श्रापित गाँव पूरी कहानी | darawni chudel ki kahani | Hindi kahani

 

श्रापित गाँव 

                                 
विनय आज अपनी पढ़ाई पूरी कर के अपने गांव वापस जा रहा था। गांव से शहर में पढ़ने के लिए विनय आया था और ग्रेजुएशन कर के आज वापस अपने गाँव लौट रहा है। उसने स्टेशन जाकर ट्रेन पकड़ी और बस यही सोच रहा था कितने वर्षों बाद अपने घर वापस जा रहा हूं। विनय को अपने माता पिता भाई बहन से मिलने को बहुत उत्साहित था लम्बा सफर था इसलिए विनय ने थोड़ी देर Hindi story my वेबसाइट पर कहानियाँ पढ़ी Hindi story my एक हॉरर कहानियो की वेबसाइट हैं और कुछ घंटों के सफर के बाद आखिर विनय अपने गांव पहुंच गया हरियाणा में एक छोटा सा गांव है वहीं पर रहता है विनय। गांव में पहुंचते ही विनय को एक जबरदस्त झटका लगा क्योंकि आज विनय के चाचा जी की मौत हो गई थी।

उसके चाचा जी की मौत अचानक आज ही हुई। क्योंकि विनय कल जब ट्रेन में बैठा था तो उसने घर के लोगों से फोन पर बात करी थी और तब घर में सब ठीक था। सुबह अंबाला स्टेशन पर ट्रेन से उतरा तभी भी उसने घर में फोन पर बात करी लेकिन किसी ने कुछ बताया नहीं था। क्या पता घर के लोगों ने सोचा हो सफर कर कर आ रहा है इस वजह से ना बताया हो कुछ। लेकिन घर आकर सब से बात करने के बाद पता चला कि अभी आधा घंटा पहले ही उसके चाचा जी की मौत हुई है। विनय हैरान था कि अचानक चाचा जी की मौत हो कैसी गई क्योंकि उसके चाचा जी की ना तो कोई तबीयत खराब थी और ना ही किसी किस्म की कोई बीमारी थी। बिल्कुल तंदुरुस्ती थे उसके चाचा। और हैरानी का कारण एक और था की बिल्कुल अलग स्थिति में विनय के चाचा की मौत हुई थी।

विनय के चाचा की आंखें बाहर निकल चुकी थी और जीभ बाहर को लटक रही थी चेहरा भी देखने में लग रहा था जैसे बिल्कुल लाल पड़ा हुआ हो। थोड़ी देर बाद विनय का परिवार और पुरे गाँव के सभी लोग उसके चाचा को श्मशान घाट लेकर गए। अंतिम संस्कार पूरा करा विनय भी आज दिल्ली से लौटा था और घर पहुंचते ही ऐसी घटना हुई कि उसे भी तुरंत चाचा के पार्थिव शरीर को लेकर श्मशान घाट आना पड़ा। परिवार के और गांव के लोग जो श्मशान घाट से वापस लौट रहे थे लौटते हुए यही बातें कर रहे थे अब ना जाने किसकी जान लेगा वो 2 साल में अब तक 300 लोगों की मौत हो चुकी है इस गांव में।

विनय बस की सीट पर बैठे हुए सब लोगों की बात ध्यान से सुन रहा था। सब की बात सुनकर विनय तुरंत बोला - कौन और किसकी जान लेगा - पीछे बैठे एक बुजुर्ग आदमी ने विनय को बताना चाहा लेकिन तभी विनय के पिताजी ने तुरंत उस बुजुर्ग आदमी को मना कर दिया। और कहा - कुछ नहीं विनय कुछ नहीं तुम बस बैठे रहो - और उस सभी को विनय को कुछ भी बताने से मना कर दिया उसके पिताजी ने। विनय बैठे-बैठे बस यही सोच रहा था ऐसा क्या है वहाँ और यह सब किसकी बात कर रहे हैं। और किसने 2 साल के अंदर इस गांव के 300 लोगों की जान ले ली विनय इसी उधेड़बुन में था। तभी बस सभी को लेकर गांव पहुंच गई विनय घर में आकर भी इस बात को अपने दिमाग से निकाल नहीं पा रहा था आखिर क्या है ऐसा जो इतने लोगों की जान ले चुका है।

विनय ने अपने घर में भी सब से पूछने की कोशिश करी लेकिन किसी ने भी विनय को कुछ भी नहीं बताया। लेकिन विनय ने भी सोच लिया था इसका पता तो मैं लगा कर ही रहूंगा आखिर क्या है यह। अगले दिन विनय ने गांव में कई लोगों से इस के बारे पूछने की कोशिश करी पर गाँव का कोई भी व्यक्ति विनय इस बारे में बात नहीं करना चाह रहा था क्यूंकि विनय के पिताजी ने सबको मना करा हुआ था। इसलिए किसी ने भी विनय को कुछ भी नहीं बताया।

आखिरकार गाँव के आखिरी में एक चाचा जी रहते थे विनय ने उनसे पूछा तो उन्होंने आखिर विनय को बता ही दिया। चाचा जी ने कहा - इस गांव को श्राप मिला हुआ है वो श्राप अब सब को बारी-बारी से मार देगा वो किसी को नहीं छोड़ेगा अब सब की मौत एक ही तरह से हो रही है। आंखें बाहर निकल जाती हैं जीभ बाहर लटक जाती है और चेहरा बिल्कुल लाल हो जाता है और व्यक्ति की मौत हो जाती है एक एक कर सबका नंबर आएगा। इन लोगों ने पाप ही ऐसा किया है उसकी सजा अब सब भुगत रहे हैं - उस चाचा ने बिना रुके यह सब बातें लगातार कह दी। उस चाचा की बात गत्म होते हैं विनय ने पूछा - कैसा श्राप और क्यों मरेंगे सब कौन है जो सबको मार रहा है बताओ मुझे -

विनय के बार बार पूछने पर फिर उस चाचा ने बताना शुरू करा - लगभग 2 साल पहले गांव में सुरेश और सकीना की मौत हुई थी उसी का खामियाजा भुगत रहा है आज हमारा यह गांव। - चाचा ने अपनी बात जारी रखते हुए कह - आज से 2 साल पहले इसी गांव में रहने वाले सुरेश को सकीना से प्यार हो गया था दोनों अलग-अलग धर्म के थे इसलिए गांव के लोगों ने दोनों को समझाने की बहुत कोशिश करी। गांव में माहौल भी बहुत तनावपूर्ण हो रहा था ऐसा लग रहा था कि गांव में अब दो धर्मों के बीच आपस में लड़ाई दंगे हो जाएंगे जो आज तक कभी नहीं हुआ था। इस गांव में दोनों धर्मों के लोग बहुत शांति और प्यार से रहते थे लेकिन इन दोनों की वजह से गांव में बहुत अशांति फैली हुई थी।

