Top 5 Horror stories | short horror story in hindi | Hindi story my

 

 1. मज़ाक पड़ा भारी 


देहरादून का काट बंगला इलाका दिन 22 दिसंबर 2017 उस दिन मोहनलाल की मृत्यु हो गई थी। मोहन जी इलाके के एक दुकानदार थे मोहन को अंतिम विदाई देने के लिए इलाके के सभी लोग जमा हो रखे थे। मेरा नाम राहुल है मैं और मेरे सभी दोस्त भी मोहनलाल जी की अंतिम यात्रा में शामिल थे। मोहनलाल के पार्थिव शरीर को बस से हरिद्वार के श्मशान घाट ले जाया जा रहा था। फिर लगभग 2 घंटे के सफर के बाद हम हरिद्वार के श्मशान घाट पहुंच चुके थे।


फिर उसके बाद पूरे विधि विधान से मोहन का अंतिम संस्कार हुआ वहाँ पर मैं और मेरे दोस्त सोनू, अमित और नितिन हम सभी श्मशान घाट में हर तरफ घूम रहे थे। हम सभी लाशों को देख रहे थे हमने देखा सैकड़ों चिता जल रही है। श्मशान घाट में हम फोटो खींच रहे थे उनकी और कुछ की वीडियो भी बना रहे थे। हमारे साथी जो मोहन की डेड बॉडी लेकर आए थे वो सब मोहन की चिता के पास ही थे लेकिन हम लोग इधर-उधर घूम रहे थे की तभी मेरे दोस्त सोनू ने मुझसे कहा - राहुल तू अपने आप को बहुत निडर समझता है ना - मैंने ने उसकी बात का जवाब देते हुए कहा - हाँ तो - फिर सोनू अपनी बात जारी रखते हुए बोलता हैं - तो तेरे अंदर हिम्मत है तो तू यहाँ से किसी भी एक चिता से थोड़ी सी राख अपनी जेब में लेकर जा सकता है क्या -


फिर मैंने कहा - इसमें कौन सी बड़ी बात है - सोनू ने फिर से कहा - ले जा चल आज 5 हज़ार की शर्त है - फिर मैंने ने कहा - ठीक है - इतना बोलकर मैंने फिर एक मुट्ठी राख उठाई और उसको एक प्लास्टिक की थैली में डाल के अपनी जैब में रख लिया। राख जेब में रखने के बाद मैं सोच रहा था की - अभी रखा है थोड़ी देर में निकाल कर फेंक दूंगा क्या हुआ - फिर उसके बाद हम सभी वहाँ चले गए जहाँ पर मोहन की चिता जल रही थी चिता अब जल चुकी थी लगभग और सभी क्रिया कर्म भी पूरे हो चुके थे जो साथ में आए थे तभी सब ने कहा - चलो अब गंगा स्नान करने चलते हैं - मैंने और मेरे सभी दोस्तों ने गंगा स्नान किया और सभी के साथ बस में बैठकर अपने घर रवाना हो गए।


हमें घर पहुंच ने में लगभग 7:00 बज चुके थे खाना तो हम लोग वहीं पर सब खाकर आए थे। और पता नहीं क्यों जब से हम वहाँ से आये थे तब से ही मेरे सर में हल्का हल्का दर्द हो रहा था इसी वजह से मैं घर जाते ही अपने बिस्तर में लेट गया। लेटे हुए अभी 15 मिनट हुए होंगे कि मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैं बहुत सारे अजीब-अजीब लोगों के बीच मैं हूँ और सभी लोग अजीब तरह की आवाज कर रहे थे। मैं अब बहुत डर चुका था और मुझे ऐसा लग रहा था कि कोई आग से जला हुआ आदमी मेरे पास खड़ा है और एक तो सर कटा हुआ था वहाँ जितने भी लोग मुझे दिख रहे थे वो सब विचित्र हालत में थे।


मुझे ऐसा लगने लगा जैसे मैं भूत परिजनों के बीच पूरी तरह से फसा हुआ हूँ। पर तभी थोड़ी देर बाद मेरी पत्नी मेरे कमरे में आई और मेरी पत्नी ने देखा कि मेरी आँखे बहुत अजीब हो रखी हैं और मैं बड़ी बुरी तरह से अपनी पत्नी घूर रहा था। फिर उसके बाद मेरी पत्नी मेरे थोड़ा और पास आई और मुझसे बोली - राहुल क्या हुआ ठीक हो तुम - उसके इतना बोलने के बाद मैं जो नहीं बोलना चाहता था वही शब्द मेरे मुँह से निकल रहे थे मैंने कहा - इसे लेकर जाऊंगा यह मुझे लेकर आया है अब यह भी मेरे साथ जाएगा यह अब मेरा हो गया - मेरी पत्नी मेरी बात सुनकर पूरी तरह से डर चुकी थी उसने तुरंत मेरे पापा मम्मी और घर के सभी लोगों को बुला लिया और मेरे पापा मेरे पास आकर बड़ी जोर से बोले - राहुल क्या हुआ तू ठीक तो हैं -


मेरे पापा के इतना बोलने के बाद भी मैं कुछ नहीं बोल पा रहा था बस मैं सबको पड़ी भयानक निगाहों से देख रहा था। तभी पता नहीं मुझे क्या हुआ मैं ऐसा कुछ करना भी नहीं चाहता था लेकिन मेरे हाथों या मेरे शब्द मेरा कोई काबू नहीं था। तभी मैं एकदम से अपनी जगह से उठा और तुरंत अपने पापा का गला पकड़ लिया फिर मैंने कहा - मैं सबको मार दूंगा और सब को ले चलूंगा अपने साथ - फिर उसके बाद मेरे पापा ने मुझे झटका और कहा - कौन है तू - फिर मैंने कहा - यह मुझे लेकर आया है और अब मैं इसको लेकर जाऊंगा अब यह बस मेरा है अगर कोई हमारे बीच में आया तो मैं उसको भी मार दूंगा और उसे भी अपने साथ लेकर जाऊंगा मैं सबको मार दूंगा आज मैं सबको मार दूंगा -


उस दिन मैं ऐसे ही जोर जोर से चिल्ला रहा था मैं मेरे घर के सब लोग बहुत ज्यादा डर चुके थे। मेरी मम्मी भी मुझे ऐसे देख रोने लगी थी ऐसे ही समय बीत गया फिर उसके बाद लगभग 10:30 बजे जब मेरी हालत में कुछ फर्क नहीं पड़ा तब मेरे पापा तुरंत मोहल्ले के एक बाबा के पास गए बाबा ने भी देरी नहीं लगाई और वो भी तुरंत हमारे घर आ गए। बाबा को देखकर मेरे मुंह से तुरंत मैंने कहा या फिर यह बोले जो मेरे अंदर था उसने कहा - सबको मार दूंगा आज मैं और सब को अपने साथ लेकर चलूंगा मुझे यह लेकर आया है और अब मैं इसे लेकर जाऊंगा यह अब सिर्फ मेरा है - मेरे इतना कहने के बाद मैं अपना सर बड़ी तेज-तेज दीवार से मारने लगा।


तभी बाबा ने तुरंत मेरे पास आकर मुझे पकड़ लिया और बड़ी जोर से चिल्लाते हुए कहा - कौन है तू और कहाँ से आया है - लेकिन उसके बाद भी मेरे मुँह से सिर्फ एक ही आवाज निकली - यह मुझे लेकर आया है और अब मैं इसे लेकर जाऊंगा हम दोनों साथ रहेंगे अब यह बस मेरा है - मेरे इतना बोलने के बाद बाबा ने मेरी गर्दन पकड़ कर तुरंत जमीन पर पटक दिया और बड़ी तेज तेज झापड़ मारने लगे और कहने लगे - बता कौन है तू कहाँ से आया हैं - इतना बोलने के बाद बाबा ने कुछ पूजा करी तभी मैंने कहा - यह मुझे श्मशान घाट से लेकर आया है और अब मैं इसको भी लेकर जाऊंगा अपने साथ -


बाबा ने मेरी बात सुनने के बाद कहा - ये श्मशान घाट से तुझे कैसे लाया - बाबा की बात पूरी होने के बाद फिर मैंने कहा - यह मुझे लाया है बस अब हम साथ ही जाएंगे - बाबा ने मुझे पकड़ा और दबा लिया जिससे मैं बड़ी जोर से चीखने लगा फिर मैंने कहा - यह मेरी राख लेकर आया है चिता से इसलिए मैं यहाँ पर आया हूँ - फिर बाबा ने मेरे पापा को कहा - इसकी जेब से निकालो यह राख - पर मेरी जेब में राख की थैली जो रखी थी वो जेब के अंदर ही फट गई थी तो उसमे से सारी राख बिखर चुकी थी। फिर उसके बाद मेरे पापा ने सारी राख इकट्ठा करके घर के पास की ही नदी में ही डाल दी।


उस समय तो में ठीक हो गया पर अगले दिन मेरा सिर बहुत भारी भारी लग रहा था मुझे अजीब सा महसूस हो रहा था लेकिन यह बात मैंने किसी को नहीं बताई मुझे पता था कल की घटना की वजह से ही क्या पता मेरी तबीयत खराब हो। पर जब रात को मैं अपने बिस्तर पर सोने गया तभी मेरी आँख लगी ही थी तभी पता नहीं मुझे क्या हुआ की मैं तेज तेज से चिल्लाने लगा और कहने लगा - मैं इसे लेकर जाऊंगा अब मैं इसे लेकर ही जाऊंगा यह मुझे लाया है और मैं इसको लेकर जाऊंगा - इतना बोलकर मैं अपने घर से बाहर भागने लगा गिरते पड़ते मैं भाग रहा था तभी मेरे पापा और आस पास के लोगों ने मुझे पकड़ कर घर के अंदर वापस लेकर आ गए और मेरे बिस्तर पर लिटा दिया।


