रैगिंग (हॉरर स्टोरी)
बचपन से ही मुझे अंधेरे से बहुत घबराहट होती हैं और मैं कभी अकेले रहा ही नहीं। पर मेरे साथ एक ऐसी घटना घाटी जिसे में जिंदगी में भी कभी नहीं भूल पाउँगा। यह जब की हैं जब कॉलेज में मेरा पेहला दिन था और मेरी पहली रात थी अपने हॉस्टल में आज पहली रात थी मैंने कॉलेज में सुना तो था कि हॉस्टल में रैगिंग होती है और आज अपनी आंखों से देख भी रहा था। हमें हॉस्टल के जो सीनियर लोग थे वो सभी को कुछ ना कुछ कह रहे थे।
और बाद में सीनियर लोगों ने सभी जूनियर को जब हल्के में छोड़ रहे थे तो मुझे लगा मुझे भी अब कुछ ऐसा ही हल्का सा काम देकर छोड़ देंगे। और मैं भी बच जाऊंगा लेकिन जैसे मेरी तो किस्मत ही खराब थी जब मेरी बारी आई तो उनमें से भी सबसे कठोर सीनियर की बारी आई मेरी रैगिंग के समय। और उसने मुझे वही कहा जिसका मुझे डर था उसने कहा - हॉस्टल के सामने वाले जंगल में जो कटहल का पेड़ है वहाँ से तुम्हे चार कटहल तोड़कर लाने हैं - सब जानते थे हॉस्टल के सामने वाला जंगल कितना खतरनाक है।
उस जंगल को देहरादून का सबसे भयानक जंगल भी कह सकते हैं। मुझे उस अंधेरे में हॉस्टल फिर कॉलेज, कॉलेज का ग्राउंड और फिर सड़क पार करके जंगल के अंदर जाना था। और फिर मुझे उस जंगल के अंदर से चार कटहल तोड़कर लाने थे। लेकिन यह बात तो तय थी चाहे मुझे जितना भी डर लगता हो अंधेरे से लेकिन जो चीज मैंने ठान ली तो बस ठान ली फिर उसे करना है चाहे कुछ भी हो जाए। उसके बाद मुझे किसी चीज की परवाह नहीं होती।
उसके बाद मैं जैसे ही जाने को त्यार हुआ तब मुझे सीनियर के अलावा सब लोग रोक रहे थे और सभी जूनियर और हॉस्टल के स्टूडेंट कह रहे थे वह जंगल बहुत खतरनाक है उस जंगल में जाना ठीक नहीं है तुम इन लोगों की कंप्लेंट कर दो लेकिन उस जंगल में जाना ठीक नहीं है इतनी रात को क्योंकि वहाँ जो जाता है उसका जिंदा आना भी मुश्किल ही होता है वो सभी स्टूडेंट इस तरह की बातें कर रहे थे तब मैंने भी कहा - अब मैं जरूर जाऊंगा और कटहल भी लेकर आऊंगा -
इतना बोलकर मैं जाने तो लगा पर मैं जैसे जैसे हॉस्टल से बाहर जा रहा था वैसे वैसे मैं यही सोच रहा था - किस मनुष घड़ी में इन राक्षसों से पाला पड़ गया मेरा लेकिन जैसे-जैसे मैं हॉस्टल से बाहर जा रहा था वैसे वैसे अब रोशनी और लोगों की आवाज धीरे-धीरे कम हो रही थी। और फिर उसके बाद मैं सड़क पार कर के थोड़ी ही देर में जंगल की तरफ चला आया जंगल बहुत बड़ा था। रोड के उस तरफ कॉलेज और हॉस्टल था तो दूसरी तरफ बस जंगल ही जंगल अब मैं यही देख रहा था की इस जंगल के अंदर जाने का रास्ता कहाँ से है।
