खौफ (डरावनी कहानी)
यह कहानी मुकेश के साथ घटी एक सच्ची घटना पर आधारित है. क्योंकि इस घटना के बाद मुकेश की पूरी जिंदगी बदल गई। इस घटना का असर मुकेश पर इतना पड़ा कि अगर वह इसे याद भी कर लेते हैं तो गहरे सदमे में खो जाते हैं। शायद मुकेश पूरी जिंदगी में उस रात को ना भूल पाए। और अब आगे की कहानी हम मुकेश जी के ही शब्दों में जारी रखेंगे । नमस्कार मेरा नाम मुकेश पांडे है और मैं यूपी के सुल्तानपुर जिले के एक छोटे से गाँव में रहता हूँ। गाँव में तो खैर हमारे परिवार के दादा दादी चाचा चाची लोग ही रहते हैं मैं मेरे माता पिता भाई हम सब दिल्ली में ही रहते हैं। साल में एक या दो बार हम पूरे परिवार के साथ गाँव जरूर आ जाते हैं।
वैसे मैं आपको यह घटना जो बताने जा रहा हूँ यह मेरे साथ तब घटी थी 2016 - 8 मार्च जब हम गाँव से वापस अपने घर दिल्ली जा रहे थे। हमें दिल्ली के लिए ट्रेन लखनऊ स्टेशन से ही पकड़नी थी और हम शाम को लगभग 7:00 बजे ही स्टेशन पर पहुंच गए हमारी ट्रेन रात 10:00 बजे की थी मैं और मेरे पिताजी माताजी और मेरे बहन भाई हम सब स्टेशन के प्लेटफार्म पर ही बैठ रखे थे। हम लोगों ने वही खाना वगैरह सब खाया और ट्रेन का इंतजार ही कर रहे थे। मैं प्लेटफार्म पर इधर उधर घूम रहा था मैंने देखा एक लड़की प्लेटफार्म की एक बेंच पर अकेले ही बैठी हुई थी और वो मुझे ही देख रही थी।
उसको देख कर मुझे बड़ा ही अजीब लग रहा था पर मैंने इस बात पर ज्यादा कोई ध्यान नहीं दिया। और जहाँ मेरे घर के सभी लोग बैठे थे उसी तरह जाने लगा। प्लेटफार्म पर भीड़ बहुत थी और मुझे भीड़ में थोड़ी बहुत बेचैनी भी महसूस होती है। इसलिए मैं फ़ोन पर किसी से बाते हुआ ही चल रहा था। कि तभी मुझे लगा किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा हो मैं रुक कर तुरंत पीछे पलटा पर अब मेरे पीछे कोई नहीं था मैंने सोचा इतनी भीड़ है और इसी भीड़ में से ही किसी का हाथ मेरे कंथो पर पड़ गया होगा। इसलिए मैं जाकर वहीं बैठ गया जहाँ मेरे परिवार के सब लोग बैठे थे। और थोड़ी देर में हमारी ट्रेन भी आ गई जिसमें हमें बैठकर दिल्ली जाना था।
और ट्रेन आते ही पुरे स्टेशन पर भागा दौड़ी मच गई ट्रेन में बैठने के लिए और ट्रेन से भी भारी संख्या में लोग नीचे उतर रहे थे। हम भी भाग कर जनरल डब्बा ही ढूंढ रहे थे और जैसे तैसे मैं और मेरे परिवार के लोग उसमें घुस तो गए। पर हमने अंदर देखा अंदर बैठने तो क्या कहीं पैर रखने की भी जगह नहीं थी इतनी बुरी हालत थी उस जनरल बोगी में। और मुझे बहुत अजीब सा महसूस हो रहा था भीड़ की वजह से लेकिन मेरे पिताजी ने कहा जब ट्रेन चलेगी तो रास्ते में थोड़ी दूर जाते ही सीट मिल जाएगी बैठने के लिए। और ऐसा ही हुआ थोड़ी देर में दो स्टेशन के बाद हम सभी सीट पर बैठ गए थे और लगभग 12:00 या 12:30 बजे करीबन ट्रेन में अच्छी शांति भी हो गई थी।
