वो भयानक दिन
मेरा नाम राजीव हैं और मैं आज आपको जो घटना बताने जा रहा हूँ वो मेरे साथ पिछली होली में घटी एक खौफनाक घटना हैं। अब इस घटना को पुरे एक साल हो चुके हैं पर मैं अभी भी इस घटना को कभी भी याद भी करता हुआ तो मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। पर मैं आज आपको अपने दोस्त के कहने पर सारी घटना बताने जा रहा हो।
पिछली होली में मेरी उम्र 20 वर्ष की थी उस दिन मैं अपने चार-पाँच दोस्तों के साथ सुबह 9 बजे से ही होली खेलने को निकल गया था। क्यूंकि मुझे और मेरे दोस्तों को होली बहुत पसंद हैं वैसे मुझे पता हैं अब आप क्या सोच रहे होंगे की यही होली तो तो सबको ही पसंद होती हैं वैसे ही हम सबको भी होली बहुत पसंद हैं इसलिए हम सारे दोस्त उस दिन सुबह 9 बजे से ही होली खेलने को निकल गए थे। और हमारा उस दिन का यह प्लान था की होली के दिन कोई भी ऐसा इंसान नहीं बचना चाहिए जिसको रंग ना लगा हो।
और कुछ हमने ऐसा ही करा हमने अपने मोहल्ले में जब सबको रंग लगा दिया तब हमने सोचा की अब दूसरे मोहल्ले में जाकर सबको रंग लगाते हैं। फिर उसके बाद हम सब तुरंत अपनी बाइक में बैठे और तुरंत दूसरे मोहल्ले में पहुंच गए। वहाँ पहुंच कर सबसे पहले हमने उस मोहल्ले में रह रहे अपने दोस्तों को ढूंढड़ा फिर उसके बाद उन सबके साथ निकल गए उनके पुरे मोहल्ले को रंगने। रंग लगाते लगते जब हम मोहल्ले के एकदम आखरी में पहुचे तो हमने देखा की उस तरफ तो एक अलग ही होली चल रही थी।
यानी उस तरफ के लड़के एक दूसरे के कपडे फाड़ रहे थे पता नहीं उस समय में मेरे सारे दोस्तों को क्या हुआ की वो सब भी उनके साथ ही घुस गए हुए एक दूसरे के कपडे फाड़ने लगे।पर मैं दूर से ही खड़े खड़े उन सबको देखा था क्यूंकि मुझे अपने कपडे नहीं फटवाने थे क्यूंकि मैं दूसरे मोहल्ले में आ रखा था और मुझे यहाँ से फटे हुए कपड़ो में जाने में बहुत शर्म आती इसलिए मैं दूर से खड़े खड़े सभी को देख ही रहा था पर जब उन सब ने एक दूसरे के सारे कपडे फाड़ दिए तभी उनमे से एक की नजर मेरे ऊपर पड़ी तो उसने सबको तुरंत बता दिया।
फिर उसके बाद वो सब मेरी तरफ आने लगे पर मैंने भी सोच लिया था की मैं अपने कपडे तो फटवाऊंगा तो नहीं इसलिए मैं सीधा अपने पिछे जो खंडहर था उस की तरफ भागने लगा।पर तभी वो सब मुझे पिछे रोकने के लिए आवाज लगाने लगे पर मुझे लगा वो सब मेरे कपड़े फाड़ने के लिए मुझे रोक रहे होंगे। इसलिए फिर उसके बाद में सीधा उस तीन मंजिल के खंडहर की छत की तरफ भागने लगा। और जब मैं उस खंडहर की छत पर पंहुचा तो मैंने देखा उस खंडहर की छत की दूसरी ओर कोई सफ़ेद कपडे पैहने बैठा हुआ था।