लेकिन सुरेश और सकीना को इन बातों से कोई मतलब नहीं था वह अपने प्यार के माहौल में खोए हुए थे उन्हें किसी से कोई मतलब नहीं था वह कहते थे चाहे कुछ भी हो जाए हम दोनों साथ में ही रहेंगे चाहे आप लोग हमको गांव से क्यों ना निकाल दो। लेकिन हम एक दूसरे का साथ कभी नहीं छोड़ेंगे ऐसा लग रहा था कि बहुत गहरा प्यार था दोनों में। लेकिन गांव वालों के दबाव की वजह से सुरेश के घरवालों ने सुरेश को उसके घर से निकाल दिया। उसके बाद सुरेश और सकीना गांव से दूर बाहर रहने लग गए। लेकिन गाँव वाले तो मानो इन दोनों की जान के पीछे ही पड़े हुए थे। वो कह रहे थे यह जहां मिल जाएंगे हम उन्हें वहीं काट देंगे। तभी एक दिन गांव के एक बाजार में सकीना और सुरेश दोनों एक ढाबे में बैठ कर समोसे खा रहे थे।

लेकिन होनी को शायद कुछ और ही मंजूर था क्योंकि इनके प्यार के दुश्मन हर जगह मौजूद थे तभी गाँव एक आदमी ने उन्हें देखा और गांव में फोन कर के सबको बता दिया। ऐसा लग रहा था जैसे इनकी जान के कितने प्यासे थे सब लोग फोन करते ही तुरंत बाजार में पहुंच गए। और गांव में फोन करते ही देर नहीं और गांव वालो को आते देर नहीं। उन लोगों ने तुरंत दोनों को वहीं दबोच लिया। कुछ लोग शकीना को घसीटते हुए ले गए और कुछ लोग सुरेश को मारते पीटते घसीटते हुए ले जा रहे थे। वो सभी लोग इन दोनों को घसीटते हुए खेतों की तरफ ले कर गए। वह सब लोग इन दोनों को ऐसे पीट रहे थे जैसे इनकी जान लिए बिना नहीं मानेंगे।

उन दोनों को सब गांव के लोगो ने मार-मार कर अधमरा कर दिया। खेतों में कोई डीजल का भरा हुआ कनस्तर लेकर आया हुआ था। उन दरिंदों ने सकीना और सुरेश को एक साथ लिटा कर दोनों के ऊपर पूरा डीजल उड़ेल दिया। और उन दरिंदों ने उन दोनों पर आग लगा दी सुरेश ने मरते मरते कहां - हम दोनों का श्राप है और मैं इस गांव में किसी को भी नहीं छोडूंगा और मैं सबको मार दूंगा - उसके 2 महीने बाद से ही गांव में मौत का तांडव शुरू हो गया। इन दोनों ने अब तक जिसकी भी जान ली है एक ही तरह से ली है विनय ने उस चाचा की बात सुन तो ली। लेकिन इन चीजों पर उसका ज्यादा कोई विश्वास नहीं था। पढ़ा लिखा था विनय और ऐसी किसी चीजों को नहीं मानता था। इसलिए उसने ठान लिया पता लगाकर रहेगा कौन है जो सुरेश और सकीना की नाम पर इन कारनामों को अंजाम दे रहा है।

पहले एपिसोड विनय ने इस गाँव के श्राप के बारे में जाना लेकिन उसे इन बातो पर विश्वास नहीं था। इसलिए विनय ने अगले दिन से ही जहां सकीना और सुरेश रहा करते थे वहाँ नजर रखना शुरू कर दिया। विनय ने सोचा कोई हैं जो इनका नाम लेकर वो सब मौते कर रहा हैं। इसलिए विनय रोज रात के 8 बजे आकर सकीना और सुरेश के घर के बाहर बैठ कर नजर रखने लगा लेकिन काई दिनों तक नजर रखने पर भी विनय को कुछ ऐसा नहीं दिखा। पर एक दिन विनय रोज से थोड़ा जल्दी ही सकीना और सुरेश के घर पास आ गया। विनय एक पेड़ के किनारे बैठा हुआ था तभी उसने देखा वही चाचा जिसने विनय को सुरेश और सकीना की सब कहानी बताइए थी। उसने देखा वो चाचा अपने हाथ में एक प्लास्टिक की थैली में कुछ लेकर सुरेश और सकीना के घर का दरवाजा खोल के सीधा घर के अंदर चला गया।

विनय यह देखकर समझ चुका था पूरे गाँव को मूर्ख इसी ने बना रखा है। लेकिन विनय उस दिन वापस चला गया और क्यूंकि उसने सोचा अगले दिन आकर फिर देखूंगा और यह कल भी आया तो पक्का यही चाचा इस पूरी घटना का जिम्मेदार हैं।अगली रात विनय फिर सकीना और सुरेश के घर के बाहर आया उसी समय। और उसी पेड़ के नीचे छुपकर उस चाचा का इंतजार करने लगा। थोड़ो ही देर में उसने देखा वही चाचा आज भी एक प्लास्टिक की थैली में कुछ लेकर सुरेश के घर के अंदर जा रहा है। विनय को तो अब पक्का विश्वास हो गया था की सारी मौत का जिम्मेदार यही चाचा है। उस दिन विनय वहाँ से चला गया और फिर तीसरी रात को विनय अपनी पूरी तैयारी के साथ आया था।

विनय आज सोच कर आया था इस चाचा का तो आज मैं काम तमाम कर ही दूंगा। इस चाचा ने बहुत बेवकूफ बनाया सबका। विनय यही सब सोच रहा था तभी वो चाचा वहाँ आ गया। आज भी वो चाचा अपने हाथ एक प्लास्टिक की थैली लेकर आया था। चाचा ने सुरेश के घर का दरवाजा खोला और घर के अंदर चला गया। उसके अंदर जाते ही विनय अपनी जगह से उठा और वो भी सुरेश के घर के अंदर चला गया। विनय भी आज अपनी पूरी तैयारी से आया हुआ था।

