श्रापित बंगला E-6
वो तीनों बाहर घूमने जाने के लिए बाहर सड़क पर खड़े किसी बस का इंतजार कर रहे थे। और थोड़ी देर में बस आई और वो तीनों बस में बैठ गए और लगभग 5:30 बजे घंटाघर पर उतरे फिर संतोष, प्रीति और नेहा को देहरादून शहर मे हर जगह घुमा रहा था। क्यूंकि प्रीति पहली बार इस शहर में घूम रही थी और अब उसको भी अच्छा लग रहा था अब शायद उसका मूड भी सही हो गया था। थोड़ी देर में वो तीनि मार्केट के अंदर गए तो वहाँ बहुत सारे टॉयज की दुकानों को देखकर नेहा जिद करने लगी - पापा मुझे टॉय चाहिए - संतोष ने भी कहा - क्यों नहीं बिल्कुल चलो - और उसके बाद वो दुकान के अंदर चले गए।
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नेहा ने अपने लिए तो खिलोने लिए ही और उसने कहा - पापा आप एक रश्मि और प्रिया के लिए भी ले लो ना प्लीज पापा उनके लिए भी ले लो मैंने उनको कहा था जब हम घूम कर आएंगे तो तुम दोनों के लिए भी मैं खिलोने लेकर आऊंगी इसलिए आप उन दोनों के लिए भी ले लो - फिर संतोष ने कहा - बेटा हम उनके लिए बाद में ले लेंगे पहले आप ले लो अपने लिए बाद में ले लेंगे ठीक है - लेकिन नेहा रोने लगी और जिद करने लगी - नहीं पापा उन दोनों के लिए भी लेलो नहीं तो मुझे भी नहीं चाहिए - संतोष बहुत परेशान था लेकिन वो करता भी तो क्या क्यूंकि दुकान में बहुत लोग भी थे।
तो उसने कहा - ठीक है उनके लिए भी ले लो - उसके बाद वो दुकान से बाहर निकले और अब संतोष नेहा को बहुत प्यार से समझाने लगा - बेटा तुम्हें क्या हो गया है वहाँ कोई भी नहीं रहता है उस घर में सिर्फ हम लोग रहते हैं और कोई भी प्रिया और रश्मि नहीं है - संतोष की बात बीच में ही काटते हुए प्रीति ने कहा - संतोष वही है प्रिया और रश्मि शायद वो सिर्फ नेहा को ही दिखते हैं और नेहा से ही बातचीत करते हैं क्योंकि मैंने जब भी उन्हें देखा सिर कटी हालत में वो लड़कियां वैसे ही थी और जब आज गार्डन में देखा तो बिल्कुल सही हालत में नेहा के साथ खड़ी थी - इतना ही कहा होगा प्रीति ने तो संतोष को फिर से गुस्सा आ गया।
फिर संतोष ने कहा - तुम चुप हो जाओ अब तुम्हारे चक्कर से हमारी बच्ची भी परेशान हो गई और पता नहीं क्या-क्या अनाप-शनाप सोचती है जो कुछ है भी नहीं उसके दिमाग में भी तुम्हारे चक्कर से उल्टी-सीधी बातें घूमती रहती है अब चलो आज घर जाने के बाद कल सुबह यहीं पर शहर में एक हॉस्पिटल है वहाँ आएंगे - प्रीति ने संतोष को इस बार कोई जवाब नहीं दिया क्योंकि वो समझ चुकी थी संतोष को समझाना अब बस बेकार ही है क्योंकि संतोष को इन बातों पर या यह जो भी घटनाएं हो रही हैं उनपर संतोष को बिलकुल भी विश्वास नहीं था।
लेकिन प्रीति यह भी जानती थी कि जो कुछ भी है उस बंगले से ही जुड़ा है क्योंकि जब तक वो उस बंगले में थी तो उसके अंदर एक अजीब सा डर और घबराहट था और जब ही अब वो बंगले से बाहर है तब से ही वो अपने आप को बिल्कुल सही महसूस कर पा रही थी। और साथ ही साथ प्रीति यह भी सोच रही थी कि अभी थोड़ी देर में फिर हमें उसी बंगले पर जाना है यह सोचकर भी उसका मन डर रहा था और घबरा रहा था। तभी नेहा ने कहा - पापा हम बहुत देर से घूम रहे हैं अब मुझे भूख लग रही है - फिर संतोष ने कहा - हाँ चलो अब किसी रेस्टोरेंट में जाकर डिनर कर लेते हैं फिर क्योंकि अब अंधेरा भी हो गया है फिर उसके बाद घर जाएंगे क्योंकि अपने पास अभी गाड़ी भी तो नहीं हैं इसलिए बस में जाना पड़ेगा -
