श्रापित बंगला E-7
नेहा प्रीति के पास ही बैठी रो रही हथी। पर प्रीति उस समय शायद बेहोश हो गई थी। तभी नेहा ने सुना कि उसकी मम्मी के पास में रखा फोन बज रहा है नेहा ने तुरंत फ़ोन बाहर निकाला तो उसको पता था की शायद फोन उसके पापा का होगा इसलिए उसने तुरंत फ़ोन रिसीव करा और रोते हुए कहा - पापा कहाँ हो आप - दूसरी तरफ से संतोष ने कहा - नेहा कहाँ हो तुम लोग और तुम्हारी मम्मी कहाँ है - नेहा ने फिर बताया - मम्मी इधर गिरी हुई है मम्मी के सर पर चोट लग गई है मम्मी नहीं उठ रही है पापा पापा जल्दी आओ मम्मी नहीं उठ रही है -
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लगातार नेहा रोते हुए संतोष को फोन में बता रही थी संतोष को यह तो पता नहीं था किस तरफ गए हैं और कहाँ पर है नेहा और प्रीति संतोष ने कई बार नेहा से पूछने की कोशिश करी पर नेहा ने यही कहा - मम्मी यहाँ पर गिरी हुई है मम्मी के चोट लगी हुई है जल्दी आ जाओ -उसके बाद संतोष और उस स्कूल का गार्ड दोनों भागते हुए इधर उधर जा रहे थे संतोष ने गार्ड को कह कि तुम नीचे की तरफ जाओ और मैं ऊपर की तरफ देखता हूँ संतोष ऊपर राजपुर रोड की तरफ भाग रहा था और लगातार आवाज लगा रहा था - नेहा,प्रीति, प्रीति,नेहा, प्रीति - तभी शायद नेहा ने अपने पापा की आवाज सुनी और वो भी वहीं से आवाज लगाने लगी - पापा पापा हम यहाँ पर हैं -
सदोष ने शायद नेहा को देख लिया था क्योंकि सड़क पर ही प्रीति गिरी हुई थी और नेहा उसके साथ ही थी। उसके बाद संतोष भागता हुआ उनके पास गया और उसने कहा - क्या हुआ और तुम लोग यहाँ कैसे आए - नेहा ने कुछ नहीं बताया बस वो रो रही थी। उसके बाद संतोष ने प्रीति को गोद में उठा लिया और उसी बेहोशी की हालत में लेकर स्कूल के पास ले गया फिर संतोष ने प्रीति के चेहरे पर पानी के छींटे मारे तो थोड़ी देर में प्रीति को होश आ गया। और प्रीति होश में आते ही फिर रोने लगी और संतोष की तरफ देखते ही चिल्लाने लगी - छोड़ दो छोड़ दो हमें हमने क्या किया है मत मारो हमें छोड़ दो -
संतोष ने फिर प्रीति को अपने सीने से चिपका लिया और चलाते हुए कहा - क्या हो गया है प्रीति क्या कह रही हो तुम मुझसे क्यों डर रही हो - लेकिन प्रीति की आँखो से आंसू रुक नहीं रहे थे। और प्रीति मानो संतोष से ही डर रही थी पर संतोष उसे अपने से बिल्कुल दूर नहीं होने दे रहा था। उसके बाद बहुत कोशिश और समझाने के बाद प्रीति ने शायद समझ लिया कि हाँ यह ही उसका संतोष है तो उसने जो भी अभी उसके साथ हुआ वो सारी बात संतोष और जो वहाँ कार्ड था उसको बता दी। यह सुनते ही संतोष के दो रोंगटे खड़े हो गए क्योंकि संतोष तो गार्ड के साथ गार्ड रूम में ही था और वो उस रूम की चाबी ढूंढ रहे थे।
और चाबी ढूंढते ढूंढते बहुत देर हो गई और चाबी नहीं मिली तो उसने बाहर निकल कर देखा तो प्रीति और नेहा कहीं नहीं थे संतोष ने बताया कि उसने सोचा कि शायद आस-पास ही कहीं होंगे पर ढूंढने के बाद जब नहीं मिले तो उसने फोन किया और नेहा ने फोन उठाया तब जाकर पता चला कि तुम लोग वो उधर राजपुर रोड की तरफ थे और तुम्हारे सर में चोट लगी थी यह देख कर मैं तुमको उठाकर यहाँ लेकर आया - लेकिन प्रीति यह समझ चुकी थी कि जो कुछ भी उसके साथ हुआ वो बहुत खतरनाक और अविश्वसनीय था।
