श्रापित जंगल E-7 | most horror story in hindi | horror story to read

 

श्रापित जंगल E-7



लेकिन इस बार आशीष की बात का कोई जवाब नहीं मिला और फिर से उसी औरत की हंसी सुनाई देने लगती हैं पर इस बार वो हंसी की आवाज बहुत ज्यादा डरावनी और भयानक लग रही थी आवाज पूरे जंगल में गूंज तो रही थी पर ऐसा लग रहा था कि हमारे आसपास ही कोई हंस रहा हो क्यूंकि उसकी आवाज हमारी कानों में ऐसे आ रही थी जैसे वो हंसी हँसने वाला भी हमारे साथ ही चल रहा हो। पर तभी मेरे फ़ोन की बैटरी भी खत्म हो गई अब बस जतिन और आशीष के फोन की ही लाइट चल रही थी।

और हम बस उन फ़ोन से लाइट ही जला सकते थे क्योंकि फ़ोन में नेटवर्क तो बिलकुल भी नहीं आ रहे थे नहीं है तो हम किसी को फोन कर के बता सकते कि हम इस सुंदरवन में फंसे हुए हैं लेकिन इस जंगल में आने से ही पहले ही मैंने जब अपने घर में बताया कि हम सुंदरवन में जा रहे हैं घूमने के लिए तो उस समय सुंदरवन का नाम सुनते ही मेरे पापा ने उसी समय मुझे मना कर दिया था उन्होंने कहा - तुम लोगो उस जंगल के अलावा और कोई जगह नहीं मिली वहाँ मत जाना उस जंगल के बारे में बहुत अजीब-अजीब बातें करते हैं लोग इसलिए वहाँ मत जाना -

लेकिन मेरे पापा ने जब ऐसा कहा तो हमारे अंदर इस जंगल के अंदर आने के लिए और ज्यादा उत्सुकता होने लगी और हम लोगों ने कहा अब तो जरूर जाएंगे सुंदरवन में घूमने के लिए पर अब हमें पता चला की बहुत बड़ी गलती करी थी हमने उस समय यह निर्णय करके कि हम जरूर जाएंगे सुंदरवन काश मैं अपने पापा की बात उस समय मान लेता पर अब इन सब बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि हम सुंदरवन में आए और अब फंसे हुए हैं रात के लगभग 12:00 बज चुके हैं और हमारे एक दोस्त की भी मौत हो गई है यह भी पता नहीं कि अब हम लोग यहां से जिंदा वापस जा भी पाएंगे या नहीं

हम तीनों ने यह तय किया कि अब एक ही फोन की लाइट जलाएंगे क्योंकि दोनों फोन की बैटरी खत्म होने वाली थी और यहाँ अंधेरे का मतलब मौत ही है लेकिन एक लाइट जलाकर इस खतरनाक बड़े भयंकर जंगल में कोई फर्क नहीं पड़ रहा था और कुछ सही ढंग से दिख भी नहीं रहा था तो हमने कहा जो होगा देखा जाएगा इसलिए हमने फिर दोनों फोन की लाइट ऑन कर के जंगल में आगे की तरफ जा रहे थे और यही सोच रहे थे शायद क्या पता बाहर निकल ही जाए यह उम्मीद तो थी हम तीनों को लेकिन जंगल में वो हंसी और रोने की आवाज लगातार अभी भी गूंज रही थी।

ऐसा लग रहा था वो आवाज एक पल में ही रो रही हो और थोड़ी ही देर में अजीब सी हंसी मैं हंस रही हो और जंगल में जंगली जानवरों की आवाज तो आ ही रही थी लेकिन सच बताऊं तो हमें उस समय किसी भी जंगली जानवर की आवाज से कोई भी दिक्कत नहीं थी दिक्कत बस हमें इसी आवाज से थी जो लगातार हमारा पीछा कर रही थी और हमारे साथ ही साथ मनो चल रही हो क्योंकि वो शायद किसी शैतानी औरत की आवाज थी जो कभी हंसी में सुनाई देती थी तो कभी रोने में फिर उसके बाद हम लोगों को जिस बात का डर था वही हुआ थोड़ी देर बाद ही आशीष और जतिन दोनों का फोन एक साथ ही स्विच ऑफ हो गया।

