मौत का बगीचा | darawni kahaniya in hindi | Hindi story my

 

मौत का बगीचा


रामसिंह सब्जी का ठेला लगाया करता था वैसे तो वो सुबह बाजार से सब्जी लेकर आ जाता था। और सुबह ही घर से खाना वगैरह खाकर ठेले में सब्जी सजा कर बेचने के लिए शहर में निकल जाता था। वो दिन भर सब्जी बेचता और उसको घर रात में पहुंचते पहुंचते कभी 10 या फिर 10:30 बजे ही जाते थे। एक दिन पूर्व की तरह ही रामसिंह सब्जी बेचने के लिए निकला हुआ था लेकिन आज राम सिंह को घर आते समय थोड़ा ज्यादा लेट हो गई थी। लगभग 11:00 बज रहे होंगे उस दिन उसका काम भी अच्छा था सब्जी ठेले पर से सारी खत्म भी हो गई थी।

रामसिंह खुशी-खुशी घर की तरफ चला जा रहा था वो चलते-चलते उस बगीचे तक पहुंचा जिस बगीचे के बीचो-बीच होकर सड़क गुजरती थी सड़क के दोनों तरफ बगीचा था और बगीचा भी काफी दूर तक फैला हुआ और काफी घना था। आम अमरूद लीची ना जाने किस किस किसम की पेड़ थे उस बगीचे में बगीचा बहुत घना और विशाल था। और लोग भी रात में इधर की तरफ से आने जाने से थोड़ा बचते थे क्योंकि इलाके के लोग कहते थे की इस बगीचे से होकर गुजर ना रात में ठीक नहीं होता था। लेकिन राम सिंह रोज रात में सब्जी बेचने के बाद यहीं से होकर ही घर जाता था।

उस दिन वो जा ही रहा था और वो थोड़ा ही आगे गया होगा कि उसने देखा आगे चलते चलते उसका ठैला बहुत भारी चलने लगा। राम सिंह यही सोच रहा था की सब्जी तो आज सारी लगभग बिकी गई है और अचानक ठेला इतना भारी कैसे चल रहा है। लेकिन थोड़ी देर में वो जो ठला अभी तक भारी चल रहा था अब वो ठेला राम सिंह के लिए आगे भी बढ़ाना मुश्किल सा हो रहा था। उसने अब ठेले के नीचे झांक कर देखना चाहा कि नीचे तो कुछ नहीं है जो इसमें फंसने की वजह से ठैला आगे नहीं बढ़ रहा। लेकिन राम सिंह को ठेले के नीचे या फिर आगे पीछे भी ऐसा कुछ नहीं दिखा कि जिस के कारण ठेले को आगे बढ़ाने में इतनी दिक्कत हो रही थी।

अब राम सिंह डर ने लगा था लेकिन उसने एक बार फिर भगवान का नाम लिया और ठेले को धक्का मार कर फिर आगे बढ़ाने की कोशिश करने लगा। और शायद भगवान ने उसकी सुन भी ली क्योंकि इस बार उसकी कोशिश करने से ठेला अब आगे बढ़ने लगा और ऐसा लग रहा था राम सिंह को इसमें अब कोई समस्या नहीं है यह बिल्कुल ठीक है पर इससे पहले यह क्यों जाम हो गया था।

लेकिन भगवान का शुक्र मनाते हुए राम सिंह जल्दी से जल्दी उस बगीची से बाहर निकलना चाहता था क्योंकि रात में लोग जितना हो सके उतना ही बचते हैं। इस बगीचे से इधर उधर जाने में। बगीचा एक तो बहुत बड़ा था और बहुत दूर तक फैला हुआ था घर भी राम सिंह का अभी काफी दूर था लगभग राम सिंह को आधा या पौना घंटा तो लगी जाता है यहां से घर पहुंचने में रामसिंह डरा सहेमा अपने ठेले में धक्का मार कर आगे ले जा रहा था। रात का घनघोर अंधेरा चारों तरफ अंधेरा अंधेरा था और दोनों तरफ वो घना बगीचा हर तरफ से डरावनी खौफनाक किसम किसम की आवाज आ रही थी।

अब राम सिंह अपने आप को ही कोश रहा था कि आज उसने ऐसी गलती कर तो दी लेकिन दोबारा कभी नहीं करेगा अच्छा खासा वो रोज अपनी सब्जी बेचकर घर सही समय पर चला जाता था आज ही फस गया। यही सोच रहा था बस कि काश मैं आज भी सही समय पर अपना ठेला यहाँ से निकाल लिया होता तो कम से कम आज यह मुसीबत तो नहीं होती। यही सोचते हुए आगे बढ़ रहा था तभी अचानक ऐसा लगा कि कुछ तूफान सा उठने लगा आवाज पत्तों के झर झर आने की बहुत तेज तेज आ रही थी अंधेरा तो था ही इसलिए राम सिंह की हालत अब बिल्ली से डरे खरगोश की तरह हो गई थी।

मानो किसी तरह से बस यहां से बच के निकल जाए कि अचानक राम सिंह का ठेला पीछे की तरफ कोई खींचने लगा। राम सिंह उसी ठेले के साथ पीछे की तरफ घसीटता हुआ खींचा जा रहा था रामसिंह पूरी कोशिश कर रहा था ठेला रुकने की लेकिन उसकी सारी कोशिश नाकामयाब हो रही थी। वो अब चीख रहा था - बचाओ बचाओ कौन हो कौन है छोड़ दो मुझे जाने दो - लेकिन वो जो कुछ भी था उस पर राम सिंह की सीखने चिल्लाने या रोने ने का कोई असर नहीं पड़ रहा था। राम सिंह पूरी कोशिश कर रहा था कि वो ठेले को छोड़ दें लेकिन मानो राम सिंह के हाथ ठेले से चिपके हुए हो।

वो चाह कर भी अपने आप को ठैले से नहीं छूटा पा रहा था जो भी ताकत ठेले को पीछे की तरफ खींच रही थी उसने अचानक से ठेले को बगीचे की अंदर की तरफ खींच लिया पीछे पकड़े हुए राम सिंह घसीटते हुए चला जा रहा था। और बस लगातार यही कह रहा था - छोड़ दो मुझे छोड़ दो मैंने क्या किया है मुझे जाने दो - अचानक वो ठेला जो लगभग 7 या 8 मिनटों से लगातार पीछे की तरफ खींचा चला आ रहा था तभी वो बगीचे के अंदर आकर एक पेड़ के नीचे ऐसे रुक गया जैसे कोई ठेले को लेकर आ रहा था और उसने यहां पर लाकर खड़ा कर दिया। इतनी देर से लगातार ठेला घसीटे जाने की वजह से राम सिंह की हालत वैसे भी बहुत खराब हो गई थी।

और वो किसी तरह लंगड़ा लंगड़ाते उठा तो राम सिंह ने जो देखा उसके बाद तो मानो उसकी चलती दिल की धड़कन ही रुक गई हो। राम सिंह की आंखें डर के मारे चौड़ी हो गई क्योंकि राम सिंह ने देखा जो ठेले को खींचता हुआ इस बगीचे के अंदर लेकर आया वो एक बूढ़ा आदमी था। उस आदमी ने सर पर गमछा बांधा हुआ था और सफेद धोती कुर्ता पहना हुआ था। राम सिंह लगातार उसको देख रहा था तभी अचानक उसी बूढ़े आदमी ने राम सिंह को पैरों से पकड़ लिया और बगीचे के अंदर घासीटता हुआ ले जाने लगा। राम सिंह तड़पता हुआ सिर्फ चिल्लाने चीखने लगा - छोड़ दो मुझे मुझे क्यों मार रहे हो मैंने क्या करा है -

लेकिन उस बूढ़े आदमी पर राम सिंह के तड़पने या चीखने का कोई असर नहीं हो रहा था और उसने ले जाकर राम सिंह को एक पेड़ की जड़ पर जाकर जोर से पटक दिया। और कहा - यह मेरा बगीचा है और यहां और कोई नहीं आ सकता यह सिर्फ मेरा बगीचा है जो यहां आएगा वो फिर मेरे साथ यही रहेगा वापस नहीं जाएगा - रामसिंह तड़पता हुआ बार बार यही कह रहा था - छोड़ दो मुझे मैं फिर कभी नहीं आऊंगा और ना ही बगीचे के पास आऊंगा - यह कहते हुए राम सिंह ने उसी बूढ़े आदमी के चेहरे की तरफ फिर देखा तो अबकी बार उसके होश फिर उड़ गए।

क्योंकि अभी तक तो वो एक बूढ़ा आदमी गमछे मैं था लेकिन अब उसने देखा उसका चेहरा बिल्कुल सफेद था ऐसा लग रहा था की राम सिंह को किसी हड्डियों के ढांचे ने पकड़ा हुआ था। तभी वो बूढ़ा बोलने लगा पर अब वो खतरनाक और भयानक आवाज में बोल रहा था - जिंदा तो कोई यहां से वापस जा नहीं पाता जो इस समय यहां आता है मरने के बाद जिसे चाहा जाना है वहाँ जाए - इतना कहकर उसने राम सिंह को हवा में इतने ऊपर तक उठा लिया और जिस पेड़ के नीचे वो थे उस पेड़ की चोटी पर जाकर राम सिंह को रख दिय। और एक ही पल में उसने राम सिंह को उसी पेड़ की जड़ पर नीचे गिरा दिया।

और उसी के साथ राम सिंह की वो आखरी चीख निकल गई। हैरानी की बात तो यह है राम सिंह की मौत उस बगीचे के अंदर उस पेड़ के नीचे हुई लेकिन राम सिंह की लाश पुलिस वालों को बगीचे के बीचो बीच होकर जो सड़क गुजरती है उस सड़क के बीचो बीच रखी मिली। कहते हैं आज भी लोग उस बगीचे वाली सड़क पर रात में 10:00 के बाद नहीं चलते और कोई गलती से अगर चला भी गया तो अगले दिन पुलिस को उसकी लाश सड़क पर ही मिलती है। अगर आप भी घूमने फिरने का शौकीन हो तो एक बार जा सकते हो उस बगीचे में।



इस कहानी के लेखक हैं - रामचंद्र यादव




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