श्मशान घाट की डरावनी कहानी
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नमस्कार आज हम आपको एक ऐसे व्यक्ति की कहानी बताने जा रहे हैं। जो हर समय श्मशान घाट में अपनी सेवाएं देते रहते हैं यहां पर चिताओं को आग लगाना हो या फिर उसके बाद श्मशान घाट की साफ सफाई में इनका योगदान लगभग 32 साल से है। लेकिन उनके साथ एक ऐसी घटना घटी कि उस घटना ने अब उनकी पूरी जिंदगी बदल दी। अब आगे की कहानी मैं उनके ही शब्दों में जारी रखूँगा। नमस्कार मेरा नाम मदन लाल है और मैं हरिद्वार के श्मशान घाट में 32 सालों से काम कर रहा हूं मेरी आंखों के सामने यहां रोज लगभग सैकड़ों लाशें आती हैं। और मैं और मेरे साथ काम करने वाले सभी कर्मचारी एवं सहयोगी फिर हम रोज उन चिताओं को जलाते हैं।
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मैं भी अक्सर हर रोज लगभग 10 से 12 चीता चलाता हूं पर मेरे साथ 1 दिन कुछ ऐसा हुआ कि मैं आज उस दिन को याद कर के सहम जाता हूं। अक्सर हम लोग चिताओं में आग लगाते है और जब चीता चल जाती है तो सभी चिताओं की राख एक साथ सफाई करते समय झाड़ू से गंगा में गिरा दिया करते हैं। पर एक दिन श्मशान घाट में एक डेड बॉडी को लेकर उसके परिजन आए मैंने और मेरे साथी समीर ने उनके परिजनों को कहा लकड़ी ले आओ और और लाश को गंगाजल से नैला कर इधर रख दो। उस डेड बॉडी के सभी परिजन लकड़ी लेने गए हुए थे बस उनके साथ का एक ही व्यक्ति उस लाश के साथ था।
बात ही बात में मैंने उसे पूछा - यह किसकी बॉडी है - उसके साथ जो व्यक्ति था उसने कहा - यह मेरी मौसी है - वह व्यक्ति अपनी बात जारी रखते हुए कहने लगा इनकी शादी को अभी 1 साल भी नहीं हुआ था मैंने पूछा कि अचानक कुछ तबीयत तबीयत खराब थी क्या उस व्यक्ति ने कहा - नहीं मौसी बिल्कुल ठीक थी कल रात अचानक ही उनकी मृत्यु हो गई पता नहीं क्या हुआ - हमारे लिए कोई बड़ी बात नहीं थी ऐसे दिन भर में सैकड़ों लोग आते हैं। तब तक उस लाश की परिजन लकड़ियां लेकर आ गए। उसके बाद हम देह संस्कार का कार्यक्रम शुरु कर रहे थे। मैं और समीर चिता के लिए लकड़ियां बिछा रहे थे उस महिला की ज्यादा उम्र तो रही नहीं होगी इसलिए पतले दुबले शरीर की थी और वजन भी बहुत कम था और लकड़ियां भी कम ही लगानी पड़ रही थी। हम लोगों ने लकड़ियां बिछाई और उनके परिजनों को कहा तुम इस लाश को अब चिता पर लेटा दो उन लोगों ने वैसा ही किया चार पांच लोगों ने उठाकर लाश चिता पर रखी।
तभी ऊपर से थोड़ा कपड़ा मुंह के पास से उड़ गया तो मेरी नजर उस डेड बॉडी पर पड़ी। और मैं देखता ही रह गया क्योंकि उस महिला की आंखें ऐसा लग रहा था खुल रही है और बंद हो रही हैं। मानो ऐसा लग रहा था की आंखें लप लप हो रही हो और ऐसा लग रहा था कि शायद आंखों से आंसू भी निकल रहे हैं। मैं यही सोच रहा था की ऐसा कैसे हो सकता है क्योंकि आज तक हमने कभी ऐसा दृश्य नहीं देखा था। अब उनके परिवार वाले अंतिम संस्कार करने के लिए तैयार थे और पंडित जी ने दाह संस्कार का क्रिया कर्म शुरू कर दिया था ।
