पिकनिक
नमस्कार मेरा नाम विनोद है और आज आपको जो घटना बताने जा रहा हूँ वो उस समय की बात हैं जब मैं 11वीं क्लास में पढ़ता था। गर्मियों की छुट्टियां पड़ी हुई थी इसलिए हम सभी दोस्त छुट्टियां मनाने के लिए हिमाचल के मनाली गए हुए थे। मेरे साथ मेरे दोस्त विवेक,अनिरुद्ध और दिनेश हम चारों एक साथ अक्सर घूमने जाया करते थे हम चारों के घर के लोग भी हमें एक साथ घूमने से कहीं मना नहीं करते थे।
यह बात है 2017 - 11 अप्रैल हमने दिल्ली से बस पकड़ी और हम शिमला होते हुए मनाली जाना था इसलिए हम ने टाइम काटने के लिए आपने फ़ोन में हिन्दी स्टोरी माय वेबसाइट पर कहानियाँ पढ़ने लगे और देखते ही देखते हम मनाली पहुंच गए। हम लोगों ने वहाँ पर हॉटल में कमरे लिए और सामान वगैरह रखा हम लोगों ने यह सोचा था कि हम लगभग 1 हफ्ते तक कुल्लू मनाली घूमेंगे हम लोग दिन में टैक्सी कर के घूमने वाले थे और रात में वापस इसी हॉटल में रुकने का प्लान था।
अगले दिन सुबह हम लोगों ने एक टैक्सी बुक करी और उससे कहा कि - हमें आज पूरा दिन एक ऐसी जगह पर जाना है जहाँ सिर्फ जंगल ही जंगल हो तुम ऐसा करो हमें यहाँ के सबसे बड़े जंगल में लेकर चलो - फिर टैक्सी ड्राइवर ने थोड़ा मुस्कुराते हुए कहा - भाई साहब यह मनाली है यहाँ तो हर जगह ही जंगल है चलो फिर भी मैं आपको यहाँ के सबसे बड़े जंगल में घुमाने ले चलता हूँ - फिर उसके बाद हम चारों बैठ गए गाड़ी में और ड्राइवर ने लगभग हॉटल से 20 किलोमीटर दूर गाड़ी ले जाकर एक खतरनाक और भयानक से दिखने वाले जंगल के पास गाड़ी खड़ी कर दी।
वहाँ पहुंचते ही ड्राइवर ने हमसे कहा - भैया आप लोग अब यहाँ फोटो खींचो या जो भी करना है करो लेकिन ज्यादा जंगल के अंदर तक मत जाना क्योंकि जंगल बहुत बड़ा है रास्ता ढूंढने में दिक्कत भी हो सकती है वापसी के समय और लोग कहते हैं कि यह जंगल ज्यादा घूमने लायक भी नहीं है यह अक्सर लोग बहुत कम ही आते हैं - फिर उसके बाद मैंने और मेरे सभी दोस्तों ने गाड़ी से अपना वो सामान निकाला जो हम पिकनिक मनाने के लिए लेकर आए थे। उसके बाद मैंने ड्राइवर कहा - भैया आप भी चलो हमारे साथ -
पर ड्राइवर ने साफ मना कर दिया उसने ने कहा - नहीं तुम लोग जाओ क्योंकि अंदर गाड़ी जाने की जगह नहीं है और गाड़ी ऐसे बाहर नहीं छोड़ सकते मैं गाड़ी मैं ही हूँ लेकिन तुम लोग शाम तक जल्दी आ जाना ज्यादा अंधेरा मत करना - ड्राइवर ने इतना कहा और मैं और मेरे तीनो दोस्त हम उस जंगल के अंदर जाने लगे। जंगल देखने में बहुत अच्छा लग रहा था बड़े-बड़े पेड़ चारों तरफ विचित्र विचित्र किस्म के पेड़ नजर आ रहे थे हमको बहुत अच्छा लग रहा था। इस जंगल में आकर हमने सोचा थोड़ा और अंदर तक जाएंगे वहीं पर बैठकर थोड़ा खा पीकर आगे घूमेंगे।
