अधूरा हैं इंसाफ E-2 || khofnak hindi story || Hindi story my

 


अधूरा हैं इंसाफ E-2

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उस समय मुझे पता नहीं क्या हो गया था मैं ना चाहते हुए भी अनाप-शनाप बोल रही थी मैं यही बोल रही थी - सब को मार दूंगा मैं सबको मार दूंगा बदला लेकर रहूंगा अपना - मेरी ऐसी कैसी हालत देखकर मेरे पापा और सभी लोग बहुत परेशान हो चुके थे। और वो सभी मुझे लेकर एक बाबा के पास गए। वहाँ बाबा ने मुझे झाड़ा और गले में एक ताबीज बांधी बाबा को शायद ज्यादा कुछ समझ नहीं आया था इसलिए उन्होंने यह कह दिया - शादी के बाद ससुराल आते हुए कोई हवा मिली होगी - इतना बोलकर बाबा ने मेरे एक ताबीज बँधी और मैं उसके बाद कुछ समय के लिए मैं बिल्कुल ठीक हो गई थी।

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पिछली सारी बातें बुलाकर अब मैं ससुराल में भी खुश रहने लगी थी। लेकिन मेरे पति संदीप देहरादून में काम क्या करते थे और वो छुट्टी लेकर आए हुए थे अपनी शादी के लिए और अब वो वापस जाने के लिए तैयार थे और मुझे भी उनके साथ में जाना था। हम लोग देहरादून में आकर तिवारी जी के घर पर एक कमरा किराए पर लेकर रहा करते थे। सब कुछ अच्छे से चल रहा था तभी हमारी जिंदगी में एक दिन अचानक नहाते वक्त मेरी वो ताबीज टूट कर गिर गई और मुझे उसके बारे में पता नहीं चला कहां गिरी और कब गिरी। तो फिर एक रात को मैंने रोज की तरह ही खाना बनाया और खाना खाकर मैं और मेरे पति दोनों सो गए।


और तभी रात को लगभग घड़ी में 11:00 या 11:30 ही बज रहे होंगे कि मुझे पता नहीं क्या हुआ एकदम से मेरी सांसे बहुत तेज-तेज चलने लगी। और मैं एक झटके से अपने बेड से उतर गई मुझे ऐसा लग रहा था की मुझ पर मेरा कोई काबू नहीं है और मैं कमरे से बाहर की ओर भागने लगी। तभी मेरे पति संदीप भी उठ गए और उन्होंने मुझे पकड़ने की कोशिश करें तो मैंने उनको एक झटके में नीचे पटक दिया। और मेरे मुंह से जो शब्द मैं बोलना भी नहीं चाहती थी वो शब्द निकाल रहे थे। मैं यह कह रही थी - यह मेरी है और इसको मैं अपने साथ लेकर जाऊंगा यह सिर्फ मेरी है और मैं मार दूंगा जो मुझे रुकेगा - मरी ऐसी हालत देखकर संदीप बहुत ज्यादा डर चुके थे।


और मैं संदीप को बहुत बुरी तरह से घूर रही थी और मेरी आंखें एक भयानक जानवर की तरह लग रही थी। मेरे ऊपर मेरा कोई बस नहीं था मैं अजीब आवाज निकाल निकाल कर चिल्ला रही थी और चीख रही थी। संदीप मुझे बार-बार पकड़ने की कोशिश कर रहे थे लेकिन मैं संदीप को धक्का देकर हर बार हटा दे रहे थे और कभी मैं अपना सर दीवार पर पटकती तो कभी हाथ जमीन में जोर-जोर से पटकने लगती थी। उस समय मेरे पूरे हाथ पैर से खून बह रहा था मेरी हालत बहुत गंभीर हो गई थी मेरी आवाज भी बहुत ज्यादा बदल गई थी। मैं उसी भयानक और खतरनाक आवाज में बस यही कह रही थी - मैं सबको मार दूंगा यह मेरी है यह सिर्फ मेरी ही रहेगी और मैं अपना बदला लेकर रहूंगा जो मेरे रास्ते में आएगा मैं उन सबको मार दूंगा -