फिर प्रीति ने संतोष से कहा - ऐसा नहीं कर सकते क्या कि आज हम जो तुम्हारे स्कूल की तरफ से तुम्हें रूम दिया गया था वहीं पर रुक जाए क्योंकि अब रात भी तो हो गई है - प्रीति की बात सुनकर संतोष ने प्रीति के चेहरे की तरफ देखा और हल्के से मुस्कुराते हुए कह - चलो ठीक देखते हैं - क्योंकि संतोष भी जानता था अभी फिर से उस बंगले में जाएंगे तो प्रीति फिर वही अनाप-शनाप जो उसको इस बंगले के बारे में बताया गया है वही सोचेगी और परेशान खुद भी होगी और नेहा भी परेशान हो सकती है। लेकिन नेहा यह सुनकर फिर से रोने लगी और कहने लगी - नहीं हम घर पर ही जाएंगे वहीं पर मुझे रश्मि और प्रिया को उनके खिलोने भी देने हैं और उनको बताना है कि आज हमने कितना घुमा और कितनी मस्ती करी पापा इसलिए हम वहीं पर ही जाएंगे -
संतोष ने फिर कहा - हाँ ठीक है चलो पहले कुछ खा लेते हैं - उसके बाद वो तीनों एक रेस्टोरेंट में गए और थोड़ा आगे जाकर अंदर एक साथ टेबल पर बैठकर खाना खा ही रहे थे और इधर-उधर की बातें भी कर रहे थे। की तभी प्रीति को ऐसा महसूस हुआ कि उसके कान के पास कोई फुसफुस आ रहा है और अब उसको कान में फुसफुस आने की आवाज साफ सांप सुनाई देने लगी। प्रीति के कान में कोई बोल रहा था - अगर तुमने नेहा को हमसे दूर करने की कोशिश करी तो अंजाम बहुत बुरा होगा इसलिए आना तो तुम्हें बंगले में ही होगा नहीं तो तुम सब मारे जाओगे - और फिर डरते हुए प्रीति ने थोड़ा बगल में देखा तो उसके होश उड़ गए। और उसके रगों में चलता खून जम स गया और उस भरे रेस्टोरेंट में प्रीति की चीख गूंजने लगी।
प्रीति जोर-जोर से चिल्लाते हुए बाहर की तरफ भागने लगी संतोष भी उठकर प्रीति के पास दौड़कर गया और उसने उसे तुरंत थाम लिया। प्रीति डरते घबराते हुए यही बोल रही थी कि - संतोष वो देखो वो वो देखो वो दोनों लड़कियां टेबल पर बैठी है और वो कह रही थी कि अगर हमने नेहा को उनसे दूर किया तो तुम लोगो के साथ अच्छा नहीं होगा और कह रही थी अगर तुम लोग उस बंगले में आज नहीं गए तो फिर मारे जाओगे इसलिए तुम्हें बंगले में आना होगा - रोते हुए प्रीति यह सब बातें संतोष को बता रही थी और रेस्टोरेंट में बैठे सभी लोग प्रीति को बहुत अजीब ढंग से देख रहे थे। उसके बाद संतोष ने बिल पे करने के बाद नेहा और प्रीति का हाथ पकड़ा और रेस्टोरेंट से तुरंत बाहर लेकर आ गया।
वो खुद नहीं समझ पा रहा था क्या करें क्यूंकि अब उससे प्रीति की हालत देखी भी नहीं जा रही थी। अभी तक जो संतोष को प्रीति पर गुस्सा आ रहा था लेकिन अब संतोष सोच रहा था ऐसा क्या हो गया प्रीति के दिमाग पर। उसके बाद संतोष, प्रीति और नेहा को लेकर एक बस में बैठ गया और वो लोग उसी जगह पर जाकर उतरे जहाँ संतोष का स्कूल था। अब टाइम भी बहुत हो गया था घड़ी में लगभग रात के 8:00 या 8:30 बज रहे होंगे प्रीति इस समय भी शायद उसी सदमे में थी जो कुछ उसके साथ रेस्टोरेंट में हुआ लेकिन इस बात से थोड़ा संतुष्ट थी कि कम से कम आज तो हमें उस बंगले पर नहीं रुकना पड़ेगा। और साथ ही साथ एक वो भी डर था जो उसको उसके कान में सुनाई दिया था कि अगर नेहा को हम से अलग किया तो अंजाम अच्छा नहीं होगा।