खाने पीने के लिए हम सामान लेकर ही आए थे लेकिन हम चारों बात करते-करते लगातार अंदर की तरफ चले जा रहे थे। विवेक और दिनेश आगे आगे चल रहे थे और वीडियो बना रहे थे और फोटो खींच रहे थे मानो इन यादों को कैमरे में कैद कर के ही मानेंग। इस बीच मैंने टाइम देखा तो घड़ी में दोपहर के 2:00 बज गए थे और ड्राइवर ने हमें 12:00 बजे ही इस जंगल मैं उतार दिया था यानी हम लोगों को चलते चलते अब 2 घंटे बीत चुके थे।
लेकिन हम लगातार अभी भी चल ही रहे थे तभी अनिरुद्ध ने कहा - यार भूख लगी है अब कहीं बैठकर थोड़ा खा लेते हैं और थोड़ी देर बैठेंगे फिर घूमेंगे - अनिरुद्ध की बात सुनकर मैंने उन दोनों को आवाज लगाई और कहा -अरे भाइयो यहीं बैठ जाते हैं थोड़ा खा पीकर आराम कर के चलेंगे - तब फिर विवेक और दिनेश वापस हमारे पास आए और हम चारों वही बैठकर अपना खाना खा रहे थे और इधर उधर की बातें भी कर रहे थे। मजाक मस्ती चल ही रही थी हम लोगों ने लगभग 1 घंटे तक आराम किया। फिर हमने सोचा अब थोड़ा और आगे घूमते हैं फिर वापस चले जायेंगे।
तो हम फिर जंगल के आगे की तरफ चल दिए सच बताऊं तो मुझे लग रहा था हम जहाँ से होकर आए हैं उधर कैसे जाएंगे क्योंकि रास्ता तो कुछ समझ आ नहीं रहा था लेकिन हम बस चले जा रहे थे। फिर उसके बाद हमने सोचा अब जंगल में काफी दूर तक आ गए हैं और अब हमने बहुत घूम लिया है और हमको सही समय पर बाहर भी निकलना है क्योंकि टैक्सी ड्राइवर हमारा इंतजार कर रहा है। अब घड़ी में लगभग 5:00 बज चुके थे यानी आज हम लगभग 5 घंटे से इस जंगल के अंदर घूम रहे हैं।
उसके बाद हम चारों वापस तो चल दिए पर अबकी बार हम बहुत तेजी-तेजी से चल रहे थे। क्योंकि हम 5 घंटे से इसके अंदर घूम रहे थे तो हम को बाहर निकलने में कितना टाइम लगेगा यही सोच रहे थे। देखते-देखते अब अंधेरा भी होने लगा था अब जंगल अंधेरे में बहुत भयानक लग रहा था जितना खूबसूरत जंगल दिन में दिखाई दे रहा था उतना ही डरावना और खतरनाक अब अंधेरे में दिख रहा था। और जंगल में अब चारों तरफ से बहुत भयानक किशन की आवाज आना शुरू हो गई तभी मैंने घड़ी में टाइम देखा तो लगभग 7:00 बज गए थे।
2 घंटे हो गए थे हमें उस जंगल से वापस निकलते हुए पर हम जंगल में कहाँ है हमें कुछ नहीं पता और ऊपर से हम उस ड्राइवर को फोन कर के भी नहीं बता सकते थे क्योंकि यहाँ नेटवर्क बिल्कुल नहीं आ रहे थे। और हम यही सोच रहे थे पता नहीं ड्राइवर अभी भी बाहर होगा या नहीं क्योंकि हमने उनको कहा था हम 5:00 बजे से पहले बाहर निकल पाएंगे। और अब तो अंधेरा बहुत ज्यादा हो चुका था सच बताऊ तो मुझे बहुत डर भी लगने लगा था। पर तभी हमको ऐसा लगा कि हमारे बगल से कोई बहुत तेज से भागता हुआ जा रहा है उसके कदमों की आवाज बहुत तेज-तेज आ रही थी।
