एक छलावा || chalawa real story || Hindi story my

 


एक छलावा


दुर्गेश अँधेरी रात में एकेले पैदल अपने घर की तरफ चले जा रहा था। क्यूंकि दुर्गेश अपने खेतो के काम से पास के ही गाँव में गया हुआ था पर उसे वहाँ से वापस निकलने में ही लगभग रात के 9 बज गए थे। और इसी वजह से दुर्गेश ने सोचा की खेतो के बीच से जो रास्ता जाता था उससे जाना ही सही समझा क्यूंकि खेतो से जो रास्ता होकर जाता था उससे दुर्गेश के घर जाने में समय बहुत कम लगता था। इसलिए दुर्गेश वहाँ से ही जा रहा था और वो अभी लगभग थोड़ा ही आगे गया होगा तभी उसे किसी बच्चे के रोने की आवाज सुनाई देने लगी।
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आवाज सुनकर दुर्गेश ने अपने आस पास देखा पर आस पास तो कोई नहीं था। पर उसे आवाज इतनी तेज और साफ़ सुनाई दे रही थी की उसे ऐसा लग रहा था की कोई बच्चा आस पास ही रो रहा हो। पर उसे आस पास कोई नहीं दिख रहा था इसलिए उसने सोचा की - क्या पाता हो सकता हैं कोई अपने खेतो के काम से यहाँ आया होगा और यह भी हो सकता हैं की वो खेतो के उस तरफ हो और वो अपना बच्चा साथ में ही लेकर आया हो इसलिए वो मुझे दिख नहीं रहा हो - इतना बोलने के बाद दुर्गेश उस बच्चे की आवाज को अनसुना कर आगे की तरफ चलने लगता हैं। पर वो जैसे जैसे आगे जा रहा था तो वैसे वैसे उस बच्चे के रोने की आवाज भी तेज होती जा रही थी।

इसलिए दुर्गेश ने सोचा की - जिस तरफ से आवाज आ रही क्यों ना एक बार उस तरफ देखकर आता हूँ कही किसी को मेरी मदद की जरूर तो नहीं - इतना बोलकर दुर्गेश उस खेतो के बीच वाले पतला से रास्ते से नीचे उतरा और खेतो के अंदर से होकर जब वो खेतो के दूसरी तरफ पंहुचा तो उसने देखा एक 4 या 5 महीने का बच्चा खेतो की मेढ पर किसी ने रखा हुआ था और इतनी देर से उसी बच्चे के रोने की आवाज आ रही थी। और हैरानी की बात तो यह थी की उस बच्चे के आस पास कोई नहीं था। पहले तो दुर्गेश ने आस पास देखा फिर उसने जोर से चिल्लाते हुए आवाज लगाई - कोई हैं मैं कहता हूँ कोई हैं यहाँ यह किसका बच्चा हैं कौन इसे यहाँ रख गया अरे मैं कहता हूँ कोई हैं क्या यहाँ - पर दुर्गेश को उसकी बात का कोई जवाब नहीं आया।

इसलिए दुर्गेश ने सोचा - थोड़ी देर इस बच्चे के पास ही खड़े होकर देखता हूँ आखिर कौन हैं वो पागल जो अपने इतने छोटे बच्चे को यहाँ अकेले जोड़ कर चला गया - इतना बोलकर दुर्गेश लगभग आधा घंटा तक उस बच्चे के पास ही खड़ा था पर  वहाँ कोई उस बच्चे को लेने नहीं आया। फिर शायद दुर्गेश भी समझ चुका था की कोई इस बच्चे को यहाँ छोड़ कर चला गया। इसलिए दुर्गेश गुस्से में ही बोलने लगता हैं - पता नहीं कैसे कैसे लोग हैं बच्चा तो पैदा कर लेते हैं उसे पाल नहीं पाते अब बताओ इसमें इस छोटे से बच्चे की क्या गलती हैं पर मैं इस बच्चे को यहाँ ऐसे मरने नहीं दे सकता मैं अपने घर लेकर जाऊंगा इसे - इतना बोलकर दुर्गेश ने उस बच्चे को अपनी गोद में उठाकर अपने घर की तरफ जाने लगता हैं।

पर दुर्गेश अभी भी गुस्से में ही था वो अभी भी कुछ ना कुछ उल्टा सीधा बोलता हुआ जा रहा था। पर तभी उसे ऐसा लगने लगा जैसे उस बच्चे का वजन बढ़ रहा हो। पहले तो उसने सोचा की शायद यह उसका कोई वैहम होगा इसलिए वो इस बात पर कुछ ज्यादा ध्यान नहीं देता पर वो जैसे जैसे आगे जा रहा था तो वैसे वैसे उस बच्चे का वजन भी बढ़ते जा रहा था। और उस बच्चे का वजन इतना हो गया था की अब उससे वो 4 या 5 महीने का बच्चा भी नहीं उठ रहा था। पर तभी दुर्गेश ने उस बच्चे के पैरो की तरफ देखा तो उसके अंदर एक डर की हवा सी चलने लगी क्यूंकि उसने देखा उस बच्चे के पैर अब इतने बड़े हो गए थे की वो बस जमीन में  टच होने ही वाले थे।

यह देखकर दुर्गेश ने तुरंत उस बच्चे को अपनी गोद से फैक दिया। और उसके फैकने के बाद वो बच्चा हसने लगा और हस्ते हस्ते अपनी डरावनी आवाज में बोला - अरे भाई थोड़ा देर रोक जाते फिर में बताता -  दुर्गेश ने जैसे ही यह सुना वो तुरंत अपने घर की तरफ भागने लगा और वो सीधा अपने घर में आकर ही रुका। घर में आकर दुर्गेश ने किसी को कुछ नहीं बताया और खाना पीना खाकर अपने कमरे में सोने चला गया। और अभी यह सब भूल कर दुर्गेश की आँख ही लगी होगी   तभी उसे अपने कमरे के दरवाजे के पास से किसी के रोने की आवाज सुनाई देने लगी। आवाज सुनकर दुर्गेश फिर से काफ़ी डर चूका था इसलिए दुर्गेश ने अपने दोनों कानो को अपने हाथो से बंद कर लिया।

पर उसका भी उसे कोई फायदा नहीं हुआ क्यूंकि उसके कान बंद करने के बाद वो रोने की आवाज और बढ़ गई। और अब आवाज इतनी तेज हो गई थी की अब वो उस आवाज के कारण सोना तो दूर की बात वो सही से वहाँ बैठ भी नहीं पा रहा था और इसी के चलते दुर्गेश हिमत करते हुए अपने बिस्तर से उठा और दरवाजे की तरफ गया और जैसे ही उसने अपने कमरे का दरवाजा खोला तो उसे बाहर कोई नहीं दिखा और साथ ही जैसे ही उसने दरवाजा खोला वैसे ही वो जो रोने की आवाज उसे परेशान कर रही थी वो आवाज भी बंद हो गई। पर अब दुर्गेश को उस कमरे में अकेले सोने बहुत डर लग रहा था इसलिए वो सीधा अपने दादा के कमरे में गया।

और उनको सारी बात बताई तो उन्होंने घर के मंदिर में जो गंगा जल डिब्बा रखा हुआ था उसमे से थोड़ा सा गंगा जल दुर्गेश के ऊपर डाला फिर दुर्गेश से कहाँ - दुर्गेश आज तुम यही सो जाओ फिर सुबह सब ठीक हो जाएगा। - और फिर उसके बाद दुर्गेश अपने दादा जी के कमरे में ही सो गया। और फिर उसके बाद दुर्गेश को कभी ना तो वो बच्चा दिखा और ना ही उस बच्चे की रोने की आवाज सुनाई दी।


इस कहानी के लेखक हैं - शिव
इस कहानी में आवाज दी हैं - प्रियंका यादव


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