जब भूतों से हुआ सामना || bhooton ki darawni kahani || hindi story my

 


जब भूतों से हुआ सामना

रात के लगभग 10 बज रहे होंगे अधेरी रात और सुनसान मट्टी की कच्ची सड़क में अमित अपनी साईकिल से अपने एक रिश्तेदार की शादी से होकर अपने घर को वापस जा रहा था सर्दी का मौसम था इसलिए अमित साईकिल धीरे धीरे चला रहा था क्यूंकि उस समय चल रही ठंडी हवा अमित के चलते खून को जमा रही थी। रात का अंधेरा और खेतो के बिच से जाती हुई सुनसान सड़क कही ना कही अमित को थोड़ा डराने का कम कर रही थी। वैसे अमित कभी डरता तो नहीं था पर इस तरह का जो मोहोल था वो किसी भी इंसान को थोड़ा तो डरा ही देता। अमित मन ही मन बस यही सोच रहा था की कितनी जल्दी वो बस अपने घर पहुंच जाए।
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क्यूंकि सर्दी भी बहुत हो रही थी पर अभी उसका घर यहाँ से लगभग 6 किलोमीटर की दुरी पर होगा इसलिए अमित भी बिना रुके बस अपनी साईकिल से चला जा रहा था। अमित अभी 2 या 3 किलोमीटर ही आगे गया होगा तभी उसने देखा उसे थोड़ी ही दूर पर कुछ लोग एक खेत में बैठे आग ताप रहे थे। ठंड तो अमित को भी बहुत लग रही थी इसलिए उसने सोचा कुछ देर यहाँ उन लोगो के साथ बैठ कर आग ताप लेता हूँ फिर आगे जाऊंगा। इसलिए अमित अपनी साईकिल से उतरा और पैदल ही अपनी साईकिल को उन लोगो तक ले गया और जैसे अमित ने वहाँ अपनी साईकिल खड़ी करी तो उनमे से एक आदमी पिछे मुड़ा और अमित से कहा - आओ भैया बैठो बैठो बहुत ठंड हैं थोड़ा आग ताप लो -

उस आदमी की बात सुनकर अमित ने कहा - हाँ भैया बहुत ठंड हैं - इतना बोलकर अमित उन लोगो के बिच में बैठकर आग तापने लगा। और इधर उधर की बाते चल रही थी तभी अमित ने कुछ ऐसा देख लिया था जिसे देखकर अमित के डर के मारे हाथ पैर कापने लगे और उसकी रखो में चलता खून मानो जम सा गया हो क्यूंकि उसने देखा की वो जीन लोगो के साथ बैठा था उन सबके पैर उल्टे थे। पर उन सबको देखकर ऐसा कुछ भी नहीं लग रहा था की वो इंसान नहीं हो और वो सब उसके साथ बिलकुल सही से बात कर रहे थे। अब अमित बहुत डर चूका था इसलिए वो बस यहाँ से अब जल्दी से भाग जाना चाह रहा था पर वो एकदम से भी उठकर नहीं भाग सकता था क्यूंकि शायद उन्हे ऐसा लग रहा था की अमित भी उनमे से एक हैं तभी अमित के साथ जो हुआ उसे देखकर अमित के होश ही उठ गए।

क्यूंकि तभी उनमे से एक आदमी ने अपनी जेब से कुछ निकला और कहा - चलो भाई थोड़ा तमाकू वामकू खा लेते हैं - इतना बोलकर वो आदमी सबके हाथो में कुछ देने लगा और जब उसने वो चीज अमित के हाथो में दी तो इस बार अमित की आँखे फटी की फटी रह गई। क्यूंकि उसने देखा वो कोई तमाकू नहीं बल्कि इंसानों की आँखे थी। और वो सब उन आँखो को तमाकू की तरह खा रहे थे अमित ने तो उस समय उनसे वो आँखे लेली और जैसे वो लोग उन आँखो को खा रहे थे। वैसे ही अमित ने भी उन आँखो को खाने का नाटक करने लगा और उन आँखो को उन लोगो से छुपा कर उसने फेक दिया।

और अमित मन ही मन बस यही सोच रहा था की - कहाँ फस गया मैं अब कैसे जाओ यहाँ से - यही सब सोच रहा था वो और उन लोगो से बाते भी करें जा रहा था। तभी एक बार फिर उन लोगो में से एक आदमी ने अपने कपडे में से कुछ निकला जो उसने अपने कपडे में बांध कर रखा हुआ था। इस बार भी उसने वो चीज निकाली और कहा - चलो भाइयो थोड़े चने खा लो - इतना बोलकर वो आदमी फिर सबको बारी बारी वो चीज देने लगा जिसे वो चना बोल रहा था। और जब अमित की बारी आई तो अमित ने देखा वो चीज कोई चना नहीं बल्कि इंसनों की उंगलियां थी जो छोटे छोटे हिस्सों में कटी हुई थी। अमित ने इस बार भी उस आदमी से वो कटी हुई उंगलियां लेली फिर उनको खाने का नाटक करने लगा।

पर वो यहाँ से भाग जाने के बारे में भी बार बार सोच रहा था और वो यह भी सोच रहा थी की कही इन लोगो को पता चल गया की वो इनमे से नहीं बल्कि एक इंसान हैं तो यह लोग मेरे साथ क्या करेंगे। यही सब सोचते हुए अमित वहाँ बैठे बैठे डरे जा रहा था पर उसने सोच लिया था की अब चाहे मर ही क्यों ना जाऊ पर अब यहाँ और नहीं बैटूंगा इसलिए अमित वहाँ से उठा बोला - भाइयो मैं अभी थोड़ी देर में आया - इतना बोलकर अमित ने अपनी साईकिल निकाली और वहाँ से जाने लगा। पर शायद उन लोगो को उस समय पता चल गया की अमित एक इंसान हैं तभी उनमे से एक आदमी अमित आगे आकर खड़ा हो गया।

पर इस बार वो देखने में बड़ा भयानक सा हो गया था अब वो आदमी ही नहीं बल्कि वहाँ बैठे सभी लोग बड़े भयानक से हो गए। अब उन सबके चेहरों से खून निकल रहा था और वो सब उसकी ओर चले आ रहे थे वो अमित के जितने पास आ रहे थे अमित की दिल की धड़कन उतनी तेज होती जा रही थी। अमित वहाँ से भाग भी नहीं सकता था क्यूंकि उन सबने अमित को चारो ओर से घेर लिया था। तभी उनमे से एक आदमी अमित के एकदम पास गया यह वही आदमी था जो थोड़ी देर पहले सबको कुछ ना कुछ खाने को दे रहा था। वो आदमी अमित के पास गया वो अमित के गले को जैसे ही उसने पकड़ा वो सब तुरंत पता नहीं कहाँ गायब हो गए और वो आदमी भी पता नहीं कहाँ गायब हो गया जो अमित का गला पकड़ने जा रहा था।

वो सब जैसे ही गायब हुए अमित वहाँ से तुरंत भाग कर अपने घर चला गया। और जब उसने अगले दिन सारी बात अपने घर में सबको बताया तो उसके पिता ने उसको बताया की तुम्हे वहाँ बैठे बैठे ही सुबह के चार बज गए थे और सुबह चार बजे के बाद भूतों का समय खत्म हो जाता हैं इसलिए तुम उस दिन बच पाए थे।


इस कहानी के लेखक हैं - शिव
इस कहानी में आवाज दी हैं - प्रियंका यादव



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