लेटने के कुछ समय बाद मैं उठकर अपना सर दीवार पर मारने लगा और जोर-जोर से रोने लगा और रोते हुए मैं बस एक ही बात बोल रहा था - इसे मैं ले जाऊंगा अब यह मुझे लाया है और मैं इसे लेकर जाऊंगा - इस बार मेरे अंदर पहली वाली रात से ज्यादा ही गुस्सा था। और मैं बार बार सबका गला पकड़ने की कोशिश कर रहा था तभी बाबा फिर हमारे घर आये। अब की बार बाबा ने पूरे घर में गंगा जल छिड़का और मंत्र पढ़ने लगे बाबा ने कहा कि - उसकी राख अभी बिस्तर में गिरी है और इसके कपड़े पर भी है इन्हें अभी विसर्जित करो तब मेरे पापा ने मेरी चादर यानी बेडशीट और मेरे कपड़े सभी नदी में विसर्जित कर दिए। और बाबा ने मेरे गले में एक ताबीज मंत्र पढ़कर बांध दिया। बाबा ने कहा अब ऐसा कभी नहीं होगा तब से मैं अपने काम से काम रखता हूं। 



 2. डरावनी रात 


कहते हैं जब किसी की नई नई शादी होती हैं तो उसे बाहर ज्यादा घूमना नहीं चाहिए क्यूंकि कहते हैं भूत और आत्मा नए दूल्हे या दुल्हन के पास ज्यादा आकर्षित होते हैं। और इस बात का उदहारण आज की यह कहानी हैं आज की जो यह कहानी हैं यह हमारे ही एक दोस्त के साथ घाटी एक सच्ची घटना हैं। यह बात उसकी शादी के दो दिन बाद की बात हैं जब उसकी बीवी अपने घर गई हुई थी और उस दिन वो अपने कमरे में अकेला ही था। और अब यह कहानी मैं उनके ही शब्दों में जारी रखूँगा।


मेरा नाम नीरज हैं और मैं आज आपको जो घटना बताने जा रहा हूँ उस घटना को मैं याद भी करता हूँ तो मेरा दिल सैहम सा जाता हैं। यह बात मेरी शादी के दो दिन के बाद की बात हैं। उस समय मुझे घर में सब गाँव में बाहर घूमने के लिए मना करते रहते थे पर मैं कहाँ किसी की बात मानने वाला था। और ऐसे ही उस दिन जब मैं शाम को घूम कर घर आया तब थोड़ी थोड़ी बारिश होने लगी थी। घर आते ही मैं कुछ देर घर वालो के साथ बैठ कर बाते कर रहा था उस दिन बारिश होने के करण लाइट भी चली गई थी क्यूंकि अक्सर ऐसा होता हैं गाँव में थोड़ी सी ही बारिश होने के करण लाइट चली जाती हैं।


लाइट जाने के करण हमारे पुरे घर में अंधेरा हो गया था। फिर उसके बाद मैं अपनी जगह से उठ कर घर में जो मिठाईया रखी थी मैं जा कर सभी मिठाईया उठा उठा कर खाने लगा वैसे मैं कभी मिठाई नहीं खाता था पर उस दिन मुझे पता नहीं क्या हो गया था की मैं लगातार मिठाईया खाए जा रहा था। मेरी यह हरकत देख मेरे घर वालो को भी बड़ा अजीब लग रहा था पर उस समय किसी ने मुझे कुछ नहीं कहा। मिठाईया खाने के बाद मैं अपने कमरे में सोने को चला गया।


अपने कमरे में जाते ही मैंने अपने कमरे के दरवाजे में कुण्डी लगा कर मैं अपने बिस्तर पर सोने चला गया। सोते हुए अभी मुझे आधा घंटा ही हुआ होगा तभी मुझे किसी औरत की आवाज आई और वो बोल रही थी - नीरज कैसे हो और हो गई शादी - मैंने एकदम से आँखे खोल कर देखा तो मेरे सामने एक औरत खड़ी थी जिसने लाल रंग की साड़ी पैहनी हुई थी और वो औरत धिरे धिरे से मेरे पास आते जा रही थी। मैं उसे देखकर यही सोच रहा था की यह हैं कौन और यह अंदर कैसे आ गई क्यूंकि मैंने दरवाजा तो बंद कर दिया था पर ये औरत अंदर कैसे आ गई और ये हैं कौन मैं उसका चेहरा देख कर उसे याद ही कर रहा था।


की तभी मुझे एकदम से याद आया ये तो मेरी बड़ी वाली बुआ हैं पर यह हो कैसे सकता हैं क्यूंकि वो तो लगभग 20 साल पहले ही मर चुकी थी। मैं उसे देखकर यही सब सोच ही रहा था पर तब तक वो मेरे बैड के पास आकर खड़ी हो गई थी। फिर उसके बाद उसने कहा - नीरज शादी कर लिए और मुझे बुलाया भी नहीं - इतना ही बोलकर उसने मेरे छाती पर अपना हाथ रख दिया। पर पता नहीं उनका हाथ रखते ही मेरा दम सा घुटने लगा और मेरे मुँह से कोई आवाज भी नहीं निकल पा रही थी।


पर किसी तरह मैंने अपने पापा को आवाज दी पर आवाज सही से निकली तो नहीं पर शायद मेरी किस्मत थोड़ी अच्छी थी की मेरी वो हल्की सी ही आवाज मेरे जीजा जी ने सुन ली और मेरे जीजा जी तुरंत समझ गए की कुछ तो गड़बड़ हैं और फिर उन्होंने तुरंत पापा को बताया की नीरज अंदर से आवाज लगा रहा हैं। फिर उसके बाद सबने किसी तरह दरवाजा खोला और सब अंदर आ गए सब अंदर तो आ गए थे पर वो औरत यानी मेरी मरी हूँ बुआ अभी भी मुझे वही पर ही खड़ी दिख रही थी।


फिर उसके बाद सब मुझे बाहर बरांडे में लेकर गए और बरांडे में जाते ही सब मुझसे बार नाराज पूछे जा रहे थे की क्या हुआ पर पता नहीं उस समय मुझे क्या हो गया था की मैं कुछ बोल नहीं पा रहा था। पर तभी वो मेरी मरी हुई बुआ फिर से मेरे पास आकर खड़ी हो गई और फिर से उसने अपना हाथ मेरी छाती पर रख दिया। सब वही पर ही खड़े थे पर वो औरत यानी मेरी मरी हुई बुआ किसी और को नहीं दिख रही थी। और पता नहीं कब वो एकदम से मेरे ऊपर आकर बैठ गई फिर उस समय मुझे ना जाने क्या हो गया की मैंने अपने पापा की तरफ देखा और कहा - क्या भैया लड़के की शादी कर ली पर मुझे नहीं बुलया - इतना बोलकर मैं रोने लगा पर मैं ऐसा कुछ भी बोलना नहीं चाह रहा था पर उस समय मेरे मुँह से यह शब्द अपने आप ही निकाल रहे थे।


इतना सुनकर मेरे घर वाले भी तुरंत समझ गए थे की मेरे साथ आखिर क्या हो रहा हैं और कौन कर रहा हैं। तभी फिर वो मरी हुई बुआ मेरे ऊपर से नीचे उत्तरी और मुझसे यह कह ने लगी - चलो नीरज चलो यहाँ से यहाँ कोई तुम्हारा नहीं हम लोग अपने हैं वो देखो वो सब तुम्हे ही लेने को आए हैं - उसकी बात सुनकर मैंने जैसे ही बाहर की ओर देखा तो मेरे डर की कोई सीमा नहीं थी क्यूंकि बाहर बहुत सारे बड़े ही भयानक लोग खड़े थे


और सब बहार से ही यही बोल रहे थे - चलो नीरज जल्दी चलो हम सब तुम्हे ही लेने को आए हैं - फिर उसके बाद एक बार फिर से मेरी मरी हुई बुआ ने मुझे कहा - चलो नीरज वो सब अपने हैं देखो तुम्हे लेने पूरी बारात आए हैं - मेरे घर वाले सब मेरे पास ही बैठे थे पर उन्हें उनमे से कोई नहीं दिख रहा था पर मुझे भूतों की पूरी की पूरी बारात दिख रही थी। पर तभी मुझे पता नहीं क्या हुआ की मेरा मान भी उन सबके साथ जाने को करने लगा और मैं अपनी जगह से उठने लगा पर मेरे घर वाले मुझे कही नहीं जाने दे रहे थे।


