भूतिया हॉस्टल || hostel horror story in hindi || Hindi story my

 

भूतिया हॉस्टल


एक ऐसा हॉस्टल हैं जिसे लोग भूतिया हॉस्टल के नाम से जानते हैं। क्यूंकि वहाँ रह रहे बच्चों का कहना हैं की वहाँ रात में भूत घूमते हैं और वहाँ लगे झूलो में से रात को अपने आप झूला झूलने और की आवाज आती हैं। और ऐसा लगता हैं की कोई झूला झूलते हुए कोई बाते कर रहा हो। पर जब वहाँ रह रहे बच्चे वहाँ खिड़कियों से झूलो की तरफ देखते तो उन्हे झूलो पर बैठा कोई नहीं दिखता। और झूले अपने आप चलते रहते हैं और किसी की बाते करने की आवाज भी रात भर आती हैं। पर कोई दिखता नहीं।
#

इस कहानी को ऑडियो में सुने

आज की जो यह कहानी हैं इस हॉस्टल में ही रह रहे राहुल के साथ घाटी घटना हैं। अब यह कहानी में उसके ही शब्दो में जारी रखूँगा।
मेरा नाम राहुल हैं और मैं और मेरा भाई विजय दो साल से इस हॉस्टल में साथ रह रहे थे। पर एक दिन जब मेरा भाई विजय घर में कुछ काम आने के वजह से घर गया हुआ था। और हॉस्टल के जिस रूम में हम रह रहे थे उसमे मैं और मेरा भाई हम दोनों ही रहते थे।पर जब उस दिन मेरा भाई घर गया हुआ था।

इसलिए मैं आज रात को अपने रूम मे अकेले ही सो रहा था। और तभी रात के लगभग 12 ही बजे होंगे तभी मेरे रूम के दरवाजे पर किसी ने थप थपाया और कह - राहुल दरवाजा खोल - पहली बार में तो मैंने सही से सुना नहीं।
पर उसके थोड़ो ही देर बाद फिर से किसी ने आवाज लगाई और कहा - दरवाजा खोल ना राहुल में विजय - और इस बार मैंने आवाज साफ़ साफ़ सुनी यह विजय की ही आवाज थी। मैं यही सोच रहा था की विजय इतनी रात को यहाँ कैसे आ सकता हैं वो तो आज घर गया हुआ हैं।

पर तभी एक बार फिर से विजय ने आवाज दी और कहा - जल्दी दरवाजा खोल राहुल मैं कबसे बाहर खड़ा हूँ - इस बार मैंने अब ज्यादा ना सोचते हुए कहा - हाँ भाई अभी खोलता हूँ - यह बोलकर मैंने जैसे ही दरवाजा खोला तो बाहर सच में विजय ही खड़ा था। पर हमारा घर इतना पास नहीं था। की कोई सुबह जाए और रात को आ जाए। वैसे भी विजय ने तीन दिन की छुट्टी ली थी क्यूंकि उसे घर में लगभग दो तीन दिन का काम था।

इसलिए मैंने थोड़ा शक करते हुए विजय से कहा - क्या हुआ भाई आप तो तीन दिन बाद आने वाले थे कुछ हुआ क्या -फिर राहुल ने मेरी बात का जवाब देते हुए कहा - अरे यार बस ही छूट गई थी और मैं दूसरी बस का इंतजार कर रहा था पर वो दूसरी बस आई ही नहीं चल अब बाकि बात कल सुबह करेंगे मुझे बहुत नींद आ रही हैं - इतना बोलकर विजय अपने बिस्तर में सोने को चला गया और मैं भी फिर उसके पिछे पिछे सोने चला गया।

