मौत से हुआ सामना E-2
जो इतनी देर से इन तीनो को भगा रहा था उन्होंने देखस अब वो उसी कब्रिस्तान के अंदर एक कब्र पर बैठा हुआ था। और वो किसी से बात कर रहा था तभी कुलदीप की नजर उसके चेहरे पर पड़ी तो शायद कुलदीप उसको पहचान गया था कि वो कौन है। फिर कुलदीप ने कहा - अरे यह तो साहिल है लेकिन यह यहाँ क्या कर रहा है - फिर गौरव ने कहा - कौन साहिल - उसके बाद कुलदीप ने बताया - अरे यह महेश की नानी के गाँव में ही तो रहता है और यहाँ से थोड़ा ही आगे तो इसकी नानी का गाँव है - यह कहकर कुलदीप ने महेश को आवाज मारी अबे महेश यहाँ तो साहिल बैठा हुआ है साहिल था जो मस्ती कर रहा था हमारे साथ अभी बताते हैं इसको -
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इतना बोलकर कुलदीप और गौरव उस बाउंड्री से नीचे कूद गए शायद नीचे कुछ था क्योंकि जैसे वो नीचे कूदे तो उनके सर में कुछ बड़ी जोर से लगा और वो दोनों थोड़ी देर उसी जगह पड़े हुए थे। क्योंकि बाउंड्री बहुत ऊंची थी और नीचे शायद कुछ था जो उनके सर पर बड़ी तेजी से लगा और शायद उनके पैरों में भी चोट लग गई थी। और फिर एकदम से दोनों खड़े होकर उस ओर जाने लगे जहाँ साहिल कबर पर बैठे हुए एक दूसरे आदमी से बात कर रहा था। वही आवाज मारते हुए जाने लगे - अबे साहिल बेटा इतनी देर से तू परेशान कर रहा था रुक अभी बताता हूँ तुझे - लेकिन महेश बाहर ही था उसकै चोट लगी हुई थी पत्थर की वजह से लेकिन यह सुनकर कि वहाँ साहिल है और साहिल ही इनको इतनी देर से परेशान कर रहा था।
फिर एकदम से महेश उठा और शायद उसकी जो चोट लगी थी और जो दर्द हो रहा था सारा दर्द खत्म हो गया और भागता हुआ बाउंड्री पर चढ़कर आवाज मारने लगा - अबे वापस आ जाओ अबे साहिल नहीं है वो भाई वो तो 15 दिन पहले ही मर गया था अबे आ जाओ - लेकिन तभी महेश के होश उड़ गए और उसकी रगों में चलता खून मानो जमसा गया क्योंकि उसने देखा कब्र पर साहिल ही बैठा हुआ था और वो एक दूसरे आदमी से बात कर रहा था। और थोड़ी देर में वहीं पर गौरव और कुलदीप भी पहुंच गए। महेश बाउंड्री पर बैठे बैठे उन्हें देख रहा था कि साहिल ने एकदम से खड़े होकर एक साथ कुलदीप और गौरव के गले मिलने लगा।
महेश बाउंड्री पर से ही यह सब देख रहा था उसने देखा कि सब आपस में बात कर रहे हैं लेकिन समझ तो कुछ आ नहीं रहा था क्योंकि कब्र थोड़ी दूर थी और थोड़ी देर में देखते देखते वो चारों एक साथ उसी कब्र पर बैठ गए। यह सब देख कर महेश की तो हालत खराब हो गई लेकिन फिर भी महेश लगातार आवाज मारे जा रहा था इसके बावजूद उसकी इतनी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वो भी कूदकर उनके पास चला जाए। क्योंकि महेश को तो पता था साहिल की तो मौत 15 दिन पहले ही हो गई थी तो फिर यह कैसे हो सकता है डरते हुए घबराते हुए काफी देर तक महेश उसी दीवार के पास से आवाज मारने की कोशिश कर रहा था कि उसने सोचा चलो चाहे जो हो जाए एक बार मैं भी जा कर देखता हूँ ।
फिर वो दोस्ती निभाने के चक्कर में महेश बाउंड्री से नीचे कूदने के लिए देखने लगा तो उसके होश तो फिर उड़ गया। क्योंकि बाउंड्री सचमुच बहुत ऊंची थी उसे पता था अगर कुदूंगा तो हाथ पैर तो टूट ही जाएंगे और वो यह भी सोच रहा था यह दोनों इतनी ऊंची बाउंड्री से भला कैसे कूद गए। फिर वो कब्रिस्तान से बाहर आकर सड़क पर देखने लगा आस पास कोई है मदद मांगने के लिए लेकिन उस समय अंधेरी रात में वहाँ कोई नजर नहीं आया। महेश बहुत परेशान था जबकि उसके दोनों दोस्त कब्रिस्तान में थे और डरने की बात तो यह थी कि वो दोनों साहिल के साथ थे और साहिल को मरे हुए 15 दिन हो चुके थे।