तभी मैं समीर को थोड़ा किनारे लेकर गया और मैंने कहा - समीर इस डेड बॉडी में जान है क्योंकि मैंने खुद देखा है पलके झपक रही हैं और ऐसा लग रहा था कि जैसे सांसे चल रही हो - समीर ने मेरी बात सुनकर कहा - मदन तू पागल तो नहीं हो गया कैसी बात कर रहा है यार मुर्दा है वह मुर्दे में भी कभी सांसे चल सकती है क्या यार हम रोज चिता जलाते हैं आज तक तो ऐसा कुछ नहीं हुआ तेरा दिमाग खराब तो नहीं है चल जल्दी अब उस चिता को जलाना है। - मैंने उस समय तो समीर को कहा - हां चलो - उसके बाद मैं अपने आप को समझा रहा था क्या पता यह मेरा कोई वैहम हो। पर ऐसा कैसे हो सकता है वैहम तो हो ही नहीं सकता क्योंकि 30 साल से ज्यादा जिंदगी मेरी बीत गई इसी श्मशान घाट में चिता को जलाते हुए।
लेकिन आज तक तो कभी वैहम नहीं हुआ फिर आज कैसे हो रहा है। पर फिर भी मैं समीर के साथ चला गया उस चिता को जलाने के लिए। उसके परिवार वालों ने उसको आग दी और हमने फिर जलाना शुरू कर दिया। लेकिन अब तक जिसको मैं अपना वैहम समझाने की कोशिश कर रहा था। पर तभी ऐसा लगने लगा कि उस चिता से रोने और तड़पने की आवाज आ रही हैं। मैंने तुरंत समीर से कहा - समीर अब देखो मैं क्या कह रहा था इसके के अंदर जान हैं जिंदा जला दी तुम लोगों ने एक महिला - मैं जोर जोर से बोल रहा था वहां उस डेड बॉडी के परिवार के सदस्य मौजूद थे और साथी साथ श्मशान घाट में बहुत से लोग थे।
सब मेरी बात सुनकर चौक गए और मुझे बड़ी विचित्र निगाहों से देखने लग गए। उसके परिवार के लोग तो वैसे ही दुखी थे इसलिए वो मुझे कहने लगे - अरे क्या हो गया आपको। आपको शर्म नहीं आती ऐसा मजाक करते हुए हम वैसे ही इतना परेशान हैं और आप हमारी भावनाओं का मजाक उड़ा रहे हैं हम पर ऐसे ही दुखों का पहाड़ फूट पड़ा है पर आप ऐसी जगह पर ऐसा गंदा मजाक कर रहे हो - उनके परिवार के लोग मुझे पागल या नशेड़ी बता रहे थे। लेकिन सच बताऊं तो मुझे उस महिला की आवाज उस समय बहुत तेजी तेजी से सुनाई दे रही थी। ऐसा लग रहा था मानो वो दर्द से करहा रही हो उसके बाद मेरे साथ के लोगों ने और समीर ने मुझे वहां से दूर कर दिया।
और समीर ने मुझसे आकर कहा - मदन तू पागल हो गया क्या कैसी बात कर रहा है हम भी तो कर रहे हैं काम हमें क्यों नहीं सुनाई दे रही है कोई आवाज हमें क्यों नहीं दिखा कि वो पलके झुका रही थी और उसके आँख आंसू बह रहे तो तुझे ही क्यों दिखाई दिया। यार तू तो शराब भी नहीं पीता ऐसा क्या हुआ तेरे साथ - समीर अपनी बात जारी रखते हुए बोलता हैं - तभी कहता हूं घर जाकर रात को खाना खाकर तो सो जाया कर जल्दी। लेकिन तुम लोग फिल्में देखते हो ना रात भर कोई दिखेगी तुने फिल्म वगैरा या सपना देखा होगा कोई -समीर की बाते सुनकर अब मेरी आंखों से आंसू आने लगे क्यूंकि 30 साल से ज्यादा का समय हो चुका था इस शमशान घाट में आज तक मेरे साथ ऐसा कभी नहीं हुआ।