अंदर जाते ही विनय ने उस चाचा को दबोचा लिया और विनय ने कहा - चाचा तुम्हारी जान ले लूंगा मैं आज। सभी मौत के जिम्मेदार तुम ही हो क्यों अब बताओ क्यों लोगों का तुम मूर्ख बना रहे हो बताओ मुझे नहीं तो अभी मैं तुम्हारा गला धड़ से अलग कर दूंगा। चाचा बता दो जल्दी वरना अच्छा नहीं होगा अब - इतना बोलकर विनय ने उस चाचा को वही पटक दिया। और अपने पैरों से दबाकर बोला - चाचा तीन गिनती के अंदर बता दो वरना मैं तुम्हे आज सच में मार दूंगा - उसके बाद चाचा ने रोते हुए कहा - अगर मैंने तुमको बता दिया तो वह लोग मुझे मार देंगे - चाचा की बात सुनकर विनय ने अपने दांत पीसते हुए कहा - अगर तुमने नहीं बताया तो वो तुम्हे मारे या ना मारे पर मैं तुम्हें अभी मार दूंगा -

विनय को इतना गुस्से में देख उस चाचा ने कहा - तुम्हे सब जानना ही है तो कल इसी समय यही मिलना उसके बाद तुम अपनी आँखो से सब सच देख लेना - विनय उस समय बड़े गुस्से में था। लेकिन उसने उस समय चाचा को छोड़ दिया और कहा - चाचा तुम कल कही भागे या मुझसे झूठ बोलने की कोशिश भी करी ना मैं सच मानो तुम्हारी जान ले लूंगा - इतना बोलकर विनय उस चाचा को छोड़ दिया और वहाँ से अपने घर चला जाता गया। कल यानी अगली रात विनय 8 बजे ही सुरेश कर घर के बाहर खड़ा हो गया। और थोड़ी देर में उसने देखा वो चाचा आ रहा हैं और उसने आज भी अपने हाथ में एक प्लास्टिक की थैली लेकर आ रहा हैं और उस थैली में वो कुछ बांध कर ला रहा हैं।

चाचा ने आज विनय को देखते ही कहा - चलो अब मेरे साथ - इतना बोलकर वो सुरेश के घर के अंदर जाने लगा आगे वो चाचा चल रहा था और पीछे विनय। घर के अंदर आते ही चाचा ने अपने हाथ में जो थैली ले रखी थी उस थैली में से दो समोसे और दो प्लेट निकाल कर दोनों समोसे में चटनी लगाई और बगल के कमरे के दरवाजे के पास में रख दी। और दोनों थोड़ा पिछे होकर खड़े रहे। थोड़ी देर बाद विनय ने देखा किसी ने दरवाजा खोला पर जिसने दरवाजा खोला था वो नहीं दिख रहा था और उसने समोसौ की प्लेट अंदर खींच ली। उसके बाद उस चाचा ने विनय से कहा - जिन्हे तुम ढूंढ रहे हो वो वही हैं - उस चाचा की बात पूरी होती उसे पहले ही विनय ने चिल्लाते हुए कहा - तुम कोई भी हो अब तुम्हारा भांडा फूट चुका है तुम कोई भी हो अब तुरंत बाहर निकल जाओ वरना मैं पुरे गांव वालों को फोन कर के बुला लूंगा। अभी भी सोच लो फिर क्या होगा तुम्हारा अंजाम गाँव वाले वही करेंगे तुम्हारे साथ जो करना चाहिए -

लेकिन फिर भी कोई दरवाजा नहीं खोल रहा था। विनय गुस्से में गया और दरवाजे को पीटने लगा। तभी भी कोई दरवाजा नहीं खोल रहा था उसके विनय ने उस दरवाजे में लगातार लात मार मार कर उस दरवाजा तोड़ दिया। और जैसे ही विनय ने अंदर देखा तो उसके होश उठ गए। क्युकी अंदर कोई नहीं था और बस वहाँ समोसा की प्लेट खाली पड़ी थी और प्लेट में थोड़ी चटनी बस यही सब था उस कमरे के अंदर। विनय यही सोच रहा था जो लोग इसके अंदर थे वो गए तो गए कहां थे। क्योंकि प्लेट तो दो थी इसलिए जाहिर सी बात है अंदर दो ही लोग रहे होंगे। उसके बाद गुस्से में विनय अपने पिछे मुड़ा और बोला - चाचा बताओ कहां है वो लोग कहां भाग गए चाचा बताओ उन लोगों के क्या नाम थे और कौन है वो लोग - विनय बिना रुके बस बोले जा रहा था।

तभी किसी ने उस चाचा को कमरे के अंदर खींच लिया और विनय को बाहर धक्का दे दिया। और वो टुटा हुआ दरवाजा भी अपने आप बंद हो गया और उसके थोड़ी देर बाद से ही विनय को अंदर चीखने चिल्लाने की आवाज आने लगी। ऐसा लग रहा था कोई चाचा को मार रहा हो क्यूंकि चाचा दर्द से तड़प कर चिख रहे थे। लेकिन थोड़े समय बाद वो सभी आवाज आना बंद हो गई और उसके बाद वो बंद दरवाजा खुला। विनय बाहर ही खड़ा था अभी भी। दरवाजा खुलते ही अंदर से दो लोग बाहर आए। और जैसे ही विनय ने उन दोनों देखा तो विनय की आंखें फटी की फटी रह गई ऐसा लग रहा था कि विनय की सांसे मानो रुक जाएंगे क्योंकि अंदर से जो 2 लोग बाहर निकले वो बिल्कुल जले हुए थे

एक लड़का और एक लड़की दोनों बिल्कुल जली भुजी झुलसी हुई हालत में थे चेहरा बड़ा ही भयानक सा था उन दोनों का और दोनों ने बाहर आते ही विनय से अपनी डरावनी आवाज में एक साथ कहा - कल से समोसे तुम लेकर आओगे और रोज लेकर आओगे इसी समय लेकर आओगे नहीं तो जो अभी इनके साथ यहां हुआ हैं कल तुम्हारे साथ होगा इतना बोलकर वो दोनों अंदर की तरफ चले गए। पर विनय अभी भी बाहर उसी जगह पर खड़ा था तभी अंदर से किसी ने उस चाचा को बाहर फेंक दिया।

और चाचा की हर जगह से कटी पीटी लाश विनय के सामने आकर गिरी। विनय ने जैसे ही उस चाचा की लाश को देखा वो तुरंत अपने घर को वापस भग गया। और घर में आते ही अपने कमरे में जाकर सो गया। उस दिन तो विनय ने अपने घर में किसी को कुछ नहीं बताया और अगले दिन सुबह उठते ही विनय ने अपने पिताजी से कहा - पिताजी मुझे आज दिल्ली जाना है नौकरी के लिए इंटरव्यू हैं मेरे पास कल रात को ही फोन आया है - पिताजी और उसके परिवार के लोग उसकी बात सुनकर बड़े ही हैरान थे और उसके पिताजी ने उसे समझाते हुए कह - अभी कुछ दिन रुक जाओ बेटा तुम्हारे चाचा की तेरवी नहीं हुई - अपने पिताजी की बात बिच में काटते हुए विनय ने कहा - नहीं पिताजी मुझे जाना ही पड़ेगा बहुत जरूरी इंटरव्यू है और इतना बोलकर उसने अपना सामान वगैरह पैक करा और घर से रेलवे स्टेशन के लिए निकल गया।