तभी मैंने अपने पापा से कहा की मुझे टॉयलेट जाना हैं मुझे जाने दो इस बार मुझे टॉयलेट जाने दिया पर मेरे साथ मेरे पापा और मेरे जीजा भी गए। इस बार तो मैं टॉयलेट कर के फिर से बरांडे मैं ही कर बैठ गया। फिर कुछ देर वहाँ बैठते ही मैंने एक बार फिर से टॉयलेट जाने को कहा - फिर मेरे पापा ने कहा - अभी तो गया था फिर से - फिर मैंने कहा - हाँ मुझे जाना हैं तो बस जाना हैं - इस बार मेरे साथ मेरे जीजा अकेले गए और जैसे ही मैं टॉयलेट के पास आया तभी मेरी बुआ और उनके साथ वाले लोग जो मेरे घर के बगल में जंगल था वहाँ खड़े होकर मुझे बुलाने लगे। और उनके बुलाते ही मैं भी एकदम से उनके ही पास जाने को भागने को जैसे ही हुआ तभी मेरे जीजा ने मेरा हाथ पकड़ लिया।


पर मेरे जीजा मुझे रोक नहीं पर रहे थे क्यूंकि ऐसा लग था मेरे अंदर काई लोगो की जान आ गई हो। मेरे जीजा मुझे रोक नहीं पा रहे थे तभी उन्होंने पापा को आवाज दी उनके आवाज देते ही मेरे पापा और मेरे घर वाले सब वही पर भागते हुए आ गए और मुझे पकड़ कर बरांडे में ही रखे बिस्तर में लेटा दिया। तभी मेरे पापा ने एक आदमी को बुलवाया जो थोड़ा भूतों के बारे में जानता था पर उसने आकर देखा और बोला - यहाँ वो पहले थी पर अब वो यहाँ से जा चुकी हैं - इतना बोलकर वो तो वहाँ से चला गया पर मुझे वो सब और मेरी मरी हुई बुआ अभी भी दिख रहे थे।


मैं रह रह कर कभी भागने की कोशिश करता और अभी अपने आप ही हंसता और कभी रोता यह देख कर मेरे भाई ने हनुमान चालीसा अपने फ़ोन में चला कर मेरे पास रख दी। हनुमान चालीसा चलते ही मेरी बुआ जो मेरे पास खड़े होकर मुझे बस अपने साथ चलने को बोल रही थी पता नहीं उसे समय क्या होने लगा और गुस्से में मेरी छाती पर बैठ कर मेरा गला दबाने लगी और मैं तड़पने सा लगा। मेरी यह हालत देख कर मेरे घर वालो ने तुरंत हनुमान चालीसा बंद कर दी और हनुमान चालीसा बंद होते ही वो मेरा गला छोड़ कर छाती से नीचे उत्तर गई। और मैं भी एकदम शांत हो गया उस रात मेरा पूरा परिवार मेरे ही पास बैठा रहा और पूरी रात नहीं सोया।


और मेरी मरी हुई बुआ और उनके साथ के लोग भी मुझे पूरी रात दिखते रहे और लगभग सुबह के चार बजे के बाद ही वो सब वहाँ से गए। और सुबह मैंने सारी बात अपने घर में सबको बताया तो मेरे पापा मुझे एक मंदिर में ले गए जहाँ के बाबा भूत देखते थे। उन्होंने मुझे एक ताबीज बना कर दी जिससे उस दिन से मुझे मेरी मरी हुई बुआ और उनके साथ के लोग कभी नहीं दिखे।



 3. मौत का साया


नमस्कार मेरा नाम संजय रावत है और मैं देहरादून मैं रहता हूँ आज जो यह कहानी आपके सामने मैं लेकर आया हूँ यह घटना आज से लगभग 5 साल पहले की है जब हमारे मोहल्ले में एक जवान लड़के ने सुसाइड कर लिया था। पवन नेगी लगभग 22 साल की उम्र का था और उसी को सभी लोग लेकर श्मशान घाट गए हुए थे। और साथ में मैं भी गया हुआ था सभी लोग डेड बॉडी को लेकर जा रहे थे और तरह तरह की बातें भी कर रहे थे। क्योंकि यह बहुत आश्चर्य की बात थी कि एक 22 साल का लड़का जिसको शायद किसी भी किस्म की कोई परेशानी नहीं थी घर में भी सब कुछ ठीक था तो वो सुसाइड कैसे कर सकता है यह बहुत गहरा सदमा था सभी के लिए।


श्मशान घाट में जो बस जा रही थी उसमें मोहल्ले के कुल मिलाकर हर एक घर से कोई ना कोई था यानी बस पूरी तरह से भरी हुई थी। पर लोग बैठे हुए थे बहुत से लोग खड़े हुए थे बस में और पवन की बॉडी बस के ऊपर छत पर कैरियल में बांध के रखी हुई थी। बस लगभग 15 या 20 किलोमीटर ही चली होगी कि ड्राइवर को बस रास्ते में ही रोक नहीं पड़ी क्योंकि हम सब जो बस में बैठे हुए थे तभी सब ने सुना कि बस में कोई बड़ी तेज तेज से रो रहा है और रोने की आवाज बिल्कुल साफ साफ सबको सुनाई दे रही थी और बस जितना आगे जा रही थी आवाज उतनी ही तेज बढ़ती जा रही थी।


मुझे और बाकी सभी लोगों को यह साफ पता चल रहा था कि शायद छत के ऊपर ही कोई रो रहा है। पर ऐसा कैसे हो सकता है क्योंकि छत पर तो कोई नहीं था सिर्फ पवन की डेड बॉडी कैरियर में बांधी हुई थी आवाज बहुत तेज थी इस वजह से ड्राइवर ने भी गाड़ी रोक दी और बस से ड्राइवर समेत हम कई लोग उतरे और सभी ने तुरंत बस की छत पर जाकर देखा पर हमें वहाँ ऐसा कुछ भी नहीं दिखा क्योंकि बॉडी तो वैसे ही बंधी रखी हुई थी और कोई ऊपर था। जो रो रहा हो लेकिन यह बात भी सोचने वाली थी कि जब बस रुकी तभी भी आवाज सुनाई दे रही थी और मैं और कई लोग बस से उतरे आवाज तभी भी छत पर से सुनाई दे रही थी।


लेकिन जब हम छत के ऊपर गए तो आवाज तुरंत बंद हो गई यह देख कर बस में जितने भी लोग थे सब काफी घबरा गए। और उसके बाद हम में से किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी कि उस बस में दोबारा बैठ जाए। लेकिन पवन के पिताजी और उसके भाई उसके घर वालो की हालत की वजह से हम सभी लोगों ने पवन की डेड बॉडी को जल्द से जल्द ही श्मशान घाट पहुंचाना सही समझा इसलिए मैं और बाकी सभी लोग बस में फिर से बैठ गए। और ड्राइवर ने बस फिर से स्टार्ट करी और बस को लेकर चल ने लगा।


लेकिन तभी हम 5 या 7 किलोमीटर ही आगे गए होंगे तभी एकदम से बहुत तेज आवाज आई ऐसा लग रहा था जैसे बस किसी चीज से टकरा गई हो और ड्राइवर डिसबैलेंस होकर लड़खड़ा गया और गाड़ी जाकर एक पेड़ से टकरा गई। लेकिन ब्रेक मारने की वजह से और काफी कंट्रोल करने की कोशिश भी करी थी ड्राइवर ने इस वजह से हम में से किसी को भी ज्यादा चोट नहीं लगी और बस में भी कुछ ज्यादा नुकसान नहीं आया। हम लोग तुरंत बस में से नीचे उतरे तो उस समय जितने भी लोग थे बस में उन सब की धड़कन तो मानो रुक सी गई थी।


क्योंकि हम सब ने देखा पवन की बॉडी सड़क मैं बस के आगे पड़ी हुई थी और उसे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने उसको ऊपर से उठाकर नीचे रख दिया हो। ऐसा दृश्य आज तक किसी ने कभी नहीं देखा था डर तो हम सब लोग पहले से ही गए थे। लेकिन अब हमने जब से यह देखा तो हम में से किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी कि अब दोबारा से इस डेड बॉडी को बस के ऊपर रखकर फिर दोबारा से बैठ जाए। और ड्राइवर भी डर के मारे साफ-साफ मना कर रहा था कि अब मैं नहीं ले जाऊंगा इसको क्योंकि अभी जो हादसा हुआ इससे हम लोग जितने भी बैठे थे किसी की जान भी जा सकती थी।


लेकिन सच बताऊं तो हमारी भी अब हिम्मत नहीं हो रही थी कि हम भी अब साथ में जाए। लेकिन पवन के पिताजी ड्राइवर के आगे हाथ जोड़ रहे थे और रो रहे थे इसको देख कर हम लोगों ने बॉडी को उठाकर फिर से बस के रियल पर बांध दिया। हम सब फिर दोबारा से बस में बैठ तो गए लेकिन सच बताऊं बस में जितने लोग थे सबकी हालत डर के मारे बहुत खराब थी। और श्मशान घाट भी अभी यहाँ से बहुत दूर था लगभग 30 किलोमीटर से ज्यादा रास्ता अभी और तय करना था।


श्मशान घाट मैं अगर किसी की भी डेड बॉडी ले जाई जाती है तो उससे पहले रास्ते में ही उस मरने वाले व्यक्ति के कपड़ो को रास्ते में ही डाल दिए जाते हैं वहीं पर कपड़ों को लेने के लिए कुछ लोग खड़े होते हैं जिन्हें डॉम कहा जाता है। शायद उस जगह पहुंचते ही ड्राइवर ने भी गाड़ी रोक दी और पवन के भाई और एक दो लोग बस के अंदर ही दो गठरी में पवन के कपड़े रखे हुए थे। इसके बाद पवन का भाई जब उन कपड़ों को डॉम के हाथों में दे रहा था तो वहाँ खड़े सभी लोगों के होश उड़ गए। क्योंकि पवन के भाई ने जैसे ही कपड़े की गठरी देने के लिए निकाली वैसे ही रोने की आवाज फिर आने लगी ऐसा लग रहा था कोई मना कर रहा हो कि यह कपड़े मत दो।


