भूतिया घर E-3 || bhoot ki hindi story || Hindi story my

भूतिया घर E-3



उसकी सारी बाते सुनने के बाद मैंने कहा - चलो ये मान लिया जो वो बाहर हैं वो छलावे हैं पर जो इस घर के अंदर हैं वो कौन हैं फिर जिसने अभी थोड़ी देर पहले मेरा गला पकड़ा था - फिर उस चौकीदार ने कहा - तुम्हारे लिए यह जाना जरूरी नहीं हैं तुम बस इतना जान लो की तुम अभी बाहर नहीं जा सकते बस - चौकीदार की बात सुनकर फिर मैंने कहा - नहीं काका मुझे अभी जानना हैं की इस घर के अंदर कौन हैं -

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फिर चौकीदार ने कहा - अरे सहाब जी जिद क्यों कर रहे हो मैंने कहा ना मैं अभी आपको इसके बारे में कुछ नहीं बता सकता - पर मैंने भी सोच लिया था की इसके बारे में जानना ही हैं इसलिए फिर मैंने कहा - काका मुझे आप ने अभी इसके बारे में नहीं बताया तो मैं पका इस घर का दरवाजा खोल दूंगा - मैंने इतना ही कहा था तभी एकदम से फिर किसी ने मेरा गला पकड़ लिया और मुझे घसीटता हुआ सीढ़ियों से ऊपर की तरफ ले जाने लगा।


और मुझे इस बार भी कोई दिख नहीं रहा था जिसने मेरा गला पकड़ा हो। मैं लाख कोशिश कर रहा था अपने आप को उससे छुड़ाने की पर मेरी सारी कोशिश उस पर नाकामयाब हो रही थी। और उस समय मेरी आँखे दम कूटने की वजह से बंद होने लगी। तभी पिछे से भागते हुए वही चौकीदार आया और बोला - छोड़ दीजिये इसे अभी इसको यहाँ के बारे में कुछ नहीं पता मैं इसे अभी सब कुछ बता देता हूँ फिर ये कभी ऐसा नहीं करेगा -


पर चौकीदार के इस बार बोलने पर भी वो मेरा गला नहीं छोड़ रहा था इसलिए फिर उस चौकीदार ने कहा - मैं आप से वादा करता हूँ ये कभी भी दुबारा रात को उस दरवाजे को नहीं खोलेगा - इस बार चौकीदार के इतना बोलते ही जिसने भी मेरा गला पकड़ा हुआ था उसने तुरंत गला छोड़ दिया। फिर उसके बाद चौकीदार ने मुझे सभाला और मुझे मेरे कमरे तक ले जाकर लेटा दिया। फिर उसने मुझे पास मैं ही टेबल पर रखे पानी के गिलास को उठाया और मुझे पिने के लिए दिया।


पानी पिने के बाद मैंने कहा - काका यह क्या हैं यह दरवाजा रात में क्यों नहीं खोल सकते ऐसा क्या हैं यहाँ - मेरी सारी बात सुनकर फिर चौकीदार ने कहा - तो सुनो फिर ये बात आज से लगभग 30 साल पहले की होगी इस गाँव में एक जमींदार रहा करता था और इसके लिए यह आम बात थी की वो जमीन के लिए किसी का भी खून कर दे और ऐसा ही कुछ उसने इस घर के लिए करा एक बार की बार हैं वो जमींदार पहले तो कभी इस तरफ नहीं आया था


क्यूंकि यह पुतिन कुटी जंगल में काफ़ी अंदर की ओर थी पर एक दिन जब जमींदार अपने कुछ काम से इधर आया हुआ था तभी उसकी नजर इस घर पर पड़ी और तभी उसने इस घर को अपना बनाने के लिए सोच लिया। पहले तो उसने इस घर को खरीदने की बहुत कोशिश करी पर जब इस घर के असली मालिक इसे बेचने ने को त्यार नहीं हुए तो उसने इस घर में जो परिवार पहले रहता था उन सब को मार के इस घर के बाहर ही दफना दिया था। पर उसने उन सब को मार तो दिया पर उन सबकी आत्मा उसे कभी यहाँ सही से रहने नहीं देती थी।


फिर उसके बाद उस जमींदार ने एक बाबा को बुलाया पर उन बाबा ने कहा इन आत्मा को तो मुक्ति नहीं दिला सकते पर एक हो सकता हैं की मैं इतना कर सकता हूँ की मैं इस घर के दरवाजे पर एक ताबीज बांध देता हूँ। पर तुम कभी भी रात में इस घर का दरवाजा मत खोलना। बाबा तो इतना बोलकर चले गए पर एक दिन जमींदार के छोटे बेटे ने गलती से रात में दरवाजा खोल दिया। जिसके करण जमींदार के साथ साथ उस रात उनका पूरा परिवार मर गया। - उस चौकीदार की बात बीच में ही काटते हुए मैंने कहा - पर काका वो तो अब मर गए हैं ना तो अब रात में दरवाजा क्यों नहीं खोल सकते और वो कौन हैं जो अभी भी दरवाजा खोलने से रोकता हैं -


फिर उस चौकीदार ने कहा - वो जमींदार की आत्मा हैं जो रात में दरवाजा नहीं खोलने देती और उन्ही ने तुम्हारा गला पकड़ा हुआ था - चौकीदार की सारी बाते सुनने के बाद मैंने कहा - पर काका वो अभी भी दरवाजा क्यों नहीं खोलने देते - फिर मेरी बात का जवाब देते हुए चौकीदार ने कहा - क्यूंकि उन्हें लगता हैं की वो अभी भी उन्हें मार देंगे पर कभी कोई दरवाजा गलती से खोल भी देता हैं तो वो जमींदार की आत्मा का तो कुछ नहीं कर पाते पर जो दरवाजा खोलता हैं वो जरूर मर जाता हैं


और हाँ अगर तुम आज गलती से भी दरवाजा खोल देते तो कुछ ऐसा ही होता उस जमींदार की आत्मा का तो कुछ नहीं होता पर वो आत्मा जो बाहर थी वो हम दोनों को मार देती - चौकीदार की सारी बात सुनकर मैंने कहा - पर काका वो जमींदार की आत्मा आपको क्यों कुछ नहीं कहती और वो कौन हैं जो अभी इस घर को अपना बताता हैं मतलब मेरे बॉस का दोस्त - फिर जमींदार ने कहा - तुम्हारे बॉस के दोस्त जमींदार के भाई का बेटा हैं और जमींदार की आत्मा मुझे इसलिए कुछ नहीं कहती क्यूंकि मैं चौकीदार हूँ और जमींदार की आत्मा को यह लगता हैं की मैं उसकी रक्षा के लिए ही यहाँ हूँ - 


चौकीदार की सारी बात सुनने के बाद मैंने वो रात तो जैसे तैसे उस घर में बिता ली पर अगले दिन की सुबह होते ही मैंने अपना सरा सामान बांधा और अपने बॉस को सारी बात बताई और फिर उसके बाद मेरे बॉस ने मेरे लिए एक हॉटल में मेरे लिए कमरा बुक करा और उसके बाद मैं तुरंत वहाँ निकल गया और फिर कभी मैं पुतिन कुटी की ओर नहीं गया।


इस कहानी के लेखक हैं - शिव
इस कहानी में आवाज दी हैं - प्रियंका यादव


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