उसने सोचा दिल्ली के लिए जो भी पहली ट्रेन मिलेगी उसी में बैठ कर निकल जाऊंगा। तब देखता हूँ कौन मेरा क्या कर लेगा कल रात वाली घटना भी विनय ने किसी को नहीं बताई थी। विनय स्टेशन पहुंचा तो पता चला कि दिल्ली के लिए जो पहली ट्रेन है वह रात 9:00 बजे की है। विनय सोच रहा था कोई बात नहीं दिनभर यही बैठा रहूंगा और रात में ट्रेन आते ही सीधा दिल्ली। विनय ने पूरा दिन स्टेशन की बेंच पर ही बैठे हुए निकाल दिया। और जब रात के 9 बजते ही ट्रेन आई और विनय जाकर सीधा अपनी जगह पर बैठ गया। अभी ट्रेन थोड़ा दूर ही चली होगी तभी विनय के पास एक समोसा बेचने वाला आया और उसने विनय से कहा - साहब यह लो आपके दो समोसे पैक कर दिए हैं इसमें तीखी चटनी भी डाल दी है ले जाओ इसे अभी भी टाइम हैं। टाइम पर पहुंचा देना इने - उस समोसे वाले की बात सुनकर अब विनय की हालत खराब हो चुकी थी।

विनय सोच रहा था इसको कैसे पता लेकिन फिर भी विनय ने उसकी बात नहीं मानी और उसे गुस्से में बोला - मुझे नहीं जाना कहीं समोसे लेकर तुम्हे इतना शौक है तो तुम ही ले जा लो - उसके बाद विनय दांत पीसते हुए बोला - अब जाओ यहां से - लेकिन समोसे वाला समोसे को विनय के पास में रख कर चला गया। और जाते-जाते विनय से कह - इसे ले जाओ इसी में भलाई है वरना फालतू में मारे जाओगे जैसे तुम्हारे चाचा मारे गए थे - इतना बोलकर वो वहाँ से चला जाता हैं। विनय ने सोचा जो भी हो जाए मैं तो नहीं लेकर जाऊंगा समोसे इतना बोलकर विनय ने समोसे उठाकर खिड़की से बाहर फेंक दिए।

और कुछ समय बाद विनय दिल्ली पहुंच गया और जैसे ही विनय ट्रेन से उतरते तो आंखें फिर फटी की फटी रह गई क्योंकि विनय के सामने ट्रेन से उतरते ही स्टेशन पर वही समोसे वाला खड़ा था। विनय ने सोचा ये वही समोसे वाला है क्या जो रात को अंबाला स्टेशन पर मिला था। पर यह कैसे हो सकता है विनय यही सब सोच ही रहा था तभी वो समोसे वाला विनय के पास आया और विनय से बोला - साहब जी क्यों फालतू में बेवकूफी कर रहे हो मरने का बहुत शौक है क्या तुमको अभी भी समय है जाओ समोसे दे आओ 1 दिन की गलती हो गई हैं माफी मांग लेना बस जाओगे नहीं तो मरने के लिए तैयार रहना - उस समोसे वाले ने इतना ही बोला था तभी किसी ने विनय को अपने हाथो से हिला कर उठा दिया।

और विनय की आँखे खुली तो वो चौक गया क्यूंकि वो अभी भी अंबाला स्टेशन पर था और वो बेंच पर ही बैठे-बैठे सो गया था। यानी विनय ने यह एक भयानक सपना देखा था विनय अभी भी स्टेशन पर ट्रेन का इंतजार ही कर रहा था विलन ने एक राहत की सांस तो ली कि चलो वो सपना था लेकिन विनय को जिस ने उठाया था विनय ने जैसे ही को उसका चेहरा देखा तो वो फिर चौंक गया उसने देखा वही समोसे वाला उसके सामने खड़ा था जो उसे अभी सपने में दिखा था। उस समोसे वाले ने विनय से कहा - साहब जी समय हो गया है जाओ समोसे दे आओ - इतना बोलकर उसने विनय के हाथ में समोसे पकड़ाते हुए कहा - साहब जी इसमें दो समोसे और तीखी वाली चटनी भी है अब देर मत करो जाओ जाओ। वरना अंजाम ठीक नहीं होगा - समोसे वाला इतना बोलकर वहाँ स्वागत चला गया।

लेकिन विनय अभी भी गुस्से में था उसने कहा - चाहे कुछ भी हो जाए अब मैं समोसे देने तो नहीं जाऊंगा। - इतना बोलकर विनय ने घड़ी में टाइम देखा तो 9:00 बजने वाले थे और देखते-देखते विनय की दिल्ली वाली ट्रेन भी आ गई। विनय बड़ी खुशी से भागते हुए ट्रेन में जाकर चडगया और अपनी सीट पर तुरंत जाकर बैठ गया। और कहने लगा - चलो कम से कम अब तो ट्रेन आई अब मैं नहीं रखूंगा यहाँ अब क्या कर लेगा कोई मेरा - विनय बहुत खुश था और मन ही मन सोच रहा था अब दिल्ली जाकर वही रहूंगा। और कुछ सालों बाद आऊंगा जब सब शांत हो जाएगा। विनय ट्रेन में बैठे-बैठे अपने ख्याली पलाव पका रहा था। और थोड़ी देर बाद ट्रेन का होरन बजा और ट्रेन चल पड़ी लेकिन तभी विनय ने देखा कि ट्रेन की पूरी बोगी खाली है और उस बोगी में सिर्फ एक सीट पर एक लड़की और एक लड़का ही बैठे हैं और पूरी ट्रेन खाली हैं।

विनय ने इस बारे में ज्यादा नहीं सोचा और कह - मुझे क्या मुझे तो दिल्ली जाना है बस -अब ट्रेन को चले बड़ी देर हो गई थी। और विनय खिड़की के बगल में ही बैठा हुआ था और खिड़की भी खुली हुई थी पर उसे ऐसा लग रहा था यह जगह सब जानी पहचानी हैं। विनय ने थोड़ा ध्यान से देखा तो पता चला की ट्रेन उसके ही गाँव के अंदर ही घूम रही थी। जैसे ही विनय को यह समझ में आया तो उसके होश उड़ना लाजमी ही थे। क्योंकि उस गाँव में ना कोई रेल की पटरिया तो दूर की बात उस गाँव में आज तक कभी अंदर बस भी नहीं गई थी और अब ट्रेन पूरे गाँव के अंदर-अंदर घूम रही थी। विनय ने सोच क्या पता इस बार भी ये मेरा कोई सपना ही हो। इसलिए विनय ने जोर-जोर से अपने आप को नोचने लगा और थप्पड़ मारने लगा।

लेकिन यह विनय को कोई सपना नहीं था। अब विनय को समझते देर नहीं लगी की उसने कितनी बड़ी गलती कर दी यहां से बिना बताए भागने की। विनय तुरंत अपनी सीट से उठकर गेट के पास गया उसने देखा ट्रेन तो बहुत तेजी से चल रही है वो अब कुछ भी नहीं कर सकता था। तो विनय चीखने चिल्लाने लगा - छोड़ दो मुझे मुझे मत मारो मैंने क्या करा है ऐसा लेकिन उस बोगी में और तो कोई था नहीं। बस एक लड़का और एक लड़की और वो भी अपनी सीट पर बैठे हुए थे विनय को चिल्लाता देख वो दोनों विनय के पास आए। और उन दोनों ने विनय से कह - क्या हुआ तुम अपने आप को तो बहुत समझदार समझते हो ना इस गांव से कोई भी जिन्दा नहीं जा सकता वापस। मरने के बाद का पता नहीं - विनय अब उनकी बाते सुनकर बहुत डर चुका था।

और वो रोते हुए नीचे गिर कर बोला - माफ कर दो मुझे मैंने क्या किया है - इतना बोलकर विनय ने जैसे ही उन दोनों का चेहरा देखा तो मानो विनय की धड़कन अब रुकी ही गई हो।ऐसा लग रहा था विनय के शरीर का चलता खून अब जम गया हो क्योंकि विनय ने देखा यह तो वही दोनों हैं जो उस दिन सुरेश के घर पर मिले थे। और इन्होंने उस बूढ़े चाचा को भी मार दिया था विनय की हालत अब बहुत ज्यादा खराब हो गई थी। उसके बाद उन दोनों ने अपनी डरावनी और खतरनाक आवाज में विनय से कहा - क्यों तुम समोसे नहीं ले जाओगे तुम को फिर मरना होग । याद है ना तुम्हारे चाचा गाँव के प्रधान थे उनकी हालत कैसी हुई थी। उन्होंने भी मना कर दिया था और गांव में कितने लोगों की मौत हुई है शायद तुम भूल गए। चलो आज नंबर तुम्हारा है - इतना बोलकर उन दोनों ने विनय के सर के बाल से पकड़ के उठा लिया।

लेकिन विनय चीख चिल्ला रहा था और माफी मांग रहा था। और बार-बार कह रहा था - मुझे माफ कर दो अब रोज सही समय पर मैं समोसे लेकर आ जाऊंगा - विनय गिड़गिड़ा कर रो रहा था तभी उन्होंने विनय को बूगी की फर्श पर बड़ी जोर से पटका। फिर उस जले हुए कंकाल जैसे लड़के ने विनय से कहा - अगर तुझे जिंदा रहना है तो फिर तू उसी घर में रोज सही समय पर समोसे लेकर आ जाना जब तक आएगा तब तक ही बचेगा वरना बचेगा तो कोई नहीं इस गाँव का मरेंगे तो सब जल्दी मरेंगे - विनय डरा तो हुआ था लेकिन डरते डरते हुए ही उसकी थोड़ी हिम्मत आई और उसने बोला - तुम लोग क्यों मारना चाहते हो सबको क्या बिगाड़ा है तुम लोगों का हम सबने - विनय की बात का उसको जवाब तुरंत मिला उन दोनों ने कहा - तुम सब लोग दरिंदे हो और तुम सब लोगों को तुम्हारे किए की सजा जरूर मिलेगी तुम लोगों ने हमें मारा है और हम अब सब को मार देंगे। -

विनय ने उसके बाद पूछा - किसने मारा है आपको - विनय की बात का जवाब देते हुए उसने कह - मैं सुरेश हूं और मेरे साथ ये मेरी प्रेमिका सकीना है हम लोगों के प्यार के दुश्मन तुम्हारे गाँव वालों ने हमें जिंदा जला दिया इसलिए जब तक हम उनको उनके किए की सजा नहीं दिला देंगे तब तक हमें मुक्ति नहीं मिलेगी। - विनय ने सुरेश की बात सुनकर कहा - मैं दिलाऊंगा आप लोगों को मुक्ति बताओ क्या करना होगा मुझे आप की मुक्ति के लिए। तभी सुरेश ने अपनी डरावनी और गंभीर आवाज में विनय से फिर कहा - मुफ्ती तो हमको मिलेगी लेकिन हम खुद लेंगे क्योंकि हम को मुक्ति दिलाना इतना आसान नहीं है तुम नहीं दिला पाओगे हमको मुक्ति हमारी मुक्ति के लिए इस गांव के एक-एक आदमी को को मरना होगा इस गांव को जो श्राप दिया है उस श्राप का पूरा होना जरूरी है तुम सब मरोगे तभी हमें मुक्ति मिलेगी बस। -

विनय ने एक बार और हिम्मत करते हुए कहा - लेकिन जिन लोगों ने आपके साथ ऐसा किया कसूरवार तो बस वही लोग हैं ना बाकी निर्दोष लोगों को क्यों मारना चाहते हो आप दोनों । - सुरेश और सकीना ने कहा - कसूरवार गाँव का हर एक इंसान है सब लोगों ने हमारी मौत का तमाशा देखा था और गाँव के हर एक इंसान ने कहा था कि इन प्यार करने वालों को जिंदा रहने का कोई हक नहीं है इसलिए कसूरवार गाँव का हर एक इंसान है। - सुरेश ने फिर कहा लेकिन तुम जिंदा रहोगे बस तुमको रोज समोसे लेकर आना होगा उसी घर पर सही समय पर अगर ऐसी गलती फिर करी उसी समय मारे जाओगे - इतना बोलकर विनय को चलती ट्रेन से सुरेश और सकीना ने नीचे फेंक दिया। लेकिन आश्चर्य की बात तो यह थी। जब विनय की थोड़ी देर बाद आंख खुली तो विनय सुरेश के घर के बाहर खिड़की के पास पड़ा हुआ था यानी जो विनय को चलती हुई ट्रेन दिख रही थी वह सुरेश का घर था।