लेकिन हमको वहाँ कोई दिखाई नहीं दे रहा था आवाज सुनकर हम चारों थोड़ी देर वही रुक गए और उस आवाज को सुन को ध्यान से सुनने लगे आवाज लगातार तेजी से आगे की तरफ बढ़ती जा रही थी। लेकिन हम में से किसी को भी कोई दिखाई नहीं दे रहा था कि कौन भाग रहा है और किसके कदमों की आवाज आ रही है।लेकिन हमने वहाँ अब रुकना भी ठीक नहीं समझा हमने कहा हमें जल्द से जल्द बस बाहर निकलना है। हम चारों ने अपने मोबाइल फोन की फ्लैश लाइट जला रखी थी लेकिन अब रास्ता समझ में नहीं आ रहा था मतलब जिसका मुझे डर था वही हुआ।
हम रास्ता जंगल में भटक गए थे लेकिन हमने रुकना नहीं सही समझा हम आगे की तरफ लगातार जा रहे थे। तभी ऐसा लगा जैसे किसी के दर्द से तड़पने की आवाज आ रही हो ऐसा लग रहा था जैसे जंगल में कोई बहुत तेज-तेज चिख रहा है। अब ऐसा लग रहा था जैसे आवाज अब बढ़ती जा रही है और हमारा नाम लेकर कह रही है - विनोद मुझे क्यों छोड़ कर जा रहे हो दिनेश अरे अनिरुद्ध मुझे भी तो ले चलो - ऐसी आवाजें सुनकर हमारा खून अब जम चुका था लेकिन हमने भी तुरंत इस आवाज को पहचान लिया क्योंकि आवाज तो विवेक की थी लेकिन यह कैसे हो सकता है।
क्योंकि विवेक तो हमारे साथ ही था इसलिए अब हम चारों बहुत बुरी स्थिति में थे। लेकिन उस आवाज का रोना और तड़पने चीखने की आवाज बढ़ती जा रही थी। और वो बार-बार हमारा नाम लेकर कह रही थी - अरे मुझे छोड़ कर क्यों जा रहे हो - मानो ऐसा लग रहा था कि कोई किसी से रो-रो कर जान की भीख मांग रहा हैं क्यूंकि ऐसा लगता था जैसे कोई बहुत ज्यादा दर्द में है। लेकिन हम सबको आवाज विवेक की लग रही थी और विवेक हमारे साथ ही था अब ऐसा लग रहा था कि हम लोगों ने बहुत बड़ी गलती कर दी है इस जंगल में आकर क्योंकि ड्राइवर ने पहले ही बताया था कि ज्यादा अंदर तक मत जाना इस जंगल में ज्यादा अंदर जाना ठीक नहीं हैं।
पर हम अब इस जंगल में भटक चुके थे और हम चारों के होश उड़े हुए थे। हम बस भगवान से यही दुआ कर रहे थे की भगवान हम जल्द से जल्द इस जंगल से बाहर निकल जाए। अब हम ने सोचा की अब बिना रुके भागते रहना हैं इसके बाद हम ने आगे की ओर दौड़ना शुरू कर दिया। हम कह रहे थे कही तो निकलेंगे बाहर इसलिए हम चारों पूरी रफ्तार से भाग रहे थे। अब हम भाग भाग कर पूरी तरह से थक चुके थे अब हम से और भगा नहीं जा रहा था लेकिन ऐसा लग रहा था कि जान बचाना है तो हम को भागना ही होगा।