संदीप मुझे संभालने की बहुत कोशिश कर रहे थे लेकिन अपनी कोशिश में वो नाकाम ही हो थे। क्योंकि मेरे अंदर न जाने कौन सी शक्ति या ताकत आ गई थी की मैं संदीप के काबू में बिल्कुल नहीं हो पा रही थी। मैं दरवाजे से निकल कर बाहर भागने की कोशिश करी लेकिन जब तक हमारे मकान मालिक तिवारी जी और उनकी पत्नी जाग चुके थे। तिवारी जी और संदीप और उनकी पत्नी तीनों ने मुझे पकड़कर बड़ी मुश्किल से कमरे के अंदर फिर लेकर आए। तिवारी जी पंडित थे और वो पूजा-पाठ किया करते थे और उनकी पत्नी भी पूजा पाठ करती और भूत प्रेत के बारे में बहुत कुछ जानती थी। और तभी उनकी पत्नी ने मेरे बालों को जोर से पकड़ कर मेरा चेहरा जमीन में दबा दिया।


और मुझसे जोर से चिल्लाते हुए पूछा - कौन है तू बता कौन है तू - लेकिन मेरे मुंह से अनाप-शनाप शब्द ही निकल रहे थे। मैंने कहा - सबको मार दूंगा मैं तुझे भी मार दूंगा मैं अगर तूने मुझे रोकने की कोशिश करी तो क्योंकि यह मेरी है और मेरे साथ ही जाएगी मैं अपना बदला लेकर रहूंगा अब यह मेरी ही है - पंडित जी ने यानी तिवारी जी ने उसी समय वहाँ पर थोड़ी आग जलाई और मंत्रों का उच्चारण करने लगे और उनकी पत्नी ने लगातार मेरे ऊपर थप्पड़ बरसाने शुरू कर दिए। लेकिन मुझे उस समय उनके थप्पड़ मारने का कोई असर या दर्द महसूस नहीं हो रहा था मेरे अंदर एक अलग किसम की खतरनाक ताकत थी।


और मैं अपने आपको झटक कर बाहर भागने की कोशिश कर रही थी। तभी पंडित जी की पत्नी ने अग्नि में कुछ सामग्री डाली और मंत्रों को पड़ने लगी और फिर मुझसे पूछा पूछ - कौन है तू और क्यों परेशान कर रहा है इसको बता कहाँ से आया है - पर तभी मैंने एकदम से सब को झटक कर बाहर भागने की कोशिश करी पर सबने मुझे फिर पकड़ लिया और फिर मैंने अपना सर दीवारों पर पटक पटक कर जमीन पर गिर गई और मैं अपने हाथ पैरों को पटक रही थी। उस समय मेरे पूरे शरीर से खून निकल रहा था लेकिन मुझे इस दर्द का बिल्कुल भी एहसास नहीं हो रहा था। अब पंडित जी की पत्नी बहुत गुस्से में थी उन्होंने मेरे बालों से ही पकड़ कर मुझे अंदर घसीट लिया।


और लोहे की रॉड आग में जलाकर बिल्कुल लाल कर दी और कहा - मैं अभी तुझे यही जलाकर भस्म कर दूंगी नहीं तो तू बता दे तू कौन है - पंडित जी की पत्नी ने मेरे सर को पकड़ कर जमीन में दबा रखा था तभी मेरे अंदर से आवाज निकलने लगी वो कह रहा था - मैं राजेश हूँ और यह मेरी पत्नी है और यह सिर्फ मेरी है मैं इसको लेकर जाऊंगा यह किसी की नहीं हो सकती क्योंकि इसने मेरे साथ शादी करी है - पंडित जी की पत्नी ने जोर से चिल्लाते हुए और गरजते हुए कहा - यह तेरी पत्नी कैसे है - और फिर से मेरे अंदर से अपने आप आवाज निकली - इसकी शादी मेरे साथी हुई थी और अब यह मुझे भूल गई है इसलिए मैं इसे भी मार दूंगा और अपने साथ लेकर जाऊंगा और सब को मार दूंगा मैं अपना बदला लेकर रहूंगा -


उसके बाद पंडित जी की पत्नी ने मंत्र को पढ़ते हुए मुझे अपनी पकड़ से बहुत ज्यादा दबा लिया था और फिर उन्होंने कहा - अब तो इसकी शादी हो गई है और तू इस दुनिया में नहीं है तो क्यों परेशान कर रहा है इसको - तो फिर उसने कहा जो मेरे अंदर था - जिन लोगों ने मुझे मारा है मैं उनको भी मार दूंगा और इसको अपने साथ ले जाऊंगा - पंडित जी की पत्नी ने फिर कहा - किसने मारा है तुझे और क्यों मारा है - तो मेरे अंदर से एक खतरनाक और भयानक डरावनी आवाज में जो कुछ निकला वो सुनकर वहाँ सब के रोंगटे खड़े हो गए। वो कह रहा था - जब मेरी पत्नी मायके गई हुई थी तो रात को मेरे बड़े भाई और मेरी सौतेली माँ और मेरी भाभी ने मिलकर मुझे मार दिया उन्होंने मेरा गला दबाकर मुझे मारा और मेरी लाश को गोमती में फेंक दिया इसलिए मैं सबको मारूंगा और इसको अपने साथ लेकर जाऊंगा अब मुझे कोई नहीं रोक सकता -


पंडित जी की पत्नी ने जो सरिया गर्म करा हुआ था वो सरिया मेरे पैरों पर लगा दिया। वो सरिया मेरे पैरो में लगते ही मेरी चीखने की आवाज बहुत तेज बढ़ने लगी लेकिन सच बताऊं तो मुझे उस दर्द का बिल्कुल भी एहसास नहीं हो रहा था। और थोड़ी देर में एकदम से बेहोश होकर नीचे जमीन में गिर गई और उसके बाद पंडित जी की पत्नी ने मुझ पर गंगा जल छिड़का और तुरंत मेरे गले में ताबीज बनाकर बांधी और एक ताबीज मेरे हाथों में बांध दिया। और फिर उन्होंने कहा - जब तक यह ताबीज रहेगी जब तक ऐसी कोई ताकत तुमको परेशान नहीं कर सकती और हाँ अगर तुम्हें अपने वो पति की मुक्ति करानी है तो तुम्हें अंतिम संस्कार विधि विधान से करवाना होगा जो तुम उनके घर पर ही जाकर करवा सकती हो तभी यह सफल होगा -


उस दिन के बाद मेरी हालत बहुत खराब थी क्योंकि मेरे पूरे बदन पर चोट लगी हुई थी मेरा खून भी बहुत बह गया था डॉक्टरों से इलाज के बाद मेरी तबीयत तो कुछ दिन में ठीक हो गई और मैं नॉर्मल भी हो गई। लेकिन मैं और संदीप यही सोच रहे थे कि हमारी बात पर कोई विश्वास तो करेगा नहीं की उसके घर वालों ने ही राजेश को मारा है और ना ही पुलिस हमारी मदद कर सकती है। तो हम कैसे मुक्ति कर सकते हैं या कैसे उसको इंसाफ दिला सकते हैं। पंडित जी और पंडित जी की पत्नी ने जहाँ हम रहते हैं देहरादून में वहीं पर उसके नाम से मेरे साथ मिलकर अंतिम संस्कार की रस्म एक दिन पूरी तो कर दी लेकिन पंडित जी की पत्नी ने मुझसे एक बात कही कि -

कभी भी भूल से यह ताबीज मत निकालना क्योंकि उसको पूर्ण मुक्ति तभी मिल सकती है जब वो अपना बदला ले लेगा या उसका अंतिम संस्कार उसी घर पर विधि विधान से एक बार फिर किया जाएगा। अब इस घटना को तो लगभग 10-12 साल बीत गए हैं लेकिन मेरी जिंदगी दोराहे पर खड़ी है। अभी भी कि मैं अपने पहले पति को इंसाफ दिलाओ या संदीप के साथ अपनी इस जिंदगी में उसे भूल कर खुश रह हूँ।


इस कहानी के लेखक हैं - रामचंद्र यादव
इस कहानी में आवाज दी हैं - प्रियंका यादव


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