 लेकिन विनय समझ चुका था अब चालाकी नहीं चलेगी क्योंकि जान आज बड़ी मुश्किल से बची है। उसके बाद विनय अपने घर चला गया। विनय बता कर गया था कि वो शहर जा रहा हैं इसलिए उसके घर आते ही घर के लोग कहने लगे - क्या हुआ विनय तुम वापस आ गए और दिनभर कहां थे और इतनी रात को वापस आए - विनय ने उनकी बात का जवाब देते हुए कहा - मेरा मन नहीं हो रहा मैं बाद में जाऊंगा दिल्ली - विनय की बात सुनकर घर के लोग भी शुक्र मना रहे थे चलो ठीक है। उसके बाद उसके पिताजी ने कहा - अब तुम्हारे चाचा जी की तेरवि हो जाएगी तब ही जाना जहां जाना हो - विनय ने हां कह दिया लेकिन विनय ने घर वालों को कुछ भी नहीं बताएं जो सब घटना विनय के साथ घाटी थी। और विनय जाकर बिस्तर पर लेट गया।

 लेकिन इतना कुछ होने के बाद अब विनय को नींद कहां आने वाली थी। विनय लेटे हुए बस यही सोच रहा था - आज तो बड़ी मुश्किल से बचा हूँ लेकिन उसे समझ नहीं आ रहा क्योंकि गया था वो रेलवे स्टेशन में और वहाँ से ट्रेन पकड़ी ट्रेन पर बैठा ट्रेन भी चल रही थी। फिर ऐसा कैसे हो सकता है कि जब उन लोगों ने मुझे ट्रेन से नीचे से फेका तो मैं गांव में ही था सुरेश के घर पर। इसी उधेड़बुन में विनय बिस्तर पर पड़ा हुआ था क्योंकि आश्चर्यजनक बात तो थी ही। लेकिन विनय ने यह भी सोच लिया था इस गाँव को तो अब वो इस श्राप से आजाद करा के ही रहेगा। और विनय ने कह - जब तक इस गांव को मैं मुक्त नहीं करा लूंगा अब तब तक मैं यहां से नहीं जाऊंगा कहीं। चाहे कुछ भी हो जाए अब मैं अपने गाँव के लोगों को ऐसे मरते हुए नहीं छोड़ सकता।


विनय अपने कमरे में लेटे लेटे बस यही सोच रहा था की गाँव को श्राप से मुक्त कराने के लिए कुछ तो करना होगा। फिर अगले दिन विनय, सुरेश और सकीना के बताया अनुसार समोसे लेकर शाम को 7:00 बजे सुरेश के घर जाता है और उस कमरे में समोसे रख कर आ जाता है। लगातार ऐसा कई दिनों तक चला और गाँव में भी सब कुछ ठीक था। साथ ही साथ विनय इस प्रयास में भी था की वो गाँव को श्राप से मुक्त करा सकें। सब कुछ सही चल ही रहा था तभी 1 दिन विनय शाम को 7:00 बजे समोसे लेकर सुरेश के घर पर जाता है समोसे वहाँ पर रख कर वापस आ ही रहा था।

तभी उसे खबर मिलती हैं कि विनय के घर के पास में ही एक ताऊ जी रहा करते और आज उनकी मौत हो गई मौत का कारण वही बिल्कुल उसी अंदाज में ताऊ जी की भी मौत हुई जैसे ही विनय ने बात सुनी तो उसे अब अपने आप पर बहुत गुस्सा आ रहा था। क्यूंकि वो रोज उसको समोसे लेकर जा रहा हैं फिर भी वह गाँव में किसी ना किसी की जान ले रहा है वो। और अब उस ताऊ जी का अंतिम संस्कार करने के लिए सब लोग जा रहे थे और अब तो गाँव के लोगों को इसकी आदत पड़ ही चुकी थी क्यूंकि हर 10-15 दिन में किसी ना किसी की जान जा रही थी। आज अंतिम संस्कार में विनर भी शामिल था।

और रात हुई और विनय समोसे लेकर फिर गया लेकिन समोसे रखते ही विनय जोर-जोर चिल्लाने लगा - अब तो मैं रोज समोसे लेकर आ ही रहा हूँ तो तुम अभी भी लोगो की जान क्यों तुम ले रहे हो अब तो छोड़ दो सबको - विनय का इतना ही कहना था कि। विनय के सामने तुरंत सुरेश और सकीना आ गए। अपनी जल्दी भूनी झुलसी हुई हालत में दोनों आकर विनय के सामने खड़े हुए और एक साथ डरावनी आवाज में बोलने लगे - तुमको अपनी जान प्यारी है या सबकी तुम भी तभी तक जिंदा हो जब तक समोसे लेकर आ रहे हो मरना तो सबको इस गाँव में सबका नंबर आएगा बारी-बारी से - इतना ही बोल कर वो दोनों तुरंत विनय की आंखों से ओझल हो गए।

विनय करता भी तो क्या करता रोता और अपने आप को कोसते हुए वापस आ गया। लेकिन विनय ने सोच लिया था अब शांत तो बैठना नहीं है हार नहीं मानूंगा चाहे कुछ भी हो जाए। इसलिए विनय इन चीजों के बारे में अब हर जगह पढ़ने लगा इंटरनेट में तरह-तरह की जानकारी जुटा रहा था। कि कैसे छुटकारा मिल सकता है ऐसे श्राप से इस गाँव को। और विनय एक दिन सुबह जल्दी उठा। और अपने गांव से दूर दूसरे गाँव में गया। विनय को पता चला था कि यहां कुछ बाबा तांत्रिक रहते हैं जो थोड़ा भूत प्रेत के बारे में जानकारी रखते हैं। विनय की इतनी सारी खोज के बाद तो यह पता चल चुका था कि अगर श्राप से मुक्त कराना है गाँव को तो सुरेश सकीना को पहले मुक्ति दिलानी होगी इसलिए उस गाँव में जाते ही विनय ने एक जाने पहचाने बाबा को ढूंढ लिया इन बाबा का नाम लोगों में बहुत सुना था।

विनय बाबा के पास गया और जाते ही रोने लगा और बाबा के पैरों में गिर कर उसने कहा - बाबा आप हमारे गाँव को बचा लीजिए हमारे गाँव में हर दिन मौत का खेल हो रहा है। क्योंकि वो हमारे गाँव में किसी को नहीं छोड़ेगा धीरे-धीरे उसने आधी आबादी खत्म कर दी है। - बाबा ने विनय की बात बहुत शांति से सुनी और फिर कहा - अच्छा तुम उसी गाँव से आए हो वहाँ के लोगों को तो मैंने पहले भी समझाया था लेकिन वहां के लोग भी तो नहीं मानते कुछ - बाबा की बात सुनकर विनय ने कहा - बाबा आपने पहले भी सुना था हमारे गाँव के बारे में क्या - फिर विनय को जवाब देते हुए बाबा ने कहा - इस गांव के बारे में 2 साल से ही सुन रहे हैं हम वहाँ के कई लोग आए हमारे पास इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए मैंने उन लोगों को कहा सुरेश और सकीना का अंतिम संस्कार विधि विधान से करना होगा तब उनको मुक्ति मिल जाएगी और उस गांव के लोग भी श्राप से बच जाएंगे।

लेकिन सुरेश के पिता और सकीना के घरवाले कह रहे थे हम उनके लिए कोई पूजा नहीं कराएंगे क्योंकि हमने उनसे अपने सारे रिश्ते नाते तोड़ लिए थे इसलिए ना वह हमारे लिए मरने से पहले कुछ थे और ना वो अब मरने के बाद हैं गांव के लोगों ने कई बार सुरेश के पिताजी को समझाया लेकिन वह कह रहे थे मैं सुरेश के लिए कोई पूजा नहीं कर आऊंगा। - बाबा की सारी बात सुनकर विनय ने कहा - बाबा कोई ना कोई उपाय जरूर करो बचा लो इस गाँव को उस भयानक श्राप से। - बाबा ने विनय की ऐसी हालत देखी तो बाबा ने कहा - उपाय तो है और समय भी बहुत अच्छा है अभी 3 दिन बाद अमावस है और अमावस की रात सभी भूत प्रेत और पितरों की शक्ति बढ़ जाती है और मौका भी सही होता है इन को प्रसन्न करने का इसलिए अगर सुरेश के पिताजी मान जाते हैं तो विधि विधान से सभी अंतिम संस्कार पूरा करके उस गाँव को बचाया जा सकता है।

बाबा ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा - इसलिए अभी तुम्हारे पास 3 दिन है 3 दिन में गाँव वालों को कह कर सुरेश और सकीना के घरवालों को राजी कर लो अंतिम संस्कार के लिए। - विनय ने बाबा को शुक्रिया कहा और वहां से तुरंत अपने गाँव की ओर लौट आया गाँव आते ही विनय बस वही सोच रहा था सुरेश की अंतिम क्रिया कर्म के लिए सुरेश के पिताजी को कैसे राजी किया जाए। विनय को यह तो पता था गाँव के सब लोग बोलेंगे तभी सुरेश के पिता जी राजी होंगे इस काम के लिए इसलिए विनय ने सबसे पहले यह बात अपने पिताजी को ही बताई विनय ने सारी घटना बताई और अपने पिताजी को कहां - मैंने एक तांत्रिक बाबा से भी बात करी है उन्होंने बताया 3 दिन बाद अमावस की रात है यह बहुत सही समय है। -

विनय की बात सुनकर उसके पिताजी ने कहा - तुम सही कह रहे हो बेटा उन बाबा जी के पास हम लोग पहले भी गए थे और उन्होंने पहले भी हमें बहुत उपाय बताए थे लेकिन सुरेश के पिता जी अंतिम संस्कार के लिए राजी नहीं हुए थे। - उसके बाद विनय के पिता जी ने इस गाँव के सरपंच जी को जाकर सारी बात बताई और कहा - आखिर सुरेश के पिता अंतिम संस्कार के लिए तैयार क्यों नहीं हो रहे उनको भी तो पता है इस गांव में अब तक कितने लोगों की मौत हो चुकी है। - विनय भी वही था अपने पिता जी की बात खत्म होते ही विनय ने कहा - सरपंच जी सुरेश के पिता लगता है जानबूझकर ही अंतिम संस्कार नहीं करना चाहते जानबूझकर इस गाँव के लोगों को मर वाना चाहते हैं -

अगले दिन गाँव के सरपंच ने गाँव के सभी लोगों को बुलाया। सुरेश के पिता और सकीना के परिवार के लोग भी वहाँ आए हुए थे। उसके बाद सरपंच जी ने कहा - इस गाँव में 2 साल में 300 से भी ज्यादा लोगों की जान चली गई है और सबको पता है मौत का कारण क्या है लेकिन फिर भी हम लोग आंखें मूंद कर बैठे हुए हैं लेकिन अब नहीं अब हमको इस गाँव को श्राप से मुक्त कराना ही होगा। इसलिए मैं और मेरे साथी सभी पंचों का कहना है और पूरे गाँव का भी यही मानना है की अब 2 दिन बाद अमावस की रात आने वाली है इसलिए सुरेश के पिताजी सुरेश का अंतिम संस्कार करेंगे विधि विधान से और सकीना के घर वाले भी अपने रीति रिवाज से अंतिम संस्कार करेंगे यही हमारा फैसला है और इसको सबको मानना पड़ेगा -

सरपंच की बात सुनकर गांव की सभी लोग भी खुश थे और सब लोगों ने कहा - हाँ सही बात है यह फैसला मानना ही पड़ेगा और आने वाली अमावस की रात को अंतिम संस्कार का रस्म करना ही होगा - सरपंच ने सुरेश के पिता से उनकी राय मांगनी चाहिए तो फिर सुरेश के पिता ने साफ मना कर दिया। उन्होंने कहा - सुरेश जिंदा रहते हुए भी हमारे लिए कुछ नहीं था और ना ही मरने के बाद कुछ हैं इसलिए हम नहीं करेंगे - सुरेश के पिता का इतना ही कहना था। तभी वहाँ उपस्थित गाँव के सभी लोगों ने उनका विरोध करना शुरू कर दिया। और कहां - यह जानबूझकर अंतिम संस्कार नहीं करना चाहते हमको लगता है ये जानबूझकर इस गाँव को मरवा देना चाहते हैं -
उसके बाद सुरेश के पिताजी भरी सभा में रोने लगे और जोर-जोर से बोल रहे थे - तुम सब लोगों ने भी तो मेरे सुरेश को तड़पा तड़पा कर मारा और जिंदा जला दिया। तो तुम लोगों को भी तो तुम्हारे किए की सजा मिलनी चाहिए इसलिए सही हो रहा है इस गाँव के साथ - लेकिन सरपंच जी ने गरजते हुए कहा - तुम्हारे बेटै के साथ जो हुआ गलत हुआ और उनको मौत के घाट उतारने वाले गाँव के कुछ लोग थे। अब 300 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है जिन लोगों ने सुरेश और सकीना को मारा उनकी गलती की वजह से इस गाँव को हमेशा के लिए तो नहीं श्रापित रहने दिया जाएगा इसलिए यह पंचों का फैसला है और तुमको इसे किसी भी हालत में मानना पड़ेगा 2 दिन बाद अमावस की रात है और तुमको सुरेश का अंतिम संस्कार करवाना ही होगा -

