श्रापित बंगला E-8
नेहा लगातार भाग रही थी और तीसरे फ्लोर पर पहुंचते ही उसने वहाँ पर एक कमरे का दरवाजा खोला और उस कमरे में नेहा ने अपने आप को बंद कर लिया। और प्रीति नेहा की पीछे ही पीछे भागते हुए आ रही थी और उसने ने देखा नेहा ने अपने आप को उस कमरे में बंद करने के बाद दरवाजा अंदर से बंद कर लिया हैं। और प्रीति उस कमरे के पास में पहुंचते ही बाहर से ही नेहा को आवाज लगाने लगी - नेहा नेहा दरवाजा खोलो नेहा नेहा दरवाजा खोलो - प्रीति लगातार नेहा को आवाज लगा रही थी और दरवाजे को पीट रही थी।
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लेकिन नेहा को शायद इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था क्यूंकि अंदर से नेहा का कोई भी रिस्पांस नहीं आ रहा था। प्रीति रोते हुए दरवाजा पीट रही थी लेकिन यह कैसे हो सकता है कि प्रीति के इतना आवाज लगाने और दरवाजा पीटने के बावजूद नेहा को सुनाई क्यों नहीं दे रहा था। प्रीति पागलों की तरह अपने हाथ पैर जमीन पर पटक रही थी और जोर-जोर से रो रही थी तभी अगले ही पल एकदम से उस कमरे का दरवाजा अपने आप ही हल्का हल्का सा खुलने लगा। और प्रीति अपनी नजरे गड़ाए दरवाजे को देख रही थी।
और कमरे का दरवाजा जैसे ही खुला वैसे ही प्रीति कमरे में जाने को हुई तभी ऐसा लगा किसी ने प्रीति के दोनों पैर पकड़ लिए और प्रीति के पैरो से ही उसे कमरे में खींच लिया और कोई उसे घसीटते हुए खींच रहा था की तभू उसने प्रीति को एक झटके में उस कमरे के अंदर पटक दिया और दरवाजा अपने आप कमरे का बंद हो गया। कमरे में तो काफ़ी अंधेरा था लेकिन उस अंधेरे में भी प्रीति को साफ साफ दिख रहा था कक उसके बगल में ही वो कटेसर वाली औरत खड़ी थी और उसके पास ही में यही कटेसर वाले उसके दो बच्चे खड़े थे जो प्रीति को कई बार दिखे थे।
प्रीति घबराई हुई तो बहुत थी लेकिन उसने वहाँ से उठ कर भागने की जैसे ही कोशिश करी तभी एकदम से प्रीति को पीछे से किसी ने हवा में ही उठा लिया और पंखे के पास ले जाकर एक झटके में ही जमीन पर छोड़ दिया। प्रीति बड़ी जोर फर्श पर गिरी और बड़ी जोर से उसकी चिख निकली। प्रीति दर्द से कराह रही थी लेकिन तभी प्रीति की नजर ऊपर छत पर पड़ी तो उसकी चीख इतनी तेज निकली की मानो प्रीति की जान ही निकल गई हो क्योंकि उसने देखा छत पर पंखे के बराबर में नेहा चिपकी हुई थी और नेहा का सर कटा हुआ था। और नेहा का सर पंखे पर रखा हुआ घूम रहा था।
और तभी नेहा के उसी कटे सर से बहुत जोर जोर से हंसने की आवाज आ रही थी। यह सब देख कर प्रीति अब अपने काबू में नहीं थी और वो बहुत जोर जोर से रो रही थी और तड़प रही थी। क्योंकि उसके सामने ही उसकी बेटी की ऐसी हालत अब उससे देखी नहीं जा रही थी। प्रीति जोर-जोर से चिल्लाते हुए कहने लगी - तुम लोगों ने मार दिया मेरी नेहा को आखिर क्यों मारा मेरी नेहा को तुम लोगों ने क्या करा था मेरी नेहा ने क्यों मार दिया तुमने नेहा को - प्रीति जोर-जोर से रोते हुए बोल रही थी।
लेकिन पंखे पर जो नेहा का कटा हुआ सर घूम रहा था उस सर से आवाज आने लगी पहले तो हंसने की आवाज आ रही थी पर अब नेहा का कटा हुआ सर बोल रहा था - मम्मी बताया तो था रश्मि और प्रिया मेरी फ्रेंड हैं और अब मैं इनके पास आ गई हूँ अब हम सब एक साथ रहेंगे मुझे मारा नहीं हैं रश्मि और प्रिया ने मुझे अपने साथ मिला लिया है अब हम उन सबको मार देंगे जो यहाँ पर आएगा - यह सब देखकर अब प्रीति के मुंह से शब्द भी जल्दी निकल नहीं पा रहे थे। क्योंकि उसी की बेटी उसके सामने दो टुकड़े में थी उसका धड़ अलग था और सर अलग पंखे पर रखा हुआ बोल रहा था।
