फारेस्ट गार्ड की नौकरी का पहले दिन || haunted jungle story || Hindi story my

 

फारेस्ट गार्ड की नौकरी का पहले दिन


मेरा नाम विजय हैं और मैं आज बहुत ख़ुश हूँ क्यूंकि आज मेरा फारेस्ट ऑफिसर के रूप में पेहला दिन हैं। मुझे बचपन से ही जंगलो से बड़ा लगाव था क्यूंकि जंगल में एक अलग तरह की शांति होती हैं इसलिए मैं बचपन से ही फारेस्ट ऑफिसर बनना चाहता था। और आज जाकर मेरा वो सपना भी पूरा हो गया। वैसे मेरी पोस्टिंग इंडिया के सबसे बड़े जंगलो में आने वाले जंगल में हुई हैं।
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मैं आज जैसे ही अपनी ड्यूटी पर गया तो मुझे पता चला की मुझे दिन की टाइमिंग वाली स्विफ्ट में रखा गया हैं। और मेरा सरकारी कमरा जो मुझे वन विभाग की तरफ से मिला हैं वो वन विभाग की चौकी से लगभग एक किलोमीटर की दुरी पर ही था। ड्यूटी ज्वाइन करने के कुछ घंटे बाद मैं अपने कुछ साथियो के साथ जंगल की पेट्रोलिंग के लिए निकल गया।

और मेरा आज का पूरा दिन इसी सब में बीत गया फिर उसके बाद शाम को वन विभाग की गाड़ी ने मुझे मेरे कमरे तक छोड़ दिया। फिर उसके बाद मैं कमरे के अंदर गया और अपना सामान वगेरा रखा फिर जब तक मैंने खाना बना के खाया तब तक काफ़ी रात हो गई थी इसलिए मैं सीधा अपने पर जाकर अपने बिस्तर पर लेट गया। और लेटे लेटे पता नहीं कब मेरा आँख लग गई। फिर उसके बाद पता नहीं जाने कितनी देर मेरी आँख खुली तो मुझे खिड़की के बाहर से किसी के रोने की आवाज बहुत तेज सुनाई दे रही थी।

आवाज सुनकर मैं अपने बिस्तर पर उठकर बैठ तो गया पर मैं बैठे बैठे यही सोच रहा था की इतनी रात में कौन हो सकता हैं जो इतने बड़े जंगल में रो रहा हैं। पर उसके बाद मैंने सोचा क्या पता कही किसी को मदद की जरूरत तो यही सोचकर मैं अपने बिस्तर से उठा और खिड़की के पास जाकर बाहर देखने की कोशिश करने लगा। पर मैंने जैसे ही बाहर देखा तो बाहर कुछ भी नहीं दिख रहा था क्यूंकि बाहर बहुत अंधेरा था।

उसके बाद मैं जैसे ही पिछे अपने बिस्तर की तरफ मुड़ा तभी वो रोने की आवाज और तेज आने लगी। फिर उसके बाद मैंने सोचा चलो एक बाहर देखकर ही आता हूँ कही किसी को मेरी मदद की जरूरत सच में तो नहीं हैं - इतना बोलकर मैंने अपने बेग से टॉर्च निकाली और अपने घर से बाहर निकल के घर के पिछे की तरफ जाने लगा। अँधेरी रात थी और मैं जैसे जैसे चल रहा था वैसे वैसे मेरे चलने की वजह से जंगल में जो सनाटा था वो भंग हो रहा था क्यूंकि मेरे पैर जैसे जैसे जंगल में पड़े सूखे पत्तों पर पड़ रहे थे वैसे वैसे जंगल में जंगल में पत्तों की आवाज गूंज रही थी।

फिर उसके बाद मैं चलते चलते जैसे ही अपने घर के पिछे पंहुचा तो वो रोने की आवाज अब मुझे काफ़ी साफ़ साफ़ सुनाई देने लगी थी। घर के पिछे पहुंचते ही मैंने जोर से आवाज लगाई और कहा - कौन हैं वहाँ - पर मेरे इनती जोर से बोलने के बाद भी किसी ने कोई जवाब नहीं दिया। पर वो जो कोई भी था वो लगातार अभी भी रोये जा रहा था। फिर उसके बाद मैं थोड़ा और आगे की तरफ जाने लगा मैं जैसे जैसे आगे जा रहा था मैं वैसे वैसे आवाज भी लगा रहा था मैं बोल रहा था - अरे कोई हैं तो मुझे जवाब दो डरो मत मैं तुम्हारी मदद करने के लिए ही यहाँ आया हूँ -

पर मेरे इनता कुछ बोलने के बाद भी किसी ने कोई जवाब नहीं दिया। फिर उसके बाद मैंने अपने आप से ही कहा - अब कोई भी हो मुझे क्या मैं मदद तो करना चाहता हूँ पर कोई जब जवाब देगा तभी तो मैं मदद करूंगा और ऊपर से यहाँ इतना अंधेरा हैं की इस टॉर्च की रौशनी में भी कुछ सही से दिख नहीं रहा हैं - इतना बोलकर मैं जैसे ही वापस घर की ओर जाने को हुआ तभी मैंने अपने टॉर्च की रौशनी में देखा मुझे थोड़े ही दूर पर एक लड़की बैठी हुई थी और उसी की ही रोने की आवाज इतनी देर से आ रही थी। उसे देखने के बाद मैंने उसे पहले वही से खड़े खड़े आवाज लगाई और जोर से कहा - कौन हैं आप और क्या हुआ हैं आपको -

मेरे इनता बोलने के बाद ही उस लड़की ने अपना सर ऊपर कर के मेरी तरफ देखा फिर उसके बाद उसने फिर से अपना सर नीचे कर के रोने लगी। मुझे यह देखकर बड़ा ही अजीब तो लगा पर मैं फिर से आवाज लगाई और कहा - अरे कौन हैं आप और क्या हुआ हैं आपको - मेरे इतना बोलने के बाद उस लड़की ने फिर से अपना सर ऊपर करा और बिना कुछ बोले अपना सर नीचे कर के रोने लगी। फिर उसके बाद मैंने सोचा क्या पता क्या जरूरत हो उसको चलो उसके पास जाकर देखता हूँ - इतना बोलकर मैं उसके ओर जाने लगा।

और फिर उसके पास जाकर मैंने फिर कहा - आप ठीक तो हैं और क्या हुआ हैं आपको - मेरे इनता बोलने के बाद उस लड़की ने फिर सर अपना सर ऊपर करा और अपने हाथ को ऊपर कर के इशारा करा और रोते हुए ही कहा - वो - इतना बोलकर वो लड़की अपना सर नीचे कर के फिर से रोने लगी। पर जिस तरफ उसने इशारा करा था उसके बाद मैंने जैसे ही उस तरफ देखा तो मेरी आँखे फटी की फटी रह गई और मेरे अंदर का चला हुआ खून मानो जम सा गया। क्यूंकि मैंने देखा जिस तरफ उस लड़की ने इशारा करा था उस तरफ उसी लड़की की लाश पड़ी हुई थी।

यह देखकर तो मेरे हाथ पैर डर के मारे कापने लगे थे फिर उसके बाद मैंने जैसे ही उस लड़की की तरफ देखा तो मानो मुझे ऐसा लगने लगा जैसे मेरा दिल अभी छाती फाड़ कर बाहर आ जाएगा। क्यूंकि जैसे ही मैंने उस लड़की की तरफ देखा वैसे ही मेरे दिल की धड़कन अपनी दुगनी रफ़्तार में चलने लगी।
कहानी अभी खत्म नहीं हुई हैं बल्कि कहानी अभी ही तो शुरू हुई हैं यानी आगे की कहानी अगले एपिसोड में हैं।


इस कहानी के लेखक हैं - शिव
इस कहानी में आवाज दी हैं - प्रियंका यादव


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