इतना कहकर पंचौ की पंचायत सभा खत्म हो गई। गाँव के सभी लोगों के कहने पर सुरेश के पिता अमावस वाली रात को अंतिम क्रिया कर्म करने को तैयार हो गए। यह समझो उनको अब सभी के दबाव में यह करना पड़ रहा था। और इस दौरान विनय शाम को समोसे लेकर जाता ही रहा और मन ही मन खुश भी हो रहा था - बस अब अमावस के बाद मुझे और मेरे गाँव को इस श्राप से छुटकारा मिल जाएगा - 2 दिन बीते और अमावस बी आई और दिन मे विनय और गाँव के लोग तुरंत जाकर बाबा को ले आए। बाबा ने दिन भर उस जगह पर जाकर थोड़ी पूजा करी जहाँ सुरेश को जिंदा जला दिया गया था। और उसके बाद बाबा ने कहा - बाकी की पूजा रात को ही होगी। -

अमावस की रात घनघोर अंधेरा था उस दिन बाबा और बाबा के कहने पर सुरेश के परिवार के लोग और गाँव के कुछ लोग उसी जगह पर गए जहां सुरेश और सकीना अंतिम दिनों में रहा करते थे बाबा ने पूजा शुरू करी और सुरेश के पिता जी अब अंतिम संस्कार पूर्ण करा रहे थे। सुरेश का अंतिम संस्कार मरने के बाद नहीं किया गया था इस वजह से शुरू से ही सभी विधि विधान से अंतिम संस्कार की रस्म पूरी की गई। पूजा चल ही रही थी तभी बाबा ने कहा - आज अमावस है इसलिए आज भूत प्रेत और पितरों की शक्ति बहुत ज्यादा बढ़ जाती है इसलिए अगर अभी सुरेश और सकीना की आत्मा वहाँ आए तो सब लोग माफी मांगना तभी इस गांव को श्राप से मुक्ति मिलेगी। -

तभी अचानक वहाँ बैठे सभी लोगों ने महसूस किया कि जैसे हवा तेजी से इसी तरफ आ रही हो और देखते ही देखते बाबा के सामने सुरेश और सकीना आ गए। और सभी लोगों को दिखाई देने लगे लेकिन वहाँ बैठे सभी लोग डर कर भागने लग गए थे। क्योंकि सुरेश और सकीना की शक्ल बहुत भयानक लग रही थी बिल्कुल जली हुई हालत में दोनों खड़े थे हड्डी हड्डी नजर आ रही थी। लेकिन बाबा ने सभी लोगों को रोका और कहा - इन से माफी मांग लो अब ताकि इस गाँव के लोगों की जान अब बच जाए - बाबा के कहने पर वहाँ बैठे सभी लोग रो-रो कर माफी मांग रहे थे और कह रहे थे - अब माफ कर दो हमें हम से जो गलती हुई थी उसकी सजा भुगत चुके हैं हम लोग। - लेकिन वहाँ पर खड़े सुरेश और सकीना की आत्मा कुछ भी जवाब नहीं दे रही थी।

तभी बाबा ने जो जोर से मंत्र पढ़ना शुरू करा और कहा - हम तुम्हें मुक्त कर देंगे या अभी भस्म कर देंगे बाबा ने कहा तुम्हारे पास दो ही रास्ते हैं मुक्ति या अभी हम भस्म कर देंगै। - बाबा का गुस्से में गरजते हुए इतना ही कहना था और फिर तुरंत सुरेश और सकीना अपनी भयानक आवाज में बोलते हैं - हमारी क्या गलती थी हमें क्यों मारा इन लोगों ने। हमारा क्या कसूर था। - बाबा ने जवाब देते हुए कहा - जिन लोगों ने तुम्हे मारा तुमने उन सब को मार दिया है। तो अब तो मुक्त कर दो इस गाँव को - लेकिन उन दोनों ने कहा - इस गाँव का हर एक आदमी अपराधी है और हम उन सबको उनके मौत के घाट उतारकर ही मानेंगे -

बाबा ने फिर कहा - अभी तुम्हारे पिताजी और तुम्हारे परिवार के लोगों ने तुम्हारी मुक्ति के लिए अंतिम संस्कार पूर्ण कर दिए हैं तुम मुक्त हो सकते हो लेकिन मैं तुम्हें अभी भस्म कर दूंगा - बाबा ने सुरेश को मानो एक छड़ी से ही पकड़ लिया और कहा - मैं अभी इसी अग्नि में तुम्हें डाल दूंगा। - अब बाबा के कैद में हो गए थे वो दोनों। उसके बाद बाबा ने बोला - बताओ क्या करें तुम्हारे साथ तुम इस गाँव को श्राप से मुक्त कर दो और तुम्हारी भी मुक्ति हो ही जाएगी आज - वहाँ बैठे सभी लोग गिड़गिड़ा कर माफी मांग रहे थे सुरेश और सकीना से। और सुरेश और सकीना को बाबा ने अपने पास कैद कर लिया था। इसलिए वह भी बहुत तड़प रहे थे

तो फिर सुरेश ने कहा - ठीक है अब हम नहीं लेंगे किसी की जान आप हमें आजाद कर दो - उसके बाद बाबा ने कहा - अब आजाद तो तुम हो ही गए हो मैं तुम्हें छोड़ दूंगा और तुम सीधा चले जाओगे क्योंकि अब तुम्हारी मुक्ति भी हो गई है - फिर बाबा ने तुरंत दोनों को आजाद कर दिया और गांव वालों के सामने ही सुरेश और सकीना दोनों की आत्मा अदृश्य हो गई। फिर बाबा ने कहा - अब कभी नहीं दिखाई देंगे वह बस उन लोगों का अंतिम संस्कार नहीं हुआ था अब सभी क्रिया कर्म पूरे हो चुके हैं इसलिए उन्हें मुक्ति मिल गई और आज से यह गाँव भी श्राप मुक्त हो गया गाँव में जो भी इतने सालों तक हुआ वह कहीं ना कहीं गाँव वालों की ही गलती थी गाँव वालों ने बहुत गलत किया था उन दोनों के साथ। -

विनय की मेहनत और हिम्मत ने बाबा के साथ मिलकर गाँव को बचा लिया और गाँव श्राप मुक्त हो गया। तब से आज तक गाँव में सब ठीक है और ना ही विनय को या फिर किसी को कहीं समोसे ले जाने की जरूरत पड़ती है।



इस कहानी के लेखक हैं - रामचंद्र यादव



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