लेकिन कहाँ भागे हम क्युकी जंगल में चारों तरफ घनघोर अंधेरा और अजीब अजीब किस्म की आवाजें और ऊपर से विवेक के जैसी आवाज भी पूरे जंगल में गूंज रही थी। अब हम चारों की सांस भी फूल चुकी थी क्योंकि लगातार हम भाग रहे थे। तभी दिनेश नीचे बैठ गया और उसने कहा - भाई लोगों अब मैं नहीं भाग पाऊंगा - फिर अनिरुद्ध ने उसे कहा - जान बचानी है तो भागना ही होगा क्योंकि यहाँ बस खतरा ही खतरा नजर आ रहा है - मैं और विवेक एक साथ थे थोड़ा आगे थे हमने उन्हे पिछे देखा तो उन्हें आवाज दी तो उन दोनों ने कहा - भाई अब नहीं भागा जाता - थक हम दोनों भी गए थे।
तो हम सब एक साथ उसी घनघोर अंधेरे मैं अपनी फ्लैश लाइट जलाए हुए बैठ गए। लेकिन तभी ऐसा लगा हमारे सामने एक बड़े पेड़ से कोई चीज बड़ी तेजी से नीचे गिरी और उसकी आवाज बड़ी जोर से सुनाई दी। उस चीज पर दिनेश ने जैसे ही लाइट मारी तो दिनेश सहित हम तीनों के होश उड़ गया थे उसे देखकर अब मानो हमारी धड़कनें ही रुकी जाएंगी। क्यूंकि अभी तक हमको विवेक की रोती और बिलखती हुई आवाज सुनाई दे रही थी लेकिन अब हमारे सामने ही विवेक का कटा हुआ सर पड़ा था।
विवेक अपना कटा हुआ सर देखकर विवेक रोने लगता हैं और बोलता हैं - क्या है यह क्या हो रहा है हमारे साथ - जबान तो हमारे हलक से भी नहीं निकल रही थी। लेकिन हमने कहा - विवेक कोई हमारे साथ बहुत बड़ा छलावा कर रहा है ऐसा लगता है पर हमें इसके झांसे में आना नहीं है - अब हमने बिना समय गवाएं हुए वहाँ से किसी भी हालत में बस भागना ही सही समझा। लेकिन कहाँ जाँए क्योंकि हम लगभग 4 घंटे से जंगल से निकलने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन हमको समझ नहीं आ रहा था की हम किस तरफ से बाहर निकल पाएंगे।
इतनी देर में जो सब हमारे साथ हुआ तो उसके बाद से हमारी हालत तो वैसे ही बहुत नाजुक थी। लेकिन हमको अब अपनी जान बचानी है तो कुछ ना कुछ तो करना ही था। इतना बड़ा जंगल और ऊपर से अंधेरा यह जंगल दिन में हमे जितना प्यारा लग रहा था वो अब इस अंधेरी रात में हमें एक मौत का जंगल नजर आ रहा था । लेकिन अब हम क्या कर सकते थे क्योंकि ना ही हमारे फोन में नेटवर्क थे और ना कोई हमारी मदद के लिए इस जंगल में आ सकता है ड्राइवर तो बाहर है या नहीं यह भी नहीं कहा जा सकते।
तभी एक बार फिर से मैंने और मेरे साथियो ने सुना कि कोई फिर से चिख रहा है अभी थोड़ी देर तक चीखने चिल्लाने की आवाज बंद हो चुकी थी लेकिन अब फिर से आवाज गूंजने लगी थी। हमारे आस-पास ऐसा लग रहा था कि कोई फिर से दर्द से तड़प रहा है अब आवाज सुनकर मेरे पैरों के नीचे से मानो जमीन निकल गई हो क्योंकि अभी तक तो विवेक की आवाज आ रही थी। पर अब हम चारों ने सुना की आवाज दिनेश की थी और दिनेश जैसी आने वाली आवाज भी बार बार यही कह रही थी - अरे मुझे लेकर चलो भाई लोगों मुझे क्यों छोड़ कर जा रहे हो -
