श्रापित जंगल E-3 | horror story in hindi for reading | Hindi story my

 

श्रापित जंगल E-3

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फिर उसके बाद मैं अपने आप को संभाल कर जैसे ही उठा तो तो मेरे होश उड़ गए मुझे ऐसा लगने लगा जैसे मेरी सांस अटक गई हो मेरी जुबान हलक नहीं में रुक गई हो क्योंकि मैंने देखा उन झाड़ियों के पास अखिल,आशीष और जतिन की अलग-अलग टुकड़ों में लाश पड़ी हुई थी।

उन तीनो की लाश देखते ही मेरी बहुत जोर से चीख निकली और मैं खड़े होकर बस उन लोगों की लाश को ही देखे जा रहा था आशीष,जतिन और अखिल को किसी ने तीन तीन हिस्सों में काट कर फेंक दिया था। मैं चीख चीख कर रो रहा था मेरी आंखों के सामने मेरे तीनों दोस्तों की लाश पड़ी हुई थी और मैं उस समय को कोष रहा था कि जब हमने इस जंगल में आने का फैसला किया था। पर तभी मुझे ऐसा लगा कि शायद कोई मुझे आवाज लगा रहा है मैंने झाड़ियों से निकलकर गड्ढे से ऊपर चढ़ने की कोशिश करी और थोड़ी देर में ऊपर चढ़ भी गया पर वहाँ मैंने देखा आशीष, जतिन और अखिल मुझे बिलकुल सही सलामत दिखाई दे रहे थे

वो मुझसे लगभग थोड़ी दूरी पर ही होंगे वो अपने मोबाइल फोन की फ्लैश लाइट जलाकर मुझे ढूंढते हुए आवाज लगा रहे थे - संतोष संतोष संतोष कहाँ है तू - मुझे अपनी आंखों पर कुछ यकीन नहीं हो रहा था कि मैंने क्या देखा और क्या है यह अभी-अभी नीचे गड्ढे में झाड़ियों के पास मेरे तीनों दोस्तों की लाश कटी हुई हालत में पड़ी थी और अब बाहर वो तीनों मुझे ढूंढ रहे थे यह सब देखकर मैं समझ चुका था हो ना हो इस जंगल में छलावा है जिसमें शायद मैं फंसने से बच गया और गड्ढे से बाहर निकल कर आ गया।

बाहर आते ही मैं भागता हुआ फ्लैश लाइट जलाकर उन लोगों के पास पहुंच गया और जतिन,अखिल तीनों से में लिपट कर रोने लगा तीनों बहुत हैरान थे पर तभी आशीष ने कहा - भाई क्या हुआ संतोष किन लोगों की आवाज थी वो और तू कहाँ गया था - लेकिन उस समय मेरे मुँह से कोई शब्द नहीं निकल रहे थे मैं बोलने की कोशिश तो कर रहा था पर मैं बोल नहीं पा रहा था कि मैंने जो देखा वो फिर उसके बाद किस तरह से मैंने अपने आप को संभाला पर फिर थोड़ी देर में मैंने कहा - यार भाई मैंने उस गड्ढे में झाड़ी के पास तुम तीनों की कटी हुई लाश देखी -

मेरी बात सुनकर तीनों हैरान थे पर तभी जतिन ने कहा - भाई तेरी तबीयत तो ठीक है क्या हुआ हैं तुझे कैसी बात कर रहा है - फिर मैंने कहा - कसम से भाई मैंने यही देखा तभी मैं बहुत डरा हुआ और परेशान था - फिर अखिल ने कहा - चलो देख कर आते हैं - पर मैं भी बहुत डरा और घबरा हुआ था लेकिन मैंने भी कहा - हाँ चलो यह सामने ही गड्ढा है और नीचे झाड़ियों के पास ही है लेकिन आशीष ने हमको जाने से रोक दिया और उसने कहा - शायद इस जंगल में ही कुछ है क्योंकि वो औरतें भी हमें नहीं देखी बस उनकी चीखने तड़पने की आवाज सुनाई दे रही थी हो ना हो इस जंगल में छलावा है -

आशीष की बात सुनकर ऐसा लग रहा था शायद जो मैं सोच रहा था वही आशीष भी सोच रहा था फिर उसके बाद हम चारों ने अपने अपने फोन की फ्लैश लाइट जला रखी थी और हम बस यही कोशिश कर रहे थे किसी भी तरह से इस जंगल से बाहर निकल जाए। ऊपर से यह सब देखने के बाद मेरी हालत बहुत ज्यादा खराब थी तीनों मुझे पकड़कर संभालते हुए ले जा रहे थे हम चारों इस समय बस भगवान से यही प्रार्थना कर रहे थे बस किसी तरह से अब हम जंगल से बाहर निकल जाएं। हम किसी को मदद के लिए भी नहीं कह सकते थे क्योंकि यहाँ नेटवर्क भी बिल्कुल नहीं था।

अंधेरी रात में जंगल बहुत ज्यादा खौफनाक दिखाई दे रहा था हर तरफ जंगली जानवरों के साथ साथ कुछ अजीब सी डरावनी भयानक आवाजें भी सुनाई दे रही थी अब ऐसा लग रहा था आगे की तरफ जाएं तो भी खतरा पीछे की तरफ जाए तो भी खतरा जंगल के चारो दिशा में से किसी भी तरफ जाने का अनुमान लगाना ठीक नहीं लग रहा था इसलिए हम चारो एक पेड़ के नीचे जाकर बैठ गए डर तो सच में बहुत लग रहा था और चारो वहाँ बैठे बैठ बस यही सोच रहे थे की किस तरह से हम बाहर निकले

यही हम सोच ही रहे थे की तभी आशीष ने कहा - यार मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा हम 1:00 बजे से जंगल में आए हुए हैं ना तो कोई जंगल के बाहर था और इतने बड़े जंगल के अंदर भी कोई नहीं दिखाई दिया फिर वो 4 औरतें अचानक से कैसे दिखाई दे सकती हैं जब इस जंगल के अंदर वन विभाग के गार्ड किसी को आने नहीं देते तो वो औरतें लकड़ियां लेने कैसे आ गई और आ तो गई ऊपर से थोड़ी ही देर में पता नहीं कहाँ चली गई ना कहीं दिखाई दी कुछ पता हूँ नहीं चला -
अब इसके आगे की कहानी अगले एपिसोड में हैं।


इस कहानी के लेखक हैं - रामचंद्र यादव



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