यही सब सोचते हुए और घबराते हुए महेश वहाँ उस ओर से भागने लगा जहाँ शादी हो रही थी। क्यूंकि वहाँ उसके गाँव के सब लोग थे महेश पूरी जान लगा कर भाग रहा था। और थोड़ी देर में वो टेंट में पहुंच गया वहाँ सब लोग इधर-उधर चारपाई पर सो रहे थे उसने सबको बारी-बारी से उठाने की कोशिश करी और वो वहाँ जोर जोर से चिल्ला रहा था कि - कुलदीप और गौरव कब्रिस्तान में हैं चलो कोई बचाने चलो कोई अरे सुन क्यों नहीं रहे हो तुम लोग - लेकिन उसके बार-बार चीखने चिल्लाने और आवाज मारने का किसी पर कोई असर नहीं हो रहा था। सब लोग इतनी गहरी नींद में सो रहे थे की महेश बार-बार कोशिश करने के बावजूद किसी पर कोई असर नहीं हो रहा था।
उसके बाद वो गुस्से में जाकर एक किनारे बैठ गया और यही सोच रहा था न जाने किस हाल में होंगे वो दोनों और आज किस मुसीबत में फंस गए। यह सब सोचते हुए वो रात तो बीत गई और जब सुबह सब लोग जागे तो फिर महेश सबके पास जा जाकर बताने की कोशिश कर रहा था कि गौरव और कुलदीप कब्रिस्तान में फंसे हुए थे और वो अभी तक वापस नहीं आए। लेकिन उसकी बात सुनना तो दूर कोई उसकी तरफ देख भी नहीं रहा था गुस्से में आग बबूला हो चुका था महेश उसने सोचा चाहे कुछ भी हो जाए अब मैं खुद ही जाऊंगा और फिर वो वहाँ से कब्रिस्तान की तरफ भागता हुआ जाने लगा। और यही सोच रहा था ना जाने क्या हो गया हैं इन लोगों को ना कुछ दिखाई दे रहा ना सुनाई दे रहा है।
और इधर टेंट में सब लोग महेश कुलदीप और गौरव को ढूंढ रहे थे रात से ही वो सब सोच रहे थे यह तीनों गए कहाँ क्योंकि उनका फोन भी कोई उठा नहीं रहा था। फोन की घंटी लगातार बज रही थी लेकिन कोई नहीं उठा रहा था सब लोग बहुत परेशान थे यही सोच रहे थे आखिर गए कहां यह तीनों। और थोड़ी देर बाद कुलदीप के पिता जी के फोन पर कुलदीप के नंबर से फोन आया और जब उसके पिता जी ने फ़ोन उठाया तो फोन की दूसरी तरफ से आवाज आई - यह किसका नंबर है - फिर कुलदीप के पिता जी ने कहा - यह मेरे बेटे का नंबर हैं पर आपको उसका फ़ोन कहाँ मिला - उसके बाद उधर से दिल की धड़कन रोक देने वाला जवाब आया - आपके बेटे की लाश कब्रिस्तान में पड़ी हुई है और इसके साथ दो जानो की लाश और हैं -
इतना सुनकर कुलदीप के पिताजी रोने लगे और सभी साथी लोगों को बताया और उसके बाद सभी लोग बिना समय गवाएं तुरंत सब लोग कब्रिस्तान पहुंच गए। वहाँ पहुंच कर देखा वहाँ बाहर गार्ड खड़ा था और दो पुलिस वाले भी थे शायद फोन पुलिस वालों ने ही करा था। फिर पुलिस वालों ने बताया एक लाश तो बाहर ही पड़ी थी और उसके सर में चोट लगी हुई थी और दो जीने की लाश कब्रिस्तान के अंदर दीवार के पास पड़ी हुई थी उन्होंने बताया शायद इन दोनों की मौत दीवाल कूदते समय नीचे जो रॉड नीचे लगी हुई थी उसी से चोट लगने के बाद हो गई। यानी महेश की मौत उसी समय हो गई थी जब वो आदमी के ऊपर से पत्थर मार रहा था कुलदीप और गौरव की मौत उस ऊंची दीवार को कूदते समय नीचे सरिया और ईटों पर गिरने से हो गई थी तो फिर महेश यहाँ से वापस कैसे गया था।
इस कहानी के लेखक हैं - रामचंद्र यादव
इस कहानी में आवाज दी हैं - प्रियंका यादव
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