तभी स्कूल के गार्डन ने कहा - सर रूम की चाबी तो मिली नहीं पता नहीं कहाँ गई और रात भी बहुत हो गई है यहाँ बाहर ऐसे रुकना भी ठीक नहीं है क्योंकि ना तो भाभी जी की और ना ही नेहा की तबीयत ठीक है इसलिए आप वही चले जाओ पर अब तो शायद बस भी मिलना मुश्किल है इसलिए कोई टैक्सी या ऑटो करना पड़ेगा - फिर संतोष ने कहा - हाँ सही कह रहे हो क्योंकि रात में यहाँ बाहर रुकना भी सही नहीं है - फिर संतोष अपने मन में ही सोचने लगा - प्रीति की हालत भी ज्यादा सही नहीं हैं क्योंकि उसके सिर में भी चोट लगी हुई हैं और वो फिर उस बंगले में जाने के नाम से और बेचैन ना हो जाए - यही सब वो सोच रहा था।
लेकिन फिर भी संतोष ने प्रीति से बात करने की कोशिश करी और कहा - प्रीति हमको अभी उस बंगले में ही जाना पड़ेगा क्योंकि हमारे पास अभी और कोई ऑप्शन नहीं है यहाँ रूम की चाबी भी नहीं मिली सरकारी रूम है और उसका लॉक भी नहीं तोड़ा जा सकता इस वजह से रात में यहाँ अब और रुकना भी सही नहीं हैं - प्रीति ने संतोष की सारी बात सुनी और उसने भी हाँ में सर हिला दिया। यह लोग करते भी और क्या क्योंकि रात में और कहीं रुका भी नहीं जा सकता था इसलिए बंगले में ही जाना सही समझा। उसके बाद संतोष ने आस पास में पता कर के एक ऑटो ढूंढ लिया और तीनों ऑटो में बैठ कर बंगले की तरफ चले गए।
लगभग 10 या 15 मिनट में वो लोग उस बंगले पर भी पहुंच गए। लेकिन बंगले पर पहुंचते ही संतोष के होश उड़ गए क्योंकि घर पर तो कोई नहीं था तो लाइट किसने ऑन करी। प्रीति से पूछा - क्या तुमने लाइट ऑफ करी थी क्या - लेकिन संतोष को राहत की सांस मिल गई क्योंकि प्रीति ने कहा जाते समय उसने ही सारी लाइट ऑन कर दी थी। संतोष, प्रीति और उनकी छोटी सी बेटी नेहा अब फिर से उसी बंगले पर थे जिस बंगले में आने से ही प्रीति के साथ अजीब अजीब से हादसे हो रहे थे। और यहाँ आते ही प्रीति को एक अजीब सा डर लगने लगा लेकिन संतोष उसे संभालता हुआ घर के अंदर ले गया।
और उसने कहा - प्रीति अब कुछ नहीं होगा सब ठीक है हम जैसे तैसे आज की रात यहाँ बिता लेते हैं कल हम कहीं और घर लेकर शिफ्ट हो जाएंगे कल मैं बात करके स्कूल वाले रूम पर ही रुक जायेंगे जब तक हमें शहर में और कहीं घर नहीं मिल जाता - प्रीति सब कुछ सुन रही थी पर उसके मुंह से इस समय एक भी शब्द नहीं निकल रहे थे। तभी नेहा जो अभी तक ऑटो में बैठे-बैठे सो रही थी पर यहाँ आते ही उसकी भी नींद खुल गई और वो घर में पहुंचते ही संतोष का हाथ छुड़ाकर ऊपर की तरफ जाने की कोशिश करने लगी और कहने लगी - पापा रुको मैं रश्मि और प्रिया से मिलकर आ जाती हूँ उनसे मुझे बातें करनी है बहुत सारी और उनको उनके खिलोने भी दूंगी जो हम लेकर आए हैं -
