
रात के 12 बजे के बाद यहाँ से कोई क्यों नहीं जाता
मेरा नाम मुकेश हैं और मैं एक ट्रक ड्राइवर हूँ और मेरा यह रोज का काम हैं रात में ट्रक चलाना इसलिए मुझे भूतों पर बिलकुल विश्वास नहीं था क्युकी मैंने उस दिन से पहले कभी कोई वैसी चीज नहीं देखी थी की जिससे मैं भूतों पर विश्वास कर सकूँ। पर उस रात मेरे साथ कुछ ऐसा हुआ की उस दिन को याद करके मेरी आज भी रोहू काप जाती हैं। यह बात आज से लगभग दो साल पहले की हैं जब मैं और मेरा हेल्पर सुमित हम सहारनपुर से पाँच हजार ईटे बार कर देहरादून ला रहे थे।
और समय लगभग रात के 11 बजे मैं और मेरे हेल्पर ने सोचा पहले कुछ खा लिया जाए फिर आगे चलेंगे इसलिए मैंने हाईवे के बगल में एक ढाबा था उसमे जाकर अपना ट्रक खड़ा करा और फिर वही खाना खा कर जैसे ही हम उठकर जाने लगे तभी उस ढाबे वाला मेरे पास आया और बोला - अरे उस्ताद किस ओर की तरफ जा रहे हो - उस ढाबे वाले की बात का जवाब देते हुए फिर मैंने कहा - बस भाई जी देहरादून तक ही जाना हैं -
फिर उस ढाबे वाले ने मेरी बात सुनकर अपनी घड़ी में टाइम देखा और कहा - उस्ताद रात के 12 बजने ही वाले हैं कुछ देर यही रुक जाओ रात के 1 बजे के बाद चले जाना - उस ढाबे वाले की बात सुनकर मुझे बड़ा ही अजीब लग इसलिए मैंने कहा - क्यों भाई जी 1 बजे के बाद क्यों - मेरी बात का जवाब देते हुए उस ढाबे वाले ने कहा - क्यूंकि उस्ताद कोई भी रात के 12 बजे के बाद एक किलोमीटर आगे जो बरगढ़ का पेड़ हैं उसे पार नहीं कर सकता और उस बरगद के पेड़ से एक किलोमीटर आगे एक और बरगद का पेड़ हैं और वहाँ से भी कोई उस बरगद के पेड़ को पार नहीं कर सकता -
मैं वहाँ खडे खड़े उस ढाबे वाले की सारी बात सुनने के बाद मैंने कहा - अरे नहीं भाई जी मैं नहीं रुक सकता मुझे यह ईटे जल्दी ही देहरादून पहुचानी हैं और वैसे भी मुझे इन सब बातों पर बिलकुल भी विश्वास नहीं हैं - इतना बोलकर मैं ट्रक की ओर जाने को जैसे ही मुड़ा तो उस ढाबे वाले ने मुझे एक बार और कहा - उस्ताद तुम जा तो रहे हो पर तुम उस बरगद के पेड़ को पार नहीं कर सकते - फिर मैंने भी उसको जवाब देते हुए कहा - चलो देख लेंगे आज -
इतना बोलकर मैं अपने ट्रक में अपने हेल्पर के साथ आकर बैठा और अपना ट्रक स्टार्ट करा और चल दिया देहरादून की ओर। मैं अभी ढाबे से लगभग आधा ही किलोमीटर आगे गया होंगा तभी मैंने देखा आगे पुलिस ने रास्ता बंद करा हुआ था मैं थोड़ा और आगे गया और अपने ट्रक का शीशा नीचे कर के बोला - क्या हुआ सर जी रास्ता क्यों बाद करा हुआ हैं -
फिर मेरी बात सुनकर वहाँ खड़े एक पुलिस वाले ने कहा - उस्ताद ट्रक इधर साइड में लगा दो 1 बजे के बाद जाना - फिर उस पुलिस वाले की बात सुनकर मैंने कहा - नहीं सर जी मैं रुक नहीं सकता मुझे यह ईटे जल्दी ही देहरादून पहुचानी हैं - फिर उस पुलिस वाले ने कहा - अरे उस्ताद मेरी बात मानो 12 बज गए हैं और अब एक बजे तक बरगद के पेड़ के आगे से कोई नहीं जा सकता तुम एक बजे के बाद चले जाना - फिर मैंने कहा - नहीं सर जी जाने दो ना मैं इन सब बातों को नहीं मानता -
फिर उस पुलिस वाले ने कहा - जा तुझे जाना तो जा पर तू उस बरगद के पेड़ से आगे नहीं जा पाएगा - उनके इतना कहते ही मैंने तुरंत अपना ट्रक स्टार्ट करा और चल दिया। तभी मेरे हेल्पर ने मुझसे कहा - अरे उस्ताद एक घंटे की तो बात हैं रुक ही जाते हैं ना और देखो उस्ताद हमारे ना तो आगे से कोई गाड़ी आ रही और ना ही पिछे से -