और मैं भी थोड़ी में जाकर ऊपर की सीट पर सो गया लेकिन मेरी आँख 2:00 या 2:30 बजे खुली तो मैंने देखा बूगी में लगभग सभी लोग सो रहे थे मैं ऊपर वाली सीट से नीचे उतर गया मैंने देखा मेरे माता पिता और भाई बहन लोग भी सब सो रहे थे मैं बाथरूम करने के लिए वॉशरूम की तरफ गया। तभी मैंने बाहर की ओर देखा तो ट्रेन किसी स्टेशन पर रुकी हुई थी और स्टेशन पर काफी चहल पहल थी लोग इधर-उधर चल रहे थे। और बाहर हवा भी बड़ी अच्छी चल रही थी इसलिए मैंने सोचा जब तक ट्रेन रुकी हुई है थोड़ी देर बाहर घूम लेता हूँ पर मेरी नजर अचानक एक लड़की पर पड़ी जो दरवाजे पर ही खड़ी थी और वो लड़की वही लड़की थी जिसे मैंने लखनऊ स्टेशन पर देखा था।
लेकिन मैं उसे इग्नोर करते हुए नीचे उतर गया स्टेशन पर थोड़ा आगे ही गया था तभी मैंने देखा वो लड़की मेरे पीछे पीछे ही चल रही थी। लेकिन मेरी हिम्मत नहीं हो पा रही थी कि मैं उसे टोकू लेकिन थोड़ी देर में वही मुझे आवाज देती हुई बोली - सुनो जरा रुको तो - मैं पीछे पलट ते हुए बोला - जी - उस लड़की ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा - आप भी इसी ट्रेन से जा रहे हैं क्या वो मुझे ना इसी स्टेशन पर उतरना था और मुझे स्टेशन के बाहर अकेले जाने में डर सा लग रहा है तो क्या आप मुझे बाहर तक छोड़ दोगे - उसकी की बात सुनकर मैंने कहा - मुझे तो इसी ट्रेन में जाना है - पर मैंने देखा था ट्रेन से बहुत सारे लोग नीचे उतरकर स्टेशन पर बूम रहे थे तो मैंने सोचा ट्रेन यहाँ थोड़ा देर तक रुकेगी इसलिए मैंने फिर कहा - हाँ चलो छोड़ दूंगा -
इतना बोलकर हम स्टेशन से बाहर की ओर जाने लगे लेकिन सच बताऊं तो मुझे भी उस स्टेशन पर डर लग रहा था फिर भी मैंने उस लड़की को बाहर तक छोड़ने चला गया मैं यह भी सोच रहा था चलो इसी बहाने इससे दोस्ती भी हो जाएगी। क्यूंकि इसको मैंने लखनऊ स्टेशन पर जब देखा था तभी से यह मुझे बहुत अच्छी भी लग रही थी। मैं आगे आगे चल रहा था और वो पीछे थी हम थोड़ा सा ही आगे गए होंगे तभी उस लड़की ने मेरे कंधे पर हाथ रख दिया। पर मुझे उस समय समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या रिएक्ट करूं लेकिन जैसे मैंने पिछे मुड़कर उसके चेहरे की तरफ देखा तो मेरे हाथ पैर कप कपाने लगे मेरी रगों में चलता खून मानो जमसा गया हो।
और फिर एकदम से मेरी चीख निकल गई क्योंकि मैंने देखा उस लड़की का चेहरा बिल्कुल खून से लाल था आँखे दोनों बाहर लटकी हुई थी और एक हाथ आधा कटा हुआ था उसके पूरे शरीर से भी खून ही खून बह रहा था। लेकिन उसको देखने के बाद मेरी बस एक ही चिख निकली थी और उसके बाद मेरा गला तुरंत ही बैठ गया। क्योंकि उस लड़की ने मेरे गले पर अपने नोकिले ना खून गुस्सा दिए थे। और मैंने देखा वो स्टेशन जहाँ अभी इतनी चहल-पहल थी और लोग इधर उधर चल रहे थे अब वो सब जैसे गायब से हो गए थे। अब स्टेशन बिल्कुल सुनसान हो गया था चारों तरफ सिर्फ और सिर्फ अंधेरा ही था।
