श्रापित जंगल E-5 | Best horror story in Hindi pdf | Hindi story my

 

श्रापित जंगल E-5



उस जंगल में लगातार काफी देर से भागते भागते हम बहुत थक गए थे वैसे थके तो खैर हम पहले से ही हुए थे लेकिन अभी जो उस पेड़ के ऊपर देखा था उसकी वजह से हम लगातार भाग रहे थे अब मेरी सांसे बहुत ज्यादा भूल चुकी थी मुझसे बिल्कुल भी भाग नहीं जाना था जतिन, आशीष और अखिल भी थक ही गए थे इसलिए हम लोग एक ही जगह पर अचानक से रुक गए और अपने आप को थोड़ा आराम देने की कोशिश करने लगे। पर अभी हमें वहाँ रुके थोड़ा ही समय हुआ था की तभी अचानक पीछे से किसी औरत के बहुत तेज तेज हंसने की आवाज सुनाई देने लगी आवाज सुनते ही वो हंसी की आवाज हमारे रोंगटे खड़े कर रही थी।

वो आवाज ऐसी थी की वो किसी को भी डरा दे पर फिर उसके बाद हमने हिम्मत करते हुए अपने फ़ोन की फ्लैश लाइट जला कर पीछे की तरफ देखा लेकिन हमारे पीछे कोई नहीं दिखाई दे रहा था। पर वो हंसी की आवाज अभी भी हमारे कानों में ही गूंज रही थी ऐसा लग रहा था कि जो भी औरत हंस रही थी वो हमारे आस पास ही है। अब हम लोगो की हालत ऐसी की हमें ऐसा लग रहा था जैसे हमारे शरीर पर एक साथ लाखो चीटिया छोड़ दी हो और सब हमें एक साथ काट रही हो। पर उसके बाद हम चारो ने फिर से भागना शुरू कर दिया।

पर ऐसा लग रहा था जैसे हमारे साथ वो हंसी की आवाज भी भाग रही हो क्यूंकि वो आवाज हमारे कानो में अभी भी साफ-साफ सुनाई दे रही थी। पर तभी एकदम से वो हँसने की आवाज सोने की आवाज में बदल गई पर हम वहाँ रुके नहीं बस हम भागते रहे हमें ऐसा लग रहा था की जैसे हम शायद इस समय हम मौत के मुंह में ही हैं हम लोगों की सबसे बड़ी गलती यह थी की हम लोग इस सुंदरवन में आए। इस जंगल का बस नाम ही सुंदर और बस बाहर से देखने में ही सुंदर है पर अंदर से तो इस जंगल में मौत का जंजाल बिछा हुआ है क्योंकि हर तरफ से बस रोने चीखने और तड़पने की आवाज ही बस सुनाई दे रही थी।

पर तभी मैंने घड़ी में टाइम देखा तो घड़ी में 11:00 बज रहे थे आधी रात हो गई थी पर अभी भी हम इसी जंगल में थे। अब हम लोग यह भी सोच रहे थे की शायद पता नहीं की अब हम यहाँ से जिंदा वापस जा भी पाए या नहीं लेकिन हम एक पल के लिए भी किसी भी जगह पर रुक नहीं रहे थे हम लगातार आगे की तरफ तेज तेज कदम बढ़ाकर चल रहे थे क्योंकि भाग भाग कर हम बहुत ज्यादा थक चुके थे। हम ऐसे चल ही रहे थे की तभी ऐसा लगा कि पीछे से कोई बहुत तेज से भागता हुआ हमारी ही तरफ ही आ रहा आवाज सुनकर मैंने जैसे ही पीछे मुड़कर देखा की तभी किसी ने अखिल को एकदम से पकड़ लिया और आगे की तरफ खींचने लगा।

पर वो जो भी था उसका चेहरा दिखाई नहीं दे रहा था फ्लैशलाइट से भी कुछ समझ नहीं आ रहा था कि कौन है पर वो जो भी था उसने एकदम से अखिल के पैर पकड़ा और उसे घसीटते हुए आगे की तरफ लेने लगा। उसके घसीटते ही अखिल के तड़पने की आवाज पूरे में गूंज रही थी अखिल रो रो कर लगातार चिल्ला रहा था और यही बोल रहा था - छोड़ दो मुझे छोड़ दो मुझे मुझे बचाओ बताओ मुझे आशीष,संतोष,जतिन - तीनों का नाम लेकर वो लगातार पुकार रहा था। हम लोग भी रोते चिल्लाते हुए अखिल की पीछे ही भाग रहे थे

उस समय हमारे सामने ही हमारे एक साथी को ना जाने कौन घसीटते हुए लेकर चला गया और हमको पता भी नहीं चला कि कौन है वो फिर भी हम अखिल को आवाज मारते हुए लगातार अखिल के पीछे ही भाग रहे थे। पर एकदम से जो अभी तक अखिल के तड़पने चिल्लाने की आवाज बहुत तेज तेज सुनाई दे रही थी वो आवाज अब एकदम से शांत हो गई और उस आवाज के शांत होते ही ऐसा लग रहा था कि उस पूरे जंगल में सन्नाटा सा छा गया हो लेकिन हम लोग तभी भी लगातार अखिल को आवाज लगा रहे थे - अखिल अखिल कहाँ है तू लेकिन हम लोगों को अब अखिल कहीं दिखाई नहीं दे रहा था और ना ही उसकी कोई आवाज सुनाई दे रही थी।

हम तीनों हर तरफ झाड़ियों में जा जाकर लाइट मार कर अखिल को ढूंढ रहे थे लेकिन अखिल हमें कहीं पर भी नजर नहीं आ रहा था। आश्चर्य की बात तो यह भी थी जबसे अखिल के तड़पने और रोने की आवाज बंद हुई थी तब से इस जंगल में भी जो खतरनाक डरावनी रोने चीखने हंसने और अजीब अजीब तरह की जो भी आवाज आ रही थी वो सब भी एकदम से बंद हो चुकी थी पर हम अपने दोस्त को ऐसे गायब होते नहीं छोड़ कर सकते थे इसलिए हम तीनों ने सोच लिया था पहले अखिल ढूंढ लेंगे उसके बाद ही यहाँ से बाहर निकलने के लिए सोचेंगे।

तभी मैंने कहा - कही ना कही मुझे ऐसा लग रहा हैं की यह जो अभी अखिल के साथ हुआ है यह हमारे साथ भी हो सकता है क्यूंकि उस समय उन औरतों ने कहा था की यह श्रापित जंगल है - मेरे इतना बोलने के तुरंत बाद आशीष ने चिल्लाते हुए कहा - संतोष उन औरतों की बात मत कर सारी जड़ वही औरतें हैं उन्हीं औरतों ने ही हमारे दोस्त अखिल को गायब करा है - यही सब बाते करते हम अखिल को ढूंढ ही रहे थे कि तभी जतिन जो हमारे साथ ही चल रहा था वो किसी चीज से टकराकर बड़ी जोर से मुंह के बल झाड़ियों में गिर जाता हैं उसके गिरते ही तुरंत हम दोनों ने जतिन की तरफ लाइट मारी और जतिन को उठाया तो हम सबके होश ही उड़ गए।



इस कहानी के लेखक हैं - रामचंद्र यादव



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