इसलिए मैंने ने समीर को समझाते हुए कह - ना मैंने कोई सपना देखा और ना कोई ऐसी फिल्म देखी पर मैं आज सच कह रहा हूं वह महिला जिंदा थी जिस को जलाया जा रहा था मैंने अपनी आंखों से देखा है और अपने कानों से उसकी आवाज सुनी थी - पर समीर ने मुझे कहा - सच में भाई तू पागल हो गया है मुझको लगता है तुझे आराम की जरूरत है अब तू छुट्टी मांग कर गांव चले जा। अपने कुछ दिन घर वालों के साथ रहे और जब तुझे सही लगे तब तू काम पर वापस लौटना और फालतू की बातें मत कर अगर तुझे चलना है चिता जलवा ने तो चल क्योंकि मैं भी तेरे साथ यहां पर हूं तो चीता कौन चलाएगा - समीर की बात सुनकर मैंने कहा - समीर यह चीता मैं नहीं जलवा पाऊंगा तू जा - उसके समीर वहाँ से गया और श्मशान घाट के ही एक दूसरे व्यक्ति के साथ मिलकर उसने उस चिता को जलाया।
चिता जली अंतिम संस्कार पूरा हुआ और उस डेड बॉडी के परिवार के सभी लोग गंगा स्नान कर के अपने घर जा चुके थे। लगभग शाम के 7:30 बज रहे होंगे मैं अभी भी एकांत में बैठा हुआ था तभी मेरे पास समीर और उस चिता का अंतिम संस्कार करवा रहे पंडित जी मेरे पास आए। पंडित जी ने मुझसे कहा -हां भाई अब उतर गया तेरे ऊपर उस महिला की चिता का बुखार कि नहीं उस समय तू वहाँ पागलों जैसी बात कर रहा था। तू इतने सालों से यहां चिता जलाता है क्या आज तक कभी ऐसा हुआ कि कोई मुर्दा चिता के अंदर से चीखने चिल्लाने लगे। वह सब लोग तेरा मजाक उड़ा रहे थे या फिर तुझे पागल कहना चाह रहे थे - पंडित जी की बात सुनकर मैंने कहा - मैंने जो देखा है वह बिल्कुल सही है क्योंकि मुझे उसकी आंखों से आंसू बहते हुए दिखे थे और मैंने देखा कि जब उसको चिता पर लिटाया जा रहा था तब उस महिला की पलके झपक रही थी - मैं मानने को तैयार नहीं था कि वो मेरा कोई वैहम है।
तब पंडित जी ने मेरी बात को थोड़ा गंभीरता से लें और कहां - ना तू उस महिला को जानता है ना तूने कभी उसे देखा तो फिर तेरे साथ ऐसा क्यों हो सकता है - तब मैंने पंडित जी से कहा - यही तो बताना चाह रहा हूं मैं मुझे ही क्यों उसकी चीखने की और रोने की आवाज सुनाई दी और आप मैसे किसी को नहीं - पंडित जी ने फिर मुझे कह - फिर एक काम करना तुम अब 15 या 20 दिन की छुट्टी लेकर अपने घर चले जाओ तुमने काफी समय से छुट्टी भी नहीं ली और लगातार काम कर रहे हो। थोड़ा आराम करना फिर काम पर वापस आना चलो अब साफ सफाई करवा दो अब टाइम खत्म हो गया है - मैंने पंडित जी कहा - हां ठीक है - क्यूंकि श्मशान घाट में 8:00 बजे के बाद कोई भी चिता नहीं चलाई जाती 8:00 बजे सब साफ सफाई करके घर चले जाते हैं। और हम लोगो को सुबह 7:00 बजे यहां वापस आना होता है। उसके बाद हम काम पूरा करके अपने अपने घर चले गए।
