनीत नींद में भयानक सपने देखता हुआ बड़ी जोर से चिल्लाया तो उसने देखा कि मैं अपने ही कमरे में हूं और बगल में आशीष का पलंग बिल्कुल खाली पड़ा है। विनीत बुरी तरह से घबराते हुए डर से कांप रहा था और आशीष का पलंग खाली था। विनीत उसी खाली पलंग की तरफ लगातार देख रहा था और डर रहा था। लेकिन उसकी दिल की धड़कन तेज हो गई जब बाथरूम का स्विच ऑन हुआ और तोलिए से मुंह पोचता हुआ आशीष बाहर निकला जैसे कुछ हुआ ही नहीं था। विनीत को समझते देर नहीं लगी कि उसने बहुत खतरनाक और बहुत बुरा सपना देखा था। आशीष हाथ में तोलिया लपेट ते हुए पलंग पर बैठा और पास में टेबल पर पानी का गिलास रखा हुआ उठाकर उसने थोड़ा पानी पिया फिर विनीत की ओर देखा और कहा - अबे ओए क्या देख रहा है अबे तबीयत ठीक भी है तेरी क्या हो गया तेरे को - विनीत ने एक राहत की सुकून भरी सांस ली और अपना देखा हुआ वह भयानक बुरा सपना उसने आशीष को पूरा बताया आशीष ने सुना और बहुत जोर जोर से हंसने लगा।
और फिर हंसी हंसी में ही एक बहुत खतरनाक डरावनी आवाज में आशीष बोला आज की बाद ऐसे सपने तुझे कभी नहीं आएंगे। इतना कहकर आशीष ने अपने हाथों पर से तोलिया हटाया तो विनीत के सामने आशीष का जला भुजा बिल्कुल सूकड़ा हुआ हड्डी जैसा हाथ आया। उसका हाथ ऐसा लग रहा था झुलसा हुआ बिल्कुल हड्डी चिपक कर बाहर निकली हुई भयानक बेहद डरावना और खतरनाक लग रहा था। आशीष का हाथ देखकर अब विनीत की धड़कन ढोल की तरह जोर-जोर धड़कने लगी और थोड़े ही समय में ऐसा लग रहा था। कि दिल के आस पास जैसे कोई सांप हो जो धीरे धीरे विनीत की धड़कनों को कस रहा है और धड़कने मानो रुक ही रही हो। अब विनीत की आंखें देखते ही देखते पत्थरा गई अब विनीत की आंखों के सामने छाया हुआ अंधेरा उसकी बेहोशी का नहीं बल्किंग उसकी मौत का था। विनीत तब कभी ना जाग पाने वाली गहरी नींद में सो गया था।
अब पूरे हॉस्टल में अब हाहाकार सा मच गया था विनीत की मौत के बाद अब राजेश के बारे में पता कर आ गया। तो वहां से मिली खबर ने सबको चौका दिया क्योंकि राजेश के पिता जी का कहना था राजेश का सपना था। लखनऊ के उस कॉलेज में एडमिशन लेना और पढ़ना पर राजेश तो कभी हॉस्टल पहुंचा ही नहीं क्योंकि लॉक डाउन की वजह से सभी ट्रेनें रद्द हो गई थी। राजेश घर से निकल तो गया था लेकिन पटना में फंसा हुआ था। पटना रेलवे स्टेशन पर और बहुत से यात्री भी फंसे हुए थे राजेश की तरह। करोना के कारण लॉकडाउन था इस वजह से कोई भी बस ट्रेन या यातायात का कोई भी साधन नहीं था। वहीं फंसे हुए यात्री में से कुछ लड़के वहां क्रिकेट खेल रहे थे। राजेश कई दिनों से घर से बाहर था स्टेशन पर फंसा हुआ था। इस वजह से उसकी तबीयत शायद थोड़ी खराब रही होगी। इसलिए राजेश को बार बार खांसी हो रही थी। खांसी जुखाम के कारण राजेश स्टेशन के बेंच पर ही बैठा हुआ हम लोगों से फोन में बातें कर रहा था। हमारा फोन चल ही रहा था फोन कटा भी नहीं था। तभी उसी समय जो लड़के क्रिकेट खेल रहे थे उन्होंने कहा इसको करोना है।
राजेश ने उन्हें समझाते हुए कहा ऐसा कुछ भी नहीं है लेकिन वह लड़के कहां मानने वाले थे। उन सब ने मिलकर राजेश को जब तक पीटते रहे बैट बल्ले लाठी-डंडों से जब तक राजेश मारते रहे और मार-मार कर उन सभी ने राजेश को बिल्कुल अधमरा कर दिया। और किसी ने पुलिस को ना बुलाया और ना ही पुलिस मौका ए वारदात पर पहुंची उन लड़कों ने राजेश को अधमरे हालत में प्लेटफार्म की तीसरी मंजिल से नीचे फेंक दिया। राजेश की चिख पूरे प्लेटफार्म पर बड़ी तीज गूंजी और नीचे लोगों ने हड्डियां तक टूटने की आवाज सुनी। उसके बाद पुलिस को राजेश की लाश मिली। कहते हैं राजेश ने हॉस्टल के विनीत और आशीष को मरने से पहले स्टेशन में जो लड़के मिले थे। उनका भी यही हश्र कर दिया था राजेश ने अपनी मौत की 1 वर्ष के अंदर ही उन सभी हत्यारों से अपना बदला ले लिया था।