मैं अपने घुटनों के बल नीचे बैठ गया और वो लड़की धीरे धीरे मेरा गला दबाने लगी थी और मेरी सांसे अब उखड़ने लगी थी मेरा चेहरा भी पसीने से तरबतर हो गया था। मुझे लग रहा था अब इसी पल मेरी जान निकल जाएगी मैं बहुत बुरी तरह से तड़प रहा था और तड़पते हुए मेरी एक चीज और निकली। तभी मेरे पापा ने मुझे तुरंत पकड़ लिया और मुझको जगाया तो मैंने देखा अभी तो मैं उसी ट्रेन में ही था और ऊपर कि सीट पर सोते हुए एक खतरनाक भयानक सपना देख रहा था। मेरे पापा ने रुमाल से मेरा चेहरा साफ किया जो पसीने से भीग रखा था उस हल्की हल्की ठंड में भी मुझे पसीना आ रहा था। मेरी धड़कने अभी भी दुगनी रफ़्तार से धड़क रही थी।
उसके बाद मेरे पिताजी ने मुझे अपने पास ही नीचे सीट पर बैठा लिया मैंने घड़ी में टाइम दिखा दो रात के अभी दो ही बज रहे हैं थे। अब मैं उठ कर बूगी के वॉशरूम में गया और मैंने अपनी आंखों पर पानी के छींटे मारे और मुंह धोकर फिर से सीट पर बैठ गया। मैंने सोचा आप जितना भी सफर बचा है सीट पर बैठकर ही पूरा करूंगा अब मैंने सोच लिया था सोना तो नहीं है। तो मैंने अब बचा हुआ पूरा सफर जागते हुए ही सीट पर बैठकर ही काटा जब नई दिल्ली स्टेशन पर ट्रेन रुकी तो हम सभी सामान उठाकर ट्रेन से नीचे उतर रहे थे तब मेरी नजर सामने वाली सीट पर पड़ी। तो मैंने देखा की वो लड़की भी उतर रही थी अपना सामान लेकर जिसको मैंने लखनऊ स्टेशन पर देखा था और रात में सपने में भी देखा था।
उसको देखते ही मानो मेरा दिल फिर जोर-जोर से धड़कने लगा और मुझे एक अजीब सा डर लग रहा था मैं भी अपने घर वालों के साथ चिपक कर चल रहा था। उसके बाद हम नई दिल्ली स्टेशन से बाहर पैदल ही चल रहे थे किसी ऑटो को देखने के लिए। तभी मेरे होश फिर उड़ गए क्योंकि मैंने देखा अभी भी वो लड़की हमारे आगे आगे ही चल रही थी। इस बार मैंने अपने भाई से कहा - दिनेश इसे देख यह लड़की लखनऊ स्टेशन पर भी बैठी थी और जिस ट्रेन में हम आए उसमें ही थी शायद उसी बोगी में भी थी जिसमें हम थे - मेरी बात सुनकर मेरे भाई ने पहले तो मुझे अपनी अजीब सी निगाहों से देखा फिर कहा - कहाँ कौन किसकी बात कर रहे हो -
मैंने फिर अपने भाई से कहा - अरे जो सामने जा रही है - लेकिन दिनेश ने कहा - भैया क्या हो गया आपको सामने तो कोई नहीं जा रहा - उसके इतना कहते ही अब मानो मेरे होश ही उड़ गए क्योंकि वो लड़की तो मुझे अभी भी दिख रही थी और आश्चर्य की बात तो यह है कि किसी और को नहीं दिख रही थी लेकिन थोड़ी देर में ही पापा ने ऑटो कर लिया और हम ऑटो में बैठ कर अपने दिल्ली वाले घर पहुंच गए। घर पहुंच कर हमने थोड़ी साफ सफाई करी क्योंकि घर लगभग 2 महीने से बंद पड़ा था। साफ सफाई के बाद खाना वाना खाकर हम सब आराम करने लगे और मैं भी अपने कमरे मेरा कमरा में जाकर लेट गया। और थोड़ी देर में मेरी आँख भी लग गई और तभी मुझे नींद में ही ऐसा महसूस हो रहा था कि मेरे बेड पर कोई और भी लेटा हुआ है और वो बहुत जोर-जोर से सांसे ले रहा है और उसने एक हाथ मेरे ऊपर भी रखा हुआ है। मैंने तुरंत आँखे खोली तो मानो मेरे होश उड़ गए। और उसके साथ ही मेरे मुंह से बहुत जोर से चीखने की आवाज निकली और मैं बेड से कूद कर तुरंत बाहर की तरफ भागने लगा।