मेरे घर में सिर्फ अकेला ही रहता था बाकी सब परिवार के लोग हमारे गांव में रहते हैं। आज घर आकर मैंने नहाया धोया और सीधा बिस्तर में जाकर बैठ गया। अक्सर मैं घर आकर पहले खाना बनाता था फिर खाना खाकर घर वालों से फोन पर थोड़ी बातचीत कर के लेटता था। पर आज मेरे साथ दिन में जो घटना घटी थी उसकी वजह से मेरा मन आज थोड़ा बेचैन था। इसलिए मैं आज श्मशान घाट के ढाबे पर ही खाना खाकर आया था और घर आकर नाह कर बिस्तर पर लेट गया। अभी बिस्तर पर लेटे हुए बस मैं यही सोच रहा था कि आज यह क्या हुआ मेरे साथ। मैं अपने आप को यही कह रहा था कि वह जिंदा थी पर अगर वह जिन्दा थी तो सिर्फ मुझे ही क्यों पता चल रहा था। वहाँ तो बाकी बहुत सारे लोग थे उन्हें क्यों नहीं कुछ भी पता चला सिर्फ मुझे ही क्यों रोने की आवाज आ रही थी बाकी को क्यों नहीं आई।
इसी उधेड़बुन में मैं लेटे-लेटे मेरी आंखें लग गई पर अचानक मेरी आंखें खुली और मैं उठा। क्यूंकि मुझे ऐसा लगा कि कोई दरवाजा खटखटा रहा है। मेरा एक ही कमरा है जो मैंने किराए पर ले रखा था। मैं नींद में ही उठा मैंने सोचा कि क्या पता किराएदार में सी कोई होगा। कोई जरूरत हो किसी काम की यही सब सोचते हुए मैंने दरवाजा खोला। लेकिन मुझे बाहर कोई दिखाई नहीं दिया अंधेरा था मैंने इधर उधर देखा मुझे फिर कोई भी नजर नहीं आया मैंने बाहर की लाइट ऑन करी पर कोई होता तभी तो दिखता। मुझे लगा क्या पता ऐसे ही कोई होगा जो दरवाजे को खटखटा कर चला गया होगा। मैं जैसे ही वापस अंदर जा रहा था तब मुझे ऐसा लगा कि जैसे कोई मेरे पीछे खड़ा है। मैं तुरंत पीछे घुमा पर पिछे कोई नहीं था।
मैं दिन भर से वैसे ही परेशान था इसलिए मैं ज्यादा जा सोचते हुए जैसे ही दरवाजा बंद करा तो मुझे ऐसा लगा कि बाहर कोई चल रहा हो किसी के पायल की आवाज आ रही थी ऐसा लग रहा था कोई मेरे कमरे के दरवाजे पर ही खड़ा हो और इधर-उधर टहल रहा है। पायल और चूड़ियों की आवाज बड़ी तेज तेज से आ रही थी। मैंने तुरंत दरवाजा खोला और लाइट जलाई और जैसे ही बाहर देखा लेकिन बाहर कोई भी नहीं था। यह मेरा वैहम है क्या मैंने यही सोचा पर वह वैहम कैसे हो सकता है मैं अपने पूरे होशो हवास में खड़ा हूं।
मैं यही सब सोच रहा था की अब चाहे कोई भी हो मुझे क्या। गुस्से में मैं अंदर आ गया और मैंने अपना दरवाजा बंद कर दिया लाइट का बटन ऑफ करो और फिर जाकर अपने बिस्तर में लेट गया। लगभग 15 मिनट बाद फिर ऐसा लगा कि कोई दरवाजा बड़ी जोर जोर से खटखटा रहा है अबकी बार खटखटाने की आवाज बड़ी तेज तेज आ रही थी। और ऐसा लग रहा था कि कोई आवाज भी मार रहा है।
आवाज साफ-साफ समझ में तो नहीं आ रही थी लेकिन इतना था कि वह कह रही थी मदन दरवाजा खोलो मदन दरवाजा खोलो जल्दी। मैं उठा दरवाजे तक गया तो साफ लग रहा था कि बाहर कोई है और दरवाजा खटखटा कर मुझे आवाज मार रहा है मैंने सोचा अब तो पक्का मकान मालकिन ही होगी। इसलिए मैंने फिर तुरंत दरवाजा खोल दिया लेकिन मेरी आंखें फटी की फटी रह गई क्योंकि अभी भी बाहर कोई नहीं था। बाहर इस रात में पूरा सन्नाटा पड़ा हुआ था।