फिर सुमित की बात सुनकर मैंने भी जब आगे पिछे देखा तो पूरी सड़क खाली पड़ी हुई थी। मैं लगभग 20 सालो से ट्रक चलाता हूँ पर मैंने अभी तक कभी भी ऐसे पूरा हाइवे खाली नहीं देखा था जैसा उस दिन था अब तो मुझे भी लगने लगा था की मुझे वहाँ रुक जाना चाहिए था पर अब मैं रुक भी नहीं सकता था क्यूंकि मेरे साथ मेरा हेल्पर भी था और मैं नहीं चाहता था की उसे पता चले की मैं भी अब थोड़ा थोड़ा डरने लगा हूँ इसलिए मैं लगातार ट्रक को चला रहा।
तभी उसके बाद मैंने जैसे ही फिर बाहर देखा तो एकदम से सब उल्टा हो गया और मेरा सर सीधा ट्रक की छत में जाकर लगा। मतलब बाहर का सब दिस्य उल्टा दिख रहा था यह देखकर मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था की यह क्या हुआ तभी सुमित ने मुझसे कहा - उस्ताद अपना ट्रक पलट गया हैं - पर मैं यही सोच रहा था की यह कैसे हो सकता हैं क्यूंकि हमारा ट्रक तो बिलकुल सही से चल रहा था और ना ही हमारे ट्रक का कोई एक्सीडेंट हुआ था।
यही सब सोचते हुए में और सुमित किसी तरह ट्रक से बाहर निकले तो हमारी आँखे फटी की फटी रह गई और मुझे तो अपनी आँखो पर विश्वास नहीं हो रहा था क्यूंकि हमारा ट्रक बिलकुल उल्टा हुआ रखा था ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने हमारे ट्रक को उठा कर उल्टा कर के रख दिया हो। क्यूंकि हमारे ट्रक में जो ईटे लोड थी वो भी बिलकुल वैसी की वैसी रखी हुई थी और ना ही हमारे ट्रक में कोई निशान आया था इसलिए मैंने कहा था की किसी ने ट्रक को उठा कर उलट कर रख दिया हो। मैं अपने ट्रक को खड़े खड़े देख ही रहा था तभी सुमित ने मुझसे कहा - उस्ताद वो देखो -
जिस ओर सुमित ने देखने को बोला था मैंने जैसे ही उस तरफ देखा तो मुझे समझ में आया गया था की वो सब हमें रुकने के लिए क्यों बोल रहे थे। क्यूंकि मैंने देखा हमारा ट्रक कही और नहीं बल्कि उसी बरगद के पेड़ के सामने पल्टा हुआ था। उसके बाद हमें वहाँ तो कोई दिख नहीं रहा था इसलिए मैंने और सुमित ने ट्रक से अपना बिस्तर निकला और पास में जो दुकाने बनी हुई थी उनके बाहर जाकर लेट गए। हम लेटे हुए ही थे तभी किसी ने हमें अपने हाथो से हिला कर उठा दिया।
और जैसे ही मैंने आँख खोल कर देखा तो हमारे सामने चार पाँच लोग खड़े थे और उन्ही में से एक आदमी ने हमें कहा - भैया आप ठीक तो हैं हम पास के ही गाँव के हैं हमें पता चला था की कोई ट्रक रात के 12 बजे के बाद भी यहाँ से जा रहा हैं इसलिए एक बजने के तुरंत बाद हम यहाँ आ गए की किसी को मदद की जरूरत तो नहीं हैं और जैसे ही हम यहाँ आए तो देखा आपका ट्रक पल्टा हुआ हैं पर ट्रक मैं कोई नहीं था तभी हमने आपको यहाँ लेटे हुए देखा और एक आप तो किस्मत वाले हैं जो आप बच गए क्यूंकि जल्दी से कोई यहाँ नहीं बचता -
मैं और सुमित वहाँ बैठे बैठे बस उनकी बाते सुन रहे थे और उनकी बाते सुनकर बस यही लग रहा था जरूर कोई सा अच्छा काम करा होगा तभी हम बचे पर उस समय वो अच्छा काम तो याद नहीं आ रहा था जिसकी वजह से हम बचे थे।
तभी उस गाँव के उसी आदमी ने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा - इस एक किलोमीटर में अंदर अंदर में कहते हैं कोई शक्ति रहती हैं और रात के 12 बजे के बाद उसके बच्चे सड़क पर खेलने को आते हैं इसलिए वो शक्ति वहाँ कोई भी गाड़िया आने नहीं देती। और 1 बजे के बाद उनके बच्चे जब खेल कर चले जाते हैं तब कोई भी वहाँ आ सकता हैं। उस रात मैंने और सुमित ने किसी तरह कटी और अगली सुबह क्रेन बुला कर ट्रक को सीधा करा और तब उसके बाद हम वापस देहरादून आए।