Vampire ( डरावनी कहानी ) | Vampire story in hindi | Hindi story my

 

Vampire ( डरावनी कहानी )


3 दिन से लगातार जमकर बारिश हो रही थी और नदी में बजरी भी भरपूर मात्रा में बहकर आई हुई थी। नदी के आसपास के इलाके में रहने वाले लोग यहीं से बजरी निकालकर बेचते और अपनी रोजी-रोटी चलाते थे। आज अरविंद और रमेश जब से बारिश खत्म हुई तब से बजरी निकाल रहे थे। बारिश शाम 3:00 बजे के बाद बंद ही हो गई थी नदी में बजरी भी बहुत बह कर आ रखी थी वैसे तो बहुत लोग बजरी निकाल रहे थे और निकाल कर जमा कर रहे थे अपने अपने जगह पर लेकिन रात 8:00 बजे तक सब लोग अपने अपने घर चले गए थे।

लेकिन रमेश और अरविंद दोनों दोस्त थे और दोनों ने कहा आज बजरी बहुत ज्यादा है इसलिए सही पैसे बन जाएंगे निकालते निकालते लगभग 11:00 या 11:30 बज रहे होंगे तभी अरविंद ने रमेश को कहा - रमेश पानी से बाहर आ जाओ थोड़ा बीड़ी पीते हैं गर्माहट आ जाएगी तब फिर निकालना शुरू करेंगे - फिर रमेश ने जवाब देते हुए कहा - हाँ सही है - इतना कहकर वो भी पानी से बाहर ही आ गया। अब अरविंद ने बीड़ी जलाई और रमेश और अरविंद दोनों बीड़ी पी रहे थे और इधर उधर की बातें कर रहे थे।

तभी अरविंद ने कहा - रमेश इस बार तो मजा आ जाएगा हमने इतनी देर में लगभग 2 गाड़ी बजरी निकाल ली है और हम आज रात तक निकालेंगे लगभग 3 गाड़ी तो हो ही जाएगी - फिर रमेश ने कहा - सही बात है इस बार बारिश भी बहुत अच्छी हुई हैं - फिर बीड़ी खत्म करके दोनों फिर अपनी अपनी जगह पर जाकर पानी में उतर गए बजरी निकालने के लिए। तब लगभग आधा घंटा बीत गया होगा तभी रमेश को नदी में आगे किसी के बड़ी तेज से कूदने की आवाज आई है और ऐसा लगा जैसे कोई चिल्ला रहा हो - बचाओ बचाओ - रमेश तुरंत पानी से बाहर निकला और उसने अरविंद को भी बाहर बुलाया अरविंद के बाहर आते ही रमेश ने कहा - तुमने कुछ सुना-

अरविंद रमेश दोनों यही बात कर रहे थे की ऐसा लग रहा है कोई नदी में कोई गिर गया है या फिर किसी ने फेंक दिया है। तभी अरविंद और रमेश भागते हुए उस तरफ गए जहाँ से आवाज आई थी। उस समय पानी भी बड़ी तेज चल रहा था इसलिए और कुछ सुनाई भी नहीं दे रहा था। बस पानी की आवाज ही आ रही थी लेकिन फिर भी दोनों ने टॉर्च जलाकर देखने की बहुत कोशिश करी पर ऐसा कुछ नजर नहीं आया फिर दोनों वापस अपनी जगह पर आ गए। पर दोनों अभी यही सोच रहे थे की आवाज तो दोनों को आई थी और साफ-साफ सुनाई भी दी थी।

बजरी निकालने के लिए सब लोगों ने डैम बना रखे थे इस वजह से कोई पानी में बह भी नहीं सकता था। तो फिर किसकी आवाज थी वो और अगर कोई पानी में गिरा तो कहां है फिर। यही सब सोचकर दोनों फिर बजरी निकालने लगे लेकिन 10 मिनट बाद दोनों फिर बाहर निकल आए रमेश ने कहा - अरविंद मुझे अब बहुत डर लग रहा है मुझे घबराहट हो रही है बहुत अरे तुमने कुछ सुना - अब की बार अरविंद ने कहा - इस बार तो कुछ नहीं सुना क्यों इस बार क्या हुआ - फिर रमेश ने कहा - जंगल से किसी के रोने की आवाज आ रही थी मुझे तो ऐसा लग रहा था कोई दर्द से तड़प तड़प कर चिल्ला रहा है और बहुत तेज तेज रो रहा है - पर अरविंद को ऐसा कुछ सुनाई नहीं दिया था।

रमेश ने घड़ी देखी टाइम लगभग 12:30 बज चुके थे। अरविंद ने रमेश को समझाते हुए कहा - ऐसा कुछ भी नहीं है तुमको कोई वैहम हुआ होगा - पर रमेश को पूरा विश्वास था उसे कोई वैहम नहीं हुआ था। रमेश ने अपने कानों से साफ-साफ सुना था इसलिए रमेश ने कहा - अब घर चलते हैं बजरी जितनी निकल गई ठीक है बाकी कल सुबह निकालेंगे रमेश की बात आधे में काटते हुए अरविंद ने कहा - चलो ठीक है पहले अपना बजरी निकालने वाले औजार लेकर चलते हैं - घर का रास्ता नदी पार करके जंगल से होकर जाता है अक्सर दिन में तो कोई दिक्कत होती नहीं है। सब लोग सामान्य रूप से आते जाते रहते हैं लेकिन रात को लोग यहां से आने से घबराते हैं। और इधर जाने से जितना हो सके उतना बचते हैं पर घर जाने का और कोई दूसरा रास्ता भी नहीं था। दोनों अब जंगल के अंदर तक पहुंच गए थे।

 तभी अरविंद कहता है - वह देखो क्या है - इस बार अरविंद भी डर गया अरविंद जो अब तक कह रहा था ऐसा कुछ नहीं है यह सब तुम्हारा वैहम है। लेकिन अब अरविंद की भी हालत खराब होने लगी क्योंकि दोनों ने देखा जंगल के हर तरफ हड्डियों के कंकाल ही नजर आ रहे हैं। दोनों सोच रहे थे कि ऐसा कैसे हो सकता है क्योंकि दिन में जब हम आए थे तो ऐसा कुछ नहीं था। न पर अचानक ऐसा क्या हुआ। तब रमेश, अरविंद से कहता हैं - अरविंद जल्दी चलो वापस चलते हैं नदी में ही बैठ जाएंगे जंगल से होकर नहीं जाना।

लेकिन अरविंद ने कहा - अब वापस जाना ठीक नहीं है हमें आगे ही जाना है ज्यादा बड़ा तो है नहीं जंगल चलो चलते हैं। - थोड़ा आगे ही गए थे तभी ऐसी आवाज आ रही थी जैसे कोई बहुत तेज गुर्रा रहा हो। और थोड़ी देर में ही वो गुराने की आवाज बहुत तेज हो चुकी थी। लेकिन आगे जो हुआ यह अरविंद और रमेश ने अपनी पूरी जिंदगी में कभी नहीं देखा था। अरविंद और रमेश आवाज सुनकर बहुत तेजी से भागने लगे। लेकिन ऐसा लग रहा था जैसे जंगल खत्म नहीं हो रहा हो। भागते हुए ही अरविंद ने घड़ी में टाइम देखा तो 1:00 बज गए थे।

लेकिन अभी भी वह जंगल में ही थे अब दोनों के होश उड़ रहे थे क्योंकि मात्र 12 मिनट का रास्ता होता है जंगल से बाहर निकलने का। लेकिन आधा घंटा बीत चुका था और अभी रमेश और अरविंद जंगल में ही थे। उन दोनों को समझ नहीं आ रहा था जंगल में किस दिशा में जाना है ऊपर से अंधेरा बहुत था। और इस घने जंगल में भयानक भयानक किस्म की आवाज आ रही थी। तभी रमेश ने चारों तरफ टोर्च मारी और जब आगे की तरफ देखा तो दोनों बहुत घबरा गए। क्योंकि दोनों ने देखा एक बहुत लंबा और बड़ा भयानक आदमी सामने खड़ा था। और उसकी गर्दन आगे को झुकी हुई थी पर वह इतना पतला था जैसे उसने सालों से कुछ नहीं खाया हो।

उस आदमी को देख कर अरविंदो रमेश दोनों जहां थे वहीं रुक गए। अरविंद ने रमेश को कहा - शायद यह कोई बड़ा जानवर है - लेकिन रमेश समझ चुका था यह वही है जिसके बारे में मोहल्ले के लोग बात करते हैं। तभी अचानक से वह जानवर जैसी चीज दोनों की तरफ बढ़ी। उसको अपनी ओर बढ़ते देख दोनों तेजी से भागने लगे। रमेश और अरविंद जंगल के पीछे की तरफ भागने लगे रमेश को पता था। कि अगर यह वैसी कोई भी चीज है तो आग से जरूर डरेगी तभी रमेशने अरविंद को कहा - अरविंद माचिस निकालो - लेकिन अरविंद ने कहा - माचिस तो नदी पर ही छूट गई -

रमेश ने अपनी टॉर्च की लाइट उस भयानक दी दिखने वाली चीज पर मारी लेकिन उसका कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। और वह बहुत तेजी से दोनों की ओर भागा चला आ रहा था अरविंद और रमेश पूरी रफ्तार से पीछे की तरफ भाग रहे थे। तभी दोनों नदी के पास पहुंच गए और दोनों नदी में कूद गए और नदी तैर कर दूसरी तरफ को जाने लगे। लेकिन नदी के दूसरी तरफ भी वही जानवर या फिर आप उसे कोई शैतान भी कह सकते हो वह जो कुछ भी था। वह दूसरी तरफ से उन दोनों की तरफ आ रहा था। 

दोनों ने अब सोच लिया मरना तो तय है वो दोनों हिम्मत हार चुके थे। तब लेकिन किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था शायद रमेश और अरविंद पर उस दिन भगवान की कृपा रही होगी। तभी दोनों नदी के अब इस तरफ आने लगे जहाँ वह बजरी निकाल रहे थे। और दोनों तुरंत नदी से बाहर निकल कर अपनी माचिस उठा लेते हैं और पास में सुखी झाड़ी बहुत थी उनमें आग लगा देते हैं। झाड़ी बहुत सुखी थी इसलिए आग तुरंत लग जाती है और आग की लपटें बहुत तेज तेज उठने लगती हैं।

लेकिन रमेश और अरविंद अभी भी बहुत डरे हुए थे रमेश ने अरविंद से कह - अरविंद यह शायद वही शैतान है जिसको लोग रूप बदलने वाला शैतान कहते हैं और बहुत लोग तो यह भी कहते हैं यह एक श्रापित आत्मा है लेकिन लोगों का ऐसा कहना भी था कि यह शैतान अगर किसी के खून की एक बूंद की भी महक ले ले तो वह उसे जिंदा नहीं छोड़ता। - अरविंद और रमेश यही सब इधर उधर की बातें आपस में कर रहे थे। तभी ऐसा लगा कि पीछे से कोई चलता हुआ उनके के पास आ रहा है।

रमेश और अरविंद पहले से ही बहुत ज्यादा घबराए हुए थे दोनों एक दूसरे से चिपक कर खड़े हो जाते हैं। और रमेश ने रोते हुए कहा - अरविंद भाई अब हमारा मरना तो बिल्कुल तय है - अरविंद जो खुद भी बहुत ज्यादा डरा हुआ था उसने कहा - ऐसा मत कहो अभी भगवान है वह हमको बचाएंगे - अरविंद ने रमेश के हाथ से टॉर्च ली और कहा - अब रुकना नहीं है। - उसके बाद दोनों पूरी जान लगा कर दौड़ने लगते हैं उसी जंगल के रास्ते से होते हुए अपने घर जाने को पूरा दम लगा कर भाग रहे थे। वह दोनों लेकिन उनमें से किसी की भी यह हिम्मत नहीं हो पा रही थी कि कोई भी पीछे मुड़कर एक बार भी देखें बस वह भाग रहे थे।

तभी अरविंद ने सामने देखा एक झोपड़ी दिख रही है अरविंद ने कहा - रमेश शायद हम जंगल से बाहर निकल गए- दोनों भागते हुए उस झोपड़ी के पास खड़े हो गए। वहां पर एक सफेद धोती पहने हुए बूढ़ा आदमी बैठा हुआ था। रमेश और अरविंद वही के रहने वाले थे लेकिन इन्होंने कभी यहां ऐसी झोपड़ी देखी नहीं थी। और इस आदमी को भी नहीं पहचानते थे। लेकिन फिर भी वह दोनों उस बूढ़े के पास जाकर बैठ गए। उन्होंने उस बूढ़े से कहा - चाचा आगे मोहल्ला कितनी दूर है - उस बूढ़े आदमी ने कहा - तुम मोहल्ले में तो हो यहीं से तो मोहल्ला शुरू होता है सबसे पहला घर मेरा ही है - लेकिन दोनों कुछ समझ नहीं आ रहा था।

 क्योंकि ना उन्होंने कभी इस आदमी देखा था और मोहल्ले में कभी ऐसी झोपड़ी भी नहीं देखी थी। इसकी बातें भी थोड़ी अजीब सी लग रही थी इसलिए दोनों उठ कर वहां से जाने लगे। अब पहले से ही भागते हुए वह थक चुके थे। इसलिए थोड़ा आराम से जा रहे थे रमेश ने कहा - अरविंद आज हम बहुत बड़ी मुसीबत में फंस गए हैं लगता है क्योंकि इस जंगल से हम रोज आते जाते हैं आज इस जंगल में हम अभी तक भटक रहे हैं सिर्फ 10 मिनट का रास्ता और हम बाहर नहीं निकल पाए अभी तक अब मुझे नहीं लगता कि हम बचकर जा पाएंगे यहां से -

रमेश की ऐसी बेतुकी बातें सुनकर अरविंद ने कहा - अब तू चुप हो जा तेरी वजह से ही हम इतनी देर तक नदी में रुके तूने ही कहा था कि आज ज्यादा बजरी है निकाल लेते हैं लालच के चक्कर में आज हमारा यह हाल है - दोनों एक दूसरे से बात ही बात में थोड़ा झगड़ रहे थे लेकिन वहाँ रुके नहीं थे। जंगल की आगे की तरफ लगातार चल रहे थे। तभी अरविंद की टॉर्च की रोशनी किसी चीज पर पड़ी थोड़ा ध्यान से देख तो वही बूढ़ा आदमी अब उन दोनों के ठीक सामने पर खड़ा हुआ मिला।अरविंद और रमेश अब क्या करे दोनों को कुछ समझ नहीं आ रहा था।

तभी वो दोनों फिर पीछे की तरफ भागने लगे। दोनों थोड़ा ही पीछे भागे होंगे कि उन्होंने देखा वही पतला हड्डी जैसा जिसे जानवर या शैतान कह रहे थे। वह उनके पास खड़ा हुआ है। अरविंदो रमेश चीखने और चिल्लाने लगे और कहने लगे - हमने क्या करा है हमें क्यों मार रहे हो। - लेकिन उस जानवर जैसे आदमी को उनकी कुछ भी बात समझ नहीं आ रही थी।

वह पता नहीं क्या कह रहा था तभी पीछे से उस बूढ़े आदमी ने अरविंद को पकड़ लिया और घसीटते हुए ले जाने लगा पर अरविंद उस बूढ़े से अपने आप को छुड़ा नहीं पा रहा था और थोड़ी ही देर में अरविंद की आवाज मानो पूरे जंगल में गूंज रही हो बचाओ बचाओ छोड़ दो मुझे और वह जो बूढ़ा आदमी था अब वह बिल्कुल भयानक रूप में आ गया था। रमेश ने देखा जो अरविंद को ले जा रहा है घसीटता हुआ वह बूढ़ा अब पूरा बदल कर उस आदमी की तरह हो गया था जो उसके सामने खड़ा हुआ हैं।

पतला और एकदम हड्डी सा और देखते ही देखते उसने रमेश को पकड़ा और पीछे से जकड़ कर उसे भी घसीटते हुए थोड़ी दूर ले गया फिर उस शैतान ने रमेश को तड़पा-तड़पा कर मार दिया। उसने रमेश के शरीर से एक एक बूंद खून चूस लिया था। और अगले दिन लोगों को रमेश और अरविंद की लाश बहुत बुरी हालत में उसी जंगल में मिली। कहते हैं कि उस जंगल में आज भी रोज रात को वह शैतान घूमता है जो एक साथ कई रूप बना लेता है। अगर उसे लोगों के खून की एक बूंद की महक से भी पकड़ कर उनको मार देता है। यह वहाँ कई वर्षों से चला आ रहा हैं उस जंगल के बारे में अरविंद और रमेश को भी इस मोहल्ले के बड़े लोगों से कई बार पता चला था।


इस कहानी के लेखक हैं - रामचंद्र यादव



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