फ़ोन स्विच ऑफ होते ही हमारे आस पास पुरे में बिल्कुल अंधेरा हो गया उस समय अंधेरे में तो ऐसा लग रहा था अब बस इसी समय ही कोई हमारी जान ले लेगा तभी जतिन ने कहा - यार हमारे पास गैस सिलेंडर तो है ही चलो जब तक सुबह नहीं हो जाती तब तक इसको ही जलाकर यही जंगल में कहीं बैठ जाते हैं - फिर मैंने भी कहा - हाँ बात तो सही है क्योंकि मैंने सुना हैं की आग से भूत प्रेत या ऐसी बुरी शक्तियां डरती है और वो हमारे पास नहीं आ सकती जब तक हम आग जला कर रख देंगे -

फिर उसके बाद हम जो सिलेंडर लेकर आए हुए थे उस के चूल्हे में आग लगाकर हम लोग उसी सिलेंडर के आसपास बैठ कर आग शेख रहे थे की तभी उसी आग की रोशनी में मुझे ऐसा लगा जैसे कोई सामने से हमारी तरफ आ रहा हो मैंने जतिन और आशीष को भी हाथ से इशारा के दिखाया तो ओर देखकर जतिन ने कहा - यार यह तो अखिल जैसा लग रहा है सच में अखिल जैसे ही है शायद पर अखिल - जतिन के इतना बोलने के बाद मैंने आवाज लगाइए - अखिल अखिल -

इतना बोलकर उसकी तरफ जाने लगा लेकिन तभी आशीष ने मुझे पकड़ लिया और कहा - रुक भाई यह मत बुल इस जंगल में कुछ ना कुछ अलावा ही है शायद क्योंकि अखिल को तो कोई हमारे सामने से घसीट कर ले गया था और हम तीनों ने उसकी लाश भी तो देखी थी कई टुकड़ों में यह कैसे हो सकता है कि वो अखिल हैं इसलिए हमें यहाँ से उधर जाना ठीक नहीं है हमको इसी आग के पास ही बैठना चाहिए देखते हैं वो इधर आता है या नहीं - आशीष के इतना बोलने के बाद मैं फिर से अपनी जगह पर बैठ गया पर अखिल तो अभी भी हमारी तरफ ही आ रहा था और थोड़ी ही देर में वो हमारे पास ही पहुंच गया।

और वो हम से थोड़ी सी दुरी पर आके खड़ा हो गया अखिल हमारे पास ही खड़ा था यह देखकर तो हम लोगों को अपनी आंखों पर यकीन नहीं हो रहा था कि हमने थोड़ी देर पहले क्या देखा था और अब अखिल हमारे सामने खड़ा दिख रहा है मुझे वो भी याद था जो पहले मैंने एक गड्ढे के पास झाड़ियों में अपने तीनों दोस्तों की टुकड़ों में लाश देखी थी और बाद में तीनों दोस्त मुझे सही सलामत मिले थे मैंने यही बात दोनों को बताई कि शायद ऐसा ही कुछ हो और यह अखिल जो सामने खड़ा है जिंदा ही हो इतना हम सब आपस में धीरे-धीरे बात कर ही रहे थे की तभी अखिल ने कहा - अबे भाई कहाँ चले गए थे तुम लोग यार मैं तुम लोगों को कितनी देर से ढूंढ रहा हूँ भाई यार -

हम तीनों उसी आग के पास खड़े होकर यह सब सुन रहे थे की तभी मैंने कहा - अखिल तू कहाँ चला गया था कौन था जो तुझे घसीटता हुआ ले जा रहा था - लेकिन फिर अखिल ने हम तीनों को चौंका देने वाली बात कही अखिल ने कहा - कैसी बात कर रहे हो घसीटता हुआ अरे तुम लोग तो मुझे उधर जहाँ हम लोग पहले बैठे थे पेड़ के पास वहीं छोड़ कर आ गए थे मैं टॉयलेट करने के लिए पीछे गया और उतने में तुम लोग मुझे छोड़ कर चले गए और तब से मैं तुम्हें पुरे जंगल में ढूंढ रहा था - अखिल यह सब बातें बोल रहा था और मैं एकटक अखिल को ही देख रहा था क्यूंकि मैं यह सोच रहा था कि अगर अखिल इतनी देर से हमें इस जंगल में हमें रहा है तो कैसे ढूंढ रहा था क्यूंकि उसके पास अभी उसका फोन भी नहीं था और इस जंगल में तो लाइट के बिना तो एक कदम रखना भी नामुमकिन सा है इस अंधेरे में और वो बिना लाइट चलाएं हमें कैसे ढूंढ रहा था।



इस कहानी के लेखक हैं - रामचंद्र यादव



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