यही सब बातें प्रीति के दिमाग में चल रही थी उसके बाद संतोष प्रीति और नेहा को बाहर ही रोक कर सीधा जाकर स्कूल में उस गार्ड के पास गया। और उसने जो वहाँ देखा तो मानो अब तो संतोष के भी होश उड़ गए और उसकी की रगों में चलता खून जम सा गया। इतनी देर से जो संतोष प्रीति को यह समझाने की कोशिश कर रहा था यह कुछ भी नहीं है बस तुम्हारा वैहम है और तुम्हारे दिमाग पर ही कोई गलत असर हुआ है पर अब संतोष की भी आवाज हलक में ही अटक गई और वहाँ से डरता हुआ वापस पीछे की तरफ भागा जहाँ बाहर नेहा और प्रीति खड़े हुए थे। क्योंकि उसने जो वहाँ देखा था वो सब देखने के बाद संतोष को खुद अपनी आंखों पर ही विश्वास नहीं हो रहा था संतोष घबराता हुआ प्रीति से बोला प्रीति चलो यहाँ से चलो कहीं और चलते हैं।
फिर प्रीति के बार-बार पूछने पर संतोष ने बताया कि उसने देखा वो वहाँ गार्ड नहीं है और उसकी जगह एक औरत बैठी हुई है जिसका सर कटा हुआ है और उसका कटा हुआ सर सामने की टेबल पर रखा हुआ है और उस कटे हुए सर से आवाज आ रही थी की - भलाई इसी में है अभी तुम लोग उसी बंगले में लौट जाओ अभी लौट जाओ बंगले में नहीं तो मारे जाओगे अगर बचना है अभी उसी बंगले में चली जाओ - प्रीति ने जब सुना तो उसे समझ में आ गया था कि जो अब तक उसके साथ हो रहा था अब वो संतोष को भी महसूस होने लगा और संतोष को भी वो औरत दिखाई देने लगी।
उसके बाद संतोष ने प्रीति का हाथ पकड़ा और प्रीति ने नेहा को गोद में उठा रखा था क्यूंकि नेहा सो रही थी और उन्होंने वहाँ से भागना शुरू कर दिया। प्रीति और संतोष लगातार भाग रहे थे भागते भागते दोनों बहुत थक चुके थे और प्रीति की दिल की धड़कने भी बहुत तेज तेज धड़क रही थी क्योंकि प्रीति भागते भागते बहुत थक चुकी थी और हाफ रही थी तभी प्रीति की नजर जो उसके साथ संतोष भाग रहा था उस पर पड़ी तो मानो प्रीति के पैरों के नीचे से जमीन ही निकल गई हो। उसके बाद प्रीति चीखने चिल्लाने लगी क्योंकि उसने देखा वो जिसके साथ हाथ पकड़ कर भाग रही थी वो एक औरत थी कटे हुए सर वाली और वो वही औरत थी जिसको प्रीति ने कई बार देखा था।
उसके बाद प्रीति ने एक झटके में हाथ छोड़ा और चीखते चिल्लाते हुए पीछे की तरफ भागने लगी। तभी प्रीति शायद किसी चीज से टकराई और वो जाकर बड़ी तेजी से सड़क पर गिरी। नेहा जो अभी तक सो रही थी तभी उसकी भी नींद खुली और वो यह सब देख कर रोने लगी नेहा रो रही थी और प्रीति के पास ही बैठी हुई थी। पर प्रीति उस समय शायद बेहोश हो गई थी। अब इसके आगे की कहानी अगले एपिसोड में हैं।
इस कहानी के लेखक हैं - रामचंद्र यादव
इस कहानी में आवाज दी हैं - प्रियंका यादव
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