मैं रोता चीखता चिल्लाता हुआ बाहर भाग रहा था बाहर मेरे पापा कीयारी में साफ सफाई कर रहे थे। उन्होंने मुझे इस हालत में देखा तो तुरंत आकर पकड़ लिया। पापा मुझसे पूछ रहे थे - क्या हुआ मुकेश बेटा क्या हुआ - लेकिन मेरे मुंह से आवाज नहीं निकल रही थी मैं बहुत डरा घबराया हुआ था थोड़ी देर में ही हमारे घर के सभी लोग वहाँ आ गए सब मेरे से बार-बार पूछ रहे थे - क्या हुआ क्या हुआ - पर मेरे मुंह से बस इतना ही निकला - वो लड़की अंदर है और वो मेरे कमरे में है बिस्तर पर लेटी है वो वही लड़की है वो - मैं साफ साफ नहीं बोल पा रहा था हक लाते हुए मेरे मुंह से शब्द निकल रहे थे। मेरे पापा और भाई बहन सभी लोग तुरंत कमरे के अंदर भाग कर गए।
लेकिन उन्होंने देखा कमरे में तो कोई भी नहीं था कमरा तो पूरी तरह से खाली पड़ा हुआ था। सबने इधर उधर भी देखा लेकिन कोई नहीं था और ना ही कोई बाहर भी जा सकता था। क्योंकि घर के चारों तरफ बाउंड्री लगी थी और गेट बंद था मैंन।मेरे पापा ने फिर मेरे से कहा - बेटा कोई भी तो नहीं है कहीं तुमने शायद कोई सपना देखा होगा रात में भी डर गए थे इतना लंबा सफर कर कर आए हैं हम लोग सब थक गए हैं इसलिए तुम्हें कोई वहम हुआ है नींद में तुमने सपना देखा होगा कोई - मम्मी पापा भाई बहन सब यही कह रहे थे कि मुकेश तुमने कोई सपना ही देखा होगा सब लोग थोड़ी देर में इधर उधर तो चले गए लेकिन मैं अभी भी बहुत दहशत में था
क्योंकि मुझे पता था मैंने अभी तो कोई सपना नहीं देखा है क्योंकि यह सपना तो नहीं हो सकता जब मैं बेड से नीचे कूदा तभी भी मैंने देखा वो लड़की बेड पर लेटी हुई थी जो पहले लखनऊ स्टेशन में मिली थी फिर ट्रेन में मैंने सपना देखा था और जब हम दिल्ली स्टेशन पर उतरे तब भी वो लड़की उसी ट्रेन से नीचे उतरी थी आश्चर्य की बात तो यह थी कि वो लड़की मेरे सिवा किसी को नहीं दिख रही थी। यही सब सोचते विचार थे दहशत के साए में पूरा दिन तो खत्म हो गया और रात को जब सब लोगों ने खाना खाया और अपने अपने कमरे में सोने को चले गए। और मैं भी अपने कमरे में चला गया मैंने कमरे का दरवाजा बंद करा और बेड पर लेटा ही हुआ था।
कमरे में लाइट भी जल रही थी मैं अपने फोन में कुछ काम कर रहा था लगभग 1 घंटे बाद यानी समय 11:00 या 11:30 हो रहा होगा। तब मैंने सोचा अब लाइट बंद करके सो जाता हूँ मैं बेड से उठा और लाइट बंद करने के लिए गया तभी मैंने सुना कोई मेरे कमरे की खिड़की बजा रहा है खिड़की बजाने की आवाज बड़ी जोर जोर से आ रही थी मैंने तुरंत खिड़की की तरफ देखा तो फिर मेरे होश उड़ गए। मेरे रगों में चलता खून जम सा गया तभी मेरी एक चीखने आवाज निकली क्योंकि मैंने देखा बाहर वही लड़की खिड़की बजा रही थी।
वो अपने एक हाथ से और उसका एक हाथ कटा हुआ था चेहरा बिल्कुल कट रखा था। और खून खून था पूरे चेहरे पर और बाल आगे को बिखरे हुए थे। मेरी नजर उस पर ही थी और मेरे हाथ में मोबाइल फोन भी था मैंने तुरंत अपने पापा को फोन करा और कहा - पापा मुझे डर लग रहा है वो बाहर आ गई है अब वो मेरे कमरे के बाहर खड़ी है - मैंने इतना ही बोला था और मेरे पापा ने भी देरी नहीं लगाई और तुरंत मेरे कमरे पर आकर बोले - खोलो दरवाजा मुकेश - मैंने भी तुरंत दरवाजा खोल और डरा हुआ सहमा हुआ सा पापा से लिपट कर रोने लगा मेरे पापा ने कहा - कहाँ कोई तो नहीं है यहाँ कोई नहीं है - मैंने फिर कहा पापा से - बाहर है देखो खिड़की के पास अपने बाहर देखा खिड़की की तरफ -
