साया डायन का E-20 | New Hindi Darawni kahani | Hindi story my

 

साया डायन का E-20



अवनीत अपनी जगह पर खड़ा होता और इधर उधर देखने लगता हैं तभी दिव्या उसे आवाज लगा कर बोलती हैं - अवनीत कही तुम यह तो नहीं ढूंढ रहे - इतना बोलकर दिव्या अपना हाथ आगे की ओर करती हैं जिसमे उसने एक तेजधार चाकू पकड़ा हुआ था। अवनीत उस चाकू देखते ही तुरंत दिव्या के हाथ से ले लेता हैं की तभी अवनीत के पिछे अशोक आ जाता हैं वहाँ पहुंचते ही अशोक अवनीत को आवाज लगाता हैं - नहीं अवनीत रुको - अशोक के इतना बोलते ही अवनीत रुक जाता हैं पर तभी दिव्या बोलती हैं - अवनीत क्यों रुक गए जल्दी करो अवनीत -

दिव्या के बस इतना बोलते ही अवनीत वो चाकू अपनी आँखो में घुसाने वाला ही था की तभी अशोक भागता हुआ आता हैं अवनीत के हाथो से वो तेजधार वाला चाकू छीनकर फैक देता हैं और अवनीत को अपने हाथो से हिलाते हुए जोर बोलता हैं - अवनीत क्या हो गया हैं तुझे होश में आ - अशोक के इतनी जोर से बोलने और हिलाने पर भी अवनीत उसे कोई जवाब नहीं देता वो बस एक मूर्ति बना खड़ा रहता हैं तभी अशोक को याद आता हैं की उसे बाबा ने एक और भैरव सुरक्षा कवज दिया था फिर उसके बाद अशोक तुरंत वो भैरव सुरक्षा कवज अवनीत के गले में पैहना देता हैं पर तभी वो दिव्या डायन उन दोनों की ओर बढ़ने लगती हैं।

अशोक उस डायन को अपनी ओर बढ़ता देख काल भैरव का खप्पर आगे की ओर कर के बोलता है - डायन वही रुक जा वरना तुझे यही काट कर रख दूंगा - अशोक ने जैसे ही वो खप्पर आगे की ओर करा वैसे वो डायन उसे देखकर वही रुक तो गई पर अशोक वो दयान को काटने वाली बात को सुनकर वो डायन बड़ी जोर जोर से हंसने लगती हैं और हँसते हँसते ही बोलती हैं - तुम मेरा कुछ नहीं कर सकते - इतना बोलकर वो डायन फिर से हँसने लगती हैं पर इस बार उस डायन को हँसता देख अशोक को पता नहीं क्या होने लगता हैं की वो बस उस डायन के चेहरे को ही देखता रहता हैं।

अवनीत तो पहले से ही अपने होश में नहीं था पर अब अशोक भी धीरे धीरे जैसे उस डायन के वश में हो रहा था और वो डायन अशोक को अपने वश में होते देख मुस्कुराने लगती हैं और अशोक डायन की उस मुस्कान में अपने होश पूरी तरह से खो देता हैं। तभी वो डायन मुस्कुराते हुए अशोक से बोलती हैं - मेरा नाम दिव्या हैं और आपका क्या नाम हैं - फिर अशोक एक कटपुतली की तरह उस डायन का चेहरे देखते हुए बोलता हैं - मेरा नाम अशोक हैं - अशोक का जवाब सुनकर डायन मुस्कुराने लगती हैं और मुस्कुराते हुए ही बोलती - अशोक मैं तुम्हे कैसी लगती हूँ - अशोक फिर से एक कटपुतली की तरह बोलता हैं - मुझे तू बहुत अच्छी लगती हो तुम बहुत सुन्दर हो -

अशोक भी अब बिलकुल अवनीश की तरह कर रहा था जैसे पहले अवनीत कर रहा था और डायन अशोक के मुँह से अपनी तारीफ सुनकर फिर से मुस्कुराने लगती हैं। तभी वो डायन फिर से अशोक से बोलती हैं - अशोक तुम मेरे लिए क्या कर सकते हो - डायन भी बिलकुल वैसे ही सवाल अशोक से कर रही थी जैसे वो पहले अवनीत से कर रही थी तभी अशोक फिर एक कटपुतली की तरह बोलता हैं - मैं तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकता हूँ - फिर वो डायन बोलती हैं - अशोक तुम्हारे हाथ में जो खप्पर और कवज हैं उसे फैक दो - डायन के इतना बोलते ही अशोक वो खप्पर जो वो काल भैरव के मंदिर से लाया था उसे और वो कवज जो उसे बाबा ने दिया था उन दोनों को उधर ही फैक देता हैं।

तभी वो डायन फिर बोलती हैं अशोक जो कवज तुम्हारे गले में हैं उसे भी निकाल कर फैक दो - डायन के इस बार भी इतना बोलते ही अशोक तुरंत अपने गले से भी कवज निकाल कर फैक देता हैं। उस कवज को फैकते ही डायन बड़ी जोर जोर से हँसने लगती हैं और हँसते हुए ही बोलती हैं - अशोक मुझे तुम्हारा गला बहुत पसंद आ गया हैं क्या तुम मुझे अपना गला काट कर दे सकते हो - डायन के इतना बोलते हैं अशोक एक कटपुतली की तरह अपना सर हाँ में हिलाता हैं और इधर उधर देखने लगता हैं तभी वो डायन अपना हाथ आगे करते हुए बोलती हैं - अशोक तुम कही यह तो नहीं ढूंढ रहे - डायन के इतना बोलते ही अशोक उस डायन के हाथ की ओर देखता हैं जिसमे उसने एक तेजधार चाकू पकड़ा हुआ था।
अब इसके आगे की कहानी अगले एपिसोड में हैं


इस कहानी के लेखक हैं - शिव


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