उसको देखकर मैं यही सोच रहा था की यह हैं कौन जो आज 11 बजे तक एक दम साफ़ शुतरा बैठा हुआ हैं। इसलिए मैंने उसके पिछे से ही आवाज लगाई और कहा - अरे कौन हो भाई जो होली के दिन भी साफ़ शुतरा बैठा हुआ हैं - मेरे इतनी जोर से बोलने के बाद भी जब वो पिछे नहीं मुड़ा तो मुझे काफ़ी अजीब तो लगा पर मैं भी होली की कसम खा कर आया हुआ था की आज तो सबको रंग लगाना ही हैं। पर मेरे पास उस समय रंग खत्म हो गया था इसलिए मैं उस खंडहर की छत से नीचे झाँक कर देखा तो वो सभी अभी भी वही पर ही खड़े हुए थे।
फिर उसके बाद मैंने जैसे आगे की तरफ फिर से देखा तो वो जो लड़का छत पर दूसरी तरफ बैठा हुआ था वो अब सीढ़ियों के पास खड़ा हुआ था पर उसका मुँह अभी भी दूसरी तरफ ही था इसलिए मैंने उसे एक बार फिर से आवाज लगाई - ओ भाई जरा सुन तो - मेरे इतना बोलने के बाद इस बार वो जैसे ही पिछे मुड़ा तो मैंने देखा वो तो विवेक था। फिर उसके बाद मैंने उससे कहा - हाँ भाई कहाँ आज तू चुपा बैठा हैं जरा इधर तो आ -
मेरे इतना बोलने के बाद विवेक मेरी तरफ आ ही रहा था तभी मैंने तुरंत छत के नीचे की तरफ देखा और जोर से आवाज लगाई और कहा - ओये जल्दी ऊपर आओ विवेक कालू ऊपर हैं और उसने अभी भी रंग नहीं लगाया हैं - मैंने विवेक कालू इसलिए कहा था क्यूंकि सभी उसे कालू बोला करते थे पर मेरे इतना कहते ही जैसे उन सबके होश ही उठ गए हो पर तभी नीचे से ही एक लड़के ने कहा - राजीव तुरंत वहाँ से भाग -
मैंने जैसे ही यह सुना तो मुझे बड़ा ही अजीब तो लगा पर मैंने फिर कहा - अरे क्या हुआ - फिर नीचे से उस लड़के ने कहा - अबे विवेक कालू तो एक महीने पहले ही मर चूका हैं - मैंने जैसे ही उसके मुँह से इतना सुना तो जैसे मेरा खून जम सा गया हो फिर भी मैं डरते हुए जैसे पिछे मुड़ा तो मैंने देखा की अब उस विवेक का चेहरा पूरा भयानक और सफ़ेद हो गया था। मैं उसे डरे डरे देखे ही जा रहा था तभी विवेक मेरी ओर बढ़ने लगा वो जैसे जैसे मेरी ओर बढ़ रहा था वैसे वैसे मेरे दिल की धड़कन भी तेज होती जा रही थी।
फिर उसके बाद वो मेरे एकदम सामने आकर खड़ा हो गया और मिझे घूरने लगा और मैं भी उसे डरे डरे देखे ही जा रहा था। पर उस समय मेरे दिल की धड़कन इतनी तेज हो गई थी की मुझे उस समय चक्कर से आने लगे थे और देखते ही देखते मेरी आँखो के आगे पूरा अंधेरा सा हो गया। और फिर जब मेरी आँख खुली तो मुझे मेरे साथ के सभी लड़के घेर के खड़े हुए थे। और वो सब मुझे उठकर खंडहर के नीचे ले आए थे फिर उसके बाद मैंने उन्हें सारी बात बताई तो फिर उन्होंने मुझे बताया की मैं छत पर ही बैहोश हो गया था। शायद मैं विवेक को देखकर इतना डर गया था की मैं वही बैहोश हो गया। पर वैसे अब इस बात को पुरे एक साल हो चुके हैं पर अभी भी जब मैं उस घटना को याद भी करता हूँ तो मेरे रूह सी काप जाती हैं।