रोने की आवाज वहाँ खड़े डॉम और हम सब लोग साफ-साफ सुन रहे थे सब लोग डरे घबराए तो पहले से ही थे कि ऐसा कैसे हो सकता है एक मुर्दे को लेकर हम लोग श्मशान घाट जा रहे हैं और उसमें से बार-बार रोने की आवाज आ रही है। वहाँ बहुत लोग थे इसलिए इसको वैहम भी नहीं कहा जा सकता क्यूंकि सबको सुनाई दे रहा था। उसके बाद जब डोम लोगो ने पूछा - कौन रो रहा है - क्योंकि बस के अंदर तो कोई रोता हुआ ऐसे दिख नहीं रहा है तभी उनमें से एक ने कहा - आवाज शायद बस के ऊपर से आ रही है -


फिर हमने कहा - छत पर सिर्फ डेड बॉडी है और कोई नहीं - लेकिन उनमें से दो तीन लोग बस के ऊपर चढ़कर देखने लगे और देखते ही वो सीधा नीचे उतरे और उन्होंने कपड़ों का भरा गठरी हमारी बस पर वापस रख दिया फिर उन्होंने कहा - भाई इस मुद्दे में से रोने की आवाज आ रही है - और वो लोग बोलने लगे कि - तुम लोग किसी एक जिंदा इंसान को श्मशान घाट ले जा रहे हो - अब वो लोग जिद पर अड़ गए कि पुलिस बुला कर ही रहेंगे।लेकिन पवन के पिताजी और सभी लोग उन सभी लोगों को यह बताने की कोशिश कर रहे थे कि - आपको कोई वहम हो रहा है यह व्यक्ति मरा हुआ है चाहे आप लोग इसका कफन हटा कर देख लो कि ये जिंदा नहीं है -


लेकिन उन लोगों को शायद हम पर कोई भरोसा नहीं था और उन्होंने पुलिस को भी फोन कर दिया था। हम सब के बार बार कहने पर भी हम को वहाँ से जाने नहीं दिया और ना ही उन डोम लोगों ने हमारी कोई बात नहीं सुनी। घड़ी में अब लगभग शाम के 5:00 बज चुके थे यानी हमें वैसे भी बहुत देर हो रही थी श्मशान घाट जाने के लिए। थोड़ी देर में पुलिस वाले भी पहुंच गए पुलिस के आते ही वहाँ जो डोम थे उन्होंने कहा - यह लोग किसी जिंदा आदमी को कफन में बांध कर ले जा रहे हैं -


सच बताऊ तो वो एक बहुत अजीब घटना थी क्योंकि ऐसा शायद कभी किसी के साथ नहीं हुआ होगा की एक मुर्दे को लेकर जा रहे हैं और पुलिस वालों ने यह देखने के लिए रोका है कि वो जिंदा है या फिर नहीं। उसके बाद दो पुलिस वाले तुरंत बस के ऊपर छत पर चढ़े और उन्होंने कफन को तुरंत हटा दिया लेकिन वो तो डेड बॉडी थी। उसको देखने के बाद पुलिस वालों ने कहा - इसकी मौत कैसे हुई थी - पवन के घर वालों ने बताया - सर इसने सुसाइड किया था पंखे से लटक कर - पुलिस वाले अब जिद पर अड़ गए कि जब तक इसकी पोस्टमार्टम नहीं होगा तब तक यह बॉडी अब श्मशान घाट नहीं जाएगी।


हम लोगों के और पवन के घरवालों के बार बार कहने पर भी पुलिस वाले मानने को तैयार नहीं थे। लेकिन पुलिस वालों से कुछ ले देकर मामला शांत कराने की कोशिश की गई और फिर यहाँ से किसी भी हालत में बस निकलना ही सही समझा। कहते हैं कि जो शव यात्रा में साथ में गया हो उसको रास्ते में नहीं उतारना चाहिए जब तक शमशान घाट मैं क्रिया कर्म ना हो जाए। इस वजह से लोग बस में बैठे हुए थे नहीं तो मैं और न जाने कितने लोग उस दिन उसे आगे नहीं जाते। मामला शांत होने के बाद जब ड्राइवर ने गाड़ी स्टार्ट करी तो फिर उसने हरिद्वार शमशान घाट आकर ही गाड़ी रोकी।


सर्दी का समय था जनवरी का महीना चल रहा था इस वजह से अंधेरा भी अब हो गया था घड़ी में लगभग 7:00 बज चुके थे। जब हम लोग पवन की डेड बॉडी लेकर घाट पर पहुंचे तो तो श्मशान घाट के कर्मचारियों ने यह कहकर मना कर दिया की - अब समय खत्म हो गया है बॉडी हम 7:00 बजे से पहले ही जलाते हैं इसलिए अब इसका दाह संस्कार कल सुबह ही हो सकता है - हम लोगों के बार बार कहने पर कि हम दूर से आए हैं इसलिए हमें बॉडी जलाने दे दी जाए पर श्मशान घाट में उस समय सभी कर्मचारी सफाई वगैरह करके घर की ओर जाने को थे।


पवन के भाई और उसके पिताजी ने एक पंडित जी को क्रिया कर्म करने के लिए राजी कर लिया पंडित जी तैयार तो हो गए लेकिन उन्होंने कहा - धर्म के अनुसार सूरज ढलने के बाद क्रिया कर्म नहीं करना चाहिए यह सही नहीं होता इसको मुक्ति नहीं मिलेगी और फिर इसके अगले जन्म में भी इसका असर हो सकता है - लेकिन फिर भी आश्चर्य की बात तो यह थी कि पवन की पिता और उनके भाई रात में ही पवन का अंतिम संस्कार कराने पर अड़े रहे।


पंडित जी ने भी 2 - 3 कर्मचारियों को बुला लिया और चिता लगाकर अंतिम क्रिया कर्म शुरू कर दी। उस समय तो सब क्रिया कर्म वगैरा हो गया और हम लोग रात में ही अपने घर वापस भी आ गए लेकिन कहते हैं कि उसके 4 दिन बाद पवन के चाचा जी की मृत्यु हो गई और लगभग पवन की मौत के 10 दिन बाद उसके भाई की भी मौत हो गई लगातार पवन के घर में मौत का तांडव चल ही रहा है और पवन के हादसे के बाद मोहल्ले का कोई भी अब इन लोगों के किसी भी अंतिम यात्रा में नहीं गया।



 4. एक छलावा


दुर्गेश अँधेरी रात में एकेले पैदल अपने घर की तरफ चले जा रहा था। क्यूंकि दुर्गेश अपने खेतो के काम से पास के ही गाँव में गया हुआ था पर उसे वहाँ से वापस निकलने में ही लगभग रात के 9 बज गए थे। और इसी वजह से दुर्गेश ने सोचा की खेतो के बीच से जो रास्ता जाता था उससे जाना ही सही समझा क्यूंकि खेतो से जो रास्ता होकर जाता था उससे दुर्गेश के घर जाने में समय बहुत कम लगता था। इसलिए दुर्गेश वहाँ से ही जा रहा था और वो अभी लगभग थोड़ा ही आगे गया होगा तभी उसे किसी बच्चे के रोने की आवाज सुनाई देने लगी।


आवाज सुनकर दुर्गेश ने अपने आस पास देखा पर आस पास तो कोई नहीं था। पर उसे आवाज इतनी तेज और साफ़ सुनाई दे रही थी की उसे ऐसा लग रहा था की कोई बच्चा आस पास ही रो रहा हो। पर उसे आस पास कोई नहीं दिख रहा था इसलिए उसने सोचा की - क्या पाता हो सकता हैं कोई अपने खेतो के काम से यहाँ आया होगा और यह भी हो सकता हैं की वो खेतो के उस तरफ हो और वो अपना बच्चा साथ में ही लेकर आया हो इसलिए वो मुझे दिख नहीं रहा हो - इतना बोलने के बाद दुर्गेश उस बच्चे की आवाज को अनसुना कर आगे की तरफ चलने लगता हैं। पर वो जैसे जैसे आगे जा रहा था तो वैसे वैसे उस बच्चे के रोने की आवाज भी तेज होती जा रही थी।


इसलिए दुर्गेश ने सोचा की - जिस तरफ से आवाज आ रही क्यों ना एक बार उस तरफ देखकर आता हूँ कही किसी को मेरी मदद की जरूर तो नहीं - इतना बोलकर दुर्गेश उस खेतो के बीच वाले पतला से रास्ते से नीचे उतरा और खेतो के अंदर से होकर जब वो खेतो के दूसरी तरफ पंहुचा तो उसने देखा एक 4 या 5 महीने का बच्चा खेतो की मेढ पर किसी ने रखा हुआ था और इतनी देर से उसी बच्चे के रोने की आवाज आ रही थी। और हैरानी की बात तो यह थी की उस बच्चे के आस पास कोई नहीं था। पहले तो दुर्गेश ने आस पास देखा फिर उसने जोर से चिल्लाते हुए आवाज लगाई - कोई हैं मैं कहता हूँ कोई हैं यहाँ यह किसका बच्चा हैं कौन इसे यहाँ रख गया अरे मैं कहता हूँ कोई हैं क्या यहाँ - पर दुर्गेश को उसकी बात का कोई जवाब नहीं आया।