तभी मेरी नजर सामने एक पतले से रास्ते पर पड़ी जो उस भयानक और से बड़े जंगल के अंदर को जा रहा था। उसके बाद मैं उस रास्ते से होते हुए जंगल के अंदर को जाने लगा। और चलते चलते मैं बस यही सोच रहा था पता नहीं अब कितनी दूर होगा वो कटहल का पेड़। रात को कभी भी पेड़ में से कोई चीज तोड़नी नहीं चाहिए लेकिन इन राक्षस सीनियर्यो की वजह से अब मुझे यह काम करना पड़ रहा था।
मैं जंगल के अंदर जा ही रहा था और यह भयानक जंगल घनघोर अंधेरा और ऊपर से बरसात का मौसम था और अजीब तरह की आवाजें भी आ रही थी पुरे जंगल से झींगुर और मेंढक की आवाज तो आ ही रही थी पता नहीं कौन-कौन और किस-किस किशन के जीवो की आवाज भी सुनाई दे रही थी। जंगल में हर जगह बरसात का पानी भरा हुआ था मानो जहाँ पैर रखो वही कीचड़ हो। खैर मैंने भी ये सोचा था की कटहल तोड़कर ही वापस जाऊंगा।
अब सच बताऊं तो उस घनघोर अंधेरे और खतरनाक जंगल में डर तो बहुत लग रहा था। इसलिए मैंने अपने कदम तेजी तेजी बढ़ाना शुरू करें। मैं तेज तेज चल रहा था इसलिए कभी-कभी जंगल में भरे पानी में भी पैर पढ़ जा रहा था। और किसी गड्ढे में पैर जैसे ही जाता तो ऐसा लगता जैसे कोई अंदर ही ना खींच ले क्यूंकि मुझे डर बहुत लग रहा था। इसलिए मैं तेजी से चल ही रहा था तभी ऐसा लगा कोई बड़ी तेजी से मेरे आगे से भाग कर निकल गया हो मैंने टॉर्च मारी तो वहाँ दो जंगली कुत्ते थे।
उसके बाद मैंने एक राहत की सांस ली और मैं यही सोचते हुए जंगल के ओर अंदर जा रहा था मैं सोच रहा था। पता नहीं कहाँ है ये कटहल का पेड़ तभी मेरे पैर में कुछ फस गया और मैं बड़ी तेज से नीचे गिरा और नीचे गिरते ही मेरा मुंह गड्ढे में भरे पानी में चला गया। मैंने अपने आप को संभालते हुए ऊपर उठने ने की कोशिश करी तो मैंने देखा मेरे पैर मैं कोई चीज फस रखा है और मेरे पैरों को ऐसा लग रहा था जैसे कुछ बड़ी जोर से काट रहा है। और जैसे ही मैंने अपने फ़ोन की टॉर्च उठाकर देखा तो मेरे होश उड़ गए।
क्योंकि मेरे पैरों में एक साँप लिपटा हुआ था अब मेरी हालत बहुत खराब हो चुकी थी मैं कैसे बचता बस यही सोच रहा था तभी मुझे पता नहीं क्या हुआ मैंने एक झटके में अपने हाथ से सांप को हटा दिया लेकिन उस सांप ने मेरे पैरों में काट लिया था। पता नहीं यह सांप जहरीला था या कैसा अब मेरा मन भी कर रहा था कि मैं वापस भाग जाऊं मुझे नहीं ले जाना कटहल वटल लेकिन मैं भी जिद्दी तो था मैंने फिर अपने आप को कहा चाहे आज इस जंगल में मेरी जान ही क्यों ना चली जाए हार नहीं मानूंगा।
मेरे पैर में दर्द भी बहुत हो रहा था क्योंकि सांप ने काट रखा था लेकिन फिर भी मैं जंगल के अंदर की ओर चल दिया। मैंने टॉर्च जला रखी थी और तभी मुझे वो चीज भी मिल चुकी थी जिसे मैं ढूंढ रहा था मैंने देखा मुझसे थोड़ी ही दूर पर एक कटहल का पेड़ है और इसमें कटहल भी बहुत लगे हुए थे लेकिन कटहल के पेड़ के ऊपर चढ़ना पड़ता बिना चढ़े उसे तोड़ा नहीं जा सकता था।