लेकिन फिर भी मैंने बगल के कमरे में मकान मालिक को आवाज मारी और दरवाजा खटखटाया उन्होंने दरवाजा खोला और नींद में कहा - क्या हुआ मदन - मैंने जवाब देते हुए कहा - आंटी आपने मुझे आवाज मारी थी क्या - आंटी ने कहा - नहीं तो मैं तो सो रही थी बाकी लोग भी घर में सो रहे हैं किसी ने नहीं बुलाया क्यों क्या हुआ - आंटी का जवाब सुनकर मैंने कहा - नहीं आंटी मुझे ऐसा लगा कि किसी ने आवाज मारी मुझे लगा कोई घर का होगा - आंटी ने फिर कहा - नहीं ऐसा कुछ नहीं है - ऐसा बोलकर आंटी चली गई अंदर और उन्होंने अपना दरवाजा बंद कर लिया। मैंने कहा हां ऐसा ही होगा क्या पता मैं भी अपने कमरे में आकर अपने दरवाजा बंद कर लिया।
और मैं भी फिर जाकर अपने बिस्तर में लेट गया। लगभग 7 या 8 मिनट ही हुए होंगे कि ऐसा लगा जैसे कमरे के अंदर ही कोई टहल रहा हो किसी के पायल की आवाज और चूड़ियों आ रही थी अब मैं थोड़ा शहंशाह गया। 32 सालों से जो मैं लाशों को जला रहा था मुझे कभी ऐसा डर नहीं लगा जैसा डर आज मुझे लग रहा था। मुझे ऐसा लग रहा था कि कोई महिला इस कमरे में है और इधर उधर टहल रही है। तभी मेरे मन में पता नहीं क्या आया और मैंने बोलना शुरू कर दिया। मैंने कहा - कौन हो तुम कौन हो पर ऐसा बोलने के बाद भी मुझे कोई जवाब नहीं मिला लेकिन थोड़ी देर के बाद पायल की आवाज और चूड़ियों की आवाज जो थी वो सब बंद हो गई।
उसके बाद मैं अपने बिस्तर पर ही लेटा हुआ था तभी मुझे ऐसा महसूस हुआ कि कोई मेरे बिस्तर पर मेरे बगल में लेट गया हो। मैंने कंबल ओड रखा था तभी मुझे ऐसा लगा किसी ने मेरा कंबल दूसरी तरफ खींच लिया। मैं एकदम झटके से उठा और मैंने अपना कंबल तुरंत हटाया लेकिन पलंग पर कोई नहीं था। मुझे लगा हो ना हो दिन वाली घटना का ही असर हो रहा है पर ऐसे ही करते करते पता नहीं कब रात में मेरी आंख लगी और मैं सो गया। लेकिन सुबह में उस दिन थोड़ा लेट से उठा अक्सर में सुबह 5:00 बजे उठ जाता था नाश्ता वगैरह बना कर खा पी कर फिर श्मशान घाट में अपने काम पर निकल जाता था।
लेकिन उस दिन मैं 8:00 बजे तक सोया रहा पर मुझे उस दिन काम पर तो जाना ही था इसलिए कोई ऐसी दिक्कत नहीं थी। क्यूंकि आज तो मुझे अपने गांव जाना है कल तक मैं सोच रहा था कि नहीं लोगों को कहने दो पर मैं तो काम पर आऊंगा। लेकिन आज मैंने भी सोच लिया कि अब मुझे गांव जाना है रात को जो कुछ भी हुआ मेरे साथ वह सब मुझे बहुत परेशान कर रहा था। इसलिए मैंने अपना थोड़ा सामान पैक करा और आंटी को कहा - आंटी मैं गांव जा रहा हूं - आंटी मेरी बात सुनकर हैरान थी कि अचानक मैं गांव क्यों जा रहा हूं।