लेकिन मेरे पापा ने जैसे ही खिड़की के बाहर की तरह देखा तो उन्हें वो नजर नहीं आ रही थी। और मैं भी उस समय पापा के साथ ही खड़ा था और वो मुझे अभी भी साफ-साफ दिख रही थी। लेकिन आश्चर्य की बात तो यह है जब मैं कमरे के अंदर था तब मुझे वो बड़ी विचित्र हालत में दिख रही थी उसका हाथ कटा था खून से तरबतर थी लेकिन बाहर बिल्कुल सही और बिल्कुल ठीक-ठाक खड़ी हुई अपनी डरावनी मुस्कान लिए मुझे देख रही थी। तभी मैंने अपने पापा से कहा - पापा यह मार देगी मुझे यह नहीं छोड़ेगी मुझे अब - पर मेरे पापा ने मुझे समझाते हुए कहा - बेटा कोई नहीं है बाहर कुछ भी तो नहीं है - पापा लाइट जला कर देख रहे थे लेकिन पापा को आस पास कोई नहीं दिख रहा था।
उसके बाद पापा मुझे अपने साथ नीचे बरांडे में ले आए अब घर के सभी लोग भी जाग चुके थे मम्मी पापा भाई-बहन सब लोग थे मेरे साथ बरांडे में लेकिन मैं जोर जोर से रो रहा था बस एक ही बात कह रहा था - वो मुझे मार देगी अब वो नहीं छोड़ेगी मुझे अब - घर के सब लोग मेरे पास ही बैठे हुए थे और सब मुझे समझाते हुए कह रहे थे - कोई नहीं है यहां कौन तुम्हें मारेगा मुकेश हम हैं यहाँ कोई नहीं मार सकता तुम्हें और कुछ भी नहीं है ऐसा क्या हो गया मुकेश तुम्हें - उसके बाद सब ने बरांडे में एक चारपाई रखी हुई थी सब ने मुझे उसी पर लेटा दिया। लेकिन वो लड़की मुझे मेरे सिरहाने के सामने खड़ी फिर दिख रही थी और मुझे वो डरावनी मुस्कान लिए घूर रही थी।
और मैं अपनी मम्मी पापा सबको कह रहा था - यह देखो यहीं खड़ी है - लेकिन किसी को मेरी बात पर यकीन नहीं हो रहा था क्योंकि वो और किसी को भी नहीं दिख रही थी और सब यही कह रहे थे - किसी चीज से डरा होगा मुकेश इसलिए मुकेश को ऐसा वहम हो रहा है - पर अभी तक जो वो लड़की मेरे सिरहाने के पास खड़ी थी अब वो मेरे सीने पर आकर बैठ गई और अपने लंबे-लंबे नाखून मेरे गले में घुसाने लगी अब मेरी चीखने चिल्लाने की आवाज बहुत तेज हो चुकी थी मेरे गले से बहता खून देखकर घर वाले बहुत डर गए थे और मेरी मम्मी भी रोने लगी थी और पूरे घर में दहशत का माहौल हो गया लेकिन मेरे पापा ने शायद किसी को भेज दिया था घर से थोड़ा दूर एक तांत्रिक बाबा रहते हैं जो भूत प्रेत मैं थोड़ा रुचि रखते हैं और ऐसी चीजों को जानते भी हैं।
हमारे पड़ोस के एक भैया बाबा को लेकर घर उसी समय पहुंच गए थे बाबा ने बरांडे में कदम रखते ही घर के सब लोगों को कहा - सब दूर हट जाओ इस लड़के के पास अभी कोई मत खड़े रहना सब दूर हो जाओ बाबा ने मेरे ऊपर गंगाजल छिड़का या कुछ और यह तो पता नहीं और उसके बाद बाबा जोर-जोर से मंत्र पढ़ने लगे। बाबा मंत्र तो पढ़ रहे थे लेकिन मुझे ऐसा लग रहा था मैं अब अपने बस में नहीं था और मेरे मुंह से अपने आप आवाज निकल रही थी - यह मुझे पसंद आ गया है और मैं भी इसे पसंद हूँ इसलिए मैं इसको लेकर जाऊंगी - बाबा ने मंत्र पढ़ते पढ़ते जोर से कहा - कौन है तू बोल कौन है तू कहां से आई है - शायद वो मेरे अंदर प्रवेश कर चुकी थी।
