श्रापित जंगल E-6 | nai bhoot ki kahani | Hindi story my

 

श्रापित जंगल E-6



जतिन जो हमारे साथ ही चल रहा था वो तभी किसी चीज से टकराकर बड़ी जोर से मुंह के बल झाड़ियों में गिर जाता हैं उसके गिरते ही तुरंत हम दोनों ने जतिन की तरफ लाइट मारी और जतिन को उठाया तो हम सबके होश ही उड़ गए। और हमारी आंखों से आंसू बहने लगे मेरे अंदर जितनी जान थी मैं उतनी जान से रो रहा था क्यूंकि मेरे सामने ही मेरे दोस्त अखिल की कटी हुई मुंडी पड़ी थी और जतिन, अखिल के ही कटे हुए सर से टकराकर नीचे गिरा था।

हम तीनों अखिल का वही सर देखकर रोने लगे तभी मैंने थोड़ा आगे की तरफ देखा तो वगैरा पर अखिल की टुकड़े-टुकड़े की हुई लाश पड़ी हुई थी। जैसा मैंने उस समय उन झाड़ी में पेड़ के नीचे देखा था अब बिलकुल वैसा ही अखिल की लाश के साथ हुआ था अखिल की लाश के कई टुकड़े इधर उधर पड़े हुए थे और अखिल की मुंडी जिससे जतिन टकराकर नीचे गिरा था वो अलग पड़ी हुई थी। फिर उसके बाद मैंने उन दोनों को सोते हुए ही बताया कि ऐसा ही मैंने उस पेड़ के नीचे देखा था।

फिर उसके बाद मैंने जतिन और आशीष को कहा - भाई अब जो भी हो गया है वो तो हो ही गया क्योंकि अब तो इसमें हम लोग कुछ नहीं कर सकते इसलिए अब हमें अपनी जान बचा लेनी चाहिए हो सके तो अब कैसे भी कर के इस जंगल से अब हम लोगों को बाहर निकल जाना चाहिए - मेरी बात सुनकर फिर जतिन और आशीष ने भी कहा - हां सही है - हम तीनों परेशान दुखी तो थे ही क्यूंकि हमारे सामने हमारे एक दोस्त की इतनी बुरी हालत में लाश पड़ी हुई थी जिसको हमारे सामने ही कोई घसीटता हुआ लेकर गया और हम कुछ कर भी नहीं सकें।

फिर उसके बाद हम तीनों एक दूसरे का हाथ पकड़ कर जंगल में आगे की तरफ जैसे ही चलने को हुए वैसे ही उस जंगल में फिर से किसी औरत के जोर जोर से हंसने की आवाज फिर से सुनाई देने लगी। पर अबकी बार वो हंसी हमको पहले से भी ज्यादा डरावनी लग रही थी क्योंकि इससे पहले जब हमें यह हंसी सुनाई दी थी तब हमारे दोस्त अखिल के साथ वो सब हो गया। पर अबकी बार आशीष उस हंसी को सुनकर जोर जोर से चिल्लाने लगा - कौन है तू और क्यों परेशान कर रहे हो हमें अगर इतनी ही हिम्मत है तो सामने आओ पीछे से क्यों डरा रहे हो -

आशीष के इतना बोलने के बाद वो हंसने की आवाज अब और भी ज्यादा तेजी से सुनाई देने लगी और ऐसा लग रहा था जो भी औरत हंस रही हैं वो हम लोगों के पास में ही है पर वो हमें कही दिख नहीं रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे हवा में ही हंसी की आवाज सुनाई दे रही थी पर तभी हवा में से ही कोई बोलने लगा - सब मरोगे तुम सब भी मरोगे जैसे एक मारा गया वैसे तुम तीनों भी मारे जाओगे जो इस जंगल में आएगा वो मर जाएगा मरोगे तुम लोग - हवा में से ही उसके बोलने के बाद फिर आशीष ने कहा - क्यों मारे जाएंगे हम लोग क्या किया है हमने क्यों मारा तुम लोगों ने हमारे दोस्त को - लेकिन इस बार आशीष की बात का कोई जवाब नहीं आता बस फिर से उसी औरत की हंसी सुनाई देने लगी।



इस कहानी के लेखक हैं - रामचंद्र यादव



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