विजय का बेड मेरे ही बेड के ऊपर था। सोते हुए अभी कुछ ही समय हुआ होगा। तभी मुझे ऐसा लगा कोई मेरे सामने खड़ा हो मैंने एकदम से आँखे खोलकर देखा तो मेरे सामने कोई और नहीं बल्कि विजय ही खड़ा था ।
मैंने विजय को ऐसे खड़े हुए देखा तो कहा - क्या हुआ भाई अब तक सोए नहीं क्या - फिर मेरी बात का जवाब देते हुए विजय ने कहा - यार पता नहीं क्यों मुझे आज डर लग रहा हैं इसलिए मैं तेरे ही साथ सोऊंगा - मुझे लगा इनती रात को इनती दूर से आया हैं क्या पता इसलिए डर लग रहा हो।

इसलिए मैंने विजय को अपने ही साथ सोने दिया सोते हुए अभी कुछ ही देर हुई होंगी तभी मुझे ऐसा लगा जैसे कोई मेरे गले पर हाथ फैर रहा हो। मैंने पहले तो इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया पर लगातार हाथ फैरने की वजह से मेरी नींद टूट गई। और मुझे ऐसा लगा की विजय हाथ फैर रहा हैं इसलिए मैंने उसे मना करने के लिए जैसे ही उसकी ओर पल्टा और जैसे ही उसकी ओर देखा तो जैसे मेरा खून जम सा गया हो और साथ ही मेरे दिल की धड़कन अपनी दुगनी रफ़्तार से चलने लगी। क्यूंकि मैंने देखा विजय की जगह पर एक बड़ी ही भयानक सा आदमी लेटा हुआ था जिसका चेहरा पूरा जला हुआ था।

उसका चेहरा देखते ही मेरे मुँह से एक बड़ी ही जोरदार चीख निकली। और मेरी चीख निकलने के कुछ समय में ही पुरे कोरिडोर की लाइट जल गई। और लाइट जलते ही वो आदमी भी पता नहीं कहाँ गायब हो गया। और फिर उसके बाद हॉस्टल के सभी लोग मुझसे आकर पूछने लगे की क्या हुआ फिर उसके बाद मैंने उनको सारी बात बताई तो सबका कहना था की मैंने कोई सपना देखा होगा। और सब मुझे यही बोलकर अपने अपने रूम मैं सोने को चले गए।

पर मुझे पूरा विश्वास था की मैंने कोई सपना नहीं देखा था यह मेरे साथ सच में हुआ था। फिर सबके जाने के बाद मैं फिर से अपने बेड पर आकर लेट गया पर इतना सब होने के बाद फिर से मुझे नींद तो अब आने से थी। फिर भी मैं लेट गया । और लेटे हुए अभी कुछ ही समय हुआ होगा। तभी एक बार फिर से मेरे रूम के दरवाजे से थप थपाने की आवाज आई। थप थपाने की आवाज के एकदम बाद फिर से किसी ने विजय की आवाज में मुझे आवाज दी और कहा - दरवाजा खोल राहुल मैं हूँ विजय - और यह आवाज सुनते ही मेरे रोंगटे खड़े हो गए और मुझे ऐसे लगने लगा जैसे किसी ने मेरे ऊपर लखो चीटिया छोड़ दी हो और वो सब चीटिया एक साथ मुझे काट रही हो।

क्यूंकि कोई मुझे मेरे ही भाई की आवाज में लगातार आवाज लाए जा रहा था। और वो बार बार यह बोल रहा था - राहुल दरवाजा खोल मैं तेरा भाई हूँ राहुल देख कबसे मैं ठंड में खड़ा हूँ - उसकी बात सुनकर एक बार को तो मुझे ऐसा लगने लगा था जैसे सच में मेरा भाई ही आवाज मार रही हो और मैं अभी जाकर दरवाजा खोल दू। उस रात तो मुझे पूरी रात मेरे भाई विजय की आवाज आती ही रही और मैं दिन पूरी रात सो नहीं पाया।


इस कहानी के लेखक हैं - शिव
इस कहानी में आवाज दी हैं - प्रियंका यादव


आपके लिए और भी हॉरर कहानियाँ 👇



एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने