मरते मरते बचा || bhoot ki darawni ki kahani || Hindi story my



मरते मरते बचा


मेरा नाम सूरज हैं और मेरी उम्र 23 वर्ष हैं और आज मैं आपको जो घटना बताने जा रहा हो वो उस समय की हैं जब मेरी उम्र लगभग 20 वर्ष की थी यानी आज से लगभग तीन साल पहले की हैं। मैं उस समय भूतों पर बिलकुल भी विश्वास नहीं करता था क्यूंकि मुझे उस घटना से पहले यह सब बाते बैतूकी लगती थी। पर एक बार की बात हैं रात के लगभग 9 ही बज रहे होंगे शायद तभी मैं खेतो की तरफ शौच करने को गया।
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और हमारे गाँव के पास में ही एक श्मशान घाट था मैं उस दिन श्मशान घाट को पार करके आगे जंगल की तरफ शौच करने को गया हुआ था। हमरे गाँव के पास में ही श्मशान घाट था वैसे मैं रोज उस ओर ही शौच करने को जाया करता हैं यह मेरे लिए कोई नई बात नहीं थी। मगर जब मैं उस दिन शौच करके वापस घर की ओर लौट रहा था तभी मेरी नजर श्मशान घाट की ओर पड़ी तो मैंने देखा श्मशान घाट में एक चिता जल रही थी और उस चिता के आस पास लगभग 15 या 20 लोग चिता को घेर कर नाच रहे थे।

मुझे यह देखकर बड़ा ही अजीब लग रहा था क्यूंकि चिता की आग उस समय में बहुत तेज थी और गर्मी का महीना था पर वो सब चिता के एकदम पास में खड़े होकर नाच रहे थे। मैंने पहले भी कई बार चिता जलते हुए दिखी थी पर मैंने कभी किसी को ऐसे करते हुए नहीं देखा था। पहले तो मैं वही खड़े खड़े उन्हें देख रहा था और यही सोच रहा था की आखिर यह लोग नाच क्यों रहे हैं और यह लोग हैं कौन और यही सब सोचते हुए पता नहीं मुझे उस समय क्या हुआ की मैं भी श्मशान घाट की ओर जाने लगा। मैं श्मशान घाट में जाकर उन सभी लोगो से थोड़ा दूर में जाकर रुक गया और उन सबको देखने लगा ।

मैं थोड़ी ही दूर से खड़े खड़े उन्हें देखी रहा था पर वो सब अपने ही ध्यान में मग्न थे और जैसे उन्हे पता भी ना चला हो कोई उनके पिछे ही खड़ा उन्हें देख रहा हैं। मैं काफ़ी देर से उन्हें देख रहा था पर मुझे उस समय उन लोगो में से किसी का भी चेहरा साफ़ नहीं दिख रहा था। और मुझे ये भी समझ में नहीं आ रहा था की वो सब नाच क्यों रहे हैं।और यही सब समझने के लिए मैं उन लोगो के थोड़ा पास जाने लगा मैं जैसे जैसे उन लोगो के पास जा रहा था वैसे वैसे मुझे पता नहीं क्यों एक अजीब सा डर लग रहा था।

पर मैं जैसे ही उनके थोड़ा और पास गया तभी उनमे से एक आदमी को जैसे पता चल गया हो की कोई उनके पिछे हैं और उन्हें देख रहा इसलिए तभी वो आदमी एकदम से पिछे मुड़ा पर जैसे ही मैंने उस आदमी का चेहरा देखा तो मेरी आँखे फटी की फटी रह गई और मेरे मुँह से चिख निकलने ही वाली थी पर मैंने अपनी चिख को किसी तरह से उस समय रोका पर मानो उस समय मुझे ऐसा लग रहा था जैसे डर के मारे मेरे दिल की धड़कन ही रुक जाएगी।

क्यूंकि मैंने देखा जो आदमी पिछे मेरी तरफ मुड़ा था उसकी दोनों आँखे नहीं थी बस आँख की जगह पर दो काले छेद थे और उसका पूरा मुँह जला हुआ था और उसके एक हाथ में इंसान का एक हाथ था और वो आदमी उस ही हाथ को खाते हुए नाच रहा था। और सब जितने भी लग वहाँ थे वो सारे के सारे एक जैसे थे और वो सब इंसान के कोई ना कोई अंग खा रहे थे और नाच रहे थे । मैंने जैसे ही यह सब देखा मैं तुरंत पिछे मुड़ा और अपने घर के लिए अपनी पूरी जान से स्पीड भागने लगा।

फिर उसके बाद मैं सीधा अपने घर में ही आकर रुका पर मैंने उस समय तो यह सारी बात अपने घर में किसी को नहीं बताई क्यूंकि मुझे लगा मेरे घर वाले फालतू की टेंशन में आ जाएंगे। इसलिए मैं खाना पीना खाकर अपने बिस्तर पर जाकर लेट गया और थोड़ी में ही मेरी आँख भी लग गई पर फिर पता नहीं कितने देर बाद मेरी आँख खुली तो मुझे अपने बगल से किसी के सांस लेने की आवाज बहुत तेज तेज सुनाई देर रहा थी पर मैंने जब अपने कमरे में नजर इधर उधर दौड़ाई तो मेरे कमरे कोई भी नहीं था। उस रात तो बस मुझे रात पूरी भर किसी के सांस लेने की आवाज सुनाई देती रही।

पर उस रात तो मैं उस आवाज को अनसुना कर के सो गया। पर अगले दिन जब मैं सुबह देर तक सोता रहा तो मेरे पिता जी मुझे उठाने के लिए आई तो उन्होंने देखा मेरा पूरा शरीर भुखार से तप रहा हैं फिर मेरे पिता जी ने मुझे सोने ही दिया और मेरी माता जी से मुझे दवाई लाकर देने को कहा। और फिर थोड़ी देर में मेरी माता जी ने मुझे दवाई लाकर दी और मैं उस दवाई को खाकर फिर से सो गया। पर दवाई खाकर भी मेरा भुखार ठीक नहीं हुआ इसलिए मैं उस दिन पूरा दिन बस सोता ही रहा।

और जब रात हुई और सब सोने को गए मैं भी अपनी जगह पर खाना खाकर फिर आके लेट गया मुझे लेटे हुए अभी लगभग 10 मिनट ही हुए होंगे की तभी मुझे ऐसा लगा जैसे कोई मेरे कमरे में नाच रहा ही। पहले तो मैंने इस पर ज्यादा कुछ ध्यान नहीं दिया पर थोड़ी देर में वो आवाज जैसे तेज हो गई। फिर उसके बाद मैंने यह देखने के लिए आँख खोली की कौन मेरे कमरे में नाच रहा हैं।

पर मैंने जैसे ही अपनी आँख खोली तो मेरी इस बार डर के मारे चिख निकल गई और मेरे डर कर मारे हाथ पैर कापने लगे क्यूंकि मैंने देखा मेरे कमरे में वही आदमी मुझे ही देखते हुए नाचे जा रहा था। जो आदमी मुझे एक दिन पहले श्मशान घाट में दिखा था उस आदमी ने आज भी अपने एक हाथ में इंसान का हाथ ले रखा था और उस हाथ को वो खा रहा था और नाच रहा था। मैं डरे डरे उसे देखे ही जा रहा था तभी थोड़ी ही देर में मेरे घर के सभी लोग भी मेरे कमरे में आ गए।

क्यूंकि अभी थोड़ी देर पहले मेरी जो चिख निकली थी वही सुनकर सब मेरे पास आए तो उन्होंने मुझे देखा की मैं बहुत डरा हुआ कमरे में एक तरफ लगातर बस डरे डरे देखे ही जा रहा था। फिर उसके बाद सब मेरे पास आकर पूछ रहे थे की - क्या हुआ सूरज और तुम चिल्लाए क्यों - पर मैं कुछ बोल नहीं पा रहा था बस अपने हाथ से इशारा करते हुए उस आदमी को दिखाने की कोशिश कर रहा था।

पर वो आदमी मेरे अलावा किसी और को नहीं दिख रहा था और वो आदमी मुझे अभी भी दिख रहा था। पर शायद मेरे पिता जी समझ चुके थे की मेरे साथ क्या हो रहा हैं क्यूंकि मेरे पिता जी भूतों के बारे में बहुत कुछ जानते थे तभी मेरे पिता जी तुरंत घर के मंदिर के अंदर गए और वहाँ से तुरंत थोड़ा गंगा जल लेकर आए और घर के आस पास छिड़कने लगे। और पता नहीं कौन सा मंत्र पढ़ने लगे और उसके बाद थोड़ी ही देर में वो आदमी भी गायब हो गया।

उस आदमी के गायब होते ही मैंने अपने पिता जी को सारी बात बताई तो उसके बाद मेरे पिता जी ने मुझे एक ताबीज बना कर दी और कहा - बेटा सूरज अब कभी रात के समय श्मशान घाट की तरफ मत जाना -।

फिर उसके बाद मैंने अपने पिता जी से कही बार पूछने की कोशिश करी की वो लोग कौन थे जो श्मशान घाट में नाच रहे थे और इंसानों के अंगों को खा रहे थे। पर मेरे पिता जी ने मुझे उसके बारे में कुछ नहीं बताया और उन्होंने बस मुझे वहाँ रात में जाने से मना करा बस और मैं भी उस दिन के बाद से वहाँ रात में कभी नहीं गया और वो आदमी और वो सभी लोग मुझे कभी नहीं दिखे।


इस कहानी के लेखक हैं - शिव
इस कहानी में आवाज दी हैं - प्रियंका यादव


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