भूतों से हुई मुलाक़ात | New short horror story in hindi | Hindi story my

 

भूतों से हुई मुलाक़ात


रात के लगभग 10 बज रहे होंगे अधेरी रात और सुनसान मट्टी की कच्ची सड़क में राजीव अपनी साईकिल से अपने एक रिश्तेदार की शादी से होकर अपने घर को वापस जा रहा था। सर्दी का मौसम था इसलिए राजीव साईकिल धीरे धीरे चला रहा था क्यूंकि उस समय चल रही ठंडी हवा राजीव के चलते खून को जमा रही थी। रात का काला अंधेरा और खेतो के बिच से जाती हुई सुनसान सड़क कही ना कही राजीव को थोड़ा डराने का काम कर रही थी। वैसे तो राजीव कभी डरता तो नहीं था पर इस तरह का जो मोहोल था वो किसी भी इंसान को थोड़ा तो डरा ही देता।

राजीव मन ही मन बस यही सोच रहा था की कितनी जल्दी वो बस अपने घर पहुंच जाए। क्यूंकि सर्दी भी बहुत हो रही थी पर अभी उसका घर यहाँ से लगभग 6 किलोमीटर की दुरी पर होगा इसलिए राजीव भी बिना रुके बस अपनी साईकिल से चला जा रहा था। राजीव अभी 2 या 3  किलोमीटर ही आगे गया होगा तभी उसने देखा उसे थोड़ी ही दूर पर कुछ लोग एक खेत में बैठे आग ताप रहे थे। ठंड तो राजीव को भी बहुत लग रही थी इसलिए उसने सोचा कुछ देर यहाँ उन लोगो के साथ बैठ कर आग ताप लेता हूँ फिर उसके बाद आगे जाऊंगा।

यही सोचकर राजीव अपनी साईकिल से उतरा और पैदल ही अपनी साईकिल को उन लोगो तक ले गया और जैसे राजीव ने वहाँ अपनी साईकिल खड़ी करी तो उनमे से एक आदमी पिछे मुड़ा और राजीव से बोला - आओ भैया बैठो बैठो बहुत ठंड हैं थोड़ा आग ताप लो फिर जाना - उस आदमी की बात सुनकर राजीव ने कहा - हाँ भैया बहुत ठंड हैं - इतना बोलकर राजीव उन लोगो के बिच में बैठकर आग तापने लगता हैं। राजीव वही बैठकर उन लोगो से इधर उधर की बाते कर रहा था की तभी राजीव ने कुछ ऐसा देख लिया था जिसे देखकर राजीव के डर के मारे हाथ पैर कापने लगे और उसकी रगो में चलता खून मानो जम सा गया हो।

क्यूंकि उसने देखा की वो जीन लोगो के साथ बैठा था उन सबके पैर उल्टे थे। पर उन सबको देखकर ऐसा कुछ भी नहीं लग रहा था की वो इंसान नहीं हो और वो सब उसके साथ बिलकुल सही से बात कर रहे थे। पर अब राजीव ये देखकर बहुत डर चूका था इसलिए वो बस यहाँ से अब जल्दी से भाग जाना चाह रहा था पर वो एकदम से भी उठकर नहीं भाग सकता था क्यूंकि शायद उन्हे ऐसा लग रहा था की राजीव भी उनमे से एक हैं इसलिए वो राजीव को कुछ नहीं कह रहे थे या फिर उन्हे पता था और वो राजीव के साथ कुछ और ही करना चाह रहे थे। पर तभी राजीव के साथ जो हुआ उसे देखकर तो राजीव के होश ही उठ गए।