इसलिए आंटी ने मुझसे कहा - मदन घर पर सब ठीक तो है क्या हुआ कोई दिक्कत है क्या - मैंने आंटी को जवाब देते हुए कहा - नहीं आंट मैंने छुट्टी ली है और कुछ दिनों के लिए मैं अपने घर जा रहा हूं - आंटी ने मुझे फिर कहा - इस बार तुमने बताया नहीं वैसे तो 1 हफ्ते पहले ही बता देते हो कि मैं जाने वाला हूं घर - मैंने कह - वो आंटी बस अचानक ही घर जाने का सोचा - इनता बोलकर मैं वहाँ से निकल गया। शाम के 6:00 बजे की ट्रेन थी। इसलिए मैंने सोचा थोड़ा जल्दी जाकर तत्काल टिकट ले लूंगा मैं घर से सही समय पर निकला और जाकर तत्काल का टिकट लिया और ट्रेन में बैठ गया। मुझे वाराणसी जाना था मैं ट्रेन में बैठा ही था और बाकी बहुत लोग थे ट्रेन में रात में मैंने देखा गेट के पास एक शादीशुदा नया जोड़ा होगा शायद।
वो गेट पास खड़े होकर आपस में बात चीत कर रहे थे। रिजर्वेशन डब्बा था इस वजह से सब अपनी अपनी सीट पर ही बैठे थे बस वही दो अपनी सीट छोड़कर गेट पर खड़े थे। ट्रेन में भीड़ भी काफी थी सभी सीट भरी हुई थी। पर तभी मैंने देखा कि वह दोनों आपस में बात करते करते कुछ जो बहस करने लगे। और अचानक उस लड़के ने अपने साथ खड़ी लड़की को एकदम से धक्का मार कर नीचे गिरा दिया। और वह लड़की की तेज तेज से चिल्लाने चीखने की आवाज काफी दूर तक आ रही थी और ट्रेन भी तेजी में चल रही थी। पर आस पास के लोग उस लड़के को कोई कुछ भी नहीं कह रहा था। पर मैंने जोर-जोर चिल्लाते हुए कह - इसने लड़की को नीचे फेंक दिया अरे कोई चैन खींचो ट्रेन की कोई इसे कुछ कहता क्यों नहीं इसने एक लड़की को नीचे फेंक दिया - लेकिन मेरी बात का किसी पर कोई असर नहीं हो रहा था।
और कोई भी उस लड़के को कुछ नहीं कह रहा था। पर मैंने सोचा अब नहीं अब मैं चैन खींच लूंगा मैं इन लोगों की तरह शांत नहीं बैठूंगा इस लड़के ने एक मासूम लड़की को नीचे फेंक दिया और सब मूकदर्शक बने देख रहे थे। मैंने कहा - लेकिन मैं चुपचाप नहीं बैठूंगा इस आदमी को इसके किए की सजा जरूर दिला कर रहूंगा मैं इसे पुलिस में पकड़ा कर ही दम लूंगा - पर तभी ऐसा लगा किसी ने मुझे हाथ से हिला कर उठा दिया मैं ट्रेन में बैठे बैठे सो गया था। मतलब मैं सपना देख रहा था और मेरे आगे टिकट चेकर खड़ा था टीटी ने मुझे कहा - टिकट दिखाओ - मैंने उसको टिकट दिखाया और अपना चेहरा रुमाल से पोछा क्योंकि मुझे बहुत पसीना आ रहा था। तो मेरी नजर गेट पर पड़ी पर बूगी का गेट बंद था और सभी सीट पर पैसेंजर बैठे हुए थे।
ऐसा लग रहा था बूगी में कोई भी सीट खाली नहीं है और मुझे वो शादीशुदा जोड़ा भी कहीं नहीं दिखा। उसके बाद मैं अपनी सीट पर बैठा रहा और ट्रेन अगले दिन वाराणसी स्टेशन पर रुकी। मैं ट्रेन से उतर कर सीधा बस स्टैंड पर गया क्योंकि हमें अपने घर जाने के लिए बस करनी पड़ती थी। बस वाला इंतजार कर रहा था सभी सवारियों का बस में सभी सवारी फुल हो गई और बस भी निकल गई। अभी हम कुछ ही आगे गए होंगे तभी मैंने देखा कि फुटपाथ पर चल रहे एक साथ एक लड़का और लड़की अचानक लड़के ने अपने साथ चल रही लड़की को धक्का दिया। और वो लड़की सीधा आकर रोड पर गिरी और उस पर जिस बस में हम बैठे थे वहीं बस चढ़ गई और लड़की की चीखें बड़ी जोर जोर से सुनाई दे रही थी। लेकिन ड्राइवर ने गाड़ी नहीं रोकी और ड्राइवर गाड़ी को लगातार चला रहा था।
