यहाँ से जाने की क़ीमत बस मौत
रात के 12 बजे उत्तरप्रदेश के एक छोटे से इस्टेसन पर एक ट्रेन आकर रुकी उसमे से नीरज अपनी आँखे मलते हुए नीचे उतरता हैं। और देखता हैं की पूरा इस्टेसन खाली पड़ा हुआ हैं। नीरज को यह देखकर ज्यादा हैरानी नहीं होती की वो जनता था ये छोटा सा इस्टेसन हैं और यहाँ रात के समय में इकी दुक्की ही ट्रेन रूकती हैं और वो यह भी जनता था की अब उसे इस समय कोई ऑटो या रिक्शा भी मुश्किल ही मिलेगा। फिर उसके बाद नीरज जैसे ही इस्टेसन से बाहर आकर देखता हैं तो वहाँ सच में कोई ऑटो या रिक्शा नहीं था। पर अब उसे इसी कारण से पैदल ही अपने घर जाना होगा।
फिर उसके बाद नीरज पैदल ही अपने घर जाने लगता हैं। नीरज का घर इस्टेसन से लगभग पाँच किलोमीटर की ही दुरी पर होगा। नीरज चलते-चलते अब जंगल के पास आ गया था क्यूंकि उसके गाँव जाने का एक यही रास्ता था जो इस जंगल से हो कर जाता था। नीरज वैसे एक निडर लड़का था इसलिए तो वो इतनी रात को भी अकेले उस जंगल वाले रास्ते से जाने लगता हैं । फिर उसके बाद नीरज कुछ ही आगे गया था की तभी उसे अपने आगे से एक भुडी औरत आते दिखती हैं। आते आते वो भुडी औरत उसके बगल से निकल कर आगे की तरफ चली जाती हैं और नीरज के पीछे जा कर रुक जाती हैं पर नीरज इस पर ज्यादा ध्यान नहीं देता हैं।
पर नीरज अब थोड़ा और आगे ही गया था तो उसे लगता हैं की कोई उसके पीछे से आ रहा हैं। और वो यही देखने के लिए जैसे ही पीछे मुड़कर देखता हैं तो उसने देखा वही भुडी उसके पीछे पीछे ही चल रही थी और उस भुड़िया ने अपना सर नीचे की ओर करा था। नीरज को यह देखकर बड़ा अजीब लगता हैं। और नीरज अपने चलने की स्पीड तेज कर लेता जैसे ही नीरज तेज चलने गा था वैसे वैसे ही वो भुड़िया ने भी तेज चलने चलना शुरू कर दिया था। नीरज अब थोड़ा गबराने लगा था। और नीरज गबराते हुए भागने लगता। जैसे ही नीरज भागने लगा था वैसे ही वो भुडी औरत भी उसके पीछे भागने लगी थी। नीरज वो भुडी औरत को अपने पीछे भागते देख कर उसके दिल की धड़कन बढ़ने लगी थी।
नीरज ने भागते-भागते अब जंगल भी पार कर लिया था। जंगल पार करते ही नीरज को कुछ लोग एक खेत के पास बैठ कर आग तप रहे थे। नीरज उस भुडी औरत से बजने के लिए उन लोगो के पास जा कर बैठ जाता हैं और अपने पीछे की ओर उस भुडी औरत को देखने की कोशिश करने लगता हैं। पर नीरज को वो भुडी औरत अब कही नहीं दिखती जब नीरज को वो औरत कही नहीं दिखती तो नीरज एक ठंडी सांस लेता हैं। और नीरज कुछ देर वही बैठ कर आग तपने लगता हैं।
नीरज को वही पर बैठे बैठे चार-पाँच मिनट हो गए थे पर अभी तक जितने भी लोग बैठ कर आग तप रहे थे उनमे से किसी ने अभी तक एक शब्द तक नहीं बोला था अक्सर किसी भी गाँव में कुछ लोग साथ बैठे होते हैं तो वो कुछ ना कुछ बात जरूर ही करते रहते हैं और यही बात नीरज को बड़ी अजीब लग रही थी की इनमे से कोई कुछ बोल क्यों नहीं रहा था और सबने अपने सर को नीचे की ओर करा हुआ था। नीरज अब सबकी चुपी तोड़ते हुए बोलता हैं - आज कुछ ज्यादा ही ठंड हैं ना - पर कोई उसकी बात का जवाब नहीं देता।
पर सब अपना चेहरा ऊपर की ओर करने लागते हैं जैसे ही नीरज उन सबका चेहरा देखता हैं तो उसका दिल अपनी दुगनी रफ़्तार से धड़कने लगाता हैं। नीरज का दिल इतनी तेजी से धड़क रहा था मानो जैसे अभी चहती फाड़ कर बहार आ जायेगा। नीरज ने देखा की उन सबकी आँखे नहीं थी। और सबके चेहरे सफ़ेद पड़े थे। नीरज गबरा के एकदम से उठता हैं। और जैसे ही अपने पीछे भागने को मोड़ता हैं। पर वो वहाँ से भाग नहीं पता क्यूंकि उसके सामने वही भुडी औरत खड़ी थी। और उसके चेहरे पर एक भयानक हसीं थी।तभी वो भुडी औरत उसके पास आने लगती हैं पास आते आते वो कुछ बढ़-बढ़ा रही थी।
और वो नीरज के पास आकर नीरज का गला दबाने लगती हैं। वैसे वो एक भुडी औरत थी पर नीरज उससे अपना गला नहीं छुड़ा पा रहा था मानो उसके अंदर कही लोगो की जान आ गई हो। उसने नीरज का गला इतनी जोर दबा रखा था की नीरज की आँखे बाहर आने लगी थी। देखते ही देखते नीरज की भी आँखे बाहर निकल गई थी और वो भी उन सबके जैसे हो गया था जो सब वहाँ बैठ कर आग तप रहे थे। अब नीरज भी उनमे से एक था।
