फारेस्ट गार्ड की नौकरी का पेहला दिन E-2
मैंने जैसे ही गुम के उस लड़की की तरफ देखा तो मानो मुझे ऐसा लगने लगा जैसे मेरा दिल अभी छाती फाड़ कर बाहर आ जाएगा। क्यूंकि जैसे ही मैंने उस लड़की की तरफ देखा वैसे ही मेरे दिल की धड़कन अपनी दुगनी रफ़्तार में चलने लगी। क्यूंकि मैंने देखा उस लड़की का चेहरा अब एकदम भयानक सा हो गया था उसका मुँह पूरा सफ़ेद और जगह जगह से फटा हुआ था। और उसके पुरे शरीर में चोट लगी हुई थी जिसमे से खून निकल रहा था।
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मैं उस लड़की को खड़े खड़े डरते हुए देख ही रहा था तभी मुझे ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरे कंधे पर पिछे से हाथ रख दिया हो। उसके बाद मैंने डरते हुए धीरे धीरे से पिछे मुड़कर देखा तो मेरे फिर होश उठ गए क्यूंकि मैंने जैसे ही पिछे मूड के देखा तो पिछे कोई भी नहीं था। फिर उसके बाद मैंने डरते हुए जैसे ही फिर से उस लड़की की तरफ देखा तो अब उस जगह पर कोई नहीं था फिर उसके बाद मैंने जैसे ही उस लड़की की लाश की तरफ देखा पर अब उस जगह पर कुछ भी नहीं था मैं खड़े खड़े बस यही सोच रहा था की ऐसा कैसे हो सकता हैं
क्यूंकि अभी थोड़ी ही देर पहले उस लड़की की लाश यही पर थी और थोड़ा उधर वो लड़की भी बैठी हुई थी। पर अब वहाँ कोई नहीं था। फिर उसके बाद मैंने वहाँ बिना समय गवाएं तुरंत अपने कमरे की भागने लगा। तभी मैं भागते भागते एकदम से रुक गया क्यूंकि मैंने जैसे ही भागना शुरू करा था वैसे ही उस लड़की के हँसने की आवाज पुरे जंगल में गूंजने लगी। मैं डर के मारे एक ही जगह पर खड़े होकर इधर उधर देखने लगा पर मुझे वहाँ आस पास कोई नजर नहीं आ रहा था।
और मैं यही सोच रहा था की मैं आज यह कौन सी मुसीबत यह सब तो मैंने बस किस्से कहानियो में ही पढ़ा था पर आज मैं इन सबका अनुभव सच में कर रहा था। फिर उसके बाद मैंने वो हंसी को अनसुना करते हुए अपने कमरे की ओर भागने लगा। उस समय में लगा तार बस भागे ही जा रहा था क्यूंकि मैं पहले उस रोने की आवाज का पीछा करते हुए काफ़ी आगे निकल आया था। इसलिए मैं बस लगातार भागे ही जा रहा था तभी मैं भागते भागते किसी चीज से बड़ी जोर से टकरा के नीचे कर गया।
मैं जिस भी चीज से टकराया था वो चीज मुझे बड़ी ही तेज लगी थी जिसके करण मुझे उस समय काफ़ी चोट आ गई थी। पर उसके बाद मैंने अपने आप को थोड़ा सभाला और अपनी टॉर्च उठा कर देखने की कोशिश करने लगा की मैं की चीज से टकराया था। पर मैंने अपने टॉर्च की रौशनी अपने इधर उधर मारी पर मुझे वहाँ आस पास ऐसी कोई भी चीज नहीं दिखी जिससे में टकराया होंगा। फिर उसके बाद मैं जैसे ही उठकर खड़ा हुआ तभी वो हँसने की आवाज और तेज हो गई।
मानो ऐसा लग रहा था जैसे वो हँसने की आवाज मेरा मज़ाक उटा रही हो। पर मैंने इस बार भी उस आवाज को अनसुना करा और अपने घर की ओर जाने लगा। इस बार में भाग नहीं रहा था बस जल्दी जल्दी चल कर जा रहा था। पर मैं जैसे ही अपने घर के पास पंहुचा तो जो मैंने देखा उसे देखकर मेरे हाथ पैर डर से और कापने लगे डरा हुआ तो मैं पहले से ही था पर जो मैंने अभी देखा उसे देखकर तो मेरे डर के पसीने निकलने लगे।
क्यूंकि मैंने देखा मेरे घर के गेट के पास वही लड़की बैठी कभी हंस रही थी तो कभी वो रो रही थी। तभी मैंने डरते हुए ही वही से खड़े खड़े कहा - कौ-कौ-कौन हो तुम - मेरे इनता बोलने के बाद ही उस लड़की ने अपना चेहरा ऊपर करा और अपनी जगह से खड़ी हुई और अपनी डरावनी आवाज में कहा कहा - मेरी मदद कर दो - फिर मुझे लगा शायद इसे मदद की जरूरत हैं इसलिए फिर मैंने कहा - कैसी मदद - मेरे इतना बोलने के बाद ही उस लड़की ने अपने हाथ से इशारा करा और कहा - वो -
जिस तरफ उसने अपने हाथ से इशारा करा था मैंने जैसे ही इस तरफ देखा तो इस बार भी वहाँ उसी लड़की की लाश पड़ी हुई थी। मैंने फिर उस लड़की की तरफ देखा तो वो लड़की बाद हँसने लगी। यह सब देखकर डर तो मैं पहले ही गया था पर मैंने फिर से हिम्मत करी और उस तरफ भागने लगा जगह वन विभाग की चौकी थी। मैं लगातार उस जंगल में भागे चला जा रहा था और यही सोच रहा था आखिर वो हैं कौन जो मुझे इनती देर से परेशान कर रही हैं। पर तभी मैं भागते भागते फिर से रुक गया क्यूंकि मैने देखा वो लड़की अब मेरे आगे से चली आ रही थी।
मैं डरा हुआ तो जरूर था पर मैंने उस समय हार नहीं मानी थी इसलिए मैं तुरंत पिछे की तरफ मुड़ा और अपने सरकारी कमरे की तरफ भागने लगा। मैं भागता भागता जैसे ही अपने सरकारी कमरे के बस पंहुचा तो मैंने देखा वो लड़की अब घर के गेट के पास खड़ी हुई थी पर मैंने सोच लिया था चाहे अब कुछ भी हो जाए पर मैं अब रुकोगा नहीं सीधा घर के अंदर ही जाऊंगा। मैं जैसे जैसे आगे जा रहा था वैसे वैसे उस लड़की की हँसने की आवाज और तेज होते जा रही थी।
पर मैं जैसे ही उस लड़की के एकदम पास पंहुचा तो वो लड़की एक दम से गायब हो गई। फिर उसके बाद मैं सीधा अपने कमरे में चला गया। मैं कमरे में तो चला गया था पर मुझे अभी भी उस लड़की के रोने और हँसने की आवाज बाहर से लगातार आ रही थी। वो रात तो मैंने जैसे तैसे बिता ली और अगले दिन जब मैंने सारी बात वन विभाग की चौकी में अपने साथ वालो को बताई तो उन्होंने मुझे कहा - अगर तुम्हे आगे से कभी वो आवाज आती हैं तो तुम उस आवाज को अनसुना कर के सो जाना फिर कुछ नहीं होगा। फिर उसके बाद मैंने ऐसा ही करा मतलब मुझे रात में आवाज तो आती थी पर मैं उस आवाज को अनसुना कर देता था और अभी भी अनसुना ही कर देता हूँ।
इस कहानी के लेखक हैं - शिव
इस कहानी में आवाज दी हैं - प्रियंका यादव
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