तभी मैंने कहा - भैया गाड़ी रुको भैया रुको गाड़ी जल्दी वह रोड पर गिरी है बस जड़ गई एक लड़की पर - ड्राइवर ने तुरंत ब्रेक मारी और - क्या हुआ - मैंने उसको बताया - पीछे लड़की रोड पर गिरी थी जिस पर बस जड़ गई - पर सबने जब पिछे देखा तो पीछे ऐसा कुछ भी नहीं था। ड्राइवर और कंडक्टर ने मुझे बड़े गुस्से में कहा - भाई पागल हो गई क्या तू सुबह-सुबह शराब पी ली क्या फालतू की बकवास कर रहे हो अगर तुमको जाना है तो जाओ वरना उतर जाओ यहीं पर - ड्राइवर और कंडक्टर के साथ बस में और यात्री भी मुझ पर चिल्ला रहे थे - पागल हो क्या उल्टी-सीधी बातें कर रहे हो - पर मैंने किसी को कुछ नहीं कहा क्यूंकि अब मैं अपने आप से ही परेशान हो चुका था। क्योंकि मेरे साथ पता नहीं 2 दिन से क्या हो रहा था पहले श्मशान घाट में फिर घर पर फिर ट्रेन में और अब बस में।
कही पर बैठते ही ऐसा दिखना मैं अपने आप से ही लगातार सवाल कर रहा था। कि आखिर क्या हो रहा है यह। तभी जहां मुझे उतरना था उस जगह बस आई और कंडक्टर ने मुझे कहा - भैया उतर जाओ पर मुझे कंडक्टर की बात सुनाई नहीं दी सायद मैं नींद में था इसलिए कंडक्टर ने मुझे हाथो से हिलाया और कह - भैया आपका स्टॉप आ गया - इस बार मैंने कंडक्टर की बात सुन ली और कहा - हां अच्छा - उसके बाद मैं अपना सामान उठाया और बस से उतर गया। पास में ही हमारा गांव था इसलिए मैं पैदल ही निकल गया मैं पैदल चलते चलते बस वही सब बातें सोच रहा था जो सब घटना मेरे साथ दो-तीन दिन से घट रही थी।
यही सब सोचते हुए मैं अपने घर पहुंच गया घर में मेरे पिताजी मेरी माता मेरी पत्नी मेरे बच्चे सब मेरा इंतजार बाहर ही कर रहे थे। मैंने सब को देखा और तुरंत अपने पिताजी के पास जाकर उनसे लिपट कर रोने लगा मैं बड़ी तेज तेज से हिचकी लेकर रो रहा था। तब मेरे पिता समेत घर के सभी लोगों ने मुझे संभाला और मुझसे पूछा क्या हुआ मैंने अपने साथ घटी सारी घटना उन सभी को बता दी मेरे पिताजी ने कहा तुम नहा धो कर पहले खाना खा लो फिर थोड़ा आराम कर लो सब ठीक हो जाएगा। उसके बाद में नहा धोकर खाना पीना खाने के बाद में लेट गया और शाम को तब 5:00 बजे मेरी आंख खुली पूरा दिन में लेटा रहा था। शाम को मैंने अपने पूरे परिवार के साथ समय बिताया बात चीत करी सब से मिलकर बहुत अच्छा लग रहा था बड़े दिनों बाद में अपने परिवार के लोगों से मिल रहा था
और रात को खाना पीना खाकर सब सोने के लिए अपने अपने कमरे में चले गए मैं भी अपने कमरे में चला गया। थोड़ी देर में मेरी पत्नी भी आई हम लोगों ने काफी देर तक बात करी और फिर सो गए अचानक रात को मेरी आंखें खुली ऐसा लग रहा था। जैसे बाहर से कोई दरवाजा खटखटा रहा है मैं उठा और दरवाजा मैंने खोला और बाहर देखा तो मेरी पत्नी खड़ी मैंने उसे कहा - बाहर कैसे आए तुम अभी तो अंदर ही थी मेरे साथ ही लेटी हुई थी - पर मेरी पत्नी कुछ नहीं बोली और गांव में सड़क की तरफ भागने लगी मेरी पत्नी की पायल की आवाज बहुत तेज तेज खनक रही थी मैं भी चिल्लाता हुआ उसके पिछे पिछे भाग रहा था। और मैं बोल रहा था - रुको रुको क्या हुआ रुको - लेकिन मेरी पत्नी चीखते चिल्लाते हुए लगातार भाग रही थी।