और ऐसा लग रहा था जैसे वो रो रहा था और तड़प रहा था पर दिनेश भी हमारे साथ ही था। यह आखिर कैसे हो सकता है और हम मन ही मन भगवान से कह रहे थे भगवान आज हम कहाँ फंस गए। लेकिन अब हम भाग नहीं रहे थे क्योंकि हम पहले से ही भाग-भाग कर थक चुके थे। इसलिए अब हम बस चल रहे थे और लगातार चल रहे थे लेकिन अब वो आवाज जो दिनेश की जैसी लग रही थी वो अब ऐसा लग रहा था जंगल के आगे से भी आ रही है और पीछे से भी।
दोस्तों आज मैं आपको अपनी यह कहानी बता तो रहा हूँ लेकिन सच बताऊं तो उस दिन ऐसा लग रहा था बस आज हमारा जिंदगी का आखरी दिन है। तभी हम को एक बड़ा झटका और लगा क्योंकि दिनेश और अनिरुद्ध थोड़ा पीछे चल रहे थे और मैं और विवेक थोड़ा सा आगे थे। तभी मेरे फोन की लाइट सामने किसी चीज पर पड़ी फिर थोड़ा ध्यान से देखा तो सामने अब की बार दिनेश का कटा हुआ सिर रखा था। उसको देखकर ऐसा लग रहा था कि अभी अभी कटा हो क्योंकि खून साफ साफ बहता हुआ दिख रहा था। अब हमारी हालत ऐसी थी कि हम अब कुछ समझ नहीं पा रहे थे की कहाँ जाएं पीछे लौट नहीं सकते थे क्यूंकि आगे से ही रास्ता हो सकता था बाहर निकलने का।
लेकिन हम चारों ने इतनी देर से इतना सब देख लिया था इसलिए हम रुके तो नहीं और हम सब भगवान का शुक्र मना रहे थे कि हम चारो अभी ठीक थे और चारों साथ में ही है। लेकिन इस बार भी जब से हमने दिनेश के जैसा कटा हुआ सिर देखा उसके बाद से ही फिर से चीखने चिल्लाने की आवाज बंद हो चुकी थी। हम चारों बस किसी तरह से निकलने की कोशिश में थे और घड़ी में अब समय 12:00 बज चुका था तभी मुझे और विवेक को ऐसा लगा किसी ने एकदम से हमें ढक्का देकर साइड कर दिया और अनिरुद्ध और दिनेश को भी ऐसा लग। और ऐसा लग रहा था कोई किसी को घसीटता हुआ हमारे बगल से लेकर जा रहा है। पर जो घसीट रहा था वो दिख नहीं रहा था। तभी मैंने उसपे लाइट मारी तो जो घसीट कर ले जा रहा था उसका चेहरा तो नहीं दिखा पर जिसको घसीट कर ले जाया जा रहा था उसका चेहरा साफ साफ दिखाई दिया।
उसका चेहरा बिल्कुल अनिरुद्ध जैसा था यकीन मानो आज मैं आपको यह बता रहा हूँ पर मेरी रूह अभी भी कांप रही है इस बात को बताते हुए। यह मेरे लिए यह एक सदमे से कम नहीं उस समय हम चारों ही सोच रहे थे भगवान यह कोई गहरा सपना हो और अब हम बस नींद से जाग जाएं। अब ऐसा लग रहा था जैसे अनिरुद्ध तड़पता हुआ कह रहा है - बचाओ मुझे विनोद बचाओ विवेक बचाओ मुझे - वो हम तीनों का नाम बार-बार ले रहा था लेकिन अनिरुद्ध तो हमारे साथ था अब यह स्थिति बहुत नाजुक मोड़ पर थी। क्योंकि हम चारों ने एक के बाद एक ऐसी घटनाएं देखी पहले विवेक की तड़पने की आवाज फिर उस का कटा हुआ सिर का पेड़ से गिरना और उसके बाद दिनेश का कटा हुआ सिर हमें रास्ते में मिलना और अब अनिरुद्ध जैसा ही कोई घसीटते हुए ले जा रहा था।