इसलिए दुर्गेश ने सोचा - थोड़ी देर इस बच्चे के पास ही खड़े होकर देखता हूँ आखिर कौन हैं वो पागल जो अपने इतने छोटे बच्चे को यहाँ अकेले जोड़ कर चला गया - इतना बोलकर दुर्गेश लगभग आधा घंटा तक उस बच्चे के पास ही खड़ा था पर वहाँ कोई उस बच्चे को लेने नहीं आया। फिर शायद दुर्गेश भी समझ चुका था की कोई इस बच्चे को यहाँ छोड़ कर चला गया। इसलिए दुर्गेश गुस्से में ही बोलने लगता हैं - पता नहीं कैसे कैसे लोग हैं बच्चा तो पैदा कर लेते हैं उसे पाल नहीं पाते अब बताओ इसमें इस छोटे से बच्चे की क्या गलती हैं पर मैं इस बच्चे को यहाँ ऐसे मरने नहीं दे सकता मैं अपने घर लेकर जाऊंगा इसे - इतना बोलकर दुर्गेश ने उस बच्चे को अपनी गोद में उठाकर अपने घर की तरफ जाने लगता हैं।


पर दुर्गेश अभी भी गुस्से में ही था वो अभी भी कुछ ना कुछ उल्टा सीधा बोलता हुआ जा रहा था। पर तभी उसे ऐसा लगने लगा जैसे उस बच्चे का वजन बढ़ रहा हो। पहले तो उसने सोचा की शायद यह उसका कोई वैहम होगा इसलिए वो इस बात पर कुछ ज्यादा ध्यान नहीं देता पर वो जैसे जैसे आगे जा रहा था तो वैसे वैसे उस बच्चे का वजन भी बढ़ते जा रहा था। और उस बच्चे का वजन इतना हो गया था की अब उससे वो 4 या 5 महीने का बच्चा भी नहीं उठ रहा था। पर तभी दुर्गेश ने उस बच्चे के पैरो की तरफ देखा तो उसके अंदर एक डर की हवा सी चलने लगी क्यूंकि उसने देखा उस बच्चे के पैर अब इतने बड़े हो गए थे की वो बस जमीन में टच होने ही वाले थे।


यह देखकर दुर्गेश ने तुरंत उस बच्चे को अपनी गोद से फैक दिया। और उसके फैकने के बाद वो बच्चा हसने लगा और हस्ते हस्ते अपनी डरावनी आवाज में बोला - अरे भाई थोड़ा देर रोक जाते फिर में बताता - दुर्गेश ने जैसे ही यह सुना वो तुरंत अपने घर की तरफ भागने लगा और वो सीधा अपने घर में आकर ही रुका। घर में आकर दुर्गेश ने किसी को कुछ नहीं बताया और खाना पीना खाकर अपने कमरे में सोने चला गया। और अभी यह सब भूल कर दुर्गेश की आँख ही लगी होगी तभी उसे अपने कमरे के दरवाजे के पास से किसी के रोने की आवाज सुनाई देने लगी। आवाज सुनकर दुर्गेश फिर से काफ़ी डर चूका था इसलिए दुर्गेश ने अपने दोनों कानो को अपने हाथो से बंद कर लिया।


पर उसका भी उसे कोई फायदा नहीं हुआ क्यूंकि उसके कान बंद करने के बाद वो रोने की आवाज और बढ़ गई। और अब आवाज इतनी तेज हो गई थी की अब वो उस आवाज के कारण सोना तो दूर की बात वो सही से वहाँ बैठ भी नहीं पा रहा था और इसी के चलते दुर्गेश हिमत करते हुए अपने बिस्तर से उठा और दरवाजे की तरफ गया और जैसे ही उसने अपने कमरे का दरवाजा खोला तो उसे बाहर कोई नहीं दिखा और साथ ही जैसे ही उसने दरवाजा खोला वैसे ही वो जो रोने की आवाज उसे परेशान कर रही थी वो आवाज भी बंद हो गई। पर अब दुर्गेश को उस कमरे में अकेले सोने बहुत डर लग रहा था इसलिए वो सीधा अपने दादा के कमरे में गया।


और उनको सारी बात बताई तो उन्होंने घर के मंदिर में जो गंगा जल डिब्बा रखा हुआ था उसमे से थोड़ा सा गंगा जल दुर्गेश के ऊपर डाला फिर दुर्गेश से कहाँ - दुर्गेश आज तुम यही सो जाओ फिर सुबह सब ठीक हो जाएगा। - और फिर उसके बाद दुर्गेश अपने दादा जी के कमरे में ही सो गया। और फिर उसके बाद दुर्गेश को कभी ना तो वो बच्चा दिखा और ना ही उस बच्चे की रोने की आवाज सुनाई दी।



5.श्मशान घाट


 नमस्कार आज हम आपको एक ऐसे व्यक्ति की कहानी बताने जा रहे हैं। जो हर समय श्मशान घाट में अपनी सेवाएं देते रहते हैं यहां पर चिताओं को आग लगाना हो या फिर उसके बाद श्मशान घाट की साफ सफाई में इनका योगदान लगभग 32 साल से है। लेकिन उनके साथ एक ऐसी घटना घटी कि उस घटना ने अब उनकी पूरी जिंदगी बदल दी। अब आगे की कहानी मैं उनके ही शब्दों में जारी रखूँगा। नमस्कार मेरा नाम मदन लाल है और मैं हरिद्वार के श्मशान घाट में 32 सालों से काम कर रहा हूं मेरी आंखों के सामने यहां रोज लगभग सैकड़ों लाशें आती हैं। और मैं और मेरे साथ काम करने वाले सभी कर्मचारी एवं सहयोगी फिर हम रोज उन चिताओं को जलाते हैं।


मैं भी अक्सर हर रोज लगभग 10 से 12 चीता चलाता हूं पर मेरे साथ 1 दिन कुछ ऐसा हुआ कि मैं आज उस दिन को याद कर के सहम जाता हूं। अक्सर हम लोग चिताओं में आग लगाते है और जब चीता चल जाती है तो सभी चिताओं की राख एक साथ सफाई करते समय झाड़ू से गंगा में गिरा दिया करते हैं। पर एक दिन श्मशान घाट में एक डेड बॉडी को लेकर उसके परिजन आए मैंने और मेरे साथी समीर ने उनके परिजनों को कहा लकड़ी ले आओ और और लाश को गंगाजल से नैला कर इधर रख दो। उस डेड बॉडी के सभी परिजन लकड़ी लेने गए हुए थे बस उनके साथ का एक ही व्यक्ति उस लाश के साथ था।


 बात ही बात में मैंने उसे पूछा - यह किसकी बॉडी है - उसके साथ जो व्यक्ति था उसने कहा - यह मेरी मौसी है - वह व्यक्ति अपनी बात जारी रखते हुए कहने लगा इनकी शादी को अभी 1 साल भी नहीं हुआ था मैंने पूछा कि अचानक कुछ तबीयत तबीयत खराब थी क्या उस व्यक्ति ने कहा - नहीं मौसी बिल्कुल ठीक थी कल रात अचानक ही उनकी मृत्यु हो गई पता नहीं क्या हुआ - हमारे लिए कोई बड़ी बात नहीं थी ऐसे दिन भर में सैकड़ों लोग आते हैं। तब तक उस लाश की परिजन लकड़ियां लेकर आ गए। उसके बाद हम देह संस्कार का कार्यक्रम शुरु कर रहे थे। मैं और समीर चिता के लिए लकड़ियां बिछा रहे थे उस महिला की ज्यादा उम्र तो रही नहीं होगी इसलिए पतले दुबले शरीर की थी और वजन भी बहुत कम था और लकड़ियां भी कम ही लगानी पड़ रही थी। हम लोगों ने लकड़ियां बिछाई और उनके परिजनों को कहा तुम इस लाश को अब चिता पर लेटा दो उन लोगों ने वैसा ही किया चार पांच लोगों ने उठाकर लाश चिता पर रखी।


तभी ऊपर से थोड़ा कपड़ा मुंह के पास से उड़ गया तो मेरी नजर उस डेड बॉडी पर पड़ी। और मैं देखता ही रह गया क्योंकि उस महिला की आंखें ऐसा लग रहा था खुल रही है और बंद हो रही हैं। मानो ऐसा लग रहा था की आंखें लप लप हो रही हो और ऐसा लग रहा था कि शायद आंखों से आंसू भी निकल रहे हैं। मैं यही सोच रहा था की ऐसा कैसे हो सकता है क्योंकि आज तक हमने कभी ऐसा दृश्य नहीं देखा था। अब उनके परिवार वाले अंतिम संस्कार करने के लिए तैयार थे और पंडित जी ने दाह संस्कार का क्रिया कर्म शुरू कर दिया था ।


तभी मैं समीर को थोड़ा किनारे लेकर गया और मैंने कहा - समीर इस डेड बॉडी में जान है क्योंकि मैंने खुद देखा है पलके झपक रही हैं और ऐसा लग रहा था कि जैसे सांसे चल रही हो - समीर ने मेरी बात सुनकर कहा - मदन तू पागल तो नहीं हो गया कैसी बात कर रहा है यार मुर्दा है वह मुर्दे में भी कभी सांसे चल सकती है क्या यार हम रोज चिता जलाते हैं आज तक तो ऐसा कुछ नहीं हुआ तेरा दिमाग खराब तो नहीं है चल जल्दी अब उस चिता को जलाना है। - मैंने उस समय तो समीर को कहा - हां चलो - उसके बाद मैं अपने आप को समझा रहा था क्या पता यह मेरा कोई वैहम हो। पर ऐसा कैसे हो सकता है वैहम तो हो ही नहीं सकता क्योंकि 30 साल से ज्यादा जिंदगी मेरी बीत गई इसी श्मशान घाट में चिता को जलाते हुए।