प्रीति को समझ नहीं आ रहा था की यह क्या हो रहा है तभी नेहा का कटा हुआ सर फिर से जोर जोर से हंसने लगा और बोल रहा था - अब हम सब को मार देंगे जो इस बंगले में आएगा सबको मार देंगे क्योंकि यह बंगला रश्मि और प्रिया लोगों का है और अब मैं भी इनके साथ ही हूँ - इतना बोलते ही नेहा का सर एकदम से आकर प्रीति के ऊपर गिरा और प्रीति के हलक से एक बहुत जोरदार चीख निकली और तभी प्रीति की आँखे खुली तो उसने देखा वो तो अभी भी अपने बेड पर ही लेटी हुई थी। और तभी उसके चीखने की वजह से संतोष की आँख खुल गई।
और संतोष ने उठते ही प्रीति से कहा - क्या हुआ तुम इतनी जोर से चीखी क्यों क्या हो गया - उसके बाद प्रीति ने रोते हुए संतोष से कहा - नेहा कहाँ है - फिर संतोष ने कहा - अरे यह तुम्हारे बगल में ही तो लेटी है - प्रीति ने जैसे ही नेहा को देखा तो उसने उसको अपने सीने से लगाकर जोर जोर से रोने लगी। प्रीति नेहा को अपने सीने से चिपका कर ऐसे रो रही थी जैसे वो नेहा से बड़े दिनों बाद मिली हो। उसके बाद संतोष ने प्रीति से कहा - क्या हो गया प्रीति - फिर प्रीति ने जो सपना देखा था वो सब संतोष को बता दिया। उसके बाद संतोष ने प्रीति के सर पर हाथ फेरते हुए कहा - प्रीति तुम यह सब बातों को सेचना बंद कर दो यह सब बातें तुम अभी अपने दिमाग से निकाल दो और सो जाओ यह रात तो आज बिता लो कल हम किसी भी हालत में दूसरा घर ढूंढ लेंगे फिर वहाँ जाकर रहेंगे -
फिर संतोष ने अपनी बात जारी रखते हुए कह - अभी बहुत रात हो रही है तुम सो जाओ - उसके बाद प्रीति चादर ओढ़ कर लेट हो गई। लेकिन वो भगवान से लाख लाख शुक्र मना रही थी कि वो बस एक सपना ही था जो उसने देखा था। पर उसे खुद यकीन नहीं आ रहा था कि उसने वो सपना देखा था लेकिन जो भी था चलो कम से कम वो सपना तो था इस बात का उसे थोड़ा सुकून था। और अभी प्रीति को लेटे हुए लगभग अभी 5 से 10 मिनट ही हुए होंगे की तभी उसके कानों में एक आवाज आने लगी इस बार आवाज थोड़ी जोर जोर से आ रही थी और वो बिल्कुल साफ साफ सुनाई दे रही थी। वो किसी औरत की आवाज बोल रही थी - जो अभी तुमने सपने में देखा है वो हकीकत में हो जाएगा अगर तुमने यह बंगला अपनी मर्जी से छोड़ने की कोशिश करी और नेहा को हम लोगों से अलग करने की कोशिश करी -
यह आवाज सुनते ही प्रीति फिर उठ कर बैठ गई और उसने संतोष को कहा - संतोष तुमने कुछ सुना - फिर संतोष ने कहा - क्या सुना कैसी बात कर रही हो - फिर प्रीति ने कहा - अभी जो आवाज आई थी - फिर संतोष ने कहा - मुझे तो कोई भी आवाज नहीं सुनाई थी - फिर प्रीति ने कहा - लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है क्योंकि इस बार आवाज तो बहुत जोर जोर से आ रही थी - लेकिन संतोष ने प्रीति को कहा - अरे यह कोई वैहम है तुम्हारा क्योंकि मैंने कोई आवाज नहीं सुनी और अब तुम सो जाओ कल सुबह बात करेंगे - उसके बाद प्रीति फिर लेट गई और सोने की कोशिश करने लगी। लेकिन उसको नींद नहीं आ रही थी क्यूंकि उसके दिमाग में बस यही घूम रहा था की एक तो वो बुरा भयानक सपना और दूसरा वो जो उसको अभी आवाज आई थी यह सब बातें हैं उसके दिमाग में चल रही थी कि काश हम यहाँ आए ही नहीं होते। इसके आगे की कहानी अब अगले एपिसोड में हैं