सुसाइड E-2(हॉरर स्टोरी)
हम सब फिर दोबारा से बस में बैठ तो गए लेकिन सच बताऊं बस में जितने लोग थे सबकी हालत डर के मारे बहुत खराब थी। और श्मशान घाट भी अभी यहाँ से बहुत दूर था लगभग 30 किलोमीटर से ज्यादा रास्ता अभी और तय करना था। श्मशान घाट मैं अगर किसी की भी डेड बॉडी ले जाई जाती है तो उससे पहले रास्ते में ही उस मरने वाले व्यक्ति के कपड़ो को रास्ते में ही डाल दिए जाते हैं वहीं पर कपड़ों को लेने के लिए कुछ लोग खड़े होते हैं जिन्हें डॉम कहा जाता है। शायद उस जगह पहुंचते ही ड्राइवर ने भी गाड़ी रोक दी और पवन के भाई और एक दो लोग बस के अंदर ही दो गठरी में पवन के कपड़े रखे हुए थे।
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इसके बाद पवन का भाई जब उन कपड़ों को डॉम के हाथों में दे रहा था तो वहाँ खड़े सभी लोगों के होश उड़ गए। क्योंकि पवन के भाई ने जैसे ही कपड़े की गठरी देने के लिए निकाली वैसे ही रोने की आवाज फिर आने लगी ऐसा लग रहा था कोई मना कर रहा हो कि यह कपड़े मत दो। रोने की आवाज वहाँ खड़े डॉम और हम सब लोग साफ-साफ सुन रहे थे सब लोग डरे घबराए तो पहले से ही थे कि ऐसा कैसे हो सकता है एक मुर्दे को लेकर हम लोग श्मशान घाट जा रहे हैं और उसमें से बार-बार रोने की आवाज आ रही है। वहाँ बहुत लोग थे इसलिए इसको वैहम भी नहीं कहा जा सकता क्यूंकि सबको सुनाई दे रहा था।
उसके बाद जब डोम लोगो ने पूछा - कौन रो रहा है - क्योंकि बस के अंदर तो कोई रोता हुआ ऐसे दिख नहीं रहा है तभी उनमें से एक ने कहा - आवाज शायद बस के ऊपर से आ रही है - फिर हमने कहा - छत पर सिर्फ डेड बॉडी है और कोई नहीं - लेकिन उनमें से दो तीन लोग बस के ऊपर चढ़कर देखने लगे और देखते ही वो सीधा नीचे उतरे और उन्होंने कपड़ों का भरा गठरी हमारी बस पर वापस रख दिया फिर उन्होंने कहा - भाई इस मुद्दे में से रोने की आवाज आ रही है - और वो लोग बोलने लगे कि - तुम लोग किसी एक जिंदा इंसान को श्मशान घाट ले जा रहे हो - अब वो लोग जिद पर अड़ गए कि पुलिस बुला कर ही रहेंगे।
लेकिन पवन के पिताजी और सभी लोग उन सभी लोगों को यह बताने की कोशिश कर रहे थे कि - आपको कोई वहम हो रहा है यह व्यक्ति मरा हुआ है चाहे आप लोग इसका कफन हटा कर देख लो कि ये जिंदा नहीं है - लेकिन उन लोगों को शायद हम पर कोई भरोसा नहीं था और उन्होंने पुलिस को भी फोन कर दिया था। हम सब के बार बार कहने पर भी हम को वहाँ से जाने नहीं दिया और ना ही उन डोम लोगों ने हमारी कोई बात नहीं सुनी। घड़ी में अब लगभग शाम के 5:00 बज चुके थे यानी हमें वैसे भी बहुत देर हो रही थी श्मशान घाट जाने के लिए। थोड़ी देर में पुलिस वाले भी पहुंच गए पुलिस के आते ही वहाँ जो डोम थे उन्होंने कहा - यह लोग किसी जिंदा आदमी को कफन में बांध कर ले जा रहे हैं -