पेड़ भी बहुत ऊंचा थ तो मैंने टॉर्च नीचे रखी और एक हाथ में पाटल लेकर पेड़ के ऊपर जाने लगा। मैं थोड़ा ही ऊपर तक ही चढ़ा था की वही मुझे दो कटहल मिल गए मैंने उन दो कटहल को पेड़ से कटा और उन्हें नीचे जमीन पर गिरा दिया। और फिर उसके बाद मैं थोड़ा ओर ऊपर गया तो फिर मैंने 2 कटहल और काट कर उन्हें भी नीचे गिराया दिया। मैंने अब 4 कटहल तोट लिए थे इसलिए मैं फिर तुरंत नीचे उतर आया।
लेकिन मेरा मन यह सोचकर घबरा रहा था कि जितना झोल कर के मैं इस जंगल में आया हूँ। अभी उतना ही झोल करें के यहाँ से बाहर निकलना है मैंने चारों कटहल को एक बोरी में रखना शुरू करा मैं कटहल बोरी में रखी रहा था और यही सोच रहा था बस जल्दी से निकल जाऊं इस जंगल से बाहर फिर उसके बाद मैंने चारों कटहल को बोरी में रखा और मैं उन्हें उठाने ही वाला था की तभी मैंने नीचे देखा तो मानो मेरी जान तो हलक में ही अटक गई हो लेकिन मैं बोरी उठा कर वहाँ से तुरंत बाहर की ओर दौड़ा।
मैं अभी जरा सा ही आगे गया होगा तभी मुझे याद आया की मैं हड़बड़ी के चक्कर में मैं अपनी टॉर्च तो वही छोड़ आया हूँ मैंने आव देखा ना ताव मैं तुरंत पीछे की और भागा अपनी टॉर्च लेने। और फिर उसके बाद मैंने तुरंत अपनी टॉर्च उठाई और टॉर्च लेकर तुरंत जंगल से बाहर को भागने लगा। लेकिन तभी मैंने टॉर्च की रोशनी में जो देखा उससे तो मेरे होश ही उड़ गए और मेरी रगों में चलता हुआ खून मानो थम सा गया हो लेकिन मैंने भी कहा जिंदा तो बचना है इसलिए एक हाथ में टॉर्च और पाटल और दूसरे हाथ के साहरे कंधे पर कटहल की बोरी लेकर अपनी पूरी रफ्तार से जंगल से बाहर भागना शुरू कर दिया। जंगल में मेंढक झींगुर कुत्ते और ना जाने कौन-कौन से जानवरों की आवाज भयानक भयानक किस्म से होती रही लेकिन मैंने किसी चीज पर ध्यान नहीं दिया।
और अपनी पूरी जान लगा कर मैं भागता रहा भागते भागते मैंने देखा मैं जंगल से अब बाहर सड़क पर निकल आया हूँ उसके बाद मुझे थोड़ी राहत तो मिली लेकिन मैं सीधा हॉस्टल जाकर ही रुका और वहाँ जाकर सीनियर को ढूंढ कर उसके सामने कटहल की बोरी पटकी और उसको पूरी बात बताई जिस सीनियर ने मुझे जंगल में भेजा था। उसने पूरी बात सुनी और मुझसे कहा - बेटा किस गाँव के हो जिगरा तो बहुत है तुम में - उसकी बात सुनकर मैंने कहा - जिगरा तो है क्यूंकि हम बाराबंकी जिले के हैं -
फिर उसने कहा - बाराबंकी यार पहले क्यों नहीं बताया हम भी तो वहीं के हैं - फिर सीनियर ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा - वैसे क्या नाम है तुम्हरा - मैंने उसको जवाब देते हुए कहा - सूर्य प्रताप सिंह - मेरा नाम सुनकर सीनियर ने मुस्कुराते हुए कहा - यार बहुत बड़ी गलती हो गई तुमको हमने इतनी खतरनाक जगह भेज दिया तुम तो हमारे ही जिले के और हमारे ही बिरादरी के हो हमारा नाम भानु प्रताप सिंह है - लेकिन उस सीनियर की बात सुनकर मेरा मन तो कर रहा था इस सीनियर के कान पर एक खींच के तमाचा लगा दू फिर मैंने भी सोचा अरे छोड़ो 4 साल हॉस्टल में रहना है सीनियर के साथ मिलकर रहेंगे तो अपनी भी दादागिरी चलती ही रहेगी और हम भी बचे रहेंगे।