पर संतोष ने प्यार से नेहा को पकड़ा और कह - बेटा हम थक गए हैं और आप भी थक गए हो इतनी दूर से घूम कर आए हैं और मम्मी के चोट भी लग गई है इसलिए अभी आराम कर लो सो जाओ कल सुबह दे देना ठीक है - लेकिन वो ऊपर जाने के लिए जिद करने लगी। फिर संतोष के बार-बार मना करने पर और डांटने पर नेहा बेड पर ही सो गई। और संतोष और प्रीति भी बिस्तर पर लेट गए। और लेटे लेटे दोनों को शायद नींद भी लग ही गई वैसे भी थके हुए थे। पर आधी रात में प्रीति की आँखे फिर खुल गई और वो चौक ते हुए उठी क्योंकि प्रीति को शायद महसूस हो रहा था कि उसके कान में कोई फुसफुस आ रहा है।
उसने फिर उठकर दिखा कि संतोष गहरी नींद में सो रहा है और नेहा भी सो रही है। फिर प्रीति ने सामने दीवार पर लगी घड़ी पर टाइम देखा तो 12:00 बज के 30 मिनट हो रहे थे संतोष सो रहा था और प्रीति की आँखे खुल गई थी अब प्रीति को नींद आना भी बहुत मुश्किल सा लग रहा था। और प्रीति के दिमाग में बस यही बाते चल रही थी की जो संतोष के स्कूल के पास सड़क पर वो संतोष का हाथ पकड़ कर भाग रही थी पर अचानक वो हाथ संतोष ना होकर एक कटे सर वाली औरत का था। यह सब घटना घूम घूम के प्रीति के दिमाग में चल रही थी
पर प्रीति के दिल में एक ऐसी उम्मीद भी थी की रात अब कुछ घंटे बाद खत्म हो जाएगी फिर हम कहीं और रहेंगे और फिर सब ठीक हो जाएगा। प्रीति यही सब सोच रही थी की तभी उसके कान में फिर से किसी ने फुसफुस आया और अब की बार आवाज बिल्कुल साफ साफ़ सुनाई दी की - तुम यहाँ आए थे अपनी मर्जी से लेकिन जाओगे हमारी मर्जी से क्योंकि नेहा अब हमारी फ्रेंड है और अगर नेहा को तुमने हमसे अलग करने की कोशिश करी तो यह गलती तुम पर बहुत भारी पड़ेगी नेहा हमारे साथ ही रहेगी अब नेहा को कोई हमसे जुदा नहीं कर सकता - यह सुनते ही एक झटके में प्रीति फिर उठ कर बेड पर बैठ गई।
और रोते हुए ही हवे में ही बोलने लगी - हमने क्या बिगाड़ा है तुम लोगों का क्यों परेशान कर रहे हो हमें क्यों मेरी बच्ची को परेशान कर रहे हो - प्रीति के इतना ही बोलते ही उसी हवा में या फिर कहो उस बेडरूम के अंदर एक जानी पहचानी और डरावनी फिर वही हंसी की आवाज गूंजने लगी जैसे मानो वो हंसने की आवाज प्रीति का मजाक उड़ा रही हो और उसको प्रीति को परेशान करने में शायद मजा आ रहा हो। हंसते हंसते वही आवाज अगले पल रोने में बदल गई और रोते रोते बोली - अगर तुमने नेहा को हम से अलग करने की गलती करी अंजाम बहुत भारी होगा -
इतना बोल कर वो आवाज फिर शांत हो गई। उसके बाद प्रीति बेड पर बैठे-बैठे रो ही रही थी और बस भगवान से प्रार्थना कर रही थी कि वो हमें इस मुश्किल घड़ी से निकाले और हम जो यहाँ फंसे हुए हैं वो यहाँ से बाहर निकालने में मदद करें। काफी देर तक प्रीति बेड पर ही बैठी हुई थी लेकिन अब उसे ना कोई आवाज सुनाई दे रही थी ना कुछ तो उसके बाद फिर वो चादर ओढ़ कर लेट गई। प्रीति को लेटे हुए 10 से 15 मिनट ही हुए थे की उसने देखा नेहा अपने बेड से उतरी और वी सीधा रूम खोलकर बाहर निकल गई। प्रीति ने संतोष को ना जगाते हुए उठी और नेहा के पीछे पीछे जाने लगी। नेहा भागते हुए पहले फर्स्ट फ्लोर फिर सीडी से ही भागते हुए सेकंड फ्लोर फिर थर्ड फ्लोर में चली गई।
इस कहानी के लेखक हैं - रामचंद्र यादव
इस कहानी में आवाज दी हैं - प्रियंका यादव
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