मुझे कुछ नहीं समझ में आ रहा था कि मेरी पत्नी को आखिर क्या हुआ। मेरी पत्नी गांव में जंगल की तरफ भागने लगी और मैं भी उसके पीछे चिल्लाता हुआ तेज तेज भाग रहा था। तभी मुझे पीछे से आवाज आई मेरे पिताजी और मेरे परिवार के लोग मेरे को बुला रहे हैं वह मेरी तरफ भागते हुए आ रहे हैं। मैं वही खड़े होकर रोने लगा और मेरी पत्नी जंगल के अंदर जा चुकी थी। मेरे पिताजी ने तुरंत मुझे पकड़ा और कह - मदन क्या हुआ क्यों भाग रहे हो तुम - मैंने कहा - मेरी पत्नी का नाम नीतू है मैंने कहा - नीतू को पता नहीं क्या हुआ घर से निकलकर चिल्लाते हुए भाग रही है और जंगल की तरफ भाग गई।
मेरी बात सुनकर मेरे पिताजी ने कहा - पागल हो गई क्या तुम बेटा नीतू साथ में तो है हमारे और नीतू मेरे पीछे ही हैं - खड़ी थी मेरी पत्नी बच्चों के साथ वो मुझे पकड़कर रोने लगी और रोते हुए ही कह रही थी - क्या हो गया आपको आप अचानक क्यों घर से निकलकर भागने लगे - उसके बाद मुझे उस रात मुझे नींद नहीं आई। श्मशान घाट में काम करने वाला बंदा आज इस हालत में था सोच लो आप वो रात कैसे बीती और अगले दिन मेरे पिताजी मुझे एक तांत्रिक बाबा के पास लेकर गए। उन्होंने झाड़ फुख और पूजा वगेरा करी और मेरे से सब कुछ पूछा कि क्या हुआ था आपके साथ - मैंने शुरू से सारी घटना बाबा को बताई। बाबा ने मेरे गले में एक ताबीज बांधी और हाथों में मंत्र पढ़कर एक धागा बांध दिया। बाबा ने बताया कि उस लड़की की आत्मा तुम्हे कुछ बताना चाहती है।
शायद उसके साथ कुछ बुरा हुआ होगा। इसलिए वो तुम्हें बताना चाह रही है। बाबा की बात सुनकर मैंने कहा - बाबा मैं 32 साल से श्मशान घाट में चिता जला रहा हूं पर आज तक तो मेरे साथ ऐसा कभी नहीं हुआ और मैं तो उस महिला को जानता भी नहीं था और ना ही मैंने उसे कभी देखा था। बस मैंने श्मशान घाट में उसकी लाश देखी वो भी जलाते समय तो फिर ऐसा क्यों - तांत्रिक बाबा ने फिर मुझे बताया - आत्मा किसी एक को ढूंढ लेती हैं जो उसकी मदद कर सके। वो तुम्हारे जरिए अपनी मदद करवाना चाहती होगी शायद उसके साथ कुछ गलत हुआ होगा इसलिए तुम्हारे जरिए अपने कातिलों का पता बताना चाह रही होगी। -
फिर मेरे पिताजी ने बाबा से कहा - बाबा आप अब ऐसा करो कि वो दोबारा कभी ना मदन को दिखाई दे और ना ही उसे परेशान करें - बाबा ने फिर कहा - ज्यादा मत सोचो अब ऐसा कुछ नहीं होगा बस तुम गले में यह ताबीज पहन कर रखना और हाथ में धागा बांधे रहना सब ठीक रहेगा -
उस दिन से मुझे ऐसा कुछ भी नहीं एहसास हुआ और मैं लगभग 2 महीने तक अपने गांव में अपने परिवार के साथ रहा उसके बाद फिर वापस आकर श्मशान घाट में काम कर रहा। अब मैं हर रोज 10 से 12 चीता है चलाता हूँ।