उतने में फिर भानु प्रताप ने कहा - बेटा चलो अब अपना बोरी बिस्तर उठाओ और हमारे साथ हमारे कमरे में चलो वही रहोगे अब तुम हमारे साथ - दिमाग तो पहले से ही खराब था मेरा इसके ऊपर फिर भी मैंने कहा ठीक है और मैं उसके साथ ही चला गया उसके कमरे में। हम लोग कमरे के अंदर जाते ही हमने दरवाजा बंद किया ही था कि तभी कोई बड़ी जोर जोर दरवाजा खटखटाने लगा।वह सीनियर दरवाजा खोलने को उठा तो पता नहीं मुझे क्या हुआ मैंने उसे कहा - दरवाजा खोलोगे तो मारे जाओगे -
पर वो मना नहीं उसका नाम भानु प्रताप सिंह था और जब बात इज्जत की हो तो वो मरने से भी नहीं डरता वो उठकर गया और अंदर रखी एक लोहे की रॉड हाथ में लेकर एक झटके में उसने दरवाजा खोला और पीछे मुड़कर उसने सूर्य प्रताप सिंह पर चिल्लाते हुए कहा - अरे डरपोक तुम इससे डर रहे थे मैं जानता था यह रघु ही होगा तुम को डराने के लिए इसने ऐसा करा होगा। हाँ तुम ठाकुर खानदान के लौंडे हो कर भी डरते हो - भानु प्रताप की बात खत्म होते ही रघु ने कहा - कोई भूत भूत नहीं है यहाँ पर ठीक है और मैं जा रहा हूं सोने तुम रखवाली करो कमरे की -
इतना बोलकर रघु वहाँ से चला गया भानु प्रताप ने सूर्य प्रताप से कहा - और एक बात और सुनो बेटा भानु प्रताप सिंह को अगर कोई मारने आए गा ना इतनी औकात तो उसकी होगी नहीं कि वह दरवाजा खटखटा कर आए पीछे से भले ही कोई वार करे तो बात अलग है - इतना बोलकर वो बिस्तर पर लेट गया।लेकिन सूर्य प्रताप को नींद तो आने वाली थी नहीं क्योंकि जंगल में कटहल के पेड़ के पास जो उसने देखा था नींद तो उसकी वही सोच कर उड़ गई थी। और वो पलंग पर बैठे बैठे बस यही सब सोच ही रहा था कि तभी एक बार फिर से कोई दरवाजा खट खटा रहा था।
अब की बार भी आवाज बहुत जोर जोर आ रही थी इस बार सूर्य प्रताप खुद उठा दरवाजा खोलने के लिए और पीछे देखा तो भानु भी उठ गया था तभी उसे भानु से कहा - सर परेशान मत होइए इतने भी डरपोक नहीं है हम हमारी रगों में भी ठाकुर खानदान का खून दौड़ रहा है अब मैं देखता हूँ आखिर हैं कौन - इतना बोलकर सूर्य प्रताप ने दरवाजा खुला लेकिन दरवाजा खुलते ही वो चौक गया। क्योंकि आस पास तो कोई होना चाहिए था पर वहाँ कोई नहीं था।
सूर्य प्रताप बाहर निकला और लाइट जला कर देखने की कोशिश करने लगा। लेकिन कमरे के आस पास कोई नहीं था रात के अंधेरे में सूर्य प्रताप यही सोच रहा था अगर कोई भागकर भी जाता तो उसकी आवाज तो आती लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं था। और कमरे के अंदर भानु गुस्से में लाल हुआ पड़ा था और बस यही सोच रहा था कोई भी है सुबह हो जाने दो फिर बताते हैं उसको किससे पंगा ले रहा है वो। भानु तो सुबह के इंतजार में बैठा हुआ था और सूर्य प्रताप कमरे के बाहर पता लगा रहा था कि कौन है वो ।
तभी कमरे के अंदर भानु प्रताप के बगल में सूर्य प्रताप के पलंग पर से किसी ने कहा - खटखटाना तो एक बहाना है सर हम तो जब चाहे तब आ सकते हैं कहीं भी मकसद तो आप को डराना है अभी -भानु इस आवाज को बहुत अच्छी तरह से पहचानता था पर यह कैसे हो सकता है यह तो मुमकिन ही नहीं है इसलिए भानु प्रताप कप कपाता हुआ पीछे पलटा तो भानु प्रताप के होश उड़ गए भानु प्रताप जो इतनी बड़ी-बड़ी बातें करता था आज उसकी हालत खराब हो गई वो पूरी तरह से डर गया क्योंकि उसने देखा सूर्य प्रताप के बिस्तर पर एक और सूर्य प्रताप बैठा हुआ था।
भानु प्रताप जितनी बहादुरी का दम भरता हो। लेकिन उस समय वो किसी छोटे बच्चे की तरह डर के मारे चीखने चिल्लाने लगा भानु प्रताप चिल्लाता हुआ कमरे के एक कोने में जाकर बैठ गया।और तभी बाहर से भागता हुआ सूर्य प्रताप सिंह आया उसने कहा - क्या हुआ सर सर क्या हुआ आप ठीक तो हो सर आप चीखे क्यों बाहर कोई नहीं है सर कोई नहीं है मैं बाहर हर जगह देख कर आ गया हूँ अब आप सुबह जब सब की वाट लगाएंगे ना तभी पता चलेगा - पर इन सब बातों का भानु पर कोई भी असर नहीं हो रहा था और वह डरता हुआ गुस्से में सूर्य प्रताप से बोला - चुप बिल्कुल चुप भाग यहाँ से तू और मैं भी एक पल भी नहीं रुकूंगा इस -
इतना बोलकर भानु प्रताप ने सूर्य प्रताप का हाथ पकड़ा और कमरे से बाहर भागने लगा लेकिन भानु प्रताप के होश एक बार फिर उड़ गए अब क्योंकि उसने देखा जैसे बाहर निकले वैसे ही दरवाजा अपने आप बंद हो रहा था और बंद होते दरवाजे से साफ साफ दिख रहा था सूर्य प्रताप वाले बिस्तर पर एक दूसरा सूर्य प्रताप बैठा हुआ मुस्कुरा रहा था और धीरे-धीरे दरवाजा पूरी तरह से बंद हो गया। भानु प्रताप ने सूर्य प्रताप का हाथ पकड़ा और हॉस्टल के अंदर गैलरी से भागना शुरू कर दिया रात के अंधेरे में पूरे हॉस्टल में इन दोनों के कदमों की आवाज ही आ रही थी लेकिन भागते भागते भानु ने सूर्य प्रताप के चेहरे को देखा तो मानो अब ऐसा लग रहा था भानु प्रताप की धड़कन ए रुक गई हो
भानु प्रताप की हालत बिल्ली से डरे चूहे की तरह हो गई चौकी थी क्यूंकि भानु प्रताप ने देखा जिसका हाथ पकड़ कर वो भाग रहा है वो और कोई नहीं वो भी भानु प्रताप सिंह ही है यानी वह खुद का ही हाथ पकड़ कर भाग रहा है भानु प्रताप ने तुरंत अपना हाथ छोड़ा और चिल्लाता और चीखता हुआ हॉस्टल से बाहर की तरफ भागने लगा।भानु प्रताप सिंह अपनी पूरी स्पीड से कूदता फंता भाग रहा था। भानु हॉस्टल की चौथी मंजिल से भागता हुआ सबसे नीचे आकर सीढ़ियों पर ही बैठ गया भानु बहुत ज्यादा घबरा रखा था।
और यही सोच रहा था यह कैसे हो सकता है पहले मुझे वो दो दो सूर्य प्रताप दिखे और मैं सूर्य प्रताप सिंह का हाथ पकड़ कर भाग रहा था तभी अचानक उसकी शक्ल मेरी जैसे कैसे हो गई। क्या हो रहा है मेरे साथ यह सब सोचता हुआ भानु प्रताप बैठा हुआ था। और तभी भानु उठा और बगल में पानी की टंकी रखी हुई थी भानु प्रताप गया और अपनी आंखों पर पानी के छींटे मारने लगा। और सोच रहा था कहीं मैं नींद में तो नहीं हूँ लेकिन भानु प्रताप अपने पूरे होशो हवास में था। फिर भानु प्रताप सीढ़ियों पर फिर बैठ गया।
और सोच रहा था क्या है यह क्यों हो रहा मेरे साथ इसी उधेड़बुन में खोया हुआ था। जो सारे कॉलेज के लिए सर दर्द था आज उसी की हालत खराब हुई पड़ी थी। तभी उसने सुना किसी के कदमों की आवाज आ रही है और कोई सीढ़ियां उतरकर नीचे ही आ रहा है भानु सोच रहा था कौन होगा तभी किसी ने आवाज मारी - सर आप यहाँ बैठे हो मैं पूरे हॉस्टल में आपको ढूंढ रहा था - ये आवाज सुनकर भानु प्रताप समझ तो चुका था की कौन हैं । और डरते हुए उसने पीछे देखा तो पाया कि पीछे सूर्य प्रताप सिंह ही खड़ा हुआ है।
लेकिन भानु प्रताप पूरी जान से चिल्लाया चीखता हुआ बोला - क्या हुआ तुमको क्यों मेरा पीछा कर रहे हो तुम अभी भाग जाओ यहाँ से नहीं तो अच्छा नहीं होगा - उसके बाद भानु दांत पीसते हुए बोला - भाग यहाँ से जल्दी - भानु की बात सुनकर सूर्य प्रताप ने थोड़ा मुस्कुराते हुए कहा - अरे सर ठाकुर खानदान के होने के बावजूद इतना डरते हो कहाँ गई तुम्हारी ठाकुरई। बातें तो बहुत बहादुरी वाली किया करते थे डर के मारे कमरे से भाग कर यहाँ नीचे सीढ़ियों पर क्यों बैठे हो। मुझे भी अपने साथ कमरे से भगा कर ला रहे थे अचानक मेरा हाथ छोड़कर काहे नीचे भाग लिए मैं पूरे हॉस्टल में तुमको ढूंढ रहा था क्या हो गया सर -
इतना कहा सूर्य प्रताप ने और भानू उसको बस एक टक देख रहा था। लेकिन सूर्य प्रताप ने अबकी बार भानु का हाथ पकड़ा और कहाँ - चलो सर कमरे में जाकर सो जाओ तभी चैन आएगा आपको शायद - पर कमरे में जो दिखा उसके बाद तो भानु की हिम्मत हो नहीं रही थी वहाँ जाने की और अभी आते वक्त गैलरी में भी जो कुछ भी हुआ उसे भी भानु अपना वहम तो मानने को तैयार नहीं था इसलिए भानू ने कहा - तुमको जहाँ जाना है चले जाओ लेकिन मैं कहीं नहीं जाऊंगा -
इतना कहा ही था भानू ने की भानु के फोन की घंटी बजने लगी भानु ने तुरंत जेब से फोन निकालकर रिसीव करा तो उधर से आने वाली आवाज सुनकर भानु के होश ही उड़ गए। उधर से फोन पर कोई कह रहा था - अरे सर कहाँ हो आप हम कब से इंतजार कर रहे हैं आपका आपके कमरे में कहाँ चले गए भानु बहुत ज्यादा डर चुका था लेकिन फिर भी डरते डरते उसके मुंह से आवाज निकली उसने कहा - कौन-कौन हो तुम - दूसरी तरफ से तुरंत आवाज आई - अरे सर इतनी जल्दी भूल गए हम आपके दोस्त वही बाराबंकी जिले वाले अरे आपकी बिरादरी के ही तो हैं हम भूल गए सूर्य प्रताप सिंह - अब भानु के पसीने छूटने लगे क्योंकि यह कैसे हो सकता है।