क्यूंकि तभी उनमे से एक आदमी ने अपनी जेब से कुछ निकला और कहा - चलो भाई थोड़ा तमाकू वामकू खा लेते हैं - इतना बोलकर वो आदमी सबके हाथो में कुछ देने लगा और जब उसने वो चीज राजीव के हाथो में दी तो इस बार राजीव की आँखे फटी की फटी रह गई। क्यूंकि उसने देखा वो कोई तमाकू नहीं बल्कि इंसानों की आँखे थी। और वो सब उन आँखो को तमाकू की तरह खा रहे थे राजीव ने तो उस समय उनसे वो आँखे लेली और जैसे वो लोग उन आँखो को खा रहे थे वैसे ही राजीव ने भी उन आँखो को खाने का नाटक करने लगा पर उसने उन आँखो को उन लोगो से चुपा कर उसने फेक दिया।

पर राजीव मन ही मन बस यही सोच रहा था की - कहाँ फस गया मैं अब कैसे जाओ यहाँ से - यही सब सोच रहा था वो और उन लोगो से बाते भी करें जा रहा था। तभी एक बार फिर उन लोगो में से एक आदमी ने अपने कपडे में से कुछ निकला जो उसने अपने कपडे में बांध कर रखा हुआ था। इस बार भी उसने वो चीज निकाली और कहा -  चलो भाइयो थोड़े चने खा लो - इतना बोलकर वो आदमी फिर सबको बारी बारी वो चीज देने लगा जिसे वो चना बोल रहा था। और इस बार भी जब राजीव की बारी आई तो उसने ने देखा वो चीज कोई चना नहीं बल्कि इंसनों की उंगलियां थी जो छोटे छोटे हिस्सों में कटी हुई थी।

राजीव ने इस बार भी उस आदमी से वो कटी हुई उंगलियां लेली फिर उनको भी खाने का नाटक करने लगा। पर वो यहाँ से भाग जाने के बारे में भी बार बार सोच रहा था और वो यह भी सोच रहा थी की कही इन लोगो को पता चल गया की वो इनमे से नहीं बल्कि एक इंसान हैं तो यह लोग मेरे साथ क्या करेंगे। यही सब सोचते हुए राजीव वहाँ बैठे बैठे डरे जा रहा था पर उसने सोच लिया था की अब चाहे मर ही क्यों ना जाऊ पर अब यहाँ और नहीं बैटूंगा इसलिए राजीव वहाँ से उठा बोला - भाइयो मैं अभी थोड़ी देर में आया -

इतना बोलकर राजीव ने अपनी साईकिल निकाली और वहाँ से जाने लगा। पर शायद उन लोगो को उस समय पता चल गया की राजीव एक इंसान हैं तभी उनमे से एक आदमी राजीव के आगे आकर खड़ा हो गया। पर इस बार वो आदमी देखने में बड़ा भयानक सा हो गया था अब वो आदमी ही नहीं बल्कि वहाँ बैठे सभी लोग बड़े भयानक से हो गए थे। अब उन सबके चेहरों से खून निकल रहा था और वो सब उसकी ओर चले आ रहे थे और वो जैसे जैसे राजीव के जितने पास आ रहे थे वैसे वैसे राजीव की दिल की धड़कन तेज होती जा रही थी।

पर राजीव वहाँ से भाग भी नहीं सकता था क्यूंकि उन सबने राजीव को चारो ओर से घेर लिया था। तभी उनमे से एक आदमी राजीव के एकदम पास गया यह वही आदमी था जो थोड़ी देर पहले सबको कुछ ना कुछ खाने को दे रहा था। इस बार वो आदमी राजीव के पास गया वो  राजीव के गले को जैसे ही उसने पकड़ा वो सब तुरंत पता नहीं कहाँ गायब हो गए और वो आदमी भी पता नहीं कहाँ गायब हो गया जो अभी राजीव का गला पकड़ने जा रहा था।

वो सब जैसे ही गायब हुए राजीव वहाँ से तुरंत भाग कर अपने घर चला गया। और जब उसने अगले दिन सारी बात अपने घर में सबको बताया तो उसके पिता ने उसको बताया की तुम्हे वहाँ बैठे बैठे ही सुबह के चार बज गए थे और सुबह चार बजे के बाद भूतों का समय खत्म हो जाता हैं इसलिए तुम उस दिन बच पाए थे।


इस कहानी के लेखक हैं - शिव



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