सच बताऊ तो वो एक बहुत अजीब घटना थी क्योंकि ऐसा शायद कभी किसी के साथ नहीं हुआ होगा की एक मुर्दे को लेकर जा रहे हैं और पुलिस वालों ने यह देखने के लिए रोका है कि वो जिंदा है या फिर नहीं। उसके बाद दो पुलिस वाले तुरंत बस के ऊपर छत पर चढ़े और उन्होंने कफन को तुरंत हटा दिया लेकिन वो तो डेड बॉडी थी। उसको देखने के बाद पुलिस वालों ने कहा - इसकी मौत कैसे हुई थी - पवन के घर वालों ने बताया - सर इसने सुसाइड किया था पंखे से लटक कर - पुलिस वाले अब जिद पर अड़ गए कि जब तक इसकी पोस्टमार्टम नहीं होगा तब तक यह बॉडी अब श्मशान घाट नहीं जाएगी। हम लोगों के और पवन के घरवालों के बार बार कहने पर भी पुलिस वाले मानने को तैयार नहीं थे।
लेकिन पुलिस वालों से कुछ ले देकर मामला शांत कराने की कोशिश की गई और फिर यहाँ से किसी भी हालत में बस निकलना ही सही समझा। कहते हैं कि जो शव यात्रा में साथ में गया हो उसको रास्ते में नहीं उतारना चाहिए जब तक शमशान घाट मैं क्रिया कर्म ना हो जाए। इस वजह से लोग बस में बैठे हुए थे नहीं तो मैं और न जाने कितने लोग उस दिन उसे आगे नहीं जाते। मामला शांत होने के बाद जब ड्राइवर ने गाड़ी स्टार्ट करी तो फिर उसने हरिद्वार शमशान घाट आकर ही गाड़ी रोकी। सर्दी का समय था जनवरी का महीना चल रहा था इस वजह से अंधेरा भी अब हो गया था घड़ी में लगभग 7:00 बज चुके थे। जब हम लोग पवन की डेड बॉडी लेकर घाट पर पहुंचे तो तो श्मशान घाट के कर्मचारियों ने यह कहकर मना कर दिया की -
अब समय खत्म हो गया है बॉडी हम 7:00 बजे से पहले ही जलाते हैं इसलिए अब इसका दाह संस्कार कल सुबह ही हो सकता है - हम लोगों के बार बार कहने पर कि हम दूर से आए हैं इसलिए हमें बॉडी जलाने दे दी जाए पर श्मशान घाट में उस समय सभी कर्मचारी सफाई वगैरह करके घर की ओर जाने को थे। पवन के भाई और उसके पिताजी ने एक पंडित जी को क्रिया कर्म करने के लिए राजी कर लिया पंडित जी तैयार तो हो गए लेकिन उन्होंने कहा - धर्म के अनुसार सूरज ढलने के बाद क्रिया कर्म नहीं करना चाहिए यह सही नहीं होता इसको मुक्ति नहीं मिलेगी और फिर इसके अगले जन्म में भी इसका असर हो सकता है - लेकिन फिर भी आश्चर्य की बात तो यह थी कि पवन की पिता और उनके भाई रात में ही पवन का अंतिम संस्कार कराने पर अड़े रहे।
पंडित जी ने भी 2 - 3 कर्मचारियों को बुला लिया और चिता लगाकर अंतिम क्रिया कर्म शुरू कर दी। उस समय तो सब क्रिया कर्म वगैरा हो गया और हम लोग रात में ही अपने घर वापस भी आ गए लेकिन कहते हैं कि उसके 4 दिन बाद पवन के चाचा जी की मृत्यु हो गई और लगभग पवन की मौत के 10 दिन बाद उसके भाई की भी मौत हो गई लगातार पवन के घर में मौत का तांडव चल ही रहा है और पवन के हादसे के बाद मोहल्ले का कोई भी अब इन लोगों के किसी भी अंतिम यात्रा में नहीं गया।
इस कहानी को भेजा हैं संजय रावत ने
इस कहानी में आवाज दी हैं प्रियंका यादव ने
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