एक सूर्य प्रताप सिंह फोन पर बात कर रहा और एक सूर्य प्रताप सिंह भानु प्रताप के ठीक सामने खड़ा हुआ था।भानु प्रताप सिंह डरता हुआ उठा और थोड़ा आगे की तरफ गया लेकिन भानु मरता क्या न करता बिना रुके बिना पीछे देखे हॉस्टल से बाहर निकल कर भागने लगा भानु और सीधा सड़क पर आया और यही सोच रहा था।अब किधर जाऊं इसलिए वो आते जाते गाड़ियों को हाथ दे रहा था। और यह सोच रहा था कोई लिफ्ट दे कहीं पर भी जाऊं लेकिन अभी तो बच जाऊं यही सोच रहा था भानु लेकिन उस अंधेरी रात में सड़क पर इक्की दुक्की गाड़ियां तो चल रही थी पर कोई रुक नहीं रहा था।
तभी ऐसा लगा भानु को किसी ने पीछे से पकड़ लिया और कहा - सर इतनी भी जल्दी क्या है हम हैं ना आपके साथ हम ले चलेंगे आपको -भानु ने जैसे ही पीछे घूम कर देखा तो पिछे सूर्य प्रताप सिंह था। अब भानु रोने लगा और उसने रोते हुए ही कहा - मैंने क्या किया है छोड़ दो मुझे मुझे क्यों परेशान कर रहे हो तुम - गिड़गिड़ा रहा था भानु लेकिन सूर्य प्रताप ने कहा - नहीं सर आपको कैसे छोड़ सकता हूँ आप तो हमारे ही जिले के हैं और हमारे ही बिरादरी के हैं हमारे दोस्त भी बन चुके हैं - इतना बोलकर सूर्य प्रताप भानु को घसीटना हुआ जंगल की तरफ ले जा रहा था। और भानु रो रो कर कह रहा था छोड़ दो मुझे छोड़ दो लेकिन सूर्य प्रताप पर इसका कोई असर नहीं हो रहा था।
वो उसको घसीटा हुआ जंगल के अंदर ले जा रहा था। कीचड़ गड्ढों में घसीटते हुआ सूर्य प्रताप पूरे जंगल में भानु को ले जा रहा था। और भानु की चीखने की आवाज पुरे जंगल में गूंज रही थी। लेकिन सूर्य प्रताप,भानु को तब तक घसीट रहा था जब तक भानु ने दम नहीं तोड़ दिया। अगले दिन जब कॉलेज में सूर्य प्रताप के बारे में पता करा जा रहा था तो कुछ स्टूडेंट ने बताया की भानु प्रताप ने उसे रैगिंग करते हुए जंगल की तरफ भेज दिया था। तब से शायद वो वापस नहीं आया। उसके बाद पुलिस के साथ जब हॉस्टल के कर्मचारी सूर्य प्रताप को ढूंढते हुए जंगल के अंदर जा रहे थे तो उन्हें जंगल में ही भानु प्रताप की लाश मिली जिसकी खासिटने के कारण बड़ी बुरी हालत में लाश थी।
और थोड़ा ओर आगे गए तो कटहल के पेड़ के पास सूर्य प्रताप की भी लाश पड़ी हुई थी। और वहाँ एक बोरी में चार कटहल और एक पाटल और एक टॉर्च भी पड़ी हुई थी। दोनों की बॉडी जब हॉस्पिटल ले जाई गई तो वहाँ पता चला सूर्य प्रताप सिंह की मौत एक जहरीले सांप के काटने से हुई थी। और भानु प्रताप को घसीटते घसीटते मारा गया कहते हैं लोगों को आज भी उस जंगल में कटहल के पेड़ के पास सूर्य प्रताप सिंह घूमता हुआ मिल जाता है।
