दहशत E-1
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यह कहानी मुकेश के साथ घटी एक सच्ची घटना पर आधारित है. क्योंकि इस घटना के बाद मुकेश की पूरी जिंदगी बदल गई। इस घटना का असर मुकेश पर इतना पड़ा कि अगर वह इसे याद भी कर लेते हैं तो गहरे सदमे में खो जाते हैं। शायद मुकेश पूरी जिंदगी में उस रात को ना भूल पाए। और अब आगे की कहानी हम मुकेश जी के ही शब्दों में जारी रखेंगे । नमस्कार मेरा नाम मुकेश पांडे है और मैं यूपी के सुल्तानपुर जिले के एक छोटे से गाँव में रहता हूँ। गाँव में तो खैर हमारे परिवार के दादा दादी चाचा चाची लोग ही रहते हैं मैं मेरे माता पिता भाई हम सब दिल्ली में ही रहते हैं। साल में एक या दो बार हम पूरे परिवार के साथ गाँव जरूर आ जाते हैं।
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वैसे मैं आपको यह घटना जो बताने जा रहा हूँ यह मेरे साथ तब घटी थी 2016 - 8 मार्च जब हम गाँव से वापस अपने घर दिल्ली जा रहे थे। हमें दिल्ली के लिए ट्रेन लखनऊ स्टेशन से ही पकड़नी थी और हम शाम को लगभग 7:00 बजे ही स्टेशन पर पहुंच गए हमारी ट्रेन रात 10:00 बजे की थी मैं और मेरे पिताजी माताजी और मेरे बहन भाई हम सब स्टेशन के प्लेटफार्म पर ही बैठ रखे थे। हम लोगों ने वही खाना वगैरह सब खाया और ट्रेन का इंतजार ही कर रहे थे। मैं प्लेटफार्म पर इधर उधर घूम रहा था मैंने देखा एक लड़की प्लेटफार्म की एक बेंच पर अकेले ही बैठी हुई थी और वो मुझे ही देख रही थी।
उसको देख कर मुझे बड़ा ही अजीब लग रहा था पर मैंने इस बात पर ज्यादा कोई ध्यान नहीं दिया। और जहाँ मेरे घर के सभी लोग बैठे थे उसी तरह जाने लगा। प्लेटफार्म पर भीड़ बहुत थी और मुझे भीड़ में थोड़ी बहुत बेचैनी भी महसूस होती है। इसलिए मैं फ़ोन पर किसी से बाते हुआ ही चल रहा था। कि तभी मुझे लगा किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा हो मैं रुक कर तुरंत पीछे पलटा पर अब मेरे पीछे कोई नहीं था मैंने सोचा इतनी भीड़ है और इसी भीड़ में से ही किसी का हाथ मेरे कंथो पर पड़ गया होगा। इसलिए मैं जाकर वहीं बैठ गया जहाँ मेरे परिवार के सब लोग बैठे थे। और थोड़ी देर में हमारी ट्रेन भी आ गई जिसमें हमें बैठकर दिल्ली जाना था।
और ट्रेन आते ही पुरे स्टेशन पर भागा दौड़ी मच गई ट्रेन में बैठने के लिए और ट्रेन से भी भारी संख्या में लोग नीचे उतर रहे थे। हम भी भाग कर जनरल डब्बा ही ढूंढ रहे थे और जैसे तैसे मैं और मेरे परिवार के लोग उसमें घुस तो गए। पर हमने अंदर देखा अंदर बैठने तो क्या कहीं पैर रखने की भी जगह नहीं थी इतनी बुरी हालत थी उस जनरल बोगी में। और मुझे बहुत अजीब सा महसूस हो रहा था भीड़ की वजह से लेकिन मेरे पिताजी ने कहा जब ट्रेन चलेगी तो रास्ते में थोड़ी दूर जाते ही सीट मिल जाएगी बैठने के लिए। और ऐसा ही हुआ थोड़ी देर में दो स्टेशन के बाद हम सभी सीट पर बैठ गए थे और लगभग 12:00 या 12:30 बजे करीबन ट्रेन में अच्छी शांति भी हो गई थी।
और मैं भी थोड़ी में जाकर ऊपर की सीट पर सो गया लेकिन मेरी आँख 2:00 या 2:30 बजे खुली तो मैंने देखा बूगी में लगभग सभी लोग सो रहे थे मैं ऊपर वाली सीट से नीचे उतर गया मैंने देखा मेरे माता पिता और भाई बहन लोग भी सब सो रहे थे मैं बाथरूम करने के लिए वॉशरूम की तरफ गया। तभी मैंने बाहर की ओर देखा तो ट्रेन किसी स्टेशन पर रुकी हुई थी और स्टेशन पर काफी चहल पहल थी लोग इधर-उधर चल रहे थे। और बाहर हवा भी बड़ी अच्छी चल रही थी इसलिए मैंने सोचा जब तक ट्रेन रुकी हुई है थोड़ी देर बाहर घूम लेता हूँ पर मेरी नजर अचानक एक लड़की पर पड़ी जो दरवाजे पर ही खड़ी थी और वो लड़की वही लड़की थी जिसे मैंने लखनऊ स्टेशन पर देखा था।
लेकिन मैं उसे इग्नोर करते हुए नीचे उतर गया स्टेशन पर थोड़ा आगे ही गया था तभी मैंने देखा वो लड़की मेरे पीछे पीछे ही चल रही थी। लेकिन मेरी हिम्मत नहीं हो पा रही थी कि मैं उसे टोकू लेकिन थोड़ी देर में वही मुझे आवाज देती हुई बोली - सुनो जरा रुको तो - मैं पीछे पलट ते हुए बोला - जी - उस लड़की ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा - आप भी इसी ट्रेन से जा रहे हैं क्या वो मुझे ना इसी स्टेशन पर उतरना था और मुझे स्टेशन के बाहर अकेले जाने में डर सा लग रहा है तो क्या आप मुझे बाहर तक छोड़ दोगे - उसकी की बात सुनकर मैंने कहा - मुझे तो इसी ट्रेन में जाना है - पर मैंने देखा था ट्रेन से बहुत सारे लोग नीचे उतरकर स्टेशन पर बूम रहे थे तो मैंने सोचा ट्रेन यहाँ थोड़ा देर तक रुकेगी इसलिए मैंने फिर कहा - हाँ चलो छोड़ दूंगा -
इतना बोलकर हम स्टेशन से बाहर की ओर जाने लगे लेकिन सच बताऊं तो मुझे भी उस स्टेशन पर डर लग रहा था फिर भी मैंने उस लड़की को बाहर तक छोड़ने चला गया मैं यह भी सोच रहा था चलो इसी बहाने इससे दोस्ती भी हो जाएगी। क्यूंकि इसको मैंने लखनऊ स्टेशन पर जब देखा था तभी से यह मुझे बहुत अच्छी भी लग रही थी। मैं आगे आगे चल रहा था और वो पीछे थी हम थोड़ा सा ही आगे गए होंगे तभी उस लड़की ने मेरे कंधे पर हाथ रख दिया। पर मुझे उस समय समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या रिएक्ट करूं लेकिन जैसे मैंने पिछे मुड़कर उसके चेहरे की तरफ देखा तो मेरे हाथ पैर कप कपाने लगे मेरी रगों में चलता खून मानो जमसा गया हो।
और फिर एकदम से मेरी चीख निकल गई क्योंकि मैंने देखा उस लड़की का चेहरा बिल्कुल खून से लाल था आँखे दोनों बाहर लटकी हुई थी और एक हाथ आधा कटा हुआ था उसके पूरे शरीर से भी खून ही खून बह रहा था। लेकिन उसको देखने के बाद मेरी बस एक ही चिख निकली थी और उसके बाद मेरा गला तुरंत ही बैठ गया। क्योंकि उस लड़की ने मेरे गले पर अपने नोकिले ना खून गुस्सा दिए थे। और मैंने देखा वो स्टेशन जहाँ अभी इतनी चहल-पहल थी और लोग इधर उधर चल रहे थे अब वो सब जैसे गायब से हो गए थे। अब स्टेशन बिल्कुल सुनसान हो गया था चारों तरफ सिर्फ और सिर्फ अंधेरा ही था।
मैं अपने घुटनों के बल नीचे बैठ गया और वह धीरे धीरे मेरा गला दबाने लगी मेरी सांसे अब उखड़ने लगी थी मेरा चेहरा भी पसीने से तरबतर हो गया था मुझे लग रहा था अब इसी पल मेरी जान निकल जाएगी। इसके आगे की कहानी अगले एपिसोड में हैं।
इस कहानी के लेखक हैं - रामचंद्र यादव
इस कहानी में आवाज दी हैं - प्रियंका यादव
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