लेकिन आज तक तो कभी वैहम नहीं हुआ फिर आज कैसे हो रहा है। पर फिर भी मैं समीर के साथ चला गया उस चिता को जलाने के लिए। उसके परिवार वालों ने उसको आग दी और हमने फिर जलाना शुरू कर दिया। लेकिन अब तक जिसको मैं अपना वैहम समझाने की कोशिश कर रहा था। पर तभी ऐसा लगने लगा कि उस चिता से रोने और तड़पने की आवाज आ रही हैं। मैंने तुरंत समीर से कहा - समीर अब देखो मैं क्या कह रहा था इसके के अंदर जान हैं जिंदा जला दी तुम लोगों ने एक महिला - मैं जोर जोर से बोल रहा था वहां उस डेड बॉडी के परिवार के सदस्य मौजूद थे और साथी साथ श्मशान घाट में बहुत से लोग थे।


 सब मेरी बात सुनकर चौक गए और मुझे बड़ी विचित्र निगाहों से देखने लग गए। उसके परिवार के लोग तो वैसे ही दुखी थे इसलिए वो मुझे कहने लगे - अरे क्या हो गया आपको। आपको शर्म नहीं आती ऐसा मजाक करते हुए हम वैसे ही इतना परेशान हैं और आप हमारी भावनाओं का मजाक उड़ा रहे हैं हम पर ऐसे ही दुखों का पहाड़ फूट पड़ा है पर आप ऐसी जगह पर ऐसा गंदा मजाक कर रहे हो - उनके परिवार के लोग मुझे पागल या नशेड़ी बता रहे थे। लेकिन सच बताऊं तो मुझे उस महिला की आवाज उस समय बहुत तेजी तेजी से सुनाई दे रही थी। ऐसा लग रहा था मानो वो दर्द से करहा रही हो उसके बाद मेरे साथ के लोगों ने और समीर ने मुझे वहां से दूर कर दिया।


और समीर ने मुझसे आकर कहा - मदन तू पागल हो गया क्या कैसी बात कर रहा है हम भी तो कर रहे हैं काम हमें क्यों नहीं सुनाई दे रही है कोई आवाज हमें क्यों नहीं दिखा कि वो पलके झुका रही थी और उसके आँख आंसू बह रहे तो तुझे ही क्यों दिखाई दिया। यार तू तो शराब भी नहीं पीता ऐसा क्या हुआ तेरे साथ - समीर अपनी बात जारी रखते हुए बोलता हैं - तभी कहता हूं घर जाकर रात को खाना खाकर तो सो जाया कर जल्दी। लेकिन तुम लोग फिल्में देखते हो ना रात भर कोई दिखेगी तुने फिल्म वगैरा या सपना देखा होगा कोई -समीर की बाते सुनकर अब मेरी आंखों से आंसू आने लगे क्यूंकि 30 साल से ज्यादा का समय हो चुका था इस शमशान घाट में आज तक मेरे साथ ऐसा कभी नहीं हुआ।


इसलिए मैंने ने समीर को समझाते हुए कह - ना मैंने कोई सपना देखा और ना कोई ऐसी फिल्म देखी पर मैं आज सच कह रहा हूं वह महिला जिंदा थी जिस को जलाया जा रहा था मैंने अपनी आंखों से देखा है और अपने कानों से उसकी आवाज सुनी थी - पर समीर ने मुझे कहा - सच में भाई तू पागल हो गया है मुझको लगता है तुझे आराम की जरूरत है अब तू छुट्टी मांग कर गांव चले जा। अपने कुछ दिन घर वालों के साथ रहे और जब तुझे सही लगे तब तू काम पर वापस लौटना और फालतू की बातें मत कर अगर तुझे चलना है चिता जलवा ने तो चल क्योंकि मैं भी तेरे साथ यहां पर हूं तो चीता कौन चलाएगा - समीर की बात सुनकर मैंने कहा - समीर यह चीता मैं नहीं जलवा पाऊंगा तू जा - उसके समीर वहाँ से गया और श्मशान घाट के ही एक दूसरे व्यक्ति के साथ मिलकर उसने उस चिता को जलाया।


चिता जली अंतिम संस्कार पूरा हुआ और उस डेड बॉडी के परिवार के सभी लोग गंगा स्नान कर के अपने घर जा चुके थे। लगभग शाम के 7:30 बज रहे होंगे मैं अभी भी एकांत में बैठा हुआ था तभी मेरे पास समीर और उस चिता का अंतिम संस्कार करवा रहे पंडित जी मेरे पास आए। पंडित जी ने मुझसे कहा -हां भाई अब उतर गया तेरे ऊपर उस महिला की चिता का बुखार कि नहीं उस समय तू वहाँ पागलों जैसी बात कर रहा था। तू इतने सालों से यहां चिता जलाता है क्या आज तक कभी ऐसा हुआ कि कोई मुर्दा चिता के अंदर से चीखने चिल्लाने लगे। वह सब लोग तेरा मजाक उड़ा रहे थे या फिर तुझे पागल कहना चाह रहे थे - पंडित जी की बात सुनकर मैंने कहा - मैंने जो देखा है वह बिल्कुल सही है क्योंकि मुझे उसकी आंखों से आंसू बहते हुए दिखे थे और मैंने देखा कि जब उसको चिता पर लिटाया जा रहा था तब उस महिला की पलके झपक रही थी - मैं मानने को तैयार नहीं था कि वो मेरा कोई वैहम है।


तब पंडित जी ने मेरी बात को थोड़ा गंभीरता से लें और कहां - ना तू उस महिला को जानता है ना तूने कभी उसे देखा तो फिर तेरे साथ ऐसा क्यों हो सकता है - तब मैंने पंडित जी से कहा - यही तो बताना चाह रहा हूं मैं मुझे ही क्यों उसकी चीखने की और रोने की आवाज सुनाई दी और आप मैसे किसी को नहीं - पंडित जी ने फिर मुझे कह - फिर एक काम करना तुम अब 15 या 20 दिन की छुट्टी लेकर अपने घर चले जाओ तुमने काफी समय से छुट्टी भी नहीं ली और लगातार काम कर रहे हो। थोड़ा आराम करना फिर काम पर वापस आना चलो अब साफ सफाई करवा दो अब टाइम खत्म हो गया है - मैंने पंडित जी कहा - हां ठीक है - क्यूंकि श्मशान घाट में 8:00 बजे के बाद कोई भी चिता नहीं चलाई जाती 8:00 बजे सब साफ सफाई करके घर चले जाते हैं। और हम लोगो को सुबह 7:00 बजे यहां वापस आना होता है। उसके बाद हम काम पूरा करके अपने अपने घर चले गए।


मेरे घर में सिर्फ अकेला ही रहता था बाकी सब परिवार के लोग हमारे गांव में रहते हैं। आज घर आकर मैंने नहाया धोया और सीधा बिस्तर में जाकर बैठ गया। अक्सर मैं घर आकर पहले खाना बनाता था फिर खाना खाकर घर वालों से फोन पर थोड़ी बातचीत कर के लेटता था। पर आज मेरे साथ दिन में जो घटना घटी थी उसकी वजह से मेरा मन आज थोड़ा बेचैन था। इसलिए मैं आज श्मशान घाट के ढाबे पर ही खाना खाकर आया था और घर आकर नाह कर बिस्तर पर लेट गया। अभी बिस्तर पर लेटे हुए बस मैं यही सोच रहा था कि आज यह क्या हुआ मेरे साथ। मैं अपने आप को यही कह रहा था कि वह जिंदा थी पर अगर वह जिन्दा थी तो सिर्फ मुझे ही क्यों पता चल रहा था। वहाँ तो बाकी बहुत सारे लोग थे उन्हें क्यों नहीं कुछ भी पता चला सिर्फ मुझे ही क्यों रोने की आवाज आ रही थी बाकी को क्यों नहीं आई।


इसी उधेड़बुन में मैं लेटे-लेटे मेरी आंखें लग गई पर अचानक मेरी आंखें खुली और मैं उठा। क्यूंकि मुझे ऐसा लगा कि कोई दरवाजा खटखटा रहा है। मेरा एक ही कमरा है जो मैंने किराए पर ले रखा था। मैं नींद में ही उठा मैंने सोचा कि क्या पता किराएदार में सी कोई होगा। कोई जरूरत हो किसी काम की यही सब सोचते हुए मैंने दरवाजा खोला। लेकिन मुझे बाहर कोई दिखाई नहीं दिया अंधेरा था मैंने इधर उधर देखा मुझे फिर कोई भी नजर नहीं आया मैंने बाहर की लाइट ऑन करी पर कोई होता तभी तो दिखता। मुझे लगा क्या पता ऐसे ही कोई होगा जो दरवाजे को खटखटा कर चला गया होगा। मैं जैसे ही वापस अंदर जा रहा था तब मुझे ऐसा लगा कि जैसे कोई मेरे पीछे खड़ा है। मैं तुरंत पीछे घुमा पर पिछे कोई नहीं था।


मैं दिन भर से वैसे ही परेशान था इसलिए मैं ज्यादा जा सोचते हुए जैसे ही दरवाजा बंद करा तो मुझे ऐसा लगा कि बाहर कोई चल रहा हो किसी के पायल की आवाज आ रही थी ऐसा लग रहा था कोई मेरे कमरे के दरवाजे पर ही खड़ा हो और इधर-उधर टहल रहा है। पायल और चूड़ियों की आवाज बड़ी तेज तेज से आ रही थी। मैंने तुरंत दरवाजा खोला और लाइट जलाई और जैसे ही बाहर देखा लेकिन बाहर कोई भी नहीं था। यह मेरा वैहम है क्या मैंने यही सोचा पर वह वैहम कैसे हो सकता है मैं अपने पूरे होशो हवास में खड़ा हूं।


मैं यही सब सोच रहा था की अब चाहे कोई भी हो मुझे क्या। गुस्से में मैं अंदर आ गया और मैंने अपना दरवाजा बंद कर दिया लाइट का बटन ऑफ करो और फिर जाकर अपने बिस्तर में लेट गया। लगभग 15 मिनट बाद फिर ऐसा लगा कि कोई दरवाजा बड़ी जोर जोर से खटखटा रहा है अबकी बार खटखटाने की आवाज बड़ी तेज तेज आ रही थी। और ऐसा लग रहा था कि कोई आवाज भी मार रहा है।


आवाज साफ-साफ समझ में तो नहीं आ रही थी लेकिन इतना था कि वह कह रही थी मदन दरवाजा खोलो मदन दरवाजा खोलो जल्दी। मैं उठा दरवाजे तक गया तो साफ लग रहा था कि बाहर कोई है और दरवाजा खटखटा कर मुझे आवाज मार रहा है मैंने सोचा अब तो पक्का मकान मालकिन ही होगी। इसलिए मैंने फिर तुरंत दरवाजा खोल दिया लेकिन मेरी आंखें फटी की फटी रह गई क्योंकि अभी भी बाहर कोई नहीं था। बाहर इस रात में पूरा सन्नाटा पड़ा हुआ था।


 लेकिन फिर भी मैंने बगल के कमरे में मकान मालिक को आवाज मारी और दरवाजा खटखटाया उन्होंने दरवाजा खोला और नींद में कहा - क्या हुआ मदन - मैंने जवाब देते हुए कहा - आंटी आपने मुझे आवाज मारी थी क्या - आंटी ने कहा - नहीं तो मैं तो सो रही थी बाकी लोग भी घर में सो रहे हैं किसी ने नहीं बुलाया क्यों क्या हुआ - आंटी का जवाब सुनकर मैंने कहा - नहीं आंटी मुझे ऐसा लगा कि किसी ने आवाज मारी मुझे लगा कोई घर का होगा - आंटी ने फिर कहा - नहीं ऐसा कुछ नहीं है - ऐसा बोलकर आंटी चली गई अंदर और उन्होंने अपना दरवाजा बंद कर लिया। मैंने कहा हां ऐसा ही होगा क्या पता मैं भी अपने कमरे में आकर अपने दरवाजा बंद कर लिया।


और मैं भी फिर जाकर अपने बिस्तर में लेट गया। लगभग 7 या 8 मिनट ही हुए होंगे कि ऐसा लगा जैसे कमरे के अंदर ही कोई टहल रहा हो किसी के पायल की आवाज और चूड़ियों आ रही थी अब मैं थोड़ा शहंशाह गया। 32 सालों से जो मैं लाशों को जला रहा था मुझे कभी ऐसा डर नहीं लगा जैसा डर आज मुझे लग रहा था। मुझे ऐसा लग रहा था कि कोई महिला इस कमरे में है और इधर उधर टहल रही है। तभी मेरे मन में पता नहीं क्या आया और मैंने बोलना शुरू कर दिया। मैंने कहा - कौन हो तुम कौन हो पर ऐसा बोलने के बाद भी मुझे कोई जवाब नहीं मिला लेकिन थोड़ी देर के बाद पायल की आवाज और चूड़ियों की आवाज जो थी वो सब बंद हो गई।


उसके बाद मैं अपने बिस्तर पर ही लेटा हुआ था तभी मुझे ऐसा महसूस हुआ कि कोई मेरे बिस्तर पर मेरे बगल में लेट गया हो। मैंने कंबल ओड रखा था तभी मुझे ऐसा लगा किसी ने मेरा कंबल दूसरी तरफ खींच लिया। मैं एकदम झटके से उठा और मैंने अपना कंबल तुरंत हटाया लेकिन पलंग पर कोई नहीं था। मुझे लगा हो ना हो दिन वाली घटना का ही असर हो रहा है पर ऐसे ही करते करते पता नहीं कब रात में मेरी आंख लगी और मैं सो गया। लेकिन सुबह में उस दिन थोड़ा लेट से उठा अक्सर में सुबह 5:00 बजे उठ जाता था नाश्ता वगैरह बना कर खा पी कर फिर श्मशान घाट में अपने काम पर निकल जाता था।


लेकिन उस दिन मैं 8:00 बजे तक सोया रहा पर मुझे उस दिन काम पर तो जाना ही था इसलिए कोई ऐसी दिक्कत नहीं थी। क्यूंकि आज तो मुझे अपने गांव जाना है कल तक मैं सोच रहा था कि नहीं लोगों को कहने दो पर मैं तो काम पर आऊंगा। लेकिन आज मैंने भी सोच लिया कि अब मुझे गांव जाना है रात को जो कुछ भी हुआ मेरे साथ वह सब मुझे बहुत परेशान कर रहा था। इसलिए मैंने अपना थोड़ा सामान पैक करा और आंटी को कहा - आंटी मैं गांव जा रहा हूं - आंटी मेरी बात सुनकर हैरान थी कि अचानक मैं गांव क्यों जा रहा हूं।


इसलिए आंटी ने मुझसे कहा - मदन घर पर सब ठीक तो है क्या हुआ कोई दिक्कत है क्या - मैंने आंटी को जवाब देते हुए कहा - नहीं आंट मैंने छुट्टी ली है और कुछ दिनों के लिए मैं अपने घर जा रहा हूं - आंटी ने मुझे फिर कहा - इस बार तुमने बताया नहीं वैसे तो 1 हफ्ते पहले ही बता देते हो कि मैं जाने वाला हूं घर - मैंने कह - वो आंटी बस अचानक ही घर जाने का सोचा - इनता बोलकर मैं वहाँ से निकल गया। शाम के 6:00 बजे की ट्रेन थी। इसलिए मैंने सोचा थोड़ा जल्दी जाकर तत्काल टिकट ले लूंगा मैं घर से सही समय पर निकला और जाकर तत्काल का टिकट लिया और ट्रेन में बैठ गया। मुझे वाराणसी जाना था मैं ट्रेन में बैठा ही था और बाकी बहुत लोग थे ट्रेन में रात में मैंने देखा गेट के पास एक शादीशुदा नया जोड़ा होगा शायद।


वो गेट पास खड़े होकर आपस में बात चीत कर रहे थे। रिजर्वेशन डब्बा था इस वजह से सब अपनी अपनी सीट पर ही बैठे थे बस वही दो अपनी सीट छोड़कर गेट पर खड़े थे। ट्रेन में भीड़ भी काफी थी सभी सीट भरी हुई थी। पर तभी मैंने देखा कि वह दोनों आपस में बात करते करते कुछ जो बहस करने लगे। और अचानक उस लड़के ने अपने साथ खड़ी लड़की को एकदम से धक्का मार कर नीचे गिरा दिया। और वह लड़की की तेज तेज से चिल्लाने चीखने की आवाज काफी दूर तक आ रही थी और ट्रेन भी तेजी में चल रही थी। पर आस पास के लोग उस लड़के को कोई कुछ भी नहीं कह रहा था। पर मैंने जोर-जोर चिल्लाते हुए कह - इसने लड़की को नीचे फेंक दिया अरे कोई चैन खींचो ट्रेन की कोई इसे कुछ कहता क्यों नहीं इसने एक लड़की को नीचे फेंक दिया - लेकिन मेरी बात का किसी पर कोई असर नहीं हो रहा था।


और कोई भी उस लड़के को कुछ नहीं कह रहा था। पर मैंने सोचा अब नहीं अब मैं चैन खींच लूंगा मैं इन लोगों की तरह शांत नहीं बैठूंगा इस लड़के ने एक मासूम लड़की को नीचे फेंक दिया और सब मूकदर्शक बने देख रहे थे। मैंने कहा - लेकिन मैं चुपचाप नहीं बैठूंगा इस आदमी को इसके किए की सजा जरूर दिला कर रहूंगा मैं इसे पुलिस में पकड़ा कर ही दम लूंगा - पर तभी ऐसा लगा किसी ने मुझे हाथ से हिला कर उठा दिया मैं ट्रेन में बैठे बैठे सो गया था। मतलब मैं सपना देख रहा था और मेरे आगे टिकट चेकर खड़ा था टीटी ने मुझे कहा - टिकट दिखाओ - मैंने उसको टिकट दिखाया और अपना चेहरा रुमाल से पोछा क्योंकि मुझे बहुत पसीना आ रहा था। तो मेरी नजर गेट पर पड़ी पर बूगी का गेट बंद था और सभी सीट पर पैसेंजर बैठे हुए थे।


ऐसा लग रहा था बूगी में कोई भी सीट खाली नहीं है और मुझे वो शादीशुदा जोड़ा भी कहीं नहीं दिखा। उसके बाद मैं अपनी सीट पर बैठा रहा और ट्रेन अगले दिन वाराणसी स्टेशन पर रुकी। मैं ट्रेन से उतर कर सीधा बस स्टैंड पर गया क्योंकि हमें अपने घर जाने के लिए बस करनी पड़ती थी। बस वाला इंतजार कर रहा था सभी सवारियों का बस में सभी सवारी फुल हो गई और बस भी निकल गई। अभी हम कुछ ही आगे गए होंगे तभी मैंने देखा कि फुटपाथ पर चल रहे एक साथ एक लड़का और लड़की अचानक लड़के ने अपने साथ चल रही लड़की को धक्का दिया। और वो लड़की सीधा आकर रोड पर गिरी और उस पर जिस बस में हम बैठे थे वहीं बस चढ़ गई और लड़की की चीखें बड़ी जोर जोर से सुनाई दे रही थी। लेकिन ड्राइवर ने गाड़ी नहीं रोकी और ड्राइवर गाड़ी को लगातार चला रहा था।


तभी मैंने कहा - भैया गाड़ी रुको भैया रुको गाड़ी जल्दी वह रोड पर गिरी है बस जड़ गई एक लड़की पर - ड्राइवर ने तुरंत ब्रेक मारी और - क्या हुआ - मैंने उसको बताया - पीछे लड़की रोड पर गिरी थी जिस पर बस जड़ गई - पर सबने जब पिछे देखा तो पीछे ऐसा कुछ भी नहीं था। ड्राइवर और कंडक्टर ने मुझे बड़े गुस्से में कहा - भाई पागल हो गई क्या तू सुबह-सुबह शराब पी ली क्या फालतू की बकवास कर रहे हो अगर तुमको जाना है तो जाओ वरना उतर जाओ यहीं पर - ड्राइवर और कंडक्टर के साथ बस में और यात्री भी मुझ पर चिल्ला रहे थे - पागल हो क्या उल्टी-सीधी बातें कर रहे हो - पर मैंने किसी को कुछ नहीं कहा क्यूंकि अब मैं अपने आप से ही परेशान हो चुका था। क्योंकि मेरे साथ पता नहीं 2 दिन से क्या हो रहा था पहले श्मशान घाट में फिर घर पर फिर ट्रेन में और अब बस में।


कही पर बैठते ही ऐसा दिखना मैं अपने आप से ही लगातार सवाल कर रहा था। कि आखिर क्या हो रहा है यह। तभी जहां मुझे उतरना था उस जगह बस आई और कंडक्टर ने मुझे कहा - भैया उतर जाओ पर मुझे कंडक्टर की बात सुनाई नहीं दी सायद मैं नींद में था इसलिए कंडक्टर ने मुझे हाथो से हिलाया और कह - भैया आपका स्टॉप आ गया - इस बार मैंने कंडक्टर की बात सुन ली और कहा - हां अच्छा - उसके बाद मैं अपना सामान उठाया और बस से उतर गया। पास में ही हमारा गांव था इसलिए मैं पैदल ही निकल गया मैं पैदल चलते चलते बस वही सब बातें सोच रहा था जो सब घटना मेरे साथ दो-तीन दिन से घट रही थी।


यही सब सोचते हुए मैं अपने घर पहुंच गया घर में मेरे पिताजी मेरी माता मेरी पत्नी मेरे बच्चे सब मेरा इंतजार बाहर ही कर रहे थे। मैंने सब को देखा और तुरंत अपने पिताजी के पास जाकर उनसे लिपट कर रोने लगा मैं बड़ी तेज तेज से हिचकी लेकर रो रहा था। तब मेरे पिता समेत घर के सभी लोगों ने मुझे संभाला और मुझसे पूछा क्या हुआ मैंने अपने साथ घटी सारी घटना उन सभी को बता दी मेरे पिताजी ने कहा तुम नहा धो कर पहले खाना खा लो फिर थोड़ा आराम कर लो सब ठीक हो जाएगा। उसके बाद में नहा धोकर खाना पीना खाने के बाद में लेट गया और शाम को तब 5:00 बजे मेरी आंख खुली पूरा दिन में लेटा रहा था। शाम को मैंने अपने पूरे परिवार के साथ समय बिताया बात चीत करी सब से मिलकर बहुत अच्छा लग रहा था बड़े दिनों बाद में अपने परिवार के लोगों से मिल रहा था


और रात को खाना पीना खाकर सब सोने के लिए अपने अपने कमरे में चले गए मैं भी अपने कमरे में चला गया। थोड़ी देर में मेरी पत्नी भी आई हम लोगों ने काफी देर तक बात करी और फिर सो गए अचानक रात को मेरी आंखें खुली ऐसा लग रहा था। जैसे बाहर से कोई दरवाजा खटखटा रहा है मैं उठा और दरवाजा मैंने खोला और बाहर देखा तो मेरी पत्नी खड़ी मैंने उसे कहा - बाहर कैसे आए तुम अभी तो अंदर ही थी मेरे साथ ही लेटी हुई थी - पर मेरी पत्नी कुछ नहीं बोली और गांव में सड़क की तरफ भागने लगी मेरी पत्नी की पायल की आवाज बहुत तेज तेज खनक रही थी मैं भी चिल्लाता हुआ उसके पिछे पिछे भाग रहा था। और मैं बोल रहा था - रुको रुको क्या हुआ रुको - लेकिन मेरी पत्नी चीखते चिल्लाते हुए लगातार भाग रही थी।


मुझे कुछ नहीं समझ में आ रहा था कि मेरी पत्नी को आखिर क्या हुआ। मेरी पत्नी गांव में जंगल की तरफ भागने लगी और मैं भी उसके पीछे चिल्लाता हुआ तेज तेज भाग रहा था। तभी मुझे पीछे से आवाज आई मेरे पिताजी और मेरे परिवार के लोग मेरे को बुला रहे हैं वह मेरी तरफ भागते हुए आ रहे हैं। मैं वही खड़े होकर रोने लगा और मेरी पत्नी जंगल के अंदर जा चुकी थी। मेरे पिताजी ने तुरंत मुझे पकड़ा और कह - मदन क्या हुआ क्यों भाग रहे हो तुम - मैंने कहा - मेरी पत्नी का नाम नीतू है मैंने कहा - नीतू को पता नहीं क्या हुआ घर से निकलकर चिल्लाते हुए भाग रही है और जंगल की तरफ भाग गई।


मेरी बात सुनकर मेरे पिताजी ने कहा - पागल हो गई क्या तुम बेटा नीतू साथ में तो है हमारे और नीतू मेरे पीछे ही हैं - खड़ी थी मेरी पत्नी बच्चों के साथ वो मुझे पकड़कर रोने लगी और रोते हुए ही कह रही थी - क्या हो गया आपको आप अचानक क्यों घर से निकलकर भागने लगे - उसके बाद मुझे उस रात मुझे नींद नहीं आई। श्मशान घाट में काम करने वाला बंदा आज इस हालत में था सोच लो आप वो रात कैसे बीती और अगले दिन मेरे पिताजी मुझे एक तांत्रिक बाबा के पास लेकर गए। उन्होंने झाड़ फुख और पूजा वगेरा करी और मेरे से सब कुछ पूछा कि क्या हुआ था आपके साथ - मैंने शुरू से सारी घटना बाबा को बताई। बाबा ने मेरे गले में एक ताबीज बांधी और हाथों में मंत्र पढ़कर एक धागा बांध दिया। बाबा ने बताया कि उस लड़की की आत्मा तुम्हे कुछ बताना चाहती है।


शायद उसके साथ कुछ बुरा हुआ होगा। इसलिए वो तुम्हें बताना चाह रही है। बाबा की बात सुनकर मैंने कहा - बाबा मैं 32 साल से श्मशान घाट में चिता जला रहा हूं पर आज तक तो मेरे साथ ऐसा कभी नहीं हुआ और मैं तो उस महिला को जानता भी नहीं था और ना ही मैंने उसे कभी देखा था। बस मैंने श्मशान घाट में उसकी लाश देखी वो भी जलाते समय तो फिर ऐसा क्यों - तांत्रिक बाबा ने फिर मुझे बताया - आत्मा किसी एक को ढूंढ लेती हैं जो उसकी मदद कर सके। वो तुम्हारे जरिए अपनी मदद करवाना चाहती होगी शायद उसके साथ कुछ गलत हुआ होगा इसलिए तुम्हारे जरिए अपने कातिलों का पता बताना चाह रही होगी। -


फिर मेरे पिताजी ने बाबा से कहा - बाबा आप अब ऐसा करो कि वो दोबारा कभी ना मदन को दिखाई दे और ना ही उसे परेशान करें - बाबा ने फिर कहा - ज्यादा मत सोचो अब ऐसा कुछ नहीं होगा बस तुम गले में यह ताबीज पहन कर रखना और हाथ में धागा बांधे रहना सब ठीक रहेगा -

उस दिन से मुझे ऐसा कुछ भी नहीं एहसास हुआ और मैं लगभग 2 महीने तक अपने गांव में अपने परिवार के साथ रहा उसके बाद फिर वापस आकर श्मशान घाट में काम कर रहा। अब मैं हर रोज 10 से 12 चीता है चलाता हूं।






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