काला कब्रिस्तान (हॉरर स्टोरी )
काला कब्रिस्तान हिंदुस्तान के सबसे हॉन्टेड जगहों में से एक हैं कहते हैं कोई भी रात के 11 बजे के बाद उस कब्रिस्तान के आगे से नहीं जा सकता। उसके अंदर से जाना तो दूर की बात हैं कोई उस कब्रिस्तान के आगे से भी नहीं जा सकता। उस कब्रिस्तान की दीवारे लगभग 1 किलोमीटर तक फैली हुई हैं और कोई भी रात के 11बजे के बाद वहाँ से जाता हैं तो वो जिन्दा नहीं बचता।
कहते हैं वहाँ जितनी भी बुरी शक्तियां या आत्मा हैं उनकी वो दीवारे एक सीमा हैं मतलब कोई भी बुरी शक्ति उस कब्रिस्तान की दीवारों से आगे नहीं जा सकती। अगर कोई भी रात के 11 बजे के बाद वहाँ से जाता हैं तो वो बुरी शक्ति उसे बस उस कब्रिस्तान की सीमा तक ही मार सकती हैं ना तो उसे पहले ना तो उसके बाद।
आज की जो यह कहानी हैं वो काला कब्रिस्तान के पास के ही गाँव में रहने वाले बिर्जेश जी के साथ घाटित घटना हैं अब यह कहानी में उन्ही के शब्दों में जारी रखूँगा।
नमस्कार मेरा नाम बिर्जेश हैं और मैं एक टांगा चलाने वाला हूँ ( टांगा एक प्रकार की गाड़ी जिसमें एक घोड़ा जोड़ा जाता है।) वो रविवार का दिन था शाम के लगभग 7बजे थे और मैं अपने घर पर ही था तभी वहाँ प्रकाश आया। प्रकाश हमारे गाँव का तो नहीं था पर उसे कुछ खेत हमारे ही गाँव में थे जिसके करण वो यहाँ आते रहता था।
फिर उसके बाद प्रकाश ने मेरे पास आकर कहा की उसकी कुछ घाँस उसके खेत में कटी रखी हैं और उसकी घाँस को उसके घर तक झोड़ना हैं। उसका गाँव हमारे गाँव से लगभग 5 या 6 किलोमीटर की दुरी पर ही होगा इसलिए मैंने भी हाँ बोल दिया और यह सोचा की रात के 11 बजे से तो पहले ही आ जाऊंगा क्यूंकि उसके गाँव जाने का रास्ता उसी काला कब्रिस्तान से था।
मैं उस दिन 11 बजे से पहले आ भी जाता पर उसके खेत से घाँस लोड करने में काफ़ी समय लग गया था। इसलिए मुझे प्रकाश के गाँव तक पहुंचने में ही 10 बज गए थे और घाँस टांगे से नीचे रखने में भी काफ़ी समय लग गया था। और इसी वजह से प्रकाश मुझे बार बार उस दिन अपने ही घर में रुकने को बोल रहा था क्यूंकि उसके गाँव से हमारे गाँव को बस एक ही रास्ता था जो उस ही काला कब्रिस्तान के आगे से होकर जाता था।
पहले तो एक बार को मेरा दिल भी प्रकाश की बात मान जाने को कर रहा था। पर फिर मैंने सोचा की अगर मैं घर नहीं गया तो मेरे घर वाले परेशान हो जायेंगे। ना तो मेरे पास उस समय कोई फ़ोन था और ना ही मेरे घर वालो के पास कोई फ़ोन था और ऊपर से मेरे घर में मेरे दो छोटे छोटे बच्चे मेरी बीवी और मेरे माता पिता थे और मुझे उन सबकी चिंता ने वहाँ से आने पर मजबूर कर दिया।
फिर उसके बाद मैं प्रकाश के घर से अपने घर के लिए निकल गया और लगभग 10 मिनट में मैं उस ही कब्रिस्तान के पास भी पहुंच गया। वहाँ पहुंचते ही मैंने अपनी घाटी में समय देखा तो रात के 11 बज चुके थे पहले तो मैंने लौट जाने को सोचा फिर मैंने किसी तरह हिम्मत करी और भगवान का नाम लेकर आगे बढ़ गया।
मैं अभी कुछ ही आगे गया था तभी मुझे ऐसा लगा की कोई मेरे टांगे पर आकर बैठ गया हो। फिर उसके बाद मैंने एकदम से पिछे मूड कर देखा तो पर वहाँ कोई नहीं था पर मुझे अभी भी यह लग रहा था की कोई मेरे पिछे बैठा हो। फिर जब मैं थोड़ा और आगे बढ़ा तो जैसे मेरे टांगे में वजन बढ़ गया हो फिर उसके बाद मैं जैसे जैसे आगे बढ़ रहा था वैसे वैसे जैसे टांगे में भी वजन बढ़ते जा रहा था। अब मेरे टांगे के पिछे इतना वजन हो गया था की मेरा टांगा आगे से थोड़ा थोड़ा उठने लगा था और मेरा घोड़ा भी अब लगड़ा लगड़ा कर चल रहा था। यह देखकर मैं समझ गया था की वो इसमें आ गई हैं और मैं यही सोच रहा था की सायद अब मैं ना बच पाउँगा।
फिर तभी मुझे अपनी माता जी की बात याद आई की उन्होने मुझे बताया था की यह भूत और आत्मा आग से थोड़ा डरते हैं। इसलिए फिर उसके बाद मैंने तुरंत अपने जैब में रखी बीड़ी निकाली और मैं बीड़ी पिने लगा जैसे ही मेरी एक बीड़ी गत्म होती मैं तुरंत दूसरी बीड़ी जला लेता ऐसा करते करते जब मेरी पूरी बीड़ी गत्म हो गई। फिर उसके बाद मेरे टांगे में इतना वजन हो गया था की टांगा बहुत धिरे धिरे चल रहा था पर मैं अभी भी कब्रिस्तान को आधा भी पार नहीं कर पाया था।
सर्दी का समय था इसलिए मैंने काफ़ी कपडे पहने थे इसलिए जैसे ही मेरी बीड़ी गत्म हुई तो मैंने जो कंबल उड़ा हुआ था उसे उतार कर मैंने उसमे तुरंत आग लगा दी फिर उसके बाद कंबल की आग जैसे ही गत्म होने ही वाली थी वैसे ही मैंने तुरंत अपना स्वेटर निकाल कर उसको भी जला दिया और फिर उसके बाद स्वेटर की आग जैसे ही गत्म होती उससे पहले मैंने अपनी कमीज निकाल कर उसको भी जला दी।
जान बचाने के लिए मुझे कुछ तो करना ही था इसलिए मैं अपने शरीर में पैहने सभी कपड़ो को जला रहा था। ऊपर के सभी कपडे गत्म होने पर मैंने तुरंत अपना पैजामा निकाला और तुरंत कर उसमे भी आग लगा दी। अब बस मेरा एक कच्चा ही बचा था पर उससे पहले मेरे पैजामे की आग गत्म होती उससे पहले ही मैंने कब्रिस्तान की दीवारे पार कर ली थी और जैसे ही मैंने कब्रिस्तान पार करा तो मैंने देखा एक बड़ी ही भयानक सी औरत मेरे टांगे से नीचे उत्तरी और उनसे नीचे उतरते ही उसने अपनी बड़ी ही भयानक आवाज में कहा - आज तो बच गया तू पर आगली बार आया तो नहीं बचेगा - इतना बोलकर वो वही खड़ी रही और मैं अपने घर की ओर चला आया फिर उस दिन के बाद से ही मैं कभी उस रास्ते से रात में नही गया।
