यहाँ से नहीं जा पाओगे || New Short Horror Story in Hindi || Hindi story my



यहाँ से नहीं जा पाओगे 

गोविन्द पेसे से एक फ़ूड डिलीवरी वाला हैं वैसे वो रोज रात 10 बजे तक अपने घर चला जाता था। पर आज सुबह से ही उसका काम कुछ सही नहीं चल रहा था क्यूंकि आज उसे आर्डर करने के लिए कुछ ज्यादा आर्डर नहीं मिले थे।इसलिए आज वो रात के 10 बजे के बाद भी और आर्डर का इंतजार कर रहा था। और वो यह सोच रहा था की एक या दो आर्डर और मिल जायेंगे तो थोड़ा काम सही हो जायेगा।
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यही सोचकर वो अपनी बाइक पर बैठे बैठे आर्डर का इंतजार कर रहा था। पर काफ़ी देर तक उसके इंतजार करने के बाद भी जब उसके फ़ोन में कोई आर्डर नहीं आया तो उसने सोचा की - अब घर ही चला जाता हूँ क्यूंकि लगता हैं आज कोई आर्डर ही नहीं आएगा - यही सोच कर गोविन्द ने जैसे ही अपनी बाइक स्टार्ट करी वैसे ही गोविन्द का फ़ोन बजने लगा। गोविन्द ने जैसे ही अपनी जेब से फ़ोन निकाल कर देखा तो उसके पास के ही रेस्टोरेंट से एक आर्डर था जो उसे रेस्टोरेंट से 8 किलोमीटर दूर एक छोटा सा जंगल पार कर के देनी।

पहले तो उसने सोचा की इतनी रात को उस जंगल की तरफ जाना सही होगा या नहीं पर थोड़ी ही देर में उसे याद आया की उसी तरफ तो ठेका भी हैं। फिर उसने सोचा चलो चला ही जाता हूँ फिर जाते हुए ही एक बोतल भी ले लूंगा क्युकी काफ़ी दिनों से पी भी तो नहीं हैं। यही सोचकर गोविन्द ने वो आर्डर तुरंत एक्सेप्ट कर लिया और तुरंत रेस्टोरेंट से आर्डर लिया और आर्डर डिलीवरी के लिए जाने लगा। वो थोड़ा आगे गया और ठेके के पास बाइक लगा कर ठेके से एक बोतल ले आया।

फिर उसने सोचा आर्डर देने के बाद उसी जंगल में बैठकर पी लूंगा। फिर उसके गोविन्द ने अपनी बाइक स्टार्ट करी और चल दिया आर्डर देने। और फिर थोड़ी ही देर में गोविन्द वहाँ पहुंच भी गया जहाँ उसे आर्डर डिलीवरी करना था। फिर उसके बाद गोविन्द ने वो आर्डर डिलीवरी करा वो वापस जाने लगा। और जंगल के पास पहुंचते ही गोविन्द ने अपनी बाइक साइड में लगाई और अपने बेग से वो बोतल निकाली जो वो ठेके से लाया था पिने के लिए फिर उसके बाद गोविन्द ने वही बैठे बैठे अपनी वो बोतल पीकर खत्म करी और अपनी वो बोतल वही फैक कर जैसे ही जाने को हुआ तभी उसे लगा जैसे उसके कंधे पर पिछे से किसी ने हाथ रखा हो।

उसके बाद गोविन्द ने तुरंत पिछे मूड कर देखा तो उसने देखा उसके कंधे पर एक बूढ़े आदमी ने हाथ रखा हुआ था उसके बाद गोविन्द जैसे ही पिछे मुड़ा वैसे ही उस बूढ़े आदमी ने गोविन्द से कहा - अरे बेटा आपने यह बोतल यहाँ क्यों फैक दी उठाओ इसे और कजरे के डिब्बे में डालना - फिर गोविन्द ने कहा - अरे अंकल दिमाग़ मत गराब करो और सीधा यहाँ से चले जाओ - इतना बोलकर गोविन्द ने अपनी बाइक स्टार्ट करी और सोचा - यह बूढा क्या कर लेगा मेरा -

यही सोचकर गोविन्द जैसे ही जाने को हुआ तभी उस बूढ़े आदमी ने गोविन्द के पिछे से ही कहा - बेटा जब तक तुम यह बोतल यहाँ से नहीं उठा लेते तब तक तुम इस जंगल से बाहर नहीं जा सकते - गोविन्द ने जैसे ही उस बूढ़े के मुँह से इतना सुना तो उसे गुस्सा आ गया और गुस्से में ही अपनी बाइक से नीचे उतरा और उस बूढ़े के एकदम पास जाकर बोला - क्या बे बूढ़े तू रोकेगा क्या मुझे - इतना बोलकर गोविन्द ने अपने हाथ से उस बूढ़े आदमी को दक्का दिया और कहा - अब मैं यह बोतल तो उठाने से रहा तुझे जो करना हैं कर ले -

इतना बोलकर गोविन्द अपनी बाइक पर बैठा और बाइक स्टार्ट कर के वहाँ से जाने लगा। फिर लगभग आधे घंटे के बाद उसने सोचा - अरे यह जंगल खत्म क्यों नहीं हो रहा - क्यूंकि मुश्किल से 5 मिनट ही वो रोज इस जंगल को पार कर लेता था पर आज उसके लगातार आधे घंटे से बाइक चलाने पर भी वो इस जंगल को पार नहीं कर पाया था। पर उसके बाद भी उसने अपनी बाइक नहीं रोकी और लगातार उसे भागता चला जा रहा था। पर काफ़ी देर बाद भी जब वो जंगल पार नहीं कर पाया तो उसने बाइक साइड में रोकी यह देखने लगा की यह क्या हो रहा हैं उसके साथ

क्यूंकि मुश्किल से 5 मिनट का रास्ता अचानक से एक घंटे का कैसे हो गया। यही सब सोचते हुए गोविन्द इधर उधर देख ही रहा था तभी उसकी नजर एक ऐसी चीज पर पड़ी जिसे देखकर गोविन्द को एक बहुत बड़ा झटका लगा। क्यूंकि उसने देखा उसकी बाइक अभी वही पर खड़ी थी जहाँ वो बैठकर बोतल पी रहा था और उसकी बोतल भी वही पर पड़ी हुई थी। यह देखकर गोविन्द को समझते देर नहीं लगी की उसके साथ यह सब क्यों हो रहा हैं। उसके बाद गोविन्द तुरंत अपनी बाइक से नीचे उतरा और उस बोतल को उठा कर अपने बेग में रख कर फिर से अपनी बाइक स्टार्ट कर के जाने लगा।

पर अभी भी जब काफ़ी देर तक वो जंगल पार नहीं कर पाया तो उसे फिर से अपनी बाइक रोकी तो उसने देखा उसकी बाइक अभी भी उसी जगह पर खड़ी हुई थी। फिर उसके वो तुरंत अपनी बाइक से नीचे उतरा और इधर उधर जाकर उस बूढ़े को ढूंढ़ने लगा। जिस बूढ़े को उसने दक्का दिया था और वो यह समझ चूका था की यह सब भी उसी की वजह से हो रहा हैं। पर काफ़ी देर तक उसके ढूंढ़ने बाद भी जब उसे वो बूढ़ा नहीं मिला तो वो फिर से अपनी बाइक की तरफ जाने लगा। वो जैसे ही अपनी बाइक के पास पंहुचा तो उसने देखा वो बूढ़ा आदमी उसकी बाइक के पास ही खड़ा हुआ था।

गोविन्द ने जैसे ही उस बूढ़े को देखा वो तुरंत भागता हुआ उस बूढ़े के पास गया और उसके पैरो में गिरके माफ़ी मांगने लगा। फिर उसके बाद गोविन्द ने जैसे ही अपना सर ऊपर कर के उस बूढ़े आदमी की तरफ देखा तो उसे अब वो बूढ़ा कही पर भी नजर नहीं आ रहा था। फिर गोविंद ने सोचा शायद क्या पता अब वो यहाँ से जा पाए। यही सोचकर गोविन्द ने अपनी बाइक स्टार्ट करी और जाने लगा। फिर लगभग 5 मिनट बाद गोविन्द उस जंगल से बाहर आ गया।


इस कहानी के लेखक हैं - शिव
इस कहानी में आवाज दी हैं - प्रियंका यादव 


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