ऐसा दृश्य दिखना यह तो अब हम चारों को पता चल चुका था कि इस जंगल में जो हो रहा है वो कोई ना कोई छलावा हैं अब हम यही सोच रहे थे की पता नहीं हम बच कर जा पाएंगे या नहीं। लेकिन हम वहाँ रुके नहीं हमने कहा मरेंगे या फिर निकलेंगे यहां से। तभी ऐसा लगा कि जंगल में एक तूफान सा उठने लगा अक्सर जंगल में पेड़ पौधों की आवाज आती ही रहती थी लेकिन उस समय ऐसा लग रहा था कि तूफान बिल्कुल हमारे तरफ से होकर गुजर रहा है और उस समय तूफान की आवाज बहुत तेज सी लग रही थी। अंधेरी रात थी और हमने आपने आपने हाथों में फैलेश लाइट ले रखी थी लेकिन तभी वहाँ पुरे में धूल धूल सी होने लगी।
और तभी ऐसा लगा कि किसी ने मुझे धक्का दे दिया और मैं नीचे की तरफ खाई में गिरता जा रहा था। मुझे साफ साफ नजर आ रहा था कि मैं नीचे की तरफ गिर रहा हूँ और चीख रहा हूँ। पर एकदम से सब बंद हो गया मैं शायद उस खाई में गिर कर बेहोश हो गया होंगा क्योंकि मैं खाई में बहुत नीचे गिरा था। तभी ऐसा लगा मुझे किसी ने नींद से जगाया और बार बार यह कह रहा था - विनोद उठो उठो - मेरी आंखें खुली तो मैं एक चट्टान के नीचे दबा हुआ था। और मेरे पास विवेक खड़ा था तभी विवेक ने मुझे बताया - विनोद तुम ऊपर से नीचे गिर गए थे -
फिर मैंने उसकी बात सुनकर कहा - वह दोनों कहाँ है - विवेक ने मुझे बताते हुए कहा - अनिरुद्ध और दिनेश बाहर टैक्सी में बैठे हैं रास्ता हमको मिल गया है हम रास्ते के करीब ही थे कि तुम नीचे गिर गए - मैं भगवान से बहुत शुक्र मना रहा था कि चलो कम से कम हमें रास्ता मिला और हम जंगल से बाहर निकल जाएंगे। तब विवेक ने मुझे थोड़ा संभाला और अपने साथ बाहर ले जाने लगा विवेक थोड़ा आगे चल रहा था और मैं उसके पीछे था।
जो जंगल हम रात भर भटक रहे थे अब उस जंगल से हम बाहर निकल आए थे। सामने टैक्सी खड़ी थी विवेक ने बताया अनिरुद्ध और दिनेश ड्राइवर के साथ अंदर है मैं तुरंत भागता हुआ टैक्सी के पास गया और शीशे में हाथ मारने लगा। ड्राइवर ने खिड़की खोली ड्राइवर अंदर ही सो रहा था और नींद में ही बोला - भैया ऐसा मत करा करो कल दोपहर 12:00 बजे से आ रखे हैं और अब रात के 2:00 बज गए हैं मैंने पहले ही कहा था कि जंगल के ज्यादा अंदर मत जाना इतने अंदर क्यों गए थे मैं अभी तक घर नहीं गया बताओ अभी तक आप लोगों के चक्कर से -
बिना रुके ही ड्राइवर अपनी बात बोल रहा था और तभी उसने मुझे कहा - बाकी तीन लोग कहाँ है अब मैं नहीं रुकूंगा - फिर मैंने कहा - दो जने अंदर है और विवेक मेरे पीछे है - ड्राइवर ने मुझे हैरानी भरी नजरों से देखते हुए कहा - पागल मत बनाओ एक तो तुम्हारे चक्कर से मैं रात भर बाहर गाड़ी में बैठा रहा कहाँ है वो तीनों - ड्राइवर की बात सुनकर मैंने गाड़ी के अंदर देखा तो गाड़ी में कोई नहीं था मैं फिर तुरंत पीछे देखा तो विवेक भी पीछे नहीं था। मैंने ड्राइवर से कहा - अभी तो मेरे साथ आया था तुमने देखा क्या जो मेरे पीछे था वो कहाँ गया वो और पहले से दो लोग आए थे वो कहाँ गए -
ड्राइवर ने मेरी बात सुनकर कहा - भाई रात में तुमने ज्यादा तो नहीं पी ली शराब वगैरह - लेकिन ड्राइवर जवाब सुनकर अब मैं घबरा गया था। क्योंकि ना ही विवेक था मेरे पीछे और ना अनिरुद्ध और दिनेश गाड़ी में थे। उसके बाद मैंने ड्राइवर को अपनी सारी बात बताना शुरू करी मेरी सारी बात सुनने के बाद उसने कहा - भैया मैंने पहले ही कहा था आपको यह जंगल ज्यादा ठीक नहीं है बाहर ही फोटो वगैरा खींच कर जो करना है कर लो ज्यादा अंदर मत जाना पर आप लोगों ने मेरी बात नहीं सुनी अब चलो यहाँ से - फिर मैंने ड्राइवर को कहा - नहीं मेरे तीन दोस्त है यहाँ उन्हें तो ऐसे छोड़कर मैं नहीं जा सकता -
मेरी बात सुनकर ड्राइवर मुझे समझाते हुए कहा - अगर अब हम दोनों यहां से नहीं गए तो शायद हम भी जिन्दा ना बच पाए इसलिए चलो - ड्राइवर ने उसके बाद मेरी कोई बात नहीं सुनी और मुझे जबरदस्ती गाड़ी में बैठा दिया। और उसने कहा - अब नहीं रुकेंगे उस रात के अंधेरे में - उसके बाद ड्राइवर ने गाड़ी ले जाकर तुरंत मुझे हॉटल पर छोड़ा लेकिन मैं उस समय क्या करता मेरे तीनों साथी मेरे साथ नहीं थे। फिर उसके बाद मैंने सुबह सबसे पहले जाकर पास के ही पुलिस स्टेशन पर सारी खबर दी और उनको सब कुछ बताया।
मेरे सर पर पहले से ही चोट लगी हुई थी और मेरी स्थिति कुछ ज्यादा ठीक नहीं थी इसलिए मुझे पुलिस वालों ने पास के हॉस्पिटल में एडमिट करवा दिया। पर उसके बाद में पता चला कि उस जंगल में कई दिनों की तलाश के बाद तीन लाशें मिली। दो के तो सर कटे हुए थे और एक की तीन टुकड़ों में पड़ी हुई लाश मिली थी। उसके बाद पुलिस वालों ने मुझे उनको देखने के लिए बुलवाया उसको देखकर अब मेरी आंखें फटी की फटी रह गई क्योंकि विवेक और दिनेश की सर कटी हुई लाश थी। और अनिरुद्ध की लाश तीन टुकड़ों में पड़ी हुई थी। आज मैं जिंदा तो हूँ लेकिन शायद मैं उसी दिन मर गया होता।
अब मुझे समझ में आया हम रात भर भटकते रहे थे और फिर अचानक से मैं कैसे जंगल से बाहर निकल आया क्यूंकि मेरे उस दोस्त ने मरने के बाद भी मुझे बचाकर बाहर निकाला था। अब उस दिन के बाद मैं बहुत ज्यादा सदमे में रहता हूँ दिल्ली के एक हॉस्पिटल में अभी भी मेरा इलाज चल रहा है मानसिक बीमार के तौर पर।
आज मैं आपको यह अपनी बात बता रहा हूँ तो मेरे सामने उस दिन का सारा दृश्य नजर आ रहा है। और शायद मैं इस घटना को अपनी पूरी जिंदगी में ना भूल पाउँगा और पता नहीं मैं इस सदमे से कभी बाहर निकलूंगा या नहीं।