इसलिए मेरे मुंह से अपने आप आवाज निकल रही थी और जो मैं नहीं बोलना भी चाहता था वो वही कह रही थी - इसको मैंने देखा और यह मुझे पसंद आ गया और मैं भी इसको पसंद हूँ इसलिए अब यह सिर्फ मेरा है और मैं इसको लेकर जाऊंगी - बाबा शायद समझ चुके थे कि यह क्या है और कौन है इसलिए बाबा ने कहा - अच्छा डायन है तू अभी बताते हैं रुक - फिर बाबा ने मेरे पापा को कहा - यहाँ आग जलाने की व्यवस्था करो तुरंत अभी - पापा ने लकड़ियां वगैरह लाकर तुरंत वहां आग जलाई बरांडे में बाबा ने एक लोहे की सरिया को जलाकर बिल्कुल लाल कर दिया और कहा - तू अभी प्यार से छोड़कर चली जा वरना तुझे इसी अग्नि में भस्म कर देंगे हम - लेकिन मेरे मुंह से बड़ी भयानक आवाज निकल रही थी वो कह रही थी - चाहे कुछ भी हो जाए मैं इसको लिए बिना नहीं जाऊंगी यहाँ से क्योंकि यह मुझे पसंद आ गया है और मैं भी इसको पसंद हूँ -
उसकी बात सुनकर बाबा ने कहा - चल ठीक है - उसके बाद बाबा ने वो गर्म सरिया लाकर मेरे पैर के तलवे पर लगा दी मुझे उस गर्म सरिया का असर कुछ भी नहीं हो रहा था तभी मैंने देखा और उस समय सब लोगों ने देखा कि वो डायन वही पर सब के सामने आ गई और उसने गुस्से में कहा - ए तांत्रिक छोड़ दे मुझे वरना सबसे पहले तुझे ही मरूंगी फिर इन सबको वरना हट जा मेरे रास्ते से मुझे तुम सब से कोई लेना देना नहीं हैं मुझे बस यह लड़का चाहिए - फिर बाबा ने कहा - अभी मैं तुझे इसी में भस्म कर दूंगा नहीं तो अभी भाग जा यहां से और कभी लौटकर मत आना - बाबा ने इनता कहा और मंत्र पढ़े और अग्नि में कुछ डालने लगे तभी उसकी रोने चीखने की आवाज बढ़ गई और उसको भागते हुए अब सब लोग देख रहे थे। उसके बाद बाबा ने बताया कि वो एक डायन है मीरा नाम की बाबा ने फिर अपनी बात जारी सकते हुए कहा -
पहले वो रेलवे स्टेशन पर चाय समोसे बेचा करती थी पर एक दिन वो लड़का जिसको वो बहुत पसंद करती थी उस लड़के ने मीरा को मार दिया। उसने उसके चेहरे को बिलेड से पूरी तरह से काट दिया और उसका एक हाथ काट कर उसके पूरे शरीर में चाकू से जख्म कर के मार दिया और तड़पते हुए मीरा ने अपनी जान दे दी थी - बाबा उसे देखते ही उसकी सारी कहानी समझ गए थे बस उसके मुंह से ही सुनना चाह रहे थे। बाबा ने फिर कहा - मुकेश ने इसको देखा होगा और इसे को वो अच्छी लगी होगी और उसे भी मुकेश पसंद आ गया अगर तुम लोग थोड़ा और देर कर दे मुझे बुलाने में तो शायद आज यह मुकेश की जान ले लेती और यह उसे अपने साथ ले जाती।
उसके बाद बाबा ने मंत्र पढ़कर ताबीज बनाई और मेरे गले में डाल दी और एक धागा हाथ में बांध दिया। फिर कहा - अब ऐसा कुछ नहीं होगा इतना कहकर बाबा तो चले गए पर मैं उसी दहशत में उस रात तो क्या कई रातो तक नहीं सो पाया और मैंने उसके बाद से कभी भी ट्रेन से सफर नहीं किया। इस कहानी को आज मैंने आपके सामने बता तो दी लेकिन सच मानो यह कहानी बताते समय आज मेरी रूह फिर काप रही है